चंडीगढ़ के जे डब्ल्यू मैरिएट होटल में दिनांक 3 जून 2017 को डायलॉग इंडिया एकेडमिया कॉन्क्लेव का शानदार आयोजन हुआ। इस समारोह में भारत के कोने कोने से निजी शैक्षणिक संस्थानों को विभिन्न पैरामीटर के आधार पर आधारित रेटिंग के अनुसार सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथियों के द्वारा द्वीप प्रज्जलवन के साथ हुआ। कार्यक्रम में शिक्षा एवं उद्योग की विशिष्ट हस्तियों के साथ अन्य गणमान्य लोग भी उपस्थित थे। द्वीप प्रज्जलवन के उपरांत डायलॉग इंडिया की आल इंडिया रैंकिंग के विशेष अंक का लोकार्पण सम्माननीय अतिथियों द्वारा हुआ। रैंकिंग के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए डायलॉग इंडिया पत्रिका के संपादक श्री अनुज अग्रवाल ने कहा कि भारत मे शिक्षा के क्षेत्र में बहुत असमानताएं हैं। जहां प्राथमिक स्तर पर निजी क्षेत्र के शिक्षण संस्थान अभिभावक चाहते हैं तो वहीं उच्च शिक्षा में सरकारी शिक्षण संस्थान बाज़ी मारते हैं। रैंकिंग का उद्देश्य है निजी शिक्षण संस्थानों को प्रोत्साहित करना, अच्छे कार्यों को प्रोत्साहित करना, जिससे पैसे लेकर डिग्री देने वाले संस्थानों को हतोत्साहित किया जा सके और सरकार जिस तरह पारदर्शिता को बढ़ावा दे रही है, उसे क्रियान्वित किया जा सके। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे हरियाणा सरकार के मंत्री श्री मनीष ग्रोवर। उन्होंने आयोजकों को बधाई देते हुए अच्छे कार्यों को जारी रखने पर बल दिया। कार्यक्रम मं् पैनल डिस्कशन भी थे जिनमें शिक्षा और उद्योग के बीच बढ़ती दूरी पर सम्मानित अतिथियों ने अपने विचार प्रस्तुत किए। प्रथम सत्र में पैनल सदस्य थे श्री कमल टाबरी, प्रोफेसर राजेश अरोड़ा (रजिस्ट्रार चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी) श्री विजय तिवारी(अध्यक्ष इंडो यूरोपियन चैंबर ऑफ स्माल एन्ड मीडियम इंटरप्राइज) और भूपिंदर धर्माणी। इस चर्चा से कई बिंदु उभर कर आए कि किस प्रकार शिक्षा को उद्योगों के काबिल बनाया जा सकता है और उपक्रमों को आरम्भ किया जा सकता है। प्रथम सत्र का सफल संचालन वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रमोद सैनी ने किया।
इस सत्र में जो विचार रखे गए उनमें कमल टाबरी का उद्योग के स्थान पर उपक्रम का प्रयोग मुख्य था। उनके अनुसार उद्योग शब्द का प्रयोग ही गलत है, उन्होंने पर्यावरण आधारिक उपक्रम की बात की। प्रोफेसर राजेश अरोड़ा ने गुणवत्ता परक शिक्षा पर जोर दिया। विजय तिवारी जी ने शिक्षा और उद्योग के बीच सरकार की कड़ी को बताया और इसके लिए उन्होंने सांसदों द्वारा गोद लिए गए गाँव वाले प्रोजेक्ट की चर्चा की। भूपिंदर धर्मानी ने कहा सीएसआर परियोजना के अंतर्गत शिक्षा को दिया जाना चाहिए। शिक्षा समाजमूलक होनी चाहिए। और कौशल की आवश्यकता को महसूस किया गया।
इस कार्यक्रम में सम्मानित होने वाले निजी शिक्षण संस्थान थे मानव रचना डेंटल कॉलेज फरीदाबाद, कपूर डीए वी डेंटल कॉलेज, कर्णावती स्कूल ऑफ डेंटिस्ट्री, चितकारा यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी मोहाली, पानीपत इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मानव रचना यूनिवर्सिटी, एमिटी यूनिवर्सिटी मध्य प्रदेश, आईआईआईएम जयपुर, चिरायु मेडिकल कॉलेज भोपाल, एपीजे सत्या मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट, मणिपाल यूनिवर्सिटी राजस्थान।
द्वितीय सत्र अभिनवता एवं उच्च शिक्षा में सिंगल एंट्रेंस टेस्ट एवं पारदर्शिता पर था, जिसका सफल संचालन प्रोफेसर आशुतोष अग्रवाल ने किया। इस सत्र में अभिनवता अर्थात शिक्षा में इनोवेशन पर चर्चा हुई। चर्चा में पारदर्शिता पर बात हुई और भाजपा के महिला मोर्चा से चर्चा में शामिल एकता नागपाल का कहना था कि पारदर्शिता केवल शिक्षा में ही क्यों, पारदर्शिता हमारे जीवन के हर क्षण में होनी चाहिए। शिक्षा और डिग्री इन दोनों में जमीन आसमान का अंतर है। डिग्री हमें व्यवहारिक जगत में केवल नौकरी पाने के योग्य बनाती है, मगर शिक्षा कहीं अधिक की बात है, शिक्षा संस्कारों की बात है। हर उद्योग में पाखण्ड है, हमें दोहरेपन से लडऩे की आवश्यकता है। इसी बात को आगे बढाते हुए चर्चा में सम्मिलित हुए प्रोफेसर सुनील का कहना था कि शिक्षा में जब अभिनवता होगी तभी हम विद्यार्थियों को शिक्षा से जोड़ पाएंगे, बहुत जरूरत इस बात की है कि आज शिक्षक भी बच्चों के साथ जुड़कर खुद को अपडेट करें, नई तकनीकियों से अपडेट रखें खुद को। और सरकार इस समय नवाचार को बढ़ावा दे रही है, हमें इस का लाभ उठाना चाहिए।
वहीं मनिपाल राजस्थान से आए प्रोफेसर एन एम शर्मा ने सिंगल एंट्रेंस की आवश्यकता को तो सराहा मगर इसे और व्यवहारिक बनाने की मांग की। पारदर्शिता को परिचालानात्मक मुद्दा बताया। इस कार्यक्रम में मीडिया सहयोगी अमरउजाला था। इस कार्यक्रम में विजेताओं का साक्षात्कार साइबर सिपाही द्वारा लिया गया।
डायलॉग इंडिया एकेडमिया कॉनक्लेव का निष्कर्ष
शिक्षा मेंं अभिनवता और पारदर्शिता से बनेगी गुणवत्ता की बड़ी लकीर
