विज्ञान को लोगों के करीब लाने में विज्ञान पत्रकारों और संचारकों की भूमिका अहम हो सकती है। शुक्रवार को यहां आयोजित विज्ञान पत्रकारिता और संचार पर एक संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने यह बात जोर देकर कही है।
राष्ट्रीय पोषण संस्थान की निदेशक डॉ. आर. हेमलता ने संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए कहा “देश के विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों की ऐसी कई शोधपरक उपलब्धियां हैं, जो औद्योगिक एवं सामाजिक रूप से उपयोगी हो सकती हैं। विज्ञान संचारकों को ऐसे वैज्ञानिक प्रयासों के महत्व को सरल रूप से पेश करना चाहिए। ऐसा करके वैज्ञानिक शोधों के बारे में जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ नीति निर्धारकों को भी समस्याओं से निपटने में मदद मिल सकती है।”
स्वास्थ्य को लेकर समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के बारे में बताते हुए संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. एम. महेश्वर ने कहा कि “हेल्थ रिपोर्टिंग के केंद्र में लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े बुनियादी सवालों के साथ-साथ स्वास्थ्य के क्षेत्र में हो रहे नवाचारों की ओर भी ध्यान देना जरूरी है। विज्ञान पत्रकार वैज्ञानिकों और लोगों के बीच की दूरी को खत्म करके स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता के प्रचार में मदद कर सकते हैं।”
विज्ञान प्रसार, नई दिल्ली और राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित यह संगोष्ठी विज्ञान पत्रकारों एवं लेखकों द्वारा किए जा रहे विज्ञान संचार के प्रयासों को बेहतर बनाने की एक कोशिश है। कुछ समय पहले इसी तरह की एक संगोष्ठी सीएफटीआरआई, मैसूर में आयोजित की गई थी।
भारतीय वैज्ञानिकों के शोध कार्यों को मीडिया के जरिये प्रसारित करने से संबंधित विज्ञान प्रसार द्वारा किए जा रहे प्रयासों के बारे में बताते हुए इंडिया साइंस वायर के प्रबंध संपादक दिनेश सी. शर्मा ने कहा कि “विज्ञान को लोगों तक पहुंचाने के साथ पत्रकारों को इसके व्यापक सामाजिक प्रभावों के बारे में भी सवाल उठाने चाहिए।” जनसंचार एवं पत्रकारिता के पूर्व प्रोफेसर तथा मीडिया सलाहकार डी.आर. मोहन राज ने बताया कि “विज्ञान संचार वैज्ञानिकों, संचारकों और आम नागरिकों के बीच एक प्रकार की साझेदारी है।”
तेलुगू समाचार पत्र साक्षी से जुड़े विज्ञान पत्रकार गोपालकृष्ण ने कहा कि “लोगों से संवाद करने में भारतीय भाषाओं के बिना प्रभावी विज्ञान संचार संभव नहीं है। अंग्रेजी से हिंदी या अन्य किसी भाषा में सिर्फ अनुवाद करना ही विज्ञान संचार नहीं है। तकनीकी शब्दावली के बजाय आम बोलचाल की भाषा में वैज्ञानिक तथ्यों को मीडिया में पेश किया जाए तो लोगों के लिए उसे समझना आसान होता है।”
संगोष्ठी में फेक न्यूज को लेकर भी चिंता व्यक्त की गई। एमिटी यूनिवर्सिटी, ग्वालियर में पत्रकारिता एवं संचार विभाग के निदेशक सुमित नरूला ने कहा कि स्वास्थ्य संबंधी समाचारों में फेक न्यूज की समस्या से निपटने में कुशल विज्ञान पत्रकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। आईआईआईटी, हैदराबाद के प्रोफेसर वासुदेव वर्मा ने बताया कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता किस तरह विज्ञान पत्रकारिता का चेहरा बदल सकती है।
केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान, मैसूर के वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक डॉ. कोल्लेगला शर्मा ने जोर देते हुए कहा कि “कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी तेजी से विकसित होती तकनीक ने अधिक से अधिक डिजिटल विभाजन पैदा कर सकती है। देश की बहुसंख्य आबादी तक पहुंचना है, तो भारतीय भाषाओं को ही चुनना होगा। पॉडकास्ट की भूमिका इसमें अहम हो सकती है।”
राष्ट्रीय पोषण संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. सुब्बाराव एम.जी. ने कहा कि “विज्ञान लेखक को सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्षों पर समान रूप से अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि समाज में गलत धारणाओं को ध्वस्त किया जा सके। विज्ञान लेखन में संतुलन बनाए रखकर निष्पक्षता बनाए रख सकते हैं और किसी तरह की एजेंडा सेटिंग का शिकार होने से बच सकते हैं।”
राष्ट्रीय पोषण संस्थान परिसर में आयोजित इस संगोष्ठी मे वैज्ञानिक, जनसंचार एवं पत्रकारिता के प्राध्यापक, शोधकर्ता और छात्रों सहित सौ से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए। (इंडिया साइंस वायर)
उमाशंकर मिश्र