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राजनीतिक गुंडागर्दी के खिलाफ सख्त संदेश

चुने हुए जनप्रतिनिधियों की दादागिरी, गुंडागर्दी, बदतमीजी, आम आदमी से लेकर सरकारी अधिकारियों को धमकाने और पीटने की घटनाएं बार-बार लोकतंत्र को आहत करती रही हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसी घटनाओं को गंभीरता से लिया है। उन्होंने मध्य प्रदेश में एक बीजेपी विधायक द्वारा एक सरकारी कर्मचारी की पिटाई के मामले को लेकर न केवल सख्त रुख अपनाया बल्कि इसके खिलाफ कार्रवाई के आदेश भी दिये हंै। बीजेपी संसदीय दल की बैठक में उन्होंने बिना किसी का नाम लिए कहा कि ‘मामले का दोषी चाहे किसी का भी बेटा क्यों न हो, उसकी यह हरकत बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए। जिन लोगों ने उसका स्वागत किया है, उन्हें भी पार्टी में रहने का हक नहीं है। सभी को पार्टी से निकाल देना चाहिए।’ निश्चित ही मोदी के इस कदम से राजनीतिकों की मनमानी और गुंडागर्दी पर नियंत्रण की दृष्टि से उम्मीद बंधी है, लेकिन इन दुष्प्रवृत्तियों को राजनीति से खत्म करना इतना आसान भी नहीं है। जरूरत है राजनीतिज्ञों के लिये एक आचार संहिता का निर्माण हो और सभी राजनीतिक दल उसका पालन करें।
मोदी ने इतना कड़ा रवैया अपने ही पार्टी के एक कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय की गुंडागर्दी एवं मारपीट की घटना पर दिखाया, जिन्होंने इंदौर में अपनी ड्यूटी कर रहे नगर निगम के एक अधिकारी को क्रिकेट बैट से मारा था। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया पर वे जमानत पर छूट गए। उनके जमानत के छूटने पर बीजेपी के कई नेताओं ने उनका फूलमालाओं से स्वागत किया था। मोदी ने केवल आकाश के लिये ही नहीं, बल्कि पार्टी के उन कार्यकताओं के लिये भी सख्ती का संदेश दिया, जिन्हांेंने ऐसी अराजक, मारपीट करने एवं घमकाने की घटना के दोषी व्यक्ति का पक्ष लिया। निगम के अधिकारी की पिटाई का विडियो देशभर में वायरल हुआ था और इसकी तीखी निंदा भी हुई थी। लेकिन विडम्बना देखिये कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने इस मामले में गलती के लिये क्षमा को प्रदर्शित करने की बजाय खुलकर अपने बेटे का बचाव किया और सवाल करने वाले एक पत्रकार से अभद्रता बरती। पिछले कुछ समय से अनेक बीजेपी नेताओं और उनके रिश्तेदारों द्वारा सरकारी अधिकारियों को धमकाने और पीटने की घटनाएं घटी हैं। मध्य प्रदेश के ही नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव थाना इलाके में केंद्रीय राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रह्लाद पटेल के बेटे प्रबल पटेल और भतीजे मोनू पटेल समेत सात लोगों को एक शख्स को गोली मारने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। आश्चर्य कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने खुलकर प्रबल पटेल का समर्थन किया। सतना जिले के रामनगर परिषद में अध्यक्ष राम सुशील पटेल ने चीफ म्यूनिसिपल ऑफिसर (सीएमओ) की बांस से पिटाई की। मारपीट में महिला पार्षद और कुछ ठेकेदार भी घायल हुए। बताया जा रहा है सीएमओ ने नगर परिषद अध्यक्ष के खिलाफ जांच के आदेश दिए थे। उत्तर प्रदेश के कासगंज में बीजेपी विधायक के बेटे ने स्थानीय थाने के एसएचओ के साथ कथित तौर पर बदतमीजी की और उनका ट्रांसफर करवाने की धमकी दी। एक-दो नहीं, अनेक घटनाएं है जिसमें जनप्रतिनिधियों का अहंकार एवं गुंडागर्दी हदें पार कर रही है। लगता है, केंद्र में दूसरी बार सत्ता पाने के बाद बीजेपी नेता और उनके करीबी लोग खुद को कानून से ऊपर मानने लगे हैं। अधिकारियों पर अकड़ दिखाकर अपना कद बढ़ाने का भाव भी उनमें दिख रहा है। मोदीजी ने वीआईपी संस्कृति को तो किसी हद तक समाप्त किया, लेकिन राजनेताओं की गुंडागर्दी, अराजकता एवं तानाशाही को समाप्त करना भी जरूरी है।