खनऊ के बाद चंडीगढ़ का जेडब्ल्यू मैरिएट होटल शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे बदलावों एवं नए विचारों का साक्षी बना। प्रतिष्ठित मीडिया समूह ‘डायलॉग इंडियाÓ के द्वारा देश भर के प्रख्यात निजी उच्च शिक्षाओं की एक विस्तृत रैंकिंग का स्वागत शिक्षाविदों, अधिकारियों, नीतिनिर्माताओं एवं देश भर से पधारे तमाम निजी शिक्षा संस्थानों के प्रतिनिधियों ने किया। इस कार्यक्रम का आयोजन दिनांक 3 जून 2017 को चंडीगढ़ में जे डब्ल्यू मैरिएट होटल में किया गया था। इसी के साथ शिक्षा के क्षेत्र में नई चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए तीसरे डायलॉग इंडिया अकेड्मिया कानक्लेव का भी आयोजन था, जिसमें देश भर से विविध संस्थानों से प्रख्यात पैनलिस्ट उपस्थित थे, जिन्होनें विषयों के हर पहलू पर अपने विचारों को समग्रता से प्रस्तुत किया। उन्होंने उच्च शिक्षा संस्थानों के सम्मुख आने वाली समस्याओं के साथ साथ उद्योग और शिक्षा में किस तरह की दूरी है और इस दूरी को किस तरह कौशल के माध्यम से कम किया जा सकता है, इस पर अपने विचार रखे।
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मुख्य अतिथि, हरियाणा सरकार के माननीय मंत्री श्री मनीष ग्रोवर ने शिक्षा की महत्ता पर बल देते हुए सरकार द्वरा उठाए जा रहे तमाम कदमों की जानकारी दी। कार्यक्रम में उन्होंने सभी सम्मानित शिक्षण संस्थानों को शुभकामनाएँ देते हुए उन्हें निजी शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर आगे कदम बढ़ाने के लिए कहा। उनका मत था कि जिस तरह की शिक्षा मिलनी चाहिए थी, वह मिली नहीं है। शिक्षा का उद्देश्य न केवल आत्मविकास होना चाहिए, बल्कि वह समाज के विकास का भी माध्यम बननी चाहिए। शिक्षा को केवल कागजी शिक्षा तक ही सीमित नहीं कर सकते हैं। युवाओं को कौशल की आवश्यकता होती है। शिक्षा का अर्थ होता है रोजगार। रोजगार और नौकरी को एक साथ जोड़कर नहीं देखना चाहिए। कौशल विकसित होगा तो रोजगार आएगा। मोदी सरकार का भी अधिक से अधिक जोर शिक्षा और कौशल को विकसित करने पर है। आज देश में तमाम तरह की कौशल योजनाएं संचालित हो रही हैं, जैसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना आदि। उन्होंने देश में बन रहे सकारात्मक वातावरण की बात करते हुए कहा कि आज देश और शिक्षा को लेकर बहुत ही सकारात्मक वातावरण है और जनता को माननीय प्रधानमंत्री द्वरा उठाए जा रहे कदमों पर विश्वास है।
गाँव और शहर में प्रदत्त शिक्षा में अंतर है। और यह अंतर कहीं न कहीं सामाजिक असमानता में वृद्धि करता है। हमें इस अंतर को भरना होगा। शिक्षा से जो भी डिग्री हासिल हो, वह सार्थक होनी चाहिए। हमें अब विकास की ओर अग्रशील होकर सोचना है। हर डिग्री विकास की डिग्री होनी चाहिए। शिक्षा का उद्देश्य यदि केवल डिग्री ही मानें तो भी डिग्री ऐसी हो कि जो देश को आगे बढाए, उसे सही दिशा में लेकर जाए। मगर यह भी दुर्भाग्य ही है कि शिक्षा को केवल नौकरी और डिग्री से जोड़कर रख दिया। शिक्षा का मूल उद्देश्य कहीं खो गया है। आत्मविकास और समाज का विकास अब शिक्षा का ध्येय नहीं रह गया है। सेवा भाव भी कहीं खो गया है। शिक्षा के मूल रूप को वापस लाने के लिए सरकारी और गैर सरकारी दोनों ही स्तरों पर तमाम प्रयास करने होंगे, तभी हम प्राचीन गौरव को प्राप्त कर सकेंगे। उन्होंने हरियाणा सरकार के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में उठाए जा रहे कदमों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि हम शिक्षा को मूल्यों के साथ जोडऩे का कार्य कर रहे हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें केवल सेवा का भाव ही सबसे ऊपर होना चाहिए। आज हमें समाज में जो भी भ्रष्टाचार दिख रहा है, वह हमारे मूल्यों में सेवा भाव के क्षरण के साथ ही आरम्भ हुआ है। शिक्षा, राजनीति और स्वास्थ्य में गिरावट आने पर समाज में भ्रष्टाचार फैल गया। आम गरीब को शिक्षा मिले, यह हमारा लक्ष्य होना चाहिए। हरियाणा सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में चल रहे गोरखधंधे को बंद किया। हमारी सरकार का यही प्रयास है कि समाज का युवा सार्थक कदमों के साथ जुडे, वह नौकरी की तरफ नहीं स्वरोजगार की तरफ मुड़े। शिक्षा केवट रट कर डिग्री लेना ही नहीं बल्कि स्व-रोजगार से परिपूर्ण हो, जिससे वह तमाम और लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा कर सके।
उन्होंने डायलॉग इंडिया और अमर उजाला का शुक्रिया अदा किया कि उन्हें इस भव्य कार्यक्रम का हिस्सा बनने का मौका मिला जहां पर उन्होंने तमाम तरह के प्रेरक विचार मिले। उन्होंने विश्वास जताया कि पत्रिका का यह सफर जारी रहेगा।
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इससे पूर्व कार्यक्रम का औपचारिक आरम्भ दीप प्रज्ज्वलन की परम्परा के साथ हुआ। इस कार्यक्रम में न केवल चंडीगढ़ बल्कि देश के कोने कोने से गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। श्री कमल टाबरी, प्रोफेसर राजेश अरोड़ा (रजिस्ट्रार चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी) श्री विजय तिवारी(अध्यक्ष इंडो यूरोपियन चैंबर ऑफ स्माल एन्ड मीडियम इंटरप्राइज) भूपिंदर धर्माणी एवं पत्रिका के ग्रुप एडिटर श्री अनुज अग्रवाल द्वारा दीप प्रज्जवलित किया गया। दीप प्रज्ज्वलन के उपरान्त डायलॉग इंडिया द्वारा निजी विश्वविद्यालयों की रेटिंग पर आधारित अंक का विमोचन माननीय अतिथियों के द्वारा किया गया।
