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राम के सहारे रण

भाजपा पर दबाव बनाने के लिए 24 नव बर को अयोध्या में हुआ शिवसेना का जमावड़ा और 25 नव बर को विश्व हिन्दू परिषद का जमावड़ा भाजपा के लिए हिन्दुत्व के एजेंडे पर लौटने की चेतावनी है। हिन्दुओं का विश्वास फिर से जीतने के लिए मोदी सरकार को कोई बड़ा कदम उठाना पड़ेगा।

अजय सेतिया

2014 के चुनावों को लेकर भाजपा में भ्रम बना हुआ है कि वह विकास के एजेंडे की जीत थी या हिंदुत्व के उभार की जीत थी। समाज के एक वर्ग का कहना है गुजरात के विकास मॉडल के कारण देश ने मोदी को विकास पुरुष के रूप में देखा।  ‘सब का साथ, सब का विकास’ और ‘अच्छे दिन’ के नारे ने कमाल किया, जिसमें वोटरों को दिवा स्वप्न दिखाई देने लगा था। जबकि भाजपा समर्थक बुद्धिजीवियों का मानना है कि कांग्रेस की बढ़ती मुस्लिम परस्ती के कारण हिन्दुओं को मोदी के रूप में एक फरिश्ता दिखाई दिया, जिस कारण हिन्दू एकजुट हुआ।

भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता जीत के कारणों को लेकर दो भागों में बंटे हुए हैं। ऐसा ही विभाजन भाजपा के शीर्ष नेताओं में भी है। कुछ का कहना है कि कांग्रेस के दस साल के भ्रष्टाचारपूर्ण कुशासन के कारण जनता का कांग्रेस से मोहभंग हो गया था और उन्हें विकल्प की तलाश थी, जो मोदी के रूप में सामने आया। गुजरात की कुछ घटनाओं ने मोदी की छवि प्रखर हिंदूवादी की बना दी थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि वाले भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों का तर्क है कि पहली बार हिन्दू समाज जातियों से निकल कर एकजुट हुआ, जिस कारण जातिवाद के आधार पर चुनाव जीतने वाले लालू यादव और मायावती को मुहं की खानी पड़ी। इसलिए वे इसे हिंदुत्व की जीत मानते हैं।

दलित, यादव ही नहीं, आदिवासी, ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया सब ने मिल कर भाजपा को वोट दिया, जिस कारण आज़ादी के बाद पहली बार कोई एक गैर-कांग्रेसी दल अपने बूते पर लोकसभा में बहुमत पा सका। लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद नरेंद्र मोदी को पृथ्वी राज चौहान की संज्ञा दिया जाना भी इस बात का सबूत था कि विकास के नारे के बावजूद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने एकजुट हो कर भाजपा के लिए इसलिए काम किया था क्योंकि उन्होंने मोदी में हिन्दू हृदय सम्राट की छवि देखी थी। बाद में उत्तरप्रदेश विधानसभा के चुनाव नतीजों ने भी हिंदुत्व के उदय होने की धारणा को मजबूत किया। यह हिंदुत्व का दबाव ही था कि भाजपा आलाकमान को हिन्दू हृदय सम्राट योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा।

विपक्ष को यह बात 2014 के चुनाव नतीजों के तुरंत बाद समझ आ गई थी कि मोदी की जीत का कारण हिन्दू जातियों का एकजुट होना है। इसलिए इटली मूल की ईसाई कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी की रणनीति में बदलाव किया जिसकी झलक गुजरात विधानसभा चुनाव में दिखाई दी थी, जहां राहुल गांधी ने कांग्रेस पर लगे अल्पसं यकवाद के लेबल को हटाने के लिए खुद को शिव भक्त हिन्दू ब्राह्मण साबित करने के लिए मंदिरों की शरण ली। इसके सकारात्मक नतीजे मिले तो सोनिया गांधी ने खुद पीछे हट कर कांग्रेस अध्यक्ष का पद राहुल गांधी को सौंप दिया। राहुल गांधी ने जहां खुद को हिन्दू शिव भक्त घोषित किया तो दूसरी तरफ दलितों को भाजपा के खिलाफ खड़ा करने की नीति पर काम किया। हैदराबाद में रोहित वेमूला और महाराष्ट्र में भीमा कोरेगांव दलित, नक्सली गठजोड़ के कुछ नए प्रयोग किए गए। गुजरात में दलितों ने एकजुट हो कर भाजपा के खिलाफ लामबंदी की जिसका असर चुनावों के दौरान ही दिखने लगा था, जब मोदी की आर्थिक नीतियों से खफा हिन्दू कांग्रेस के पिछले गुनाह माफ करने को तैयार हो गए। मोदी अगर आखिऱी दिनों में इज्जत की भीख नहीं मांगते तो गुजरात में उनकी घेराबंदी हो चुकी थी।