माॅब लिंचिग हो या नेताओं की दादागिरी इन घटनाओं से खुद प्रधानमंत्री भी उतने ही आहत हैं, जितने देश के अन्य लोग। मोदी की पीड़ा एवं दर्द का कारण यह भी है कि उनकी पार्टी एवं सरकार चाल-चरित्र, शालीनता, सदाचार, नैतिकता, अहिंसा पर काफी जोर देती रही है। इन्हीं मूल्यों को आधार बनाकर देश को एक नयी दिशा देने के नाम पर उन्होंने सत्ता तक शानदार पहुंच बनायी है। इसलिये सत्ता में रहते हुए उसके नेताओं के आचरण में ऐसा कुछ तो दिखना ही नहीं चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश पार्टी के नेता आदर्श कायम करने में चूक रहे हैं। वे भूल रहे हैं कि अधिकारियों की मारपीट करके सरकारी मशीनरी की कमर तोड़ रहे हैं। उन्हें पता होना चाहिए कि अगर सत्तापक्ष ही कानून-व्यवस्था से खिलवाड़ करेगा तो इससे अपराधियों का हौसला बुलंद होगा और समाज में अराजकता की स्थिति पैदा हो जाएगी। मोदी ने शायद इसीलिए उन्हें आगाह करने की कोशिश की है, उनको चेताया है।
जनप्रतिनिधियों की दादागिरी, गुंडागर्दी, बदतमीजी जैसी अराजक स्थितियां भारतीय लोकतंत्र को दूषित करती रही हैं। यह किसी एक पार्टी या प्रदेश की समस्या भी नहीं है। लगभग हर पार्टी और हर प्रदेश इस समस्या से ग्रस्त है। कुछ प्रदेशों में यह समस्या कभी ज्यादा मुखर हो जाती है। यह कोई आजकल में पैदा हुई समस्या नहीं, बल्कि बहुत पुरानी है और इसलिए इसकी जड़ें हर जगह और बहुत गहराई तक हैं। इसलिये इस जटिल समस्या के समाधान के प्रयत्न भी उतने ही गहरे एवं दृढ़ता से करने होंगे। इस समस्या को खत्म करने की सबसे ज्यादा उम्मीद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ही बांधी जा सकती है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि मोदी को सीधे जनता के विशाल बहुमत का समर्थन हासिल है। वह उन राजनीति दलों की तरह नहीं हैं, जिनकी राजनीति इस तरह के बाहुबल से ऊर्जा पाती है। देश में राजनीतिक गुंडागर्दी कोई छिपी हुई चीज नहीं है। लोग भी इस हकीकत को अच्छी तरह जानते हैं और यही कारण है कि उजली संभावनाओं एवं उम्मीदों से उन्होंने मोदी को विशाल जनादेश दिया था। असल में मोदी ही इस समस्या से देश को निकालने में सक्षम है। असल राहत की ओर हम तब बढ़ेंगे, जब ऐसे संकल्प समाज की हकीकत बन जाएंगे। जरूरत है हर स्तर पर नियंत्रण नहीं होकर सर्वोपरि नियंत्रण हो। हर स्तर पर नियंत्रण रखने से, सारी शक्ति नियंत्रण को नियंत्रित करने में ही लग जाती है। नियंत्रण और अनुशासन में फर्क है। नीतिगत नियंत्रण या अनुशासन लाने के लिए आवश्यक है सर्वोपरि स्तर पर आदर्श स्थिति हो, तो नियंत्रण सभी स्तर पर स्वयं रहेगा और वास्तविक रूप में रहेगा मात्र ऊपरी तौर पर नहीं।
जन प्रतिनिधियों के अधिकार कम नहीं हांे। उनकी स्वतंत्रता भी प्रभावित नहीं हो। पर इनकी उपयोग में भी अनुशासन, सीमा और संयम हो। कानूनी व्यवस्था में गलती करने पर दण्ड का प्रावधान है, लेकिन सामाजिक व्यवस्था मंे कोई दण्ड का प्रावधान नहीं है। यही कारण है कि किसी एक व्यक्ति को संपूर्ण अधिकार देने में हिचकिचाहट रहती है। पंच-पंचायत का वक्त पुनः लौट नहीं सकता जब तक कि समाज में वैसे लोगों को पैदा करने का धरातल नहीं बने। वैसे फैसलों पर फूल चढ़ाने की मानसिकता नहीं बने। ऐसी पात्रता विकसित करने के लिये व्यापक प्रयत्न करने होंगे। हर स्तर पर दायित्व के साथ आचार संहिता अवश्य हो। दायित्व बंधन अवश्य लायें, निरंकुशता नहीं। आलोचना भी हो, स्वस्थ आलोचना, जो पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों को जागरूक रखती है। पर जब आलोचक मौन हो जाते हैं और चापलूस मुखर हो जाते हैं, तब फलित समाज को भुगतना पड़ता है।
आज मोदी अगर दायित्व स्वीकारने वाले समूह के लिए या सामूहिक तौर पर एक संहिता का निर्माण कर सकें, तो निश्चय ही प्रजातांत्रिक ढांचे को कायम रखते हुए एक मजबूत, शुद्ध व्यवस्था संचालन की प्रक्रिया बना सकते हैं। हां, तब प्रतिक्रिया व्यक्त करने वालों को मुखर करना पड़ेगा और चापलूसों को हताश, ताकि सबसे ऊपर अनुशासन और आचार संहिता स्थापित हो सके अन्यथा अगर आदर्श ऊपर से नहीं आया तो क्रांति नीचे से होगी। जो व्यवस्था अनुशासन आधारित संहिता से नहीं बंधती, वह विघटन की सीढ़ियों से नीचे उतर जाती है।
काम कम हो, माफ किया जा सकता है, पर आचारहीनता एवं अराजकता तो सोची समझी गलती है- उसे माफ नहीं किया जा सकता। ”सिस्टम“ की रोग मुक्ति, स्वस्थ समाज का आधार होता है। राष्ट्रीय चरित्र एवं सामाजिक चरित्र निर्माण के लिए नेताओं को आचार संहिता से बांधना ही होगा। अगर मोदीजी ऐसा कर सके तो ना माॅब लिंचिग होंगी और ना ही किसी राजनेता के हाथों कोई अधिकार निर्मम मारपीट का शिकार होगा। इसी से लोकतंत्र को शुद्ध सांसें मिल सकेगी। प्रे्रेषकः

(ललित गर्ग)

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