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कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत करते हुए पत्रिका के संपादक श्री अनुज अग्रवाल ने इस रेटिंग के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि लखनऊ के बाद इस दूसरे चरण में तमाम निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा जिस तरह से उत्साह से प्रतिभागिता आज के कार्यक्रम में की गयी है वह उत्साहित करने वाली है। हमारा उद्देश्य है क्षेत्रीय स्तर पर तमाम कॉलेज को नजदीक लाना। ये सर्वे किसी एक व्यक्ति की मेहनत न होकर 200 लोगों की टीम का परिणाम है। इनमें कई अविश्वनीय परिणाम भी हैं। इसके साथ ही उन्होंने इस सर्वे में प्रयोग की गयी कई पद्धतियों के बारे में भी बताया कि आखिर उन्होंने किस तरह से शिक्षा संस्थानों को चुना। उन्होंने विभिन्न संस्थानों में अपने सफर को बताते हुए कहा कि संस्थानों को और गुणवत्ता परक होने की आवश्यकता है।
उन्होंने अपने सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि ऐसा लग रहा है कि शिक्षा के क्षेत्र में बड़े उलट पुलट वाला समय है। उच्च हो या माध्यमिक या फिर प्राथमिक सभी श्रेणियों में बड़े बदलावों के आगाज़ हो चुके हैं। जो संस्थान कुछ समय पूर्व चर्चाओं में थे वो गायब हो चुके हैं और जो चुपचाप अपना काम ईमानदारी और गुणवत्ता के साथ करते रहे, आज शिखर पर हैं। सच्चाई यही है कि देश के निजी संस्थानों की रैंकिंग में टॉप के कुछ खिलाडिय़ों को छोड़ सभी की स्थिति में व्यापक उलटफेर हुआ है। पहली बार सुशासन का चाबुक संस्थानों, कॉलेजो और स्कूलों पर पड़ता और असर करता दिख रहा है। विभिन्न समितियों, विशेषज्ञ समूहों और सर्वो के साथ ही हमारे अपने निष्कर्ष देश की शिक्षा प्रणाली और तंत्र के संबंध में खासे निराशाजनक रहे हैं। उन्होंने चिता जताते हुए कहा कि देश में पैदा होने वाले आधे से ज्यादा डिग्रीधारी तो वाकई में ही फर्जी हैं और जो असली डिग्रीधारक है भी तो उनमें से भी 80 से 95 प्रतिशत तक अयोग्य हैं। अगर यह रिपोर्ट सत्य है तो बहुत ही भयावह स्थिति है और यह सही ही है कि हम सचमुच अंधे कुँए में गिर चुके हैं। देश मात्र 10 प्रतिशत योग्य लोगों या शेष 90 प्रतिशत लोगो में से कुछ के व्यवहारिक ज्ञान या पारंपरिक ज्ञान की बदौलत रेंग रहा है। एक छोटे शहर, कस्बे या गांव के छात्र जिसको सरकारी अमले द्वारा दो या तीन सरकारी स्कूलों में पंजीकृत दिखाया जाता है, हकीकत में वे किसी अवैध मान्यता प्राप्त निजी स्कूल में खासी महंगी फीस देकर पढ़ते हैं। किंतु अंग्रेजी माध्यम के इन तथाकथित पब्लिक स्कूलों के अधकचरे ज्ञान का 12वी के बाद की प्रतियोगिता परीक्षाओं और उच्च शिक्षा में कोई खास योगदान नहीँ होता। अन्तत: वे ट्यूशन और कोचिंग का मोहताज हो जाते हैं और केवल रट्टू तोता बन शार्टकट तरीकों से एग्जाम ञ्चवालीफाई करने के कोचिंग सिंडिकेट के फार्मूलों के सहारे किसी तथाकथित प्रतिष्टित सरकारी संस्थान का हिस्सा बन जाते हैं और जो नहीँ बन पाते उनको उच्च शिक्षा के निजी संस्थानों की शरण लेनी पड़ती है। इस सब के बाबजूद ऊपर के आंकड़े जो कहानी बता रहे हैं वो हमें कुछ और गहरा सोचने पर मजबूर कर रहे हैं।
उन्होंने वर्तमान सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में बताते हुए कहा कि अपने सर्वे में हमने पाया है कि देशभर में निजी शिक्षा के क्षेत्र में भूचाल सा आया हुआ है। पिछले दो तीन वर्षों में जबसे सरकार और न्यायालय के साथ ही नियामक संस्थाओं द्वारा सख्ती का चाबुक चलाया गया है सैकडों निजी उच्च शिक्षा के संस्थानों में प्रवेश घट गए या फिर ताले लटकने की नौबत आ गयी है। आधार कार्ड की अनिवार्यता, स्टाफ और छात्रों की बायोमेट्रिक अटेंडेन्स, पेन कार्ड, सख्ती, मानकों और मापदंडों के आधार पर संस्थानो में प्रवेश के प्रावधान, सिंगल एंट्रेंस, केपिटेशन फीस लेने पर सख्ती, ऑन लाईन मॉनिटरिंग, आई टी के प्रयोग ने खेल के नियम ही बदल दिए। अब मात्र मोटा माल बनाने के लिए शिक्षा संस्थान खोलने की सलाह कोई नही देने वाला। लगातार बंद हो रहे संस्थानों की कहानी कुछ ऐसा ही बयां कर रही है। सच्चाई तो यही है कि देश में दो तिहाई इंजिनीरिंग, मैनेजमेंट, मेडिकल और डेंटल संस्थान बहुत ही खराब स्थिति में हैं। अनेक बंद हो गए हैं या बंद होने जा रहे हैं। यहाँ तक कि कई तथाकथित प्रतिष्ठित निजी विश्वविद्यालय भी बंद होने के कगार पर हैं। हाल ही के वर्षों में जो भी इंजिनीयरिंग, मैनेजमेंट ,मेडिकल और डेंटल कॉलेज सफल रहे हैं वे निजी विश्वविद्यालय में बदलते जा रहे हैं और अनेक बड़े औधौगिक और व्यापारिक समूहों ने भी अपने अपने विश्वविद्यालय खोले हैं। तुलनात्मक रूप से यह बेहतर परम्परा है क्योंकि पहले के दौर में इस क्षेत्र में निवेश सफल बिल्डरों, शराब के कारोबारियों, भ्रष्ट नेताओं और नोकरशाहो के माध्यम से अधिक आया , जिन्होंने इस क्षेत्र का उपयोग धोखा देकर मोटा माल बनाने में अधिक किया।
सुखद है कि अब वह दौर समाप्ति की और है और गंभीर और गहरे या पुराने सफल खिलाड़ी ही इस क्षेत्र में बचे रहने वाले हैं किंतु अब कुछ नयी चुनौतियां मुंह बाए हमारे सामने खड़ी हैं। उच्च शिक्षा का हमारा मॉडल पूरी तरह से पश्चिम की कॉपी है। इसमें न तो मौलिकता है, न ही देसीपन और न ही राष्ट्रीयता का भाव। देश के पैसो से पला बढ़ा युवक आराम से अपने ज्ञान और खोज को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले कर देता है और गौरवान्वित महसूस करता है। इसमें बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है क्योंकि वह विदेशी ज्ञान के साथ ही विदेशी संस्कृति अपनाने में कोई संकोच नही कर रहा और अपने देश, भाषा और संस्कृति के प्रति उसमें उपेक्षा का भाव भी घर करता जा रहा है। दूसरी बड़ी बात दूनिया में उद्योग और व्यापार तेजी से आईटी और ऑटोमेशन की और बढ़ रहें हैं। आज की तारीख में सभी सफल संस्थान अपने कोर्स, लैब और शिक्षकों को इसी