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लेफ्ट क्यों घबराया भाजपा से केरल में ?

केरल में भाजपा और संघ के जुझारू प्रतिबद्धता के साथ काम करने वाले कार्यकर्ताओं की नियमित रूप से होने वाली नृशंस हत्याओं पर अपने को मानवाधिकारवादी कहने वालों की चुप्पी सच में भयभीत करती है। ये बुरहान वानी से लेकर याकूब मेमन के मानवाधिकारों के लिए जार-जार आंसू बहाते रहे हैं। पर इनका तब कलेजा नहीं फटता था, जब केरल में माकपा के गुंडे संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं का खून करते हैं। यह सिलसिला दशकों से चल रहा है। अब भाजपा इसका वैचारिक स्तर पर जवाब देगी। अब गोली और हथियारों के जवाब में भाजपा और संघ का राष्ट्रवाद का सिंद्धात चुनौती देगा माकपा को केरल में। केरल में राष्ट्र विरोधी ताकतों के बढ़ते असर से भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बेखबर नहीं है। इसलिए उसने गॉड्स ओन कंट्री में वामपंथी विचारधारा से निपटने के लिए मिशन मोड में काम करने का फैसला किया है। हाल ही में उड़ीसा में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कार्यकारिणी की बैठक में केरल में संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमलों के मुद्दे को उठाया। उन्होंने पार्टी नेताओं से कहा कि वामपंथी विचारधारा की पकड़ वाले राज्यों में पार्टी अपना अभियान तेज करेगी। उन्होंने माना कि राज्य में लगातार वामपंथी और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़प के मामले सामने आते रहते हैं।
वैचारिक जंग वामपंथी गुंडों से
निश्चित रूप से भाजपा को केरल में अपने विरोधियों को मात देनी होगी। अब भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार हर 15 दिन में कम से कम एक केंद्रीय मंत्री को केरल और त्रिपुरा भेजेगी। त्रिपुरा में अगले साल ही चुनाव होने हैं। यानी भाजपा केरल में माकपा की गुंडई से लडऩे के लिए कमर कस रही है। पर भाजपा खूनी लड़ाई नहीं लडेगी, वो तो वैचारिक स्तर पर माकपा को धूल में मिलाएगी। लोकतंत्र में विरोधियों को धूल में मिलाने के रास्ते में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। भाजपा इस तथ्य को भली प्रकार से समझती है। इसलिए ही उसकी तरफ से अब केरल में लड़ी जाएगी वैचारिक लड़ाई।दरअसल पिछले साल मई में जब केरल में लेफ्ट फ्रंट सरकार सत्तासीन हुई तो लग रहा था कि अब केरल में अमन होगा। राजनीतिक विरोधियों की हत्याएं नहीं होंगी। और सरकार राज्य के समावेशी विकास पर जोर देगी। पर हुआ इसके विपरीत। लेफ्ट फ्रंट की मुख्य घटक तो संघ और भाजपा की जान की दुश्मन होकर उभरी। इसने एक ठोस रणनीति के तहत संघ-भाजपा के कार्यकर्ताओं पर हमले चालू करवा दिए।
खून से लथपथ 50 साल

केरल में पिछले 50 वर्षों में आरएसएस के 267 सक्रिय कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुईं हैं! इनमें से 232 लोग, यानि अधिकॉंश माकपा के गुंडों द्वारा ही मारे गए। वर्ष 2010 के बाद, सोलह संघ कार्यकर्ताओं की सीपीएम द्वारा बेरहमी से बर्बरतापूर्ण हत्या कर दी गई। किसी के पैर काट दिए गए, किसी की आंखें फोड़ दी गईं, अनेकों को पीट पीट कर जीवन भर के लिए अपाहिज बना दिया गया। इन घायलों की संख्या मारे गए लोगों से लगभग छह गुना है। इन झड़पों के बाद शान्ति व्यवस्था के नाम पर पुलिस द्वारा क्रूरता का नंगा नाच किया गया। हां यह सच है कि माकपा द्वारा किये जाने वाले प्रत्येक हमले के बाद पुलिस कुछ लोगों को गिरफ्तार करती है। लेकिन लगभग सभी मामलों में वास्तविक अपराधियों को हाथ भी नहीं लगाया जाता। पुलिस केवल उन लोगों को गिरफ्तार करती है, जिन्हें गिरफ्तार करने के लिए पार्टी हरी झंडी दे देती है। इसे समझना चाहिए कि यह कैसे और क्यों होता है? दरअसल माकपा लीडरशिप का अपने कार्यकर्ताओं और केरल पुलिस पर पूरा प्रभाव है। और माकपा के गढ़ केरल के कन्नूर जिले में ही संघ स्वयंसेवकों पर सर्वाधिक अत्याचार हुए हैं। कन्नूर में पुलिस बल लेफ्ट फ्रंट के हाथ का खिलौना भर है। और जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को मार गया, उन्हें सरकार से कभी कोई मदद भी नहीं मिली। संघ ने स्थानीय लोगों की मदद से अपने ऐसे पीडि़त कार्यकर्ताओं जिनकी हत्याएं हुई हैं, के परिजनों की देखरेख हेतु समुचित व्यवस्था बनाई है। इसी प्रकार अंगभंग के कारण स्थाई रूप से अपाहिज हुए कार्यकर्ताओं के उपचार में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती।
कहां है कैंडिल मार्च वाले ?

