जावेद अनीस
भाजपा द्वारा मध्यप्रदेश को विकास के माडल के तौर पर प्रस्तुत किया जाता रहा है, लेकिन राजनैतिक शुचिता, ईमानदार मूल्यों और आदर्शों की बात करने वाले भाजपा के शासनकाल में व्यापमं जैसा घोटाला हुआ जिसने मध्य प्रदेश को देश ही नहीं पूरी दुनिया में बदनाम किया है. यह भारत के सबसे बड़े और अमानवीय घोटालों में से एक है जिसने सूबे के लाखों युवाओं के अरमानों और कैरियर के साथ खिलवाड़ करने का काम किया है. इस घोटाले की चपेट में आये ज्यादातर युवा गरीब, किसान, मजदूर और मध्यम वर्गीय परिवारों से हैं जो तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपना पेट काटकर अपने बच्चों को पढ़ाते हैं जिससे उनके बच्चे अच्छी उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपने जीवन में स्थायित्व ला सकें और सम्मानजनक जीवन जी सकें. व्यापमं जैसे महाघोटाले ने भाजपा के भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन जैसे खोखले दावों की पोल खोलने का काम किया है. बहुत ही सुनियोजित तरिके से चलाये गये इस गोरखधंधे में मंत्री से लेकर आला अफसरों तक शामिल पाए गये. इसकी छीटें मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से लेकर संघ के वरिष्ठ प्राधिकारियों तक भी गयी. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने तो यहाँ तक आरोप लगाया था कि व्यापमं घोटाला सिर्फ भ्रष्टाचार का मामला नहीं है बल्कि यह संघ और बीजेपी के लोगों को नौकरियों में घुसाने की बड़ी साजिश का हिस्सा है. व्यापमं घोटाले की परतें खुलने के बाद इस घोटाले से जुड़े लोगों की असामयिक मौतों का सिलसिला सा चल पड़ा. लेकिन इन सबका शिवराज सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा. शुरुआत में तो मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान इस घोटाले की जांच एसआईटी से ही कराने पर अड़े रहे लेकिन एक के बाद एक मौतों और राष्ट्रीय -अंतराष्ट्रीय मीडिया ने जब इस मुद्दे की परतें खोलनी शुरू की तो उन्हें सीबीआई जाँच की अनुशंसा के लिए मजबूर होना पड़ा.
मामला सीबीआई के हाथों में जाने के बाद व्यापमं का मुद्दा शांत पड़ने लगा था, मीडिया द्वारा भी इसकी रिपोर्टिंग लगभग छोड़ दी गयी. उधर एक के बाद एक चुनाव/ उपचुनाव जीतकर शिवराज सिंह चौहान अपनी स्थिति मजबूत करते जा रहे था. मध्यप्रदेश भाजपा द्वारा यह दावा किया जाने लगा था कि व्यापमं घोटाले का शिवराज की लोकप्रियता पर कोई असर नहीं हुआ है. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान तो खुले आम बयान देते फिर रहे थे कि उन्हें व्यापमं का कोई अफसोस नहीं है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह गंगा जल की तरह पवित्र हैं. कुल मिलकर मामला लगभग ठंडा पड़ चूका था, विपक्ष थक चूका था और सरकार से लेकर संगठन तक सभी राहत मना रहे थे.
लेकिन ‘कैग’ की रिपोर्ट ने जैसे सोये हुए जिन्न को एक बार फिर से जगा दिया, कैग की रिपोर्ट इस साल विधानसभा में मार्च के आखिरी दिनों में सामने आयी जिसमें व्यापमं को लेकर शिवराजसिंह की सरकार पर कई गंभीर सवाल उठाये गये हैं. कैग की इस रिपोर्ट में 2004 से 2014 के बीच के दस सालों की व्यापमं की कार्यप्रणाली को लेकर सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए बताया गया है कि कैसे इसकी पूरी प्रक्रिया अपारदर्शी थी और बहुत ही सुनियोजित तरीके से नियमों को ताक पर रख दिया था. रिपोर्ट के अनुसार