के अनुरूप ढाल भी रहे हैं किंतु इस प्रक्रिया में मानव संसाधनों का प्रयोग उत्तरोत्तर कम होता जा रहा है। जिसकी मार रोजगार सृजन पर पड़ रही है। कुछ बर्ष पहले जिस काम को 10, 20 या 50 इंजीनियर करते थे उसे अब 1,2 या 5 या इससे भी कम लोग कर लेते हैं। ऐसे में बेरोजगारी का संकट मुंहबाये सामने खड़ा है। दुनियाभर में भारत के आई टी पेशेवरों के खिलाफ एक अभियान चलाया जा रहा है वो अलग। ऐसे में हमारे नीति निर्माताओं के लिए बड़ी चुनौती है कि कैसे पूरे शिक्षा तंत्र में ऐसे बदलाब किये जाएं जो रोजगार के कुछ नए क्षेत्रों का सृजन कर सकें। हमे रिचर्स के साथ ही इनोवेशन और ऐंटरप्रेनेरशिप के विकास पर तेजी से काम करना पड़ेगा नही तो अच्छे और बुरे संस्थान के लिए किए जाने वाले हमारे सर्वे और आंकड़े धरे के धरे रह जाएंगे।
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चुनौतियां और समाधान और एक बड़ी लकीर खींचने की चुनौती
चर्चा सत्र को आरम्भ करने से पूर्व वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रमोद सैनी ने देश में उच्च शिक्षा की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डाला। चूंकि देश के हर कोने तक हर व्यक्ति तक शिक्षा पहुँचाने में अभी सरकारी शिक्षण संस्थानों की भूमिका सीमित है, उनकी अपनी कुछ सीमाएं हैं तो निजी संस्थानों को आगे आना होगा। निजी शिक्षण संस्थानों की भूमिका शिक्षा प्रदान करने में बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है, हालांकि यह बहुत ही खुशी की बात है कि पिछले एक दशक में कई ऐसे संस्थान उभर कर आए हैं, जिन्होनें आश्चर्यजनक परिणाम दिखलाए हैं मगर यदि विकसित देशों पर नजर डालें तो पाएंगे कि अभी हमें शिक्षा और आधारभूत संरचनागत विकास की गुणवत्ता को और बेहतर करने के लिए लम्बा सफर तय करना है। आज जो बात अधिकतर लोगों के दिमाग का हिस्सा बन गयी है वह है कि हमारे शिक्षण संस्थानों से निकले लोग उद्योग के लिए उचित नहीं हैं। उन्होंने निजी शिक्षा संस्थानों के सम्मुख आने वाली चुनौतियों के विषय में अपनी बात रखी और कुछ ऐसे समाधानों पर भी बात की जिन्हें अपनाया जा सकता सकता है। कार्यक्रम में चर्चा के दो सत्र थे। प्रथम सत्र का विषय था ढ्ढठ्ठस्रह्वह्यह्लह्म्4-्रष्ड्डस्रद्गद्वद्बड्ड ष्टशठ्ठठ्ठद्गष्ह्ल जिसमे पैनल सदस्य थे श्री कमल टाबरी, प्रोफेसर राजेश अरोड़ा (रजिस्ट्रार चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी) श्री विजय तिवारी(अध्यक्ष इंडो यूरोपियन चैंबर ऑफ स्माल एन्ड मीडियम इंटरप्राइज) भूपिंदर धर्माणी।
प्रथम सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रमोद सैनी ने किया। उन्होंने देश भर में फैले विश्वविद्यालय के जाल पर बात करते हुए इस बात पर क्षोभ जताया कि हमारे पास आंकड़ों में दिखाने के लिए तमाम उपलब्धियां हैं, जैसे इतने सैकड़ों विश्वविद्यालय, हजारो कॉलेज एवं विश्वस्तरीय सुविधाएं, और सबसे बढ़कर भारी भरकम फीस। मगर इसके बावजूद एसोचैम से एक रिपोर्ट आती है कि 80 प्रतिशत इंजीनियर नौकरी के लायक नहीं है, 93 प्रतिशत एमबीए ग्रेजुएट अंग्रेजी में बात नहीं कर सकते, जो 7 प्रतिशत कर सकते हैं, वे आईआईएम से हैं। उन्होंने हालिया एस्पायरिंग माइंड नैशनल इम्प्ल्योबिलिटी रिपोर्ट के आधार से कहा कि वर्ष 2015 में 1,50,000 इंजीनियर विद्यार्थी 650 कॉलेज से पास हुए थे, और उनमें से 80 प्रतिशत किसी भी रोजगार के योग्य नहीं हैं। इसी के साथ 97 प्रतिशत इंजीनियरिंग विद्यार्थी अंग्रेजी में बात करने में अक्षम हैं।
प्रश्न तो उठेगा ही आखिर इतनी बड़ी संरचनाओं के बावजूद शिक्षा के क्षेत्र में हम कहाँ पर पिछडे हैं। आखिर क्यों मनवांछित परिणाम से हम दूर हैं। क्या हम गुणवत्ता परक शिक्षा से दूर हैं? ऐसे ही कई सवाल है जो हर वर्ष तमाम जगहों से प्रकाशित होने वाली रिपोर्ट हम सबके सम्मुख रखती है। ऐसा नहीं है कि शिक्षा का सरोकार हमारे देश में केवल सरकार से था। शिक्षा हमारे यहाँ प्राचीन काल से ही निजी क्षेत्र के हवाले थी। प्राचीन काल में गुरुकुल का संचालन गाँवों के सहयोग से होता था। और इनमें बिना किसी भेदभाव के छात्रों को ज्ञान प्रदान किया जाता था। शासन का किसी प्रकार का लेनादेना शिक्षा से नहीं था। मगर हम यदि आज की बात करें तो आज निजी शिक्षण संस्थानों के लिए आँखें खोलने का समय है। समय है कि वे अपनी गलतियों को देखें कि वे आधारभूत संरचना, शिक्षक, शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात आदि पर क्या कर रहे हैं? यह समय है हल खोजने का, और इससे बेहतर समय नहीं हो सकता है क्योंकि अभी सरकार द्वारा हर संभव कदम उठाए जा रहे हैं। अभी सरकार द्वारा शिक्षा के कई उपक्रमों को आरम्भ किया जा रहा है। तमाम योजनाएं आकार ले रही हैं। यह समय है जब निजी शिक्षण संस्थान सरकार के साथ मिलकर शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव कर सकते हैं। गुणवत्ता की चुनौती केवल निजी और सरकारी शिक्षण संस्थानों के सम्मुख न होकर सरकार के सामने भी है, क्योंकि यह सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है और उद्योग एवं शिक्षा जगत में सम्वाद ही एकमात्र ऐसा उपाय है जो इस चुनौती का सामना करने में सक्षम है।