सही बात यह है कि नरेंद्र मोदी की आर्थिक नीतियों का राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा असर दिखने लगा है, लेकिन जीएसटी और नोटबंदी के कारण मार्केट में अभी भी मंदी छाई हुई है। डिजिटल मनी का प्रयोग फेल हो गया है, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था कैश पर आधारित रही है। इस बात का एहसास मोदी सरकार को हो गया है, इसलिए मार्केट की तरलता के लिए उसकी आरबीआई से ठनी हुई है। मार्केट में मंदी के कारण भाजपा के मूल वोटबैंक मध्यम वर्ग में रोष है। उधर दलितों को लुभाने के एससी एसटी स बन्धी सुप्रीमकोर्ट के फैसले को क़ानून बना कर बदलने से भाजपा का जातीय वोट बैंक का संतुलन भी बिगड़ा है। ब्राह्मण सहित सभी ऊंची जातियां खफा हुई हैं, जिस का खामियाजा भाजपा को राजस्थान, मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ में भी भुगतना पड़ सकता है। इसी स्थिति का लाभ उठा कर कांग्रेस ने ब्राह्मणों को आकर्षित करने की कोशिश शुरू की। जहां एक तरफ दलितों में भाजपा के प्रति नफरत फैलाई गई थी, वहीं कांग्रेस के महासचिव और राजस्थान के ब्राह्मण नेता सीपी जोशी ने नरेंद्र मोदी और उमा भारती के ओबीसी होने की दुहाई देकर कहा कि इन्हें हिन्दुओं के सरपरस्त होने का अधिकार नहीं है। हिन्दुओं के सरपरस्त होने का अधिकार तो सिर्फ ब्राह्मणों को है। कांग्रेस की रणनीति ब्राह्मण, दलित और अल्पसं यक को वापस अपने साथ जोडऩे की है, जो उस का कोर वोट रहा है।

विकास के नाम पर जनादेश का दावा करने वाले नरेंद्र मोदी ने हिन्दू हित के लिए कोई काम नहीं किया, इस कारण भी कांग्रेस को हिन्दू वोट बैंक में विभाजन का मौक़ा मिल रहा है। हिन्दू हित के तीन एजेंडे हैं- श्रीरामजन्मभूमि मंदिर, ज मू कश्मीर की धारा 370 और उस से जुड़ा अनुच्छेद 35 ए और समान नागरिक संहिता। इन तीनों ही मुद्दों पर खुद नरेंद्र मोदी ने कोई पहल नहीं की। यहां तक कि जब 35ए को लेकर सुप्रीमकोर्ट में केस आया, तो मोदी सरकार ने पीडीपी के डर से अपनी राय व्यक्त करने से भी इनकार कर दिया था, जिससे हिन्दुओं में निराशा पैदा हुई। कश्मीर को अलग अधिकार देने वाली धारा 370 के बारे में आरएसएस के नजदीकी भाजपा सांसद सुब्रह्मन्यम स्वामी सहित कई संविधान विशेषज्ञों की तरफ से कहा गया कि उसे राष्ट्रपति के आदेश से हटाया जा सकता है, 370 को हटाने के लिए दोनों सदनों में बहुमत की जरूरत नहीं, तो इस पर भी मोदी सरकार की तरफ से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।

