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वेतन विधेयक, 2019 लोकसभा में पारित

लोकसभा में आज वेतन विधेयक, 2019 पारित हो गया। विधेयक पर विचार करने और पारित करने के लिए चर्चा की शुरुआत करते हुए केन्‍द्रीय श्रम और रोजगार राज्‍यमंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री संतोष कुमार गंगवार ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक विधेयक है, जिसका उद्देश्य पुराने और अप्रचलित श्रम कानूनों को विश्वसनीय और भरोसेमंद कानूनों में तब्दील करना है, जो वक्त की जरूरत है। इस समय 17 मौजूदा श्रम कानून 50 से ज्यादा वर्ष पुराने हैं और इनमें से कुछ तो स्वतंत्रता से पहले के दौर के हैं।

वेतन विधेयक में शामिल किए गए चार अधिनियमों में से वेतन भुगतान अधिनियम, 1936 तो स्वतंत्रता से पहले का है और न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 भी 71 साल पुराना है। इसके अलावा बोनस भुगतान विधेयक, 2965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 भी इसमें शामिल किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि इस संबंध में ट्रेड यूनियनों, नियोक्ताओं और राज्य सरकारों के साथ व्यापक विचार-विमर्श हो चुका है। साथ ही 10 मई, 2015 और 13 अप्रैल, 2015 को तीन पक्षीय चर्चा हुई थी। वेतन संहिता का एक मसौदा मंत्रालय की वेबसाइट के माध्यम से सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है। इसके लिए कई लोगों ने अपने मूल्यवान सुझाव दिए हैं। विधेयक को 10 अगस्त, 2017 को लोकसभा में पेश किया गया था और वहां से इसे संसद की स्थायी समित के पास भेज दिया गया था, जिसने 18 दिसंबर, 2018 को अपनी रिपोर्ट जमा कर दी थी। स्थायी समिति की 24 सिफारिशों में 17 को सरकार ने स्वीकार कर लिया था।

उन्होंने कहा कि यह संहिता सभी कर्मचारियों और कामगारों के लिए वेतन के समयबद्ध भुगतान के साथ ही न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करती है। कृषि मजदूर, पेंटर, रेस्टोरैंट और ढाबों पर काम करने वाले लोग, चौकीदार आदि असंगठित क्षेत्र के कामगार जो अभी तक न्यूनतम वेतन की सीमा से बाहर थे, उन्हें न्यूनतम वेतन कानून बनने के बाद कानूनी सुरक्षा हासिल होगी। विधेयक में सुनिश्चित किया गया है कि मासिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों को अगले महीने की 7 तारीख तक वेतन मिलेगा, वहीं जो लोग साप्ताहिक आधार पर काम कर रहे हैं उन्हें हफ्ते के आखिरी दिन और दैनिक कामगारों को उसी दिन पारिश्रमिक मिलना चाहिए।

उन्होंने उम्मीद जताई कि वेतन संहिता एक मील का पत्थर साबित होगी और इससे असंगठित क्षेत्र के 50 करोड़ कामगारों को सम्मानजनक जीवन मिलेगा। मंत्री ने बहस पर विस्तार से प्रतिक्रिया दी और विधेयक को पारित कराने में सहयोग करने वाले सम्मानित सदस्यों के प्रति आभार प्रकट किया।

