आर.के.सिन्हा
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विगत सप्ताह देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में प्रमुख उद्योगपतियों को अपने राज्य में करने निवेश करने का न्यौता देने गये। उन्हें लखनऊ या दिल्ली बुला भी सकते थे। पर मुंबई जाकर निवेश के प्रति अपनी गम्भीरता का इज़हार कर अच्छा ही किया। अवसर पर उन्होंने यूपी इंवेस्टर्स समिट 2018 के लिए साल 2018 के फरवरी में लखनऊ में होने वाले बिजनेस समिट के लिए “लोगो” भी यहीं से लॉन्च किया।
देखा जाए तो योगी जी उसी दिशा में चल पड़े हैं, जिस पर हरेक मुख्यमंत्री और सरकार को चलना ही चाहिए। कोई भी प्रदेश निजी क्षेत्र के निवेश के बिना चौतरफा विकास कर ही नहीं सकता। आपको देसी-विदेश निवेश तो आकर्षित करना ही होगा। इसी क्रम में आपको अपने राज्य में निवेश का अनुकूल वातावरण भी बनाना होगा , ताकि प्राइवेट सेक्टर का निवेश भी खुलकर आए। ये अपने आप में सुखद है कि अब अधिकतर राज्य अपने यहां निवेश लाने के लिए तगड़ी पहल कर रहे हैं। इनमें एक तरह से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी है। इसका निश्चित तौर पर स्वागत तो होना ही चाहिए।
जाहिर सी बात है कि जो राज्य जितने ठोस कदम उठाएंगे निवेश को खींचने के लिए, उन्हें उतना ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और देश के अन्दर से ही प्राइवेट सेक्टर का निवेश भी मिलेगा। यूं तो, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू औरके. चंद्रशेखर राव आपस में अक्सर लड़ते -झगड़ते रहते हैं, पर इन दोनों में एक अद्भुत समानता भी है। ये दोनों अपने-अपने प्रदेश में निवेश लाने के लिए लगातार प्रयासरत रहते हैं। ये अक्सर विदेश यात्राएं भी करते रहते हैं निवेशकों से मिलने के लिए।इसका इनदोनों को ही लाभ भी मिला है। निवेश के स्तर पर इनके बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी चल रही है।
उदाहरण महाराष्ट्र-गुजरात का
और, महाराष्ट्र और गुजरात तो परम्परागत रूप से देश के दो इस तरह के राज्य हैं, जहां पर निवेश का वातावरण शुरू से ही रहा है। दरअसल भारत की औद्योगिक और आर्थिक प्रगति का रास्ता इन दोनों ही राज्यों से होकर गुजरता है। अगर गुजरात की बात करें तो इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से लगी है। गुजरात का क्षेत्रफल 1,96,024 वर्ग किलोमीटर है। और अगर बात महाराष्ट्र की हो तो, देश की आज़ादी के बाद मध्य भारत के सभी मराठी भाषी स्थानों का विलय करके एक राज्य बनाने को लेकर बड़ा आंदोलन चला और 1 मई, 1960 को कोंकण, मराठवाडा, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिण महाराष्ट्र, उत्तर महाराष्ट्र तथा विदर्भ, सभी संभागों को जोड़ कर महाराष्ट्र राज्य की स्थापना की गई।लेकिन, महाराष्ट्र और गुजरात में परस्पर मैत्री और सहयोग का वातावरण सदैव बना रहा। गुजराती और मराठी समाज में तालमेल के मूल में बड़ी वजह यह रही कि ये दोनों में अहंकार या ईगों का भाव कभी नहीं है।ये दोनों ही मानकर चलते हैं कि व्यापारी की “मूँछें”(इगो) नहीं होतीं।धंधा करने चले हो तो अपनी इगो घर में छोड़कर ही बाहर निकलो।शायद इसीलिए दोनों ने एक-दूसरे के पर्वों को भी आत्मसात कर लिया है।