हिन्दू नरेंद्र मोदी से खुश नहीं है, हां इतना संतोष जरुर है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के कारण देश में मुस्लिमपरस्ती के वातावरण पर अंकुश लगा है। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री न होते तो तीन तलाक के खिलाफ इतना कड़ा क़ानून नहीं बन सकता था, जिसमें तीन तलाक कहने वाले को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ता। मोदी प्रधानमंत्री न होते तो हज पर मिलने वाली सब्सिडी भी बंद नहीं होती। गुजरात में मोदी का यह भ्रम टूटा है कि उन्हें विकास के नाम पर जनादेश मिला है। इसलिए भाजपा अपने मूल वोट बैंक और संघ के दबाव में हिंदुत्व की तरफ लौट रही है। भाजपा 2014 का चुनाव कांग्रेस के प्रति आक्रोश के वातावरण में विकास के एजेंडे और हिन्दुओं की एकजुटता के कारण जीती थी, तब भी उसे सिर्फ 39 फीसदी वोट और 282 सीटें मिलीं थीं। अब जहां एक तरफ हिन्दुओं में निराशा है, वहां कांग्रेस हिन्दू वोटों के विभाजन की रणनीति पर काम कर रही है। भाजपा को दुबारा सत्ता में आने के लिए जहां हिन्दुओं को 2014 की तरह एकजुट रखना पड़ेगा, वहां उन में यह विश्वास भी कायम करना पड़ेगा कि दुबारा सत्ता में आने पर वह हिन्दू हित के काम करेगी।

कांग्रेस 2019 में हिन्दुत्ववादी शक्तियों में फूट डालने के लिए सा प्रदायिक और जातीय राजनीति को उभारने में जुट गई है। मुस्लिम हमेशा कांग्रस के साथ रहे हैं, 1992 में बाबरी ढांचा टूटने के बाद मुस्लिम कांग्रेस से टूट कर तीसरे मोर्चे के गठन का कारण बने थे। नतीजतन 1996 में तीसरे मोर्चे की सरकार बनी। मुस्लिम तीसरे मोर्चे के साथ बना रहा था, इसलिए कांग्रेस 2004 और 2009 में तीसरे मोर्चे की मदद से ही सरकार बना सकी थी। अब राहुल गांधी जहां एक तरफ खुद को हिन्दू साबित कर रहे हैं, वहीं बंद कमरों में मुसलमानों के साथ बातचीत की जा रही है। पहले खुद राहुल गांधी ने जुलाई में मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ बंद कमरे में बातचीत के दौरान मुसलमानों को मंदिर मंदिर घूमने पर सफाई देते हुए कहा कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है। जिसे बैठक में मौजूद उर्दू के अखबार इन्कलाब के स पादक ने लीड खबर बना कर जगजाहिर कर के कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया था।

फिर मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के उ मीदवार माने जा रहे कमल नाथ ने मुसलमानों के साथ गोपनीय मीटिंग की, जिसमें उन्होंने भाजपा से मुकाबले के लिए मुसलमानों से 90 प्रतिशत वोटों की गारंटी मांगी। इसी तरह ज मू कश्मीर में हिन्दुओं के एकजुट होने पर 25 हिन्दू विधायक जीतने के कारण अलग थलग पड़ी कांग्रेस ने पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस का गठबंधन करवाया है, जिसे मिलजुल कर सरकार बनाने से रोकने के लिए राज्यपाल को आनन फानन में विधानसभा भंग करनी पड़ी। कांग्रेस की कोशिश है कि ज मू कश्मीर में चुनाव के बाद पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस की साझा सरकार बने और उतर प्रदेश में दलित-यादव का सपा-बसपा गठबंधन बने। कांग्रेस सारे देश में जातीय और सा प्रदायिक गठबंधन के लिए खुद का राजनीतिक नुकसान भुगतने को भी तैयार है।

