त्तर प्रदेश सरकार अपने 100 दिन का कार्यकाल पूरा कर चुकी है। मुख्यमंत्री नीतिगत स्तर पर कामयाब दिखते हैं। योगी आदित्यनाथ की सरकार से सख्त सरकार की अपेक्षा की जा रही थी किन्तु इस मामले में वह पिछड़ती दिख रही है। योगी जी के कड़े तेवरों के बावजूद प्रशासनिक ढांचा अभी भी लचर है। खनन, भ्रष्टाचार और अपराध जैसे विषयों पर सरकार की आलोचना हो रही है। क्या समय रहते मुख्यमंत्री इन अफसरों पर लगाम लगा पायेंगे या भगवाधारी एवं फायरब्रांड योगी जी इनके सामने हथियार डाल देंगे। योगी जी का इतिहास देखते हुये तो वह रण छोडने वाले नहीं दिखते हैं। उत्तर प्रदेश के ग्राउंड जीरो से विशेष संवाददाता अमित त्यागी अपना मूल्यांकन पेश कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश एक पटरी से उतरा हुआ प्रदेश था इसमे कोई दो राय नहीं है। उत्तर प्रदेश को व्यवस्थित करने में थोड़ा समय लगेगा यह भी ठीक बात है। उत्तर प्रदेश में अभी बजट पास नहीं हुआ है इसलिए आर्थिक संसाधनों की कमी है यह दलील भी गले उतरती है। किन्तु इन दलीलों की वजह से उत्तर प्रदेश में अगर सुधार नहीं दिखाई दे रहा है तो भी उत्तर प्रदेश की जनता इसके लिए योगी आदित्यनाथ को बख्शने के मूड में बिलकुल भी नहीं है। वजह साफ है। योगी आदित्यनाथ के चुनाव पूर्व तेवर एवं कट्टर आक्रामक छवि। चुनाव पूर्व अपराध को भी कोसा गया था और विकास को भी। बाप बेटे के झगड़े को भी और बहन जी के भ्रष्टाचार को भी। अब आपकी सरकार है योगी जी। आपकी कथनी को करनी में तब्दील करने का समय है। जनता आप पर भरोसा भी करती है और आपसे अपेक्षा भी रखती है। डेढ़ दशक बाद आयी भाजपा की सरकार से बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं। पर इन उम्मीदों का हश्र तो देखिये मुख्यमंत्री जी।
अफसरों की खुमारी उतारिए योगी जी:
इस समय न खनन रुक पा रहा है न ही अपराध। महिला अपराधों को भी विपक्षी मुख्य मुद्दा बना रहे हैं। सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। नौकरशाही बेलगाम हो रही है। सरकार ने अभी पुराने अफसरों के तबादले नहीं किए हैं। वह हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। थाने में अब भी पुराने पुलिस वाले जमे बैठे हैं जिनसे आपके कार्यकर्ता एवं जनता त्रस्त थी। उन लोगों से बात करने पर पता चला कि वह लोग इसलिए काम काज में ढीले हैं क्योंकि उनको इस बात का डर सता रहा है कि उनके ट्रान्सफर का आदेश आने ही वाला है। जहां तक भ्रष्टाचार की बात है तो लोगों का कहना है कि जो काम पहले 500 में होता था वही अब 5000 में हो रहा है। सिर्फ गुटखे पर रोक से क्या फायदा है? साफ सुथरे सरकारी दफ्तर में बाबू ही पैसे बढ़ा कर मांग रहे हैं। आम जनता की तो छोडि़ए, स्वयं भाजपा कार्यकर्ताओं के काम नहीं हो रहे हैं। विधायकों की भी नहीं सुनी जा रही है। विधायक लाचार और प्रभावहीन दिख रहे हैं। हाँ, हर क्षेत्र से जो विधायक योगी सरकार में मंत्री है वह उस क्षेत्र में सर्वशक्तिशाली बने हुये हैं। उनके जिले में सिर्फ उनकी ही सुनी जा रही है और बाकी विधायक बेबस होकर उस मंत्री जी के पीछे मँडराते रहते हैं। अब क्या यही है लोकतान्त्रिक प्रणाली, जिसमे एक कुशल प्रशासक और तेजतर्रार मुख्यमंत्री की नाक के नीचे ऐसा माहौल बना हुआ है।