गुजराती आज गणेशोत्सव को उसी धूमधाम और उत्साह से मनाते हैं, जैसे मराठी नवरात्रि में आनंद और उत्साहपूर्वक गरबा नृत्य के साथ नवरात्र मनाते हैं। इसलिए दो राज्यों के बनने के बाद भी इन दोनों समाजों और राज्यों में कभी दूरियां पैदा नहीं हुईं। मुंबई के गुजराती भाषियों ने इस महानगर को अपनी कुशल उद्यमितापूर्ण क्षमताओं से सदैव समृद्ध किया। वे 1960 से पहले की तरह से ही मुंबई में अपने कारोबार को आगे बढ़ाते रहे। मुंबई के अनाज, कपड़ा,पेपर, और मेटल बाजार में गुजराती छाए हुए हैं। हीरे के 90 फीसद कारोबारी गुजराती हैं। और मुंबई स्टॉक एक्सचेंज की आप गुजरातियों के बगैर कल्पना भी नहीं कर सकते। आप मुंबई में मराठियों और गुजरातियों को आप अलग करके नहीं देख सकते। दोनों मुंबई की प्राण और आत्मा हैं। मुंबई यानी देश की वित्तीय राजधानी। इसी मुंबई में धीरूभाई के बाद हिन्दूजा बन्धु, गौतम अडानी, अजीम प्रेमजी, रतन टाटा, आदी गोदरेज,समीर सोमाया जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबारी दुनिया में जगह बनाने वाले अनेक गुजराती आए और आगे बढ़े। इन दोनों राज्यों के आपसी संबंधों से सबको सबक तो लेना ही होगा।
इस बीच,भारत सरकार का डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन (डीआईपीपी) हर साल एक सूची जारी करने लगा है जो यह बताता है कि देश के कौन से राज्य बिजनेस करने के लिहाज से उत्तम हैं।इस पूरी कवायद के पीछे एक मात्र लक्ष्य, राज्यों के बीच निवेश और विकास को लेकर एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है। इस सूची में वे ही राज्य आगे निकल रहे हैं, जहां पर औद्योगिक उपयोग के लिए जमीन की उपलब्धता है, म्युनिसिपिलिटी कार्यालय में लैंड रिकॉर्डस का कंप्यूमटरीकरण हो चुका है, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में कमर्शियल विवाद के लिए ई फाइलिंग की व्यवस्था है, कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक है , वगैरह-वगैरह।
लेकिन, उद्यमी की सबसे बड़ी चिन्ता राज्य में क़ानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार को लेकर है।दुर्भाग्य रहा उत्तर प्रदेश का कि कल्याण सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल के बाद गुंडागर्दी आमबात हो गई और सरकारी अफ़सरों तथा सरकारी पार्टियों के नेताओं द्वारा लूट की राशि बढ़ती ही गई।”उत्तम प्रदेश” को “ उलटा प्रदेश” बनाकर रख दिया विगत दो दशकों के शासकों ने। ऐसा भी नहीं है कि निवेशकों के बजट में “ चन्दा” और “ सुविधा शुल्क” का प्रावधान नहीं होता। जरूर होता है। लेकिन, दाल में नमक के बराबर! असीमित नहीं। अब कोई दाल से ज़्यादा नमक ही मॉंगने लगे तो क्या अंजाम होगा? उत्तर प्रदेश भुगत रहा है, सबके ऑंखों के सामने है यह!
देनी होंगी सुविधाएं
अगर बात फिर से उत्तर प्रदेश में निवेश की संभावनाओं पर ग़ौर करें तो इतना स्पष्ट है कि अगर प्रदेश सरकार निवेश करने की उत्सुक कंपनियों को तुरंत भूमि का अधिग्रहण करने में मदद करेगी, पर्यावरण अनुमति दिलवाने में विलंब नहीं करेगी, श्रम कानूनों का भ्रष्टाचार रहित अनुपालन होगा, इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी बिजली, पानी, सड़क और कुशल कामगारों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति की जाएगी और कर प्रणाली की प्रक्रिया को सरल किया जाएगा तो राज्य में मोटा निवेश आने लगेगा। ये कारक तो सभी राज्यों पर लागू होते हैं।
