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राहुल गांधी की मानसरोवर यात्रा का पूरा सच?

ये वाकई शर्म की बात है कि एक शख्स जो 48 साल का है उसे इस बात को साबित करना पड़ रहा है कि वो किस धर्म का है. समस्या है कि वो गुजरात में मंदिर मंदिर में जाकर सिर झुकाता है.. पूजा करता है. कर्णाटक में हिंदू धार्मिक पोशाकों में आरती और वंदना करता है. वो हर ऐसी जगह जाता है जिससे उसके हिंदू का सबूत माना जा सकता है. इतना ही नहीं, उसके प्रवक्ता उसे कभी जेनऊधारी बताते हैं. कभी शिवभक्त घोषित करते हैं तो कभी ‘शुद्ध बाह्मण’ डीएनए का वाहक बताते हैं. इतना ही नहीं, 48 साल के इस शख्स को खुद को हिंदू साबित करने के लिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाना पड़ता है. और तो और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि वो जहां जाते हैं वहां मीडिया का कैमरा साथ ले जाते हैं. फोटो और वीडियो शेयर टीवी अखबार और सोशल मीडिया पर शेयर किया जाता है. पैसे पर प्रचार प्रसार करने वाले इसे हर फोन तक पहुंचाते हैं लेकिन दुर्भाग्य देखिए…. इतना सब कुछ करने के बाद भी ये सवाल बना हुआ कि आखिर राहुल गांधी का धर्म क्या है? हकीकत ये है कि राहुल गांधी इतना कुछ करने के बावजूद लोगों को विश्वास नहीं करा पाए हैं कि वो हिंदू है.

ये सबको मालूम है कि राफेल डील पर झूठे आरोप लगा कर राहुल गांधी कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर निकल गए. लेकिन ये किसी को मालूम नहीं है कि नेपाल में राहुल गांधी के साथ क्या हुआ. इसका खुलासा आगे होगा लेकिन पहले ये समझते हैं कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा के बारे में समझते हैं. पवित्र कैलाश पर्वत तक पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं.. पहला रूट उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे से होते हुए है जिसमें लोगों को चलना पड़ता है. इस मार्ग से यात्रा की अवधि 24 दिनों की होती है. मानसरोवर यात्रा का दूसरा मार्ग सिक्किम के नाथु ला दर्रे से होकर जाता है.. इसमें ट्रेकिंग नहीं करनी होती है पूरी यात्रा वाहन से होती है. इसमें 21 दिन लगता है. ज्यादातर बुजूर्ग लोग इस रूट को प्रेफर करते हैं. तो सवाल ये है कि राहुल गांधी वो कौन से रूट से गए जिससे वो महज 5-6 दिनों में ही कैलाश मानसरोवर पहुंच गए और क्या ऐसी यात्रा को क्या धार्मिक यात्रा कहा जा सकता है?

राहुल गांधी की कैलाश मानसरोवर यात्रा 31 अगस्त के दिल्ली से शुरु हुई. ये भी विवाद बन गया. क्योंकि राहुल चाहते थे कि चीन के राजदूत उन्हें दिल्ली के वीआईपी लाउंच में एक आधिकारिक क्रार्यक्रम के तहत उन्हें विदा करें. इसके लिए चीन के एंबेसी से विदेश मंत्रालय को चिट्ठी भी लिखी गई. लेकिन, सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी. क्योंकि राहुल किसी संवैधानिक पद पर न हैं न कभी रहे औऱ दूसरा ये कि वो चीन नहीं बल्कि दिल्ली से नेपाल जा रहे थे. कैलाश जाने के लिए नेपाल क्यों गए? ये भी एक पहेली है. अगर उन्हें नाथूला दर्रे से कैलाश जाना था तो उन्हें बागडोगरा एयरपोर्ट जाना था. लेकिन वो नेपाल चले गए. इस यात्रा में वो अकेले नहीं हैं. उनके साथ उनके कुछ खास दोस्त व सलाहकार भी है. उनके दोस्तों में अमिताभ बच्चन के भाई अजिताभ बच्चन के बेटे भीम बच्चन भी उनके साथ है. मतलब साफ है कि ये कोई धार्मिक यात्रा नहीं बल्कि मौज मस्ती .. सैर सपाटे वाला टूर है.