और दुर्भाग्य देखिए कि केरल में राजनीतिक कार्यकर्ताओं के कत्लेआम पर जंतर-मंतर पर कैंडिल मार्च नहीं निकलता। कोई लेखक केरल सरकार को कोसते हुए अपने पुरस्कार को भी वापस नहीं करता।कश्मीर में आजादी के नारे लगाने वालों को टीम अरुंधति राय का बेशर्मी से समर्थन मिलने लगता है। ये देश के टुकड़े करने वालों के भी साथ खड़े हो जाते हैं। दुर्भाग्यवश इनकी केरल में राजनीतिक विरोधियों के मारे जाने पर जुबानें सिल जाती हैं। तो इनके चुप रहने को माना जाए कि ये केरल में एक खास राजनीतिक दल से जुड़े लोगों के मारे जाने से विचलित नहीं हैं?क्या संघ-भाजपा से जुड़े लोगों का मारा जाना मानवाधिकारों के हनन की श्रेणी में नहीं आता?
देश जानना नहीं चाहता कि देश के कथित मानवाधिकारवादी केरल में भाजपा-संघ के कार्यकर्ताओं के कत्लेआम पर चुप क्यों रहते हैं?आजादी के नारे लगाने वाले अरुंधति राय से लेकर कन्हैया कुमार, उमेर खालिद और तमाम किस्मों के स्वघोषित बुद्धिजीवी और स्वघोषित मानवाधिकार आंदोलनकारियों के लिए अफजल गुरु से लेकर अजमल कसाब के मानवाधिकार हो सकते हैं, पर माकपा के गुंडों की गोलियों से छलनी भाजपा-संघ के कार्यकर्ताओं के मानवाधिकारों का कोई मतलब नहीं है? जो अपराधियों के प्रति भी संवेदना दिखाने के हिमायती हों, वह आम नागरिकों के सम्मान और जीवन के तो रक्षक होने ही चाहिए। पर कभी-कभी लगता है कि इस देश के पेशेवर मानवाधिकारों के रक्षक सिर्फ अपराधियों के प्रति ही संवेदनशील हैं।
गॉड्स ओन कंट्री यानी Óईश्वर के अपने देश केरलÓ में यही तो हो रहा है। वहां पर राजनीतिक कार्यकर्ता मारे जा रहे हैं। उनके हाथ-पैर काट दिए जाते हैं। केरल अपनी संस्कृति और प्राकृतिक संपदा के लिए जाना जाता है। समुद्र के किनारे स्थित केरल के तट अपने शांतिपूर्ण माहौल के लिए लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। पर इस शांतिपूर्ण माहौल के पीछे कत्लेआम हो रहे हैं राजनीतिक कार्यकर्ताओं के। इधर भाजपा या संघ से जुड़ा होना खतरे से खाली नहीं है।
भाजपा का दबदबा

दरअसल लेफ्ट फ्रंट के नेताओं की पेशानी से केरल में भाजपा की बढ़ती ताकत के कारण पसीना छूट रहा है। भाजपा केरल में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टी के तौर पर उभर रही है। वैसे केरल में भाजपा एक राजनीतिक पार्टी के रूप में 1987 के विधानसभा चुनाव से अपनी मौजूदगी करा दी थी। केरल में भाजपा को खड़ा करने में जन संघ के दौर में पार्टी से जुड़े राजगोपाल का खास रोल रहा है। ओ. राजगोपाल ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की नीतियों से प्रभावित होकर 1960 में ही भारतीय जनसंघ से जुड़कर केरल राजनीति में कदम रखा। कार्यकर्ताओं के सतत प्रयास से पिछले कुछ सालों में केरल की धरती पर भाजपा की नींव यक़ीनन मजबूत हुई है। यह मैंने स्वयं तब महसूस किया कि जब 25 सितम्बर 2016 को मैं कोझीकोड (कालीकट ) गया था। वह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि, 50 वर्ष पूर्व दीनदयाल जी कोझीकोड में ही भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष बने थे। 50 वर्षों में केरल भगवामय हो चुका है। यह मैने स्वयं देखा कि माकपा के लोगों में कैसी बौखलाहट है।
इस्लामी आतंकवाद और केरल

लेफ्ट फ्रंट की परेशानी की एक बड़ी वजह यह भी है कि देश में संघ की शाखाओं की सर्वाधिक संख्या केरल में ही है। राज्य में पढ़े- लिखे युवा भारी संख्या में संघ में शामिल होने के लिए उत्सुक हैं। दरअसल केरल एक बहुत विकट राज्य के रूप में उभर रहा है। केरल तेजी से इस्लामी आतंकवाद की प्रजनन भूमि में बदल रहा है। केरल के हिंदुओं में असुरक्षा की भावना है और वे इन ताकतों के खिलाफ एक सेतु के रूप में संघ को देखते हैं। कम्युनिस्ट पार्टियों ने अपने हिन्दू विरोधी रुख के कारण केरल की मूल परम्पराओं और जीवन मूल्यों को नष्ट करने की कोशिश की थी। युवा पीढ़ी अब एक बार फिर अपनी जड़ों से जुडऩा चाहती है, और वह संघ और उसके अनुसंगों में अपने सांस्कृतिक पुनरुत्थान को देख रही है। इसके अतिरिक्त मुख्यधारा के राजनीतिक दलों में उसे भाजपा में अकूत संभावनाएं नजर आती हैं।
देश का सबसे साक्षर राज्य संकट से दो-चार हो रहा है। देश को राजनीतिक दलों को राजनीतिक मतभेदों को दरकिनार करके वहां पर स्वस्थ राजनीतिक माहौल स्थापित करने की दिशा में ठोस पहल करनी होगी।

(लेखक राज्य सभा सांसद हैं)

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