इन शिकायतों के बावजूद ऐसा भी नहीं है कि योगी जी काम नहीं कर रहे हैं। उनके 100 दिन के कार्यकाल में कई ऐसी उपलब्धियां भी हैं। जिसके द्वारा ऐसा लगता है कि इस सरकार के दूरगामी परिणाम बेहतर होंगे। बतौर मुख्यमंत्री योगी जी प्रयासरत भी हैं और उनकी नीयत भी साफ है। बस अब उस नीयत को जमीन पर दिखने की आवश्यकता है। योगी जी ने 15 जून तक गड्ढा मुक्त सड़क का वादा किया था। इस कार्य में उन्हे पूरी सफलता तो नहीं मिल पायी किन्तु 80 प्रतिशत तक सढ़कें सही हो गयी हैं। गेंहू खरीद में इस बार सपा सरकार से चार गुना ज्यादा बढ़ोत्तरी हुयी है। हालांकि, अभी भी तय सीमा से यह कम रहा है। 24 घंटे बिजली के वादे पर सरकार पूरी तरह तो खरी नहीं उतरी है किन्तु 20-22 घंटे तक तो बिजली देनी शुरू कर दी है।
शिक्षा क्षेत्र में अभी और ध्यान देने की जरूरत:
भाजपा ने इस बार घोषणा पत्र नहीं संकल्प पत्र जारी किया था। योगी जी ने सरकार बनते ही यह संकल्प पत्र अफसरों के हाथों में थमा दिये। मुख्यमंत्री से मीटिंग के बाद हाथ में संकल्प पत्र थामे हुये यूपी के अफसर बड़े ही प्यारे लग रहे थे। इसमे किए गए वादे के अनुसार ही सरकार ने परिषदीय विद्यालयों के बच्चों को किताबों के साथ ही नयी वर्दी एवं जूते मोजेे देने की दिशा में कदम बढ़ा दिये हैं। अब जब जुलाई में स्कूल दुबारा खुलेंगे तब अगर सरकार इन्हे देने में कामयाब होती है तो यह एक बड़ी उपलब्धि मानी जायेगी। इसके साथ ही पिछले कुछ वर्षों में परिषदीय विद्यालयों में शिक्षा का स्तर इतना घटिया रहा है जिसके गवाह आंकड़े भी हैं। पिछले पाँच वर्षों में छात्रों के नामांकन में 23 लाख की गिरावट आयी है। पूरे प्रदेश के विद्यालयों में यदि मानक के आधार पर देखा जाये तो वर्तमान में 65 हजार के आस पास शिक्षक सरप्लस में हैं। इसके बाद सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुये शिक्षकों की भर्ती के लिए प्रस्तावित उप्र बेसिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड का इरादा टाल दिया है। इसके साथ ही बेसिक शिक्षा और मिड डे मील में होने वाले बड़े भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए योगी सरकार ने सभी बच्चों का आधार कार्ड बनवाने का निर्देश दिया था। यह एक बड़ा क्रांतिकारी कदम होने जा रहा था किन्तु 100 दिन के बाद इस क्षेत्र में प्रगति को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। इसके साथ ही शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत निजी विद्यालयों में 25 प्रतिशत सीटें गरीब बच्चों के लिए आरक्षित होती हैं। अपने प्रारम्भिक 100 दिनो के कार्यकाल में सरकार इस तरफ तेजी से बढ़ती दिख रही थी किन्तु अब भी 31,569 आवेदन इसके अंतर्गत लंबित हैं।
इसी क्रम में माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए सरकार नकल रोकने में काफी हद तक कामयाब रही है। परीक्षा केन्द्रों पर हुयी सख्ती से परिणाम का प्रतिशत भी घटा है। यदि सरकार इसी तरह से सख्त रही तो आने वाले समय में उत्तर प्रदेश में नकल को काफी हद तक रोका जा सकेगा। सरकार का कहना है कि अगले वर्ष उन्ही विद्यालयों को परीक्षा केंद्र बनाया जाएगा जिसमे सीसीटीवी कैमरे लगे होंगे। इसके साथ ही अगले वर्ष से यूपी बोर्ड के टोपर्स की कापियाँ भी सार्वजनिक करने की घोषणा की गयी है। यह सब वह बातें हैं जिन पर अगर अमल हो गया तो योगी सरकार की विश्वसनीयता बढऩा तय है।