संहिता की मुख्‍य विशेषताएं इस प्रकार हैं –

• वेतन संहिता सभी कर्मचारियों के लिए क्षेत्र और वेतन सीमा पर ध्‍यान दिए बिना सभी कर्मचारियों के लिए न्‍यूनतम वेतन और वेतन के समय पर भुगतान को सार्वभौमिक बनाती है। वर्तमान में न्‍यूनतम वेतन अधिनियम और वेतन का भुगतान अधिनियम दोनों को एक विशेष वेतन सीमा से कम और अनुसूचित रोजगारों में नियोजित कामगारों पर ही लागू करने के प्रावधान हैं। इस विधेयक से हर कामगार के लिए भरण-पोषण का अधिकार सुनिश्चित होगा और मौजूदा लगभग 40 से 100 प्रतिशत कार्यबल को न्‍यूनतम मजदूरी के विधायी संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा। इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि हर कामगार को न्‍यूनतम वेतन मिले, जिससे कामगार की क्रय शक्ति बढ़ेगी और अर्थव्‍यवस्‍था में प्रगति को बढ़ावा मिलेगा। न्‍यूनतम जीवन यापन की स्थितियों के आधार पर गणना किये जाने वाले वैधानिक स्‍तर वेतन की शुरूआत से देश में गुणवत्‍तापूर्ण जीवन स्‍तर को बढ़ावा मिलेगा और लगभग 50 करोड़ कामगार इससे लाभान्वित होंगे। इस विधेयक में राज्‍यों द्वारा कामगारों को डिजिटल मोड से वेतन के भुगतान को अधिसूचित करने की परिकल्‍पना की गई है।

• विभिन्‍न श्रम कानूनों में वेतन की 12 परिभाषाएं हैं, जिन्‍हें लागू करने में कठिनाइयों के अलावा मुकदमेबाजी को भी बढ़ावा मिलता है। इस परिभाषा को सरल बनाया गया है, जिससे मुकदमेबाजी कम होने और एक नियोक्‍ता के लिए इसका अनुपालन सरलता करने की उम्‍मीद है। इससे प्रतिष्‍ठान भी लाभान्वित होंगे, क्‍योंकि रजिस्‍टरों की संख्‍या, रिटर्न और फॉर्म आदि न केवल इलेक्‍ट्रॉनिक रूप से भरे जा सकेंगे और उनका रख-रखाव किया जा सकेगा, बल्कि यह भी कल्‍पना की गई है कि कानूनों के माध्‍यम से एक से अधिक नमूना निर्धारित नहीं किया जाएगा।

• वर्तमान में अधिकांश राज्‍यों में विविध न्‍यूनतम वेतन हैं। वेतन पर कोड के माध्‍यम से न्‍यूनतम वेतन निर्धारण की प्रणाली को सरल और युक्तिसंगत बनाया गया है। रोजगार के विभिन्‍न प्रकारों को अलग करके न्‍यूनतम वेतन के निर्धारण के लिए एक ही मानदंड बनाया गया है। न्‍यूनतम वेतन निर्धारण मुख्‍य रूप से स्‍थान और कौशल पर आधारित होगा। इससे देश में मौजूद 2000 न्‍यूनतम वेतन दरों में कटौती होगी और न्‍यूनतम वेतन की दरों की संख्‍या कम होगी।

• निरीक्षण प्रक्रिया में अनेक परिवर्तन किए गए हैं। इनमें वेब आधारित रेंडम कम्‍प्‍यूटरीकृत निरीक्षण योजना, अधिकार क्षेत्र मुक्‍त निरीक्षण, निरीक्षण के लिए इलेक्‍ट्रॉनिक रूप से जानकारी मांगना और जुर्मानों का संयोजन आदि शामिल हैं। इन सभी परिवर्तनों से पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ श्रम कानूनों को लागू करने में सहायता मिलेगी।

• ऐसे अनेक उदाहरण थे कि कम समयावधि के कारण कामगारों के दावों को आगे नहीं बढ़ाया जा सका। अब सीमा अवधि को बढ़ाकर तीन वर्ष किया गया है और न्‍यूनतम वेतन, बोनस, समान वेतन आदि के दावे दाखिल करने को एक समान बनाया गया है। फिलहाल दावों की अवधि 6 महीने से 2 वर्ष के बीच है।

• इसलिए यह कहा जा सकता है कि न्‍यूनतम वेतन के वैधानिक संरक्षण करने को सुनिश्चित करने तथा देश के 50 करोड़ कामगारों को समय पर वेतन भुगतान मिलने के लिए यह एक ऐतिहासिक कदम है। यह कदम जीवन सरल बनाने और व्‍यापार को ज्यादा आसान बनाने के लिए भी वेतन संहिता के माध्‍यम से उठाया गया है।

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