भारत के कई क्षेत्रों को उनकी भू-तापीय ऊर्जा उत्पादन की संभावित क्षमता के कारण जाना जाता है। इन क्षेत्रों से जुड़े एक ताजा अध्ययन में पता चला है कि लद्दाख की पूगा घाटी में स्थित भू-तापीय क्षेत्र ऊर्जा उत्पादन का एक प्रमुख स्रोत हो सकता है। पिलानी स्थित बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में यह बात उभरकर आयी है।
शोधकर्ताओं ने लद्दाख की पूगा घाटी, जम्मू-कश्मीर के छूमथांग, हिमाचल प्रदेश के मणिकरण, छत्तीसगढ़ के तातापानी, महाराष्ट्र के उन्हावारे और उत्तरांचल के तपोबन जैसे भू-तापीय ऊर्जा से जुड़े आंकड़ों का नौ मापदंडों के आधार पर विश्लेषण किया है। इसी आधार पर शोधकर्ताओं का कहना है कि पूगा घाटी के भू-तापीय क्षेत्र में ऊर्जा उत्पादन की सबसे अधिक क्षमता है।
भारत में भू-तापीय ऊर्जा भंडारों के अध्ययन की शुरुआत वर्ष 1973 में हुई थी। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान ने भारत में ऐसे कुछ क्षेत्रों की पहचान की है, जहां भू-तापीय ऊर्जा संयंत्र लगाए जा सकते हैं। किसी भू-तापीय ऊर्जा भंडार से निकलने वाली ऊर्जा की मात्रा की सही जानकारी नहीं होने से ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना में बाधा आती है। इसी कारण, भारत में अभी तक कोई भू-तापीय ऊर्जा संयंत्र संचालित नहीं हो पाया है। इस अध्ययन के नतीजों से इस दिशा में मदद मिल सकती है।
अध्ययन के दौरान तापीय, जलीय और भूवैज्ञानिक आंकड़ों के आधार पर भू-तापीय ऊर्जा भंडार का चित्रण और एक सिमुलेशन सॉफ्टवेयर के जरिये उपयोगी संसाधनों के आधार का मूल्यांकन किया गया है। यह सॉफ्टवेयर बीस वर्षों की संचालन अवधि के लिए निष्कर्षण तापमान को दर्शाता है, जो किसी भू-तापीय क्षेत्र के जीवनकाल की सामान्य अवधि होती है। इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने तापीय जलस्रोतों, न्यूनतम तथा अधिकतम विद्युत प्रतिरोधकता और प्रतिनिधि जलाशयों का तापमान समेत अन्य कारकों के संचयी मूल्य के आधार पर इन क्षेत्रों का मूल्यांकन किया है।
इस अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता डॉ शिबानी के. झा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “पूगा भू-तापीय क्षेत्र का महत्व सबसे अधिक है। इसके बाद महत्वपूर्ण भू-तापीय क्षेत्रों में छूमथांग, तातापानी, उन्हावारे और तपोबन शामिल हैं। सरकार किसी अन्य अक्षय संसाधन की तरह भू-तापीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए एक पहल कर सकती है। इस शोध के नतीजे ऊर्जा भंडारों के विकास से जुड़ी गतिविधियों, गहरे भू-तापीय अन्वेषण, अवधारणात्मक मॉडल्स के विकास, सिमुलेशन अध्ययनों और इससे संबंधित रणनीतियों तथा निर्णयों में मददगार हो सकते हैं।”
कुछ स्थानों पर धरती की ऊपरी परत के नीचे चट्टानों के पिघलने से उसकी गर्मी सतह तक पहुंच जाती है और आसपास की चट्टानों और पानी को गर्म कर देती है। गर्म पानी के झरनों या अन्य जलस्रोतों का जन्म कुछ इसी तरह से होता है। वैज्ञानिक ऐसे स्थानों पर पृथ्वी की भू-तापीय ऊर्जा के जरिये बिजली उत्पादन की संभावना तलाशने में लगे रहते हैं। गर्म चट्टानों पर बोरवेल के जरिये जब पानी प्रवाहित किया जाता है तो भाप पैदा होती है। इस भाप का उपयोग विद्युत संयंत्रों में लगे टरबाइन को घुमाने के लिए किया जाता है, जिससे बिजली का उत्पादन होता है। आइसलैंड की राजधानी रेक्जाविक में भू-तापीय ऊर्जा क्षेत्रों को बिजली उत्पादन और भवनों के सेंट्रल हीटिंग सिस्टम के संचालन के लिए उपयोग किया जा रहा है।
शोधकर्ताओं में डॉ झा के अलावा उनके शोधार्थी हरीश पुप्पाला शामिल थे। यह अध्ययन शोध पत्रिका रिन्यूएबल एनर्जी में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)
सुरेश रमणन