एक बात तो समझ ही लेनी चाहिए कि हरेक कारोबारी का लक्ष्य अधिक से अधिक मुनाफा कमाना ही होता है। मारवाड़ियों में एक कहावत प्रचलित है। “यदि दो अठन्नी को तीन नहीं बनाया तो धंधा क्या ख़ाक किया।” ख़ैर , अब मोदी जी के राज में दो की तीन अठन्नी तो बनने से रही। फिर भी निवेशक जिधर अधिक मुनाफा मिलेगा, उधर का ही रुख कर लेंगे। अधिक लाभ के लिए भारतीय कंपनियां हों या विदेशी सभी यही करने लगी हैं। मैं पिछले सप्ताह रॉंची में आयोजित “झारखंड उर्जा संवाद” की अध्यक्षता करने गया। वहॉं मुझे हरियाणा के फ़रीदाबाद के एक बड़े उद्योगपति मिले।वे रॉंची में दस हज़ार आदिवासियों को( मुख्यत: महिलाओं) को झारखंड में अपनी गारमेन्ट्स एक्सपोर्ट्स की फैक्ट्री लगाकर रोज़गार देना चाहते है। मैंनें पूछा कैसे आये? उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर देखा कि आप रॉची में किसी सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाले हैं जिसका उद्घाटन झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास जी करेंगें तो सोचा कि चला चलूँ । कुछ ज्ञानवर्धन भी होगा और मौक़ा मिला तो मुख्यमंत्री जी के दर्शन भी हो जायेंगें।ऐसे तो भेंट होना टेढ़ी खीर है। ख़ैर , उनकी मुख्यमंत्री जी से मुलाक़ात भी हो गई और उन्होनें तत्काल उपस्थित अधिकारियों को नियमानुसार समस्त सुविधायें प्रदान करने का आदेश भी दे दिया। आखिरकार, दस हज़ार बेरोज़गारों के नियोजन की बात थी? क्यूँ न कोई भी मुख्यमंत्री दिलचस्पी लेगा? आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भारतीय कंपनियां अमेरिका में लाखों लोगों को रोजगार दे रही हैं। टाटा,महिन्द्रा, गोयनका, बिड़ला, जिंदल,जैसी सैकडों भारतीय कम्पनियों का देश से बाहर अरबों रुपये का निवेश हो चुका है। अगर ये भारतीय कंपनियां देश में ही निवेश करतीं तो यह देश हित में रहता। देश का पैसा देश में ही खर्च होता। देश समृद्ध होता। लेकिन, लूट- खसोट, गुंडागर्दी और दादागिरी के चक्कर में सत्तर साल तो बर्बाद हो गये। अब तो सुधर जायें? यह तो तब ही संभव होगा , जब हम अपने यहां निवेश का माहौल बनाएं।
हाले-ए-बिहार
बिहार में पैदा हुआ, पला- बढ़ा। अत: कुछ बातें बिहार की भी करना चाहूंगा।
बिहार में सत्तर के दशक में डॉ. जगन्नाथ मिश्र के मुख्यमंत्रित्व में राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में औद्योगिक विकास के लिए पांच औधोगिक विकास प्राधिकरण बने थे। ये पटना, मुजफ्फरपुर, बोकारो, रांची और आदित्यपुर (जमशेदपुर) में बनाई गई थीं। इनमें से तीन तो झारखण्ड में चली गईं। बिहार की दो अथॉरिटी पटना और मुजफ्फरपुर भी बंद प्राय हो गईं हैं। इसलिए निवेशक भी भाग गए। अब पटना औद्योगिक क्षेत्र की ज़मीन पर कहीं फ़िल्म निर्माता प्रकाश झा मॉल, होटल और मल्टीप्लेक्स खोल रहे हैं तो कहीं स्कूल खुल रहे हैं तो कहीं गाड़ियों के शो रूम।अख़बारों के दफ़्तर भी। राज्य सरकार को अब राज्य में निवेश के नए सिरे से उपाय खोजने होंगे। सबसे पहले तो बिहार में परिवहन व्यवस्था को सुधारना होगा। राज्य में सार्वजनिक परिवहन नाम की कोई चीज ही नहीं है, एक भारी भरकम परिवहन भवन को छोड़कर ! एक समय में बिहार राज्य पथ परिवहन निगम का देशभर में नाम था। बिहार में साक्षर और मेहनती युवाओं की बड़ी फौज रोजगार तलाश रही है। अगर राज्य में निवेश आएगा तो प्रदेश से पलायन थमेगा। और सबसे अहम बात ये है कि सभी राज्यों को अपने यहां कानून-व्यवस्था की स्थिति चौकस तो रखनी ही होगी। जो राज्य इस मोर्चे पर कमजोर साबित होंगे वे निवेश पाने में भी मात खा जाएँगे।
(लेखक राज्य सभा सांसद हैं)