नव बर-दिस बर 2018 में पांच विधानसभाओं के चुनाव विकास और हिंदुत्व के मिले जुले एजेंडे पर लड़े गए हैं। यह लोकसभा चुनाव का ट्रायल है, संकेत साफ है कि 2019 का लोकसभा चुनाव विकास पुरुष मोदी की तथाकथित लहर पर नहीं बल्कि उग्र हिंदुत्व के मुद्दे पर लड़ा जाएगा, इस की तैयारी गोरखपीठ के प्रमुख एवं हिंदू युवा वाहिनी के संस्थापक योगी आदित्यनाथ को उतर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन करने के साथ ही कर ली गई थी। उनके मुख्यमंत्री बनने से खाली हुई उन की अपनी गोरखपुर लोकसभा सीट हारने के बावजूद उन्हें इसी लिए मुख्यमंत्री बनाए रखना पड़ा क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे पर कमजोर नहीं पडऩा चाहती। योगी आदित्यनाथ हिन्दुओं में मोदी के विकल्प के रूप में उभरने शुरू भी हो चुके हैं। पहले गुजरात और कर्नाटक और बाद में उत्तर भारत के तीन राज्यों के साथ साथ पूर्वोत्तर के मिजोरम और दक्षिण भारत के तेलंगाना राज्य विधानसभा चुनाव में भी योगी की जनसभाएं करवाई गई। योगी ने मंदिर निर्माण के लिए तीखे तेवर दिखाने भी शुरू कर दिए हैं। उनके तेवर 1992 के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से भी ज्यादा तीखे हैं, जिससे हिन्दुओं में उनके प्रति विश्वास जागृत हो रहा है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 के अपने फैसले में यह माना है जहां बाबरी ढांचा विद्यामान था, उस के नीचे एक विशाल मंदिर के अवशेष मिले हैं, इसके बावजूद हाईकोर्ट ने मुसलमानों को संतुष्ट करने के लिए उन्हें 2.77 एकड़ जमीन का एक तिहाई हिस्सा दे दिया था। सुप्रीमकोर्ट आठ साल से सुनवाई टाले हुए है, मोदी सरकार जल्द सुनवाई का इंतजाम नहीं कर पाई। अक्टूबर में जनवरी 2019 तक सुनवाई टलने से हिन्दुओं का गुस्सा उसी तरह सातवें आसमान पर है, जैसे 1992 में सुप्रीमकोर्ट के रवैये से हुआ था। तब सुप्रीमकोर्ट ने कार सेवा की इजाजत पर फैसला सुरक्षित रख लिया था और हिन्दुओं ने गुस्से में बाबरी ढांचा तोड़ दिया था। अब साधू संत, विश्व हिन्दू परिषद, शिव सेना और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सरकार पर दबाव बनाया है कि वह या तो अध्यादेश ला कर संसद से क़ानून बनवाए या 10 दिस बर से शुरू होने वाले संसद सत्र में सीधा विधेयक पेश करे।

अध्यादेश और विधेयक की बातें तो की जा रही हैं, लेकिन मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह अदालत में विचाराधीन विवादास्पद भूमि को किस क़ानून के तहत हिन्दू समुदाय को दे सकती है। संसद को भी क्या अधिकार है कि वह विवादास्पद जमीन पर एकपक्षीय निर्णय ले। भाजपा पर दबाव बनाने के लिए 24 नव बर को अयोध्या में हुआ शिवसेना का जमावड़ा और 25 नव बर को विश्व हिन्दू परिषद का जमावड़ा भाजपा के लिए हिन्दुत्व के एजेंडे पर लौटने की चेतावनी भी है। विश्व हिन्दू परिषद के स मेलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत का आना और उनका सरकार को दो टूक मंदिर बनाने का रास्ता साफ़ करने के लिए कहना नरेंद्र मोदी के लिए चेतावनी है। हिन्दुओं का विश्वास फिर से जीतने के लिए मोदी सरकार को कोई बड़ा कदम उठाना पड़ेगा। अन्यथा 2019 में मोदी की जगह योगी को प्रधानमंत्री बनाने की मांग उठ सकती है।

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कांग्रेस के राज्यसभा के वकील सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्तियों के खिलाफ महाभियोग लाकर उनको डराते धमकाते हैं

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

अयोध्या में राम मंदिर को लेकर जारी विवाद बढ़ता ही जा रहा है। राम मंदिर को लेकर अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर हमला बोला है। पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस न्याय प्रक्रिया में दखल दे रही है। पीएम का कहना है कि कांग्रेस नहीं चाहती की राम मंदिर केस की सुनवाई 2019 से पहले हो क्योंकि साल 2019 में आम चुनाव होने हैं।

राजस्थान के अलवर में बोलते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट का कोई जज अयोध्या जैसे गंभीर संवेदनशील मसलों में देश को न्याय दिलाने की दिशा में सबको सुनना चाहते हैं तो कांग्रेस के राज्यसभा के वकील सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्तियों के खिलाफ महाभियोग लाकर उनको डराते धमकाते हैं। कांग्रेस न्याय प्रक्रिया में दखल देती है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस के लोग सुप्रीम कोर्ट में जाकर बोल रहे हैं कि राम मंदिर केस की सुनवाई 2019 से पहले नहीं होनी चाहिए।

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जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण हेतु कानून लाए सरकार : सरसंघचालक