भर्तियों में धांधली दूर होने के दिखे आसार:
पिछली समाजवादी सरकार में सबसे बड़ा दाग जो उभर कर आया था वह था सरकारी नौकरियों में भर्तियों का। सरकार द्वारा की जाने वाली लगभग सभी भर्तियों पर उच्च न्यायालय ने रोक लगाई। उप्र लोक सेवा आयोग तो पूरी तरह अविश्वसनीय संस्था की तरह लगने लगा था। इस सरकार ने शपथ ग्रहण करने के बाद जैसे ही 22 मार्च को उप्र लोकसभा आयोग द्वारा चल रही 22 भर्तियों की प्रक्रिया को रोका तो जनता सरकार से नाराज होने के स्थान पर खुश हो गयी। आम तौर पर रोजगार के नाम पर सरकार को कोसने वाली जनता ऐसे कदमों पर जमीन आसमान सर पर उठा लेती है। सरकार यहीं नहीं रुकी। इसके अगले दो दिनो में माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड, उप्र उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के साथ ही प्राथमिक एवं राजकीय शिक्षकों की भर्तियों पर भी रोक लगा दी गईं। इसके साथ ही अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्तियाँ भी रोक दी गईं।
प्रदेश के बेरोजगारों के लिए यह एक सुकून भरा कदम रहा। वह धांधलियों से आजिज आ चुके थे। इसके साथ ही अन्य चयन बोर्डों एवं आयोगों के भंग होने की खबरें भी कुछ नया बदलाव होने का आभास करा रही हैं। अधीनस्थ सेवा आयोग के अध्यक्ष राजकिशोर यादव के इस्तीफे के बाद यह आभास पुख्ता होता दिख रहा है। अपने शुरुआती 100 दिनो में हालांकि सरकार अभी तक भर्तियाँ शुरू करने में नाकाम रही हैं। पर युवाओं में संदेश साफ जा चुका है कि अब भर्तियाँ पारदर्शी तरीके से होने जा रही हैं। इसकी मिसाल सरकार ने तब दी जब उन्होने एलटी ग्रेड की नौ हजार भर्तियाँ मेरिट के आधार पर न करके लिखित परीक्षा द्वारा कराने की घोषणा की। इसके पहले सरकार ने एक और मांग पूरी की थी जो एक बड़ा संकेत थी। वह थी उप्र लोकसेवा आयोग में सीसेट प्रभावित अभ्यर्थियों को दो अतिरिक्त अवसर प्रदान करना। इस तरह से देखा जाये तो इस समय भर्तियाँ बंद पड़ी हैं। न्यायालय ने भी पिछले माह सरकार से इस पर स्पष्टीकरण मांगा था। सरकार के जवाब में पारदर्शी तरीके से नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया का जिक्र है। इसके द्वारा अभ्यर्थियों में यह आस जग चुकी है कि अब कुछ बेहतर होने जा रहा है।
कर्ज माफी का फैसला: एक बड़ी चुनौती
किसानों से जुड़े मुद्दे देश में हमेशा चुनाव को प्रभावित करने वाले रहे हैं। उसमे भी अगर चुनाव उत्तर प्रदेश का हो तो मुद्दा प्रभावित न करे ऐसा हो ही नहीं सकता है। चुनाव से पहले भाजपा का बड़ा चुनावी मुद्दा लघु एवं सीमांत किसानों के ऋण माफी का था। सरकार इस और गंभीर दिखी। कभी ऋण माफी की बातें उठी तो कभी कर्ज माफी की। सरकार की तरफ से चुप्पी बनी रही। सरकार की चुप्पी ने कई बार नकारात्मक खबरों को भी हवा दी। जबकि वास्तविकता यह है कि सरकार बनने के बाद जिस मुद्दे पर सरकार ने सबसे ज्यादा माथापच्ची की है वह कर्ज माफी ही है। सौ दिन के कार्यकाल में तो इस मुद्दे पर कुछ होता नहीं दिखा किन्तु अब बजट सत्र के बाद इस पर कुछ ठोस दिखाई देने की उम्मीद की जा रही है। चूंकि, चुनाव पूर्व प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की थी कि वह सरकार बनने