नेपाल जाने की दो वजहें थी. पहला ये कि वो काठमांडू का लुफ्त उठाना चाहते थे साथ ही राहुल को ये सुझाव दिया गया था कि कैलाश मानसरोवर से पहले अगर पशुपतिनाथ मंदिर में दर्शन हो जाए तो एक पंथ दो काज हो जाएगा. सच्चे शिवभक्त साबित करने में कांग्रेस प्रवक्ताओं को एक ठोस सबूत मिल जाएगा. लेकिन सवाल ये है कि ये कैसा शिवभक्त है जो काठमांडू तो गया लेकिन पशुपतिनाथ मंदिर नहीं गया? ये भला कैसे हो सकता है कि कोई शिवभक्त काठमांडू एयरपोर्ट तक पहुंच जाए लेकिन बगल में पशुपतिनाथ मंदिर न जाए?

दरअसल, राहुल गांधी अपने दोस्तों के साथ 31 तारीख के एक बजे काठमांडू पहुंचे. फिर वहां उन्होंने पशुपतिनाथ मंदिर जाने की इच्छा दिखाई. उनके सलाहकारों ने काठमांडू के कुछ पुराने नेताओं से बात की. वो 1 तारीख की सुबह पशुपतिनाथ मंदिर जाना चाहते थे. लेकिन जब ये प्रस्ताव आया तो पशुपतिनाथ मंदिर के प्रबंधन ने एक मीटिंग बुलाई. जिसमें ये तय करना था कि राहुल गांधी को हिंदू माना जाए या नहीं. पशुपतिनाथ मंदिर के गर्भगृह में सिर्फ हिंदू ही जा सकते हैं. मंदिर प्रबंधन ने वही फैसला लिया जो 1985 में सोनिया गांधी के लिए लिया था. प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी के रुप में वो सोनिया काठमांडू गई थी लेकिन इसके बावजूद उन्हें मंदिर में धुसने नहीं दिया गया. इसी तरह इस बार भी राहुल गांधी के हिंदू होने पर मंदिर प्रबंधन को भऱोसा नहीं था इसलिए राहुल गांधी को मना कर दिया गया.

राहुल गांधी देश के बड़े नेता हैं. कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष हैं. जब वो नेपाल के लिए रवाना हुए तो चीनी राजदूत से औपचारिक विदाई चाहते थे लेकिन जब ये अपने दोस्तों के साथ काठमांडू पहुंचे तो न ही उन्होंने काठमांडू में मौजूद भारतीय उच्चायोग से संपर्क किया न ही विदेश मंत्रालय को कोई खबर दी. काठमांडू पहुचने के बाद राहुल की मित्र मंडली वहां होटल ढूंढने में जुट गई. जब इसका पता उच्चायोग के अधिकारियों को चला तो उन्होंने मदद की. और सुरक्षा मुहैय्या कराया. लेकिन, शाम होते ही वो फिर काठमांडू में मौज मस्ती के लिए निकल पड़े. वूडू रेस्तरां में डिनर किया जहां ये विवाद खड़ा हो गया कि उन्होंने चिकन खाया. इससे एक बात तो साफ है कि राहुल गांधी का रवैया काफी गैरजिम्मेदाराना है.