विहिप द्वारा आयोजित धर्म सभाओ में जुटे लाखों रामभक्तों ने भरी हुंकार

विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा अयोध्या, नागपुर, मेंगलूरु, हुबली गुवाहाटी व शाहजहांपुर समेत देश में अनेक स्थानों पर आयोजित धर्मसभाओं में उपस्थित पूज्य संतों, धर्माचार्यों विहिप पदाधिकारियों व अन्य राम भक्तों ने एक स्वर में केंद्र सरकार से कहा कि श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की बाधाओं को अबिल ब दूर करे। उन्होंने कहा कि लगभग पांच शताब्दियों से हिन्दू समाज भगवान श्रीराम की जन्मभूमि की मुक्ति के लिए संघर्षरत है जिनमें एक शताब्दी से अधिक समय न्यायालयों के चक्कर लगाने में व्यतीत हो गए फिर भी न्याय नहीं मिला। अब बारी रामभक्त सरकार की है कि वह जन भावनाओं का स मान करते हुए जन्मभूमि मंदिर का मार्ग प्रशस्त करे।

भगवान श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास, रामानंदाचार्य रामभद्राचार्य जी, स्वामी हंसदेवाचार्य, वासुदेवाचार्य युग पुरुष परमानंद तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह श्री कृष्ण गोपाल जी, विहिप उपाध्यक्ष श्री च पतराय ने कहा कि रामजन्मभूमि का विभाजन अस्वीकार्य है। अब अयोध्या में राम के अलावा कुछ भी स्वीकार्य नहीं।

विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा नागपुर में बुलाई गई धर्म सभा को स बोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन राव भागवत ने केंद्र सरकार को श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण हेतु अविल ब कानून बनाने की अपनी मांग दोहराते हुए कहा कि सदियों से प्रतीक्षारत हिन्दू समाज अब और विलंब नहीं चाहता। इसी मंच से विहिप कार्याध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आलोक कुमार ने संसदीय कानून का विरोध करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि न्यायालय में विषय लंबित होते हुए भी कानून बनाने में किसी भी प्रकार की अड़चन नहीं है। लोकतंत्र में संसद का जन-हित में कानून बनाने का अधिकार क्षेत्र असीमित है। अत: इसमें और किसी प्रकार का विचार या विल ब हिन्दू समाज के लिए पीड़ादायक होगा। राम जन्मभूमि आन्दोलन के प्रार भ से जुड़ी दीदी मां साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि जिस दिन माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मात्र तीन मिनिट में बिना किसी पक्षकार को सुने श्रीराम जन्मभूमि मामले की सुनवाई तीन महीने के लिए बिना बेंच के गठन के ही यह कह कर टाल दी कि इसकी अभी कोई जल्दी नहीं है, हिन्दू समाज स्वयं को ठगा हुए सा महसूस करने लगा है। अब वह आखिर जाए तो किधर जाए. संसद व राम भक्त सरकार से ही तो अब उसे आशा है। स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि जन्मभूमि स्थानांतरित नहीं हो सकती। उन्होंने पूछा कि देश के लिए कोर्ट है या कोर्ट के लिए लिए देश है। कोर्ट को भी देश की जनभावनाओं का स मान करना चाहिए। हुंकार सभा की अध्यक्षता करते हुए जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा कि भगवान श्रीराम के यूं तो असं य मंदिर हैं किन्तु जन्मभूमि का मंदिर तो जन्म भूमि पर ही बनेगा ना। अब और देर असहनीय है।

हुबली में हुई धर्म सभा में श्री पूज्य महा मंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानन्द गिरी जी महाराज, स्वामी बसवालिंग महास्वामी, पू. श्रीश्रीश्री सिद्ध शिवयोगी जी, जैन मुनि ज्योतिषाचार्य डॉ. हेम चन्द्र सूरीश्वर जी के अलावा विहिप के क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री केशव हेगड़े तथा प्रांत संगठन मंत्री श्री केशव राजू ने रामजन्म भूमि पर भव्य मन्दिर हेतु संसद द्वारा कानून बनाने की मांग करते हुए कहा कि अब हिन्दू समाज की भावनाओं का स मान सभी राजनैतिक लोगों को करना ही होगा।

मेंगलूरू की धर्मसभा में पूज्य श्री वीरेन्द्र हेगड़े व बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक श्री सोहन सिंह सोलंकी ने राम भक्तों का आह्वान करते हुये कहा कि जन्मभूमि पर मंदिर के अलावा न कुछ स्वीकार्य है और न ही इसमें किसी भी प्रकार की देरी अब और बर्दाश्त होगी। बजरंग दल के युवा अब भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण हेतु पूज्य संतों के आदेशों के पालन हेतु कृत संकल्पित है।

विनोद बंसल

 

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