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इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए चंडीगढ़ विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार श्री राजेश अरोड़ा ने उद्योग को साथ आने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि कई विश्वविद्यालय रोज ही शिक्षा के क्षेत्र में कदम रख रहे हैं। आईआईएम और आईआईटी के पास तो कई अवसर हैं, उनके पास कई प्रकार के सरकार से अनुदान हैं, उन्हें सरकार से निधि मिलती है, मगर राज्य विश्वविद्यालयों का क्या? हमें अपनी लकीर को बड़ा करना होगा। हमारे सामने इन संस्थानों की लकीरें हैं, जिनके सामने हमें अपनी लकीर बड़ी करनी होगी। उनके अनुसार सबसे बड़ी समस्या गुणवत्ता की है। कहीं न कहीं निजी क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों को अपनी गुणवत्ता पर ध्यान देना होगा। जब कंप्यूटर का इस देश में आगमन हुआ तो कई इंस्टीटयूट आरम्भ हुए, और अब ये इंस्टीटयूट विश्वविद्यालय बन गए हैं। श्री अरोड़ा के अनुसार स्कूलिंग में भी अब बहुत दबाव है। पहले छोटे बच्चे खुश होकर पढ़ाई किया करते थे, और अब अभिभावक हैं जो रात दिन पढाई में लगे रहते हैं। इस समय उनपर बहुत दबाव है। तो कहीं न कहीं हमें इस दबाव से बाहर निकलना होगा। साथ ही उद्योगों में आपसी संपर्क का बहुत महत्व है। उद्योगों और निजी शिक्षण संस्थानों को आपस में सहयोग करना चाहिए। शिक्षकों को उद्योगों की जानकारी होनी चाहिए। कई शिक्षक ऐसे होते हैं जिन्हें उद्योगों में क्या हो रहा है या क्या होता है, इस विषय में जानकारी ही नहीं होती है। आज कई विद्यार्थी ऐसे हैं जो बाजार और नई खोजों से खुद को अपग्रेड करते हैं, ऐसे में फैकल्टी के लिए बहुत जरूरी है कि वह खुद को इन नई खोजों, बाजार की चर्चाओं, बाजार में क्या नया है, क्या रोजगार के विकल्प हैं और क्या नौकरी के विकल्प हैं, इन सबके बारे में एकदम सुसज्जित रखे। उद्योगों को केवल प्लेसमेंट के नजरिए से ही नहीं बल्कि तकनीकी जानकारी के आधार पर देखा जाना चाहिए।
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श्री कमल टाबरी ने चर्चा को आगे बढाते हुए अपने विचारों को बिन्दुवार रखा। उनके अनुसार हम इस समय लर्निंग, रीलर्निंग और अनलर्निंग के चक्र में फंसे हैं। नया करने की संस्कृति नहीं है। हम इस विषय में नहीं सोचते कि क्या नया हम कर सकते हैं। हमें उद्योगों के एसडद्ब्रल्युओटी विश्लेषण पर काम करना होगा। किसमें कितनी शक्ति, कितने अवसर कितनी चुनौतियां हैं। हमारी व्यवस्था में आगे बढऩे की और सुधार करने की तमाम संभावनाएं हैं। हमारे पास जानकारी होनी चाहिए कि किस तरह से मार्केट किया जाए। शिक्षा संस्थानों का ध्यान उन व्यक्तियों के निर्माण पर भी होना चाहिए जो अपनी शिक्षा को मार्किट कर सकें। बाजार से शिक्षा को जोडऩा आना चाहिए। हमने अभी तक केवल दूसरे देशों का अनुसरण किया है, हमने अपनी संभावनाओं को न तो देखा है और न ही परखा है। हम नया करने से डरते हैं। जो चल रहा है, उसी का अनुसरण करने की प्रवृत्ति है। प्रश्न यही है कि आखिर हम नया करने और सीखने के लिए खुद क्या कर रहे हैं? क्या हमारा लक्ष्य और ध्यान एक बड़ी रेखा खींचने पर नहीं होना चाहिए? और सबसे जरूरी बात उन्होंने कही कि उद्योग और उपक्रम दोनों में अंतर होना चाहिए। हमें ग्राम उद्यम पर जोर देना चाहिए। जैसे खादी। हमें पर्यावरण पूरक धंधों पर जोर देना होगा। उद्योग तो कई बीमारियों से भरा हुआ है। हमें उसे सही करना है। उद्योग में भ्रष्टाचार है। बड़ी बडी निधि का प्रयोग किया जा रहा है, मगर कहाँ किया जा रहा है, यह कोई नहीं जानता। हमें अधिक से अधिक पर्यावरण पूरक धंधों की तरफ देखना होगा।
एक विकल्प की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है जब हमें वैकल्पिक मंचों की आवश्यकता होगी जिसमें हम एक नया विकल्प देने पर विचार कर सकते हैं। हमें इनोवेशन, इम्प्लीमेंटेबल, इन्वेस्टिव, आइडिया और आइडिया फॉर इंडिया पर काम करना है। हमें उद्योगों की सबसे बड़ी बीमारी अर्थात भ्रष्टाचार पर चोट करनी है। हमें पर्यावरण पूरक धंधों पर काम करने के लिए खुद को तैयार करना है। और हमें ऐसे लोगों की आवश्यकता होगी जो विकल्प देने के लिए स्वैच्छिक रूप से तैयार हों।
युवाओं के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने आशा व्यक्त की कि हमारे देश में इस समय युवा बहुत संख्या में हैं, जो इस देश की शक्ति हैं। उसका भरपूर उपयोग शुभलाभ के लिए करना होगा। हमारे पास जो युवा है, वह जरूरी है कि सार्थक दिशा की तरफ कदम बढाएं। उन्हें उपक्रमों के साथ जोडऩा होगा। युवाओं के लिए जरूरी है दिशा दिखाना और उन्हें उन उद्यमों की तरफ खींचना जो पर्यावरण के अनुरूप हैं। हमारी नियामक इकाई है, जिसे कई प्रकार की कुसंस्कृतियों से भरी हुई है। इसे लिफाफा संस्कृति से मुक्त कराना है। निजी क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों के विषय में बोलते हुए उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों के द्वारा जो अफरातफरी फैल गई है, उसे अब सही करने का समय आ गया है। जैसा पता चला है कि कई संस्थान बंद हो रहे हैं, तो कई बंद हो चुके हैं, तो उसकी संरचनागत सुविधाओं का क्या होगा? हमारे पास ऐसी कितनी इन्फ्रास्ट्रचर उपलब्ध है, जिनका प्रयोग किया जा सकता है। हम उसे ग्रामीण नियोजन, जिला नियोजन, जलवायु परिवर्तन नियोजन आदि के लिए प्रयोग कर सकते हैं। न जाने कितने ही ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर हम नए कदम उठा सकते हैं। कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर हमें नया करना है। हमें उसके लिए उद्यमिता को विकसित करना है। हमें शिक्षा को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता है। हमारा लक्ष्य है विश्व गुरु बनना और हमें इस के लिए कई कदम उठाने होंगे जैसे रोजगार सृजन को जड़ से जुड़ा होना चाहिए। लाखों गाँव हैं, उनमें करोडों रोजगार उत्पन्न करना है। हमें मूलभूत प्रश्नों पर चर्चा करनी होगी। उन्होंने पत्रिका के संपादक श्री अनुज अग्रवाल को इस कार्यक्रम की बधाई देते हुए कहा कि वे शिक्षा के क्षेत्र में काफी अच्छा काम कर रहे हैं और अब आवश्यकता है आगे बढ़कर इस अभियान में और तेजी लाने की, देश के युवाओं को सार्थकता के साथ पर्यावरण पूरक धंधों के साथ जोडऩे की। हमें अपने सामने आने वाली हर चुनौती को उम्मीद में बदलना है। और अनुज अग्रवाल अपने कदमों से युवाओं को अपने साथ जोड़ कर अपने अभियान को सफल करेंगे।