अगले दिन राहुल गांधी अपने मित्र मंडली के साथ काठमांडू से चीन रवाना हुए. ये लोग दोपहर 12:10 मिनट वाली एयर चाइना 408 की फ्लाइट से ल्हासा के लिए निकले. सवाल ये है कि वो ल्हासा क्यों गए? ये तो मानसरोवर का रास्ते में पड़ता नहीं है. दरअसल ये शहर तो मानसरोवर के ठीक उल्टी दिशा में हैं. राहुल गांधी ल्हासा इसलिए गये क्योंकि मौजमस्ती करने वालो और अमीरों के लिए मानसरोवर का रास्ता ल्हासा से गुजरता है. राहुल गांधी ल्हासा में दो तीन दिन रूके. आराम किया. तिब्बत के पठार के वातारवऱण में खुद को ढ़ाला और फिर ल्हासा से फ्लाइट के जरिए न्गोरा शहर पहुंचे. तिबब्त का ये शहर मानसरोवर और कैलाश के सबसे करीब है. ये शहर कैलाश से करीब 190 किलोमीटर दूर है लेकिन दोनों को चायनीज नेशनल हाईवे नंबर 219 जोड़ती है. यानि काठमांडू से ल्हासा फिर ल्हासा से न्गारो और वहां से गाड़ी पर बैठ कर मानसरोवर और कैलाश… ये कैसी तीर्थयात्रा है इसके बारे में वो लोग बता सकते हैं जो पहाड़ पर मीलों पैदल चल कर मानसरोवर पहुंचते हैं?

इस तरह से कैलाश अगर जाना हो तो दो दिन में वहां पहुंचा जा सकता है. लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को ये बताना चाहिए कि उन्होंने नेपाल में क्या क्या किया? ल्हासा में कितने दिन रहे और किस किस से मिले? मानसरोवर की यात्रा के दौरान चीन की सरकार और एजेंसी से क्या क्या मदद ली? क्योंकि जिस तरह से चीनी राजदूत की तरफ से सरकार को चिट्ठी दी गई उससे तो यही लगता है कि नेपाल से ल्हासा पहुंचने के बाद राहुल की खातिरदारी चीनी सरकार की तरफ से की गई होगी.

राहुल गांधी और उनके सलाहकार को तीर्थ यात्रा और सैर-सपाटा का फर्क समझ में नहीं आया.यही वजह है कि राहुल गांधी कैलाश पहुंचते ही तस्वीरें शेयर करने लगे. वीडियो भी अपलोड कर दिया. इतना ही नहीं चाटूकारिता की तो हद ही हो गई. जब कांग्रेस पार्टी ने ये बताना शुरु कर दिया कि राहुल कितने कदम चले.. कितना चले… आदि आदि.. ऐसा लगा कि मानो.. राहुल गांधी की कैलाश मानसरोवर महज पब्लिसिटी के लिए गया है. अब राहुल गांधी को कौन समझाए कि हिंदू दर्शन में तीर्थाटन का मकसद सिर्फ पवित्र स्थल पर पहुंचना नहीं है. बल्कि इसका मकसद कठिन शारिरिक और मानसिक परिश्रम के बाद आत्मिक शांति करना है. जिससे हृदय में संसार की अनित्यता और विलास तथा वैभव के क्षणिक एवं मिथ्या अस्तित्व का अनुभव करना होता है. कैलाश-मानसरोवर की यात्रा सबसे पवित्र इसलिए है क्योंकि इसमें इंसान जीवन और मौत की काफी नजदीक से अनुभव करता है. अगर जिस किसी को लगता है कि हवाई जहाज में बैठकर दोस्तों के साथ मौज मस्ती करते हुए कोई आलौकिक अनुभव कर सकता है तो बहस की कोई गुंजाइश ही नहीं है. वैसे मतस्य पुराण, स्कंद पुराण और गरूड़ पुराण में साफ साफ लिखा है पदयात्रा ही तीर्थ यात्रा है…

ऐर्श्वय लोभान्मोहाद् वागच्छेद यानेन यो नरः।
निष्फलं तस्य तत्तीर्थ तस्माद्यान विवर्जयेत् । – मतस्य पुराण

तीर्थयात्रा में वाहन/यान वर्जित है क्योंकि ऐश्वर्य के गर्व से,  मोह से या लोभ से जो यानारूढ़ होकर तीर्थयात्रा करता है, उसकी तीर्थ यात्रा निष्फल हो जाती है .

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