के बाद पहली घोषणा कर्ज माफी की करेंगे तो किसानों से धैर्य नहीं रखा जा रहा है। सरकार द्वारा पहली कैबिनट बैठक में कुछ अमल तो किया गया किन्तु उसमे भी कई शर्तें लगा दी गयी थीं। इसमे एक लाख की समय सीमा शामिल रही। सरकारी आंकड़े के अनुसार उनके फैसले से 86 लाख से ज्यादा लघु एवं सीमांत किसानों को फायदा हो चुका है। जहां इसके लिए खर्च होने वाली रकम की बात है तो इसके लिए 36,359 करोड़ रुपये सरकारी खजाने पर भर स्वरूप पड़े हैं। चूंकि कर्ज माफी एक बड़ी प्रक्रिया है इसलिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी गठन की घोषणा भी हो चुकी है। किसानो की कर्ज माफी की प्रक्रिया में देरी की वजह सातवे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होना भी रहा है। इसके द्वारा भी सरकारी खजाने का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो चुका है। जब सरकार ने इसके लिए धन इक_ा करने के लिए बॉन्ड जारी करने की नीति अपनाई तो रिजर्व बैंक ने अड़ंगा अड़ा दिया। बैंक का कहना है कि आप तय सीमा से ज्यादा कर्ज तो पहले ही ले चुके है। इसके बाद सरकार ने इधर उधर से धन का इंतजाम करने के स्थान पर स्वयं ही इसके लिए पहल शुरू कर दी है। 22 जून की कैबिनट बैठक के बाद किसानो की कर्ज माफी की प्रक्रिया आगे बढ़ चुकी है और अब सरकार स्वयं अपने संसाधनो के द्वारा इसकी पूर्ति करने जा रही है।
किसानों के लिए अब संजीदा दिखते हैं योगी:
मुख्यमंत्री किसानों के मसले पर संजीदा दिखाई देते हैं। इसका सबूत इस बात से मिलता है कि वह कोई दिखावटी घोषणाएँ एवं बडे बयान देने से बच रहे हैं। जिस समय सरकार कर्ज माफी के लिए माथा पच्ची कर रही थी उसी समय बैंकों ने बकाया वसूली के लिए नोटिस भेजने शुरू कर दिये। किसानों में गुस्सा भर गया। जब यह बात मुख्यमंत्री के संज्ञान में आई तो उन्होने खुद इसकी कमान संभाल ली। पहले मीडिया में एक बड़ा बयान दिया फिर निर्देशित किया कि नोटिस न भेजे जाएँ। इसके बाद वित्त विभाग ने सभी संबन्धित बैंकों से समन्वय स्थापित किया। अब मुख्यमंत्री जी स्वयं बैंकर्स समिति की बैठक में भाग लेते हुये बजट सत्र में इस पर प्रभावी फैसला लेते दिखने लगे हैं।
इस तरह से अपने प्रारम्भिक कार्यकाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नीतिगत रूप से तो प्रभावी नजर आ रहे हैं किन्तु उनकी नौकरशाही अभी भी शिथिल दिखाई दे रही है। उनके मंत्री अभी भी मुख्यमंत्री की लय के साथ कदम ताल मिलाते नहीं दिख रहे हैं। चूंकि अब हनीमून पीरियड खत्म हो चुका है इसलिए अब जनता जवाब भी मांग रही है और सब्र रखने के मूड में भी नहीं है। बजट सत्र के बाद किसानों के घोषणाएँ , नियुक्ति प्रक्रिया के फिर से शुरू होने और खनन नीति बनने के बाद ही शायद योगी जी की नीयत लोगों के गले उतरेगी। ठ्ठ
100 दिन के कार्यकाल पर होंगे कुछ बड़े आयोजन
सरकार बनने के बाद से ही कार्यशैली पर सवाल उठाने वाले विपक्ष को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा ठीक 100वें दिन जवाब दिया जाएगा। जवाब दो स्तरीय होगा। पहला, सूबे में हुए विकास व उपलब्धियों का तो प्रत्येक जिले में भी इन 100 दिनों में हुए 100 खास कार्यों का रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत होगा। विपक्ष को आईना दिखाने का काम योगी सरकार करने जा रही है। इस क्रम में पहले सरकार की ओर से एक श्वेत पत्र जारी होगा जिसके जरिए यह स्पष्ट किया जाएगा कि योगी सरकार को किस बदहाली और कमियों के साथ सूबे की सत्ता मिली थी। योगी सरकार के 100 दिन के रिपोर्ट कार्ड की थीम होने जा रही है। विश्वास के 100 दिन। सूचना विभाग को बतौर नोडल एजेंसी 100 दिन के कार्यकाल में प्रदेश स्तर पर हुए कार्यों व जिलेस्तर की उपलब्धियों का आंकड़ा जुटाने का जिम्मा मिला है। राजधानी सहित सूबे के सभी 75 जिलों में तीन दिन के आयोजन होंगे जिसमें जनप्रतिनिधि और प्रभारी मंत्री जनता को 100 दिन के कार्य बताएंगे। जिलों में विभागवार रिपोर्ट कार्ड भी जारी होगा कि उन्होंने क्या किया और उनके यहां आई जनता की शिकायतों के निस्तारण की प्रगति क्या रही। इसमे यह भी दर्शाने की कोशिश है कि मुख्यमंत्री जवाबदेही और पारदर्शिता को लेकर सजग रहते हैं। उनके निर्देशानुसार 100 दिन पूरे होने पर सरकार का रिपोर्ट कार्ड जारी होगा।
सरकार खनन की दीर्घ कालिक
नीति तैयार कर रही है केशव मौर्य
उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का कहना है कि पिछली सरकार में प्रदेश को लूटने और लुटाने का काम किया गया। सरकार को सौ दिन व्यवस्थित करने का अवसर दीजिए, उसके बाद सब कुछ साफ दिखेगा। गढ्ढा मुक्त सड़कें प्रदेश की जनता के लिए बहुत जरूरी हैं। सड़कों को गढ्ढा मुक्त करने का काम तेजी से शुरू हो चुका है। प्रदेश में पीडब्लूडी की ढाई लाख किलोमीटर सड़के हैं, जिनमें 86 हजार किलोमीटर सड़के गढ्ढा युक्त हैं। इसके साथ ही 35 हजार किलोमीटर अन्य विभागों की भी सड़कें सरकार गढ्ढा मुक्त करने के काम में जुटी है। 58 राजमार्गो को राष्ट्रीय राजमार्ग में परिवर्तित करने का अनापत्ति प्रमाण पत्र दे दिया गया है। पिछली सरकार में हीलाहवाली से एनओसी नहीं दी गयी थी। 13 अन्य सड़कों के प्रस्ताव भी केन्द्र सरकार को भेज दिए है। सपा सरकार द्वारा जानबूझ कर यूपी के विकास को रोकने का काम किया गया था। किसानों के मुआवजे के लिए आया धन किसानों को नहीं बांटा गया। अब योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार ने रूके हुए मुआवजे के वितरण का काम शुरू किया है। अधिकारियों और ठेकेदारों की जांच कराई गई और जांच के बाद पुष्टि होने पर कुछ अधिकारियों का निलम्बन किया गया है। छात्र शक्ति एवं मे. राजा इन्फ्रास्ट्रञ्चचर नाम की दो फर्मों को ब्लैक लिस्ट किया गया है, जो सरकारी तंत्र से मिलकर लूट मचाएं थे। एक तकनीकि समिति बनाकर जिन्हें ब्लैक लिस्ट सूची में डाला गया है उनकी बनाई सड़कों की जांच होगी। जांच के बाद आगे की कार्यवाही होगी। उन्होंने कहा कि योगी सरकार में गलत काम करने वाले बच नहीं पाएंगे।
योगी सरकार में घटना के दोषियों पर बिना राजनीतिक दबाव के कार्यवाही की जा रही है। प्रदेश तेजी के साथ भ्रष्टाचार से मुक्त हो रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार खनन की दीर्घ कालिक नीति तैयार कर रही है। समिति के अब तक दो बैठके हो चुकी हैं। कई राज्यों की खनन नीति के प्रारूप का भी अध्य्यन किया जा रहा हैं। उन्होंने कहा कि हम खनन में राजस्व की क्षति को समाप्त करना चाहते हैं। खनन की लूट को बंद करना है। दूसरे राज्यों से आने वाले खनन पर रोक हटा ली गई है।