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इसी चर्चा में आगे श्री विजय तिवारी (अध्यक्ष इंडो यूरोपियन चैंबर ऑफ स्माल एन्ड मीडियम इंटरप्राइज) ने कहा कि बच्चे आजकल खुद ही भ्रमित हैं। वे केवल पैकेज के पीछे भाग रहे हैं। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि बाजार में क्या नया है, बाजार में क्या हो रहा है और बाजार में किसकी मांग अधिक है, बस उन्हें केवल भेड़चाल पर यकीन है। शायद यही उद्योग और नौकरी के बीच की सबसे बड़ी दूरी है। जब वे पढाई करते हैं, तो वे बाजार की मांग का कोई अध्ययन नहीं करते हैं। आज रियल एस्टेट में गिरावट का दौर है, मगर उससे जुड़े हुए विषयों की पढाई किए हुए लाखों बच्चे बाजार में हैं। वे क्या करें? बाजार में कहाँ जाएं, ऐसे में अकादमिया और उद्योग का आपस में जुडऩा बहुत ही आवश्यक है। उनके सामने न केवल विकल्प होने चाहिए बल्कि उद्योग को भी इसलिए तैयार होना चाहिए कि आखिर वे इतनी बड़ी श्रम शक्ति का उपयोग कैसे करें। इसीके साथ उन्होंने सांसदों द्वारा गाँव गोद लिए जाने वाली प्रधानमंत्री की योजना के विषय में भी बात की। उन्होंने कहा कि गाँव गोद लेने के बाद विकास के कई मॉडल सांसदों एवं उद्यमियों द्वारा अपनाए जा रहे हैं, जिससे रोजगार मिल रहा है। उनके अनुसार उद्योग और शैक्षणिक जगत का आपस में संबंध होना चाहिए। साथ ही उनका कहना था कि हमें नौकरी के माइंड सेट से बाहर निकलना होगा और उद्यमिता की तरफ बात करनी होगी। आखिर करोड़ों लोगों के लिए नौकरी कैसे सृजित होगी। उद्योग की अपनी महत्ता है। जब कोई व्यक्ति एक उद्यम या उपक्रम आरम्भ करता है तो वह तमाम लोगों के लिए रोजगार सृजन के अवसर तलाशता है। वह रोजगार सृजन में सरकार की सहायता करता है और इसके साथ ही तमाम सामाजिक पहलुओं पर भी कार्य करता है। हमें तमाम उपक्रमों की आवश्यकता होगी। आज लाखों लोग बेरोजगार हैं। आज आवश्यकता रोजगार सृजन की है और सांसद गाँव गोद लेने की परियोजना में जिस तरीके से कार्य हो रहा है, उसी तरीके से हमें आगे बढऩे की आवश्यकता है, नहीं तो कुछ ही समय में स्थितियां भयावह हो जाएँगी। मगर कई बार समस्याएं योजना के स्तर पर न आकर क्रियान्वयन के स्तर पर आती हैं। ऐसे में कई बार प्रश्न उठता है कि क्या सही लोगों के कंधे पर काम सौंपा गया था? क्या वाकई में काम सही किया गया था? तो योजना, क्रियान्वयन के स्तर पर भी कई समस्याएं हैं, हमें इस पर भी कार्य करने की आवश्यकता है। हमें ऐसे अधिकारियों की आवश्यकता होगी जो समर्पित होकर कार्य कर सकें।
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श्री भूपिंदर धर्माणी जी का कहना था कि समाज को हमें पढ़ाना है। हममें से कई लोग समाजवाद की बात बार बार करते हैं, मगर कितने लोग हैं जो सरकरी स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाते हैं। वे अपने बच्चों को तो निजी स्कूलों में भेजना चाहते हैं, मगर जैसे ही वह बारहवीं कक्षा से बाहर आता है अभिभावक केवल सरकारी संस्थानों में प्रवेश के लिए भागते हैं। कहीं न कहीं ऐसा लगता है जैसे सरकारी विद्यालय उन्हें वह नींव नहीं दे पाते हैं, जो आवश्यक है। हमें नींव के निर्माण के इस अंतर को पूरा करना है। हमें सोचने की आवश्यकता है कि आखिर गलती कहाँ हो रही है? आखिर शिक्षा के क्षेत्र में इस अंतर का कारण क्या है? नियामक इकाइयों को सही करने की आवश्यकता है। हमारे यहाँ 250 निजी और 250 राज्य विश्वविद्यालय हैं। हमें इन दोनों में ही गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना है। अभी हम सबने पंजाब विश्वविद्यालय में शुल्क का मुद्दा देखा ही है, कि किस प्रकार छात्रों का गुस्सा फूटा और किस तरह से इस विद्रोह को दबाया गया। तो हमें कई सीखें लेने की आवश्यकता है। हमें प्लेसमेंट की समस्या को सरलता से हल करना है। सीएसआर के अंतर्गत भी कई कदम उठाने हैं, मगर यह भी प्रश्न है कि सीएसआर में धन कौन लगाएगा। मूलभूत ढांचे में सुधार के लिए आखिर कौन आगे आएगा? हमारे पास धन की कोई कमी नहीं है, बस हमारे पास सोच की कमी है, हमारे पास दिशा निर्देश की कमी है। हमारे पास दंडराज से ऊपर उठकर सोचने की कमी है। जितने अधिक नियम और कानून हैं उतना ही उनका उल्लंघन है। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि भारत में मेडिकल की शिक्षा सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, मगर इस बात से भी इनकार अब नहीं है कि मेडिकल की डिग्री अब खरीदी जाने लगी हैं। हाल ही में इस संबंध में एक शोधपत्र भी एक जर्नल में प्रकाशित हुआ था। हालांकि उससे अभी कोई हानि नहीं हुई है, मगर कल्पना करिए कि यह कितना बड़ा नुक्सान मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में कर सकता है। भारत से बाहर गए लोग आज हर क्षेत्र में अपना नाम कर रहे हैं। ऐसे में कोई भी नकारात्मक खबर न केवल उनकी बल्कि देश के पूरे शैक्षणिक परिद्रश्य की छवि पर अपना ग्रहण लगा सकती है। तो हमें डिग्री की खरीदफरोख्त वाली पद्धति से बचना होगा। उन्होंने निजी शिक्षण संस्थानों से इस तरह से किसी भी कदम उठाने से परहेज करने के लिए आह्वान किया जिससे अपने देश की साख को बट्टा लगे।
श्री भूपिंदर धर्माणी जी का मुख्य ध्यान सीएसआर निधि पर था। उन्होंने न केवल सीएसआर निधि की आवश्यकता पर बल दिया बल्कि उन्होंने यह सवाल भी किया क्या सीएसआर की निधि क्या शिक्षण संस्थानों के लिए नहीं है? क्या शिक्षा अब केवल और केवल विशुद्ध व्यवसाय है? इसके लिए एक रीजनल डेवलपमेंट बोर्ड बनाया जाए। सामाजिक कार्यकर्ता तय करें कि क्षेत्र में क्या कार्य करना है? एक सीएसआर रेगुलेटरी फंड होना चाहिए। कभी देखिये तो एक और विडंबना है कि स्टेनो की परीक्षा पास करने वालों को शोर्टहैंड नहीं आती है। यह क्या स्थिति है शिक्षा की। आज जो भी टेक्नीकल इनोवेशन हो रहे हैं, उनके लिए एक खास कौशल की आवश्यकता है। बिना कौशल के किस तरह से बच्चे टूल्स का उपयोग कर सकते हैं। उनमें आवश्यक कौशल की बहुत कमी है। ऐसे बच्चों के लिए सीएसआर फंड एक संजीवनी हो सकता है। सीएसआर फंड के प्रयोग से काफी कुछ सुधार होगा। भारत के सरकारी क्षेत्रों को भी इस तरफ सोचने की आवश्यकता है। उन्होंने हैदराबाद के एक सरकारी विद्यालय का उदाहरण भी दिया जिसमें शहर के कुछ उत्साही नागरिकों ने सुधार के कार्य किए, नए नए कदम उठाए कि आज उस स्कूल में वहां के डीएम तक के बच्चे पढ़ते हैं। और इस स्कूल को सफल बनाने में केवल सरकार का हाथ नहीं था, हमें इस सोच से बाहर आना होगा कि सरकार के ही सब उत्तरदायित्व हैं। सरकार की तरफ टकटकी लगाकर देखना हमें कम करना होगा।
इस चर्चा से कई बिंदु उभर कर आए कि किस प्रकार शिक्षा को उद्योगों के काबिल बनाया जा सकता है और उपक्रमों को आरम्भ किया जा सकता है।
उसके उपरांत रैंकिंग में स्थान पाए शिक्षण संस्थानों को मुख्य अतिथि द्वारा सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम में सम्मानित होने वाले निजी शिक्षण संस्थान थे मानव रचना डेंटल कॉलेज फरीदाबाद, कपूर डीए वी डेंटल कॉलेज, कर्णावती स्कूल ऑफ डेंटिस्ट्री, चितकारा यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी मोहाली, पानीपत इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मानव रचना यूनिवर्सिटी, एमिटी यूनिवर्सिटी मध्य प्रदेश, आईआईआईएम जयपुर, चिरायु मेडिकल कॉलेज भोपाल, एपीजे सत्या मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट, मणिपाल यूनिवर्सिटी राजस्थान, जिन्हें विभिन्न श्रेणियों में सम्मानित किया गया।
सम्मानित होने वाले निजी शिक्षण संस्थानों के प्रतिनिधियों ने पत्रिका के अभियान की भूरी भूरी प्रशंसा की और संपादक श्री अनुज अग्रवाल को शुभकामनाएँ देते हुए आगे बढऩे के लिए कहा। लगभग सभी का मत था कि पत्रिका के स्तर पर यह बहुत ही उत्तम प्रयास है।
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द्वितीय सत्र: अभिनवता और पारदर्शिता बढ़ढऩे से रोजगार में वृद्धि होगी
द्वितीय सत्र अभिनवता एवं उच्च शिक्षा में सिंगल एंट्रेंस टेस्ट एवं पारदर्शिता पर था, चर्चा का विषय था श्वठ्ठह्लह्म्ड्डठ्ठष्द्ग ञ्जद्गह्यह्ल ड्डठ्ठस्र ञ्जह्म्ड्डठ्ठह्यश्चड्डह्म्द्गठ्ठह्ल ्रस्रद्वद्बह्यह्यद्बशठ्ठ क्कह्म्शष्द्गह्यह्य द्बठ्ठ क्कह्म्द्ब1ड्डह्लद्ग ॥द्बद्दद्धद्गह्म् श्वस्रह्वष्ड्डह्लद्बशठ्ठ द्बठ्ठ ढ्ढठ्ठस्रद्बड्ड ड्डह्य 2द्गद्यद्य ड्डह्य क्करू रूशस्रद्ब 1द्बह्यद्बशठ्ठ शद्घ हृद्ग2 ढ्ढठ्ठस्रद्बड्ड ड्डठ्ठस्र ह्लद्धद्ग क्रशद्यद्ग शद्घ श2ठ्ठद्गह्म् / श्चह्म्शद्वशह्लद्गह्म् शद्घ क्कह्म्द्ब1ड्डह्लद्ग ॥द्बद्दद्धद्गह्म् श्वस्रह्वष्ड्डह्लद्बशठ्ठ द्बठ्ठह्यह्लद्बह्लह्वह्लद्बशठ्ठह्य द्बठ्ठ ष्ठद्ग1द्गद्यशश्चद्बठ्ठद्द श्वठ्ठह्लह्म्द्गश्चह्म्द्गठ्ठद्गह्वह्म्ह्यद्धद्बश्च,जिसका संचालन प्रोफेसर आशुतोष अग्रवाल ने किया। इस सत्र में नवाचार या अभिनवता अर्थात शिक्षा में इनोवेशन पर चर्चा हुई। निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश प्रक्रिया हमेशा ही संदेह के घेरे में रही रही है। हमेशा ही उस पर सवाल उठते हैं। कभी पैसे लेकर तो कभी किसी और प्रकार से उस पर निजी हितों के आधार पर प्रवेश के आरोप लगते रहे थे। इन सबसे न के केवल उस व्यवसाय पर प्रभाव पड़ता है बल्कि देश के वृहद शिक्षा परिद्रश्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हालांकि अब सरकार ने मेडिकल में प्रवेश के लिए एक ही प्रवेश परीक्षा को आरम्भ किया है, जिसका सकारात्मक असर जल्द ही देखने को मिल सकता है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता से संस्थानों को उचित विद्यार्थी मिलेंगे। और इस प्रक्रिया से आने वाले विद्यार्थी संस्थान की विश्वसनीयता में वृद्धि ही करेंगे। इस सत्र के सूत्रधार प्रोफेसर आशुतोष अग्रवाल ने इनोवेशन को तकनीक के लिए मूल आधार बताया। उन्होंने कहा कि यदि हम नया कुछ खोजेंगे नहीं, मौलिक कुछ करेंगे नहीं तो आगे नहीं बढ पाएगें। ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि हमारे यहाँ प्रतिभाओं की कमी है या फिर अभिनवता की कमी है, मगर हमारे यहाँ उचित प्रोत्साहन का अभाव है। और यही प्रोत्साहन माननीय प्रधानमंत्री अपनी भिन्न भिन्न योजनाओं के माध्यम से देते हुए आ रहे हैं। मगर हमारे यहाँ अभी यह ही तय नहीं है कि आखिर अभिनवता क्या है? आज हर हाथ में इंटरनेट है, यदि आप इन्टरनेट के माध्यम से कुछ खोजकर लाते हैं तो उसमें मौलिक क्या? उसमें नया क्या है? मौलिक क्या है? सबसे पहले तो नए के लिए आपको क्यों सोचना होगा? अपने आसपास की समस्याओं के लिए हल खोजने होंगे। हमें तकनीक को इस तरह अपने अनुकूल करना होगा कि वह हमारे देश की समस्याओं के लिए हल खोजे। उससे भी पहले हमें शिक्षा को पारदर्शी बनाना होगा। जिस तरह से सरकार ने मेडिकल में नीट आरम्भ किया है, क्या उससे कुछ पारदर्शिता आएगी। यदि अभिनवता की बात करें तो देश में इस समय केवल 20 से 25 प्रतिशत शिक्षण संस्थान ही ऐसे हैं जो शोध और अभिनवता के मामले में बेहतर कर रहे है। चूंकि सरकार का सारा ध्यान अब स्टार्टअप पर है तो हर संस्थान के पास कुछ ऐसे समर्पित शिक्षक होने चाहिए जो अभिनवता को बढ़ावा दे सकें। और अब इस समय सारा दारोमदार निजी शिक्षण संस्थानों के कन्धों पर है, यदि वे ऐसा कर सके तो सफलता की नई कहानी लिखने में सफल होंगे। उन्हें अभिनवता के माध्यम से रोजगार सृजन पर जोर देने की प्रवृत्ति को विकसित करना होगा।
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चर्चा के आरम्भ में पत्रकार नवनीत चतुर्वेदी ने कुछ चुभते हुए सवाल उठाए और निजी शिक्षण संस्थानों को बूचडख़ाने तक की संज्ञा तक दे डाली। उन्होंने साफ कहा कि निजी शिक्षण संस्थान केवल और केवल पैसा कमाने के स्थान बन गए हैं और उनमें गुणवत्ता का कोई स्थान नहीं है। और उन्होंने यह भी प्रश्न उठाया कि आज अभिभावक अपने बच्चों को राजनीति में क्यों नहीं भेजना चाहते हैं।
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उनकी इस बात का उत्तर भाजपा महिला मोर्चा से चर्चा में शामिल एकता नागपाल ने दिया कि यह सत्य है कि आज राजनीति को बहुत अच्छा क्षेत्र नही माना जाता है, मगर यह भी सच है कि सूचना क्रांति और सोशल मीडिया की इस क्रांति के युग में पारदर्शिता बढ़ी है और अब नए नए लोग न केवल राजनीती में आ रहे हैं, बल्कि कई नए कदम भी उठा रहे हैं। और जहां तक उच्च शिक्षा में पारदर्शिता का प्रश्न है तो यह हमारे लिए बहुत ही शर्म की बात है कि आज हम शिक्षा में पारदर्शिता का मुद्दा उठा रहे हैं। सबसे पहले तो हमें शिक्षा के मूल स्वरुप को ही समझना होगा। शिक्षा अलग है और डिग्री अलग है। शिक्षा को मूल्यों से जोडऩा होगा। हमारी जो प्राचीन पद्धति है उस पर चलकर हमें पुन: उन मूल्यों को जाग्रत और आत्मसात करना होगा जो कहीं न कहीं खो गए हैं। हमें शिक्षा को नौकरी का माध्यम न मानकर अपने व्यक्तित्व विकास और ज्ञान का साधन मानना चाहिए। हमें हर क्षेत्र में पारदर्शिता चाहिए, फिर सामाजिक क्षेत्र हो, शिक्षा हो या कोई और। हमें अपने अपने हिस्से की जिम्मेदारी का निर्वाह करना होगा। तभी हम विश्वगुरु बन सकेंगे। शिक्षा और डिग्री इन दोनों में जमीन आसमान का अंतर है। डिग्री हमें व्यवहारिक जगत में केवल नौकरी पाने के योग्य बनाती है, मगर शिक्षा कहीं अधिक की बात है, शिक्षा संस्कारों की बात है। हर उद्योग में पाखण्ड है, हमें दोहरेपन से लडऩे की आवश्यकता है। हमें अपने अपने स्तर की जिम्मेदारी निभानी है। आज जरूरत है कि हम अपनी जिम्मेदारी से न भागें। शिक्षा के साथ साथ संस्कार आवश्यक है।
शिक्षा और डिग्री के संबंधों के विषय में बोलते हुए कहा कि डिग्री लेने के बाद क्या गारंटी है कि आपको नौकरी मिलेगी ही मिलगी? शिक्षा के स्वरुप में बदलाव की सख्त आवश्यकता है। हमें अभिनवता की तरफ चलने की आवश्य्कता है। सवाल यह भी है कि अभिनवता क्या है? अभिनवता कभी भी हमेशा नई खोज न होकर पुरानी चीजों को भी खोजना होता है। हमें अपनी जड़ों में जाकर देखना होता है कि आखिर वहां क्या हो रहा था? शिक्षा के साथ सामाजिक ज्ञान को भी खोजने की आवश्यकता है।
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इसी बात को आगे बढाते हुए चर्चा में सम्मिलित हुए चंडीगढ़ कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलोजी में कम्प्यूटर विभाग के प्रमुख प्रोफेसर सुनील का कहना था कि शिक्षा में जब अभिनवता होगी तभी हम विद्यार्थियों को शिक्षा से जोड़ पाएंगे, बहुत जरूरत इस बात की है कि आज शिक्षक भी बच्चों के साथ जढ़ड़कर खुद को अपडेट करें, नई तकनीकियों से अपडेट रखें खुद को। और सरकार इस समय नवाचार को बढावा दे रही है, हमें इस का लाभ उठाना चाहिए। उन्होंने शिक्षण पर बल देते हुए कहा कि आज का विद्यार्थी बहुत ही जागरूक है, उसे अपने क्षेत्र में होने वाले हर नए आविष्कार एवं नए कदम के विषय में पता होता है। शिक्षण का अर्थ केवल कक्षा में आकर कुछ बिन्दुओं पर आख्यान देना मात्र नहीं है, बल्कि शिक्षा का अर्थ है विद्यार्थियों को प्रेरणा देना, उन्हें उत्प्रेरणा देना।
हमें विद्यार्थियों को नए उपक्रमों की तरफ देखने के लिए प्रेरित करना होगा। यदि आपके पास कोई विचार है तो आप उस विचार के साथ सरकार से संपर्क कर सकते हैं। आपके पास यह पूरी रूपरेखा होनी चाहिए कि आप अपने विचार को किस प्रकार निष्पादित कर सकते हैं। समस्या कभी विचार के स्तर पर नही होती है, समस्या होती है क्रियान्वयन के स्तर पर, तो ऐसे में सरकार के पास यदि विचार और उसके क्रियान्वयन की एक स्पष्ट रूपरेखा, समयसीमा, उसमें लगने वाला धन आदि सहित प्रस्ताव दिया जाए तो सरकार हर संभव विचार को सहायता प्रदान करती है। इस समय माहौल बहुत अनुकूल है और हमें इसी अनुकूलता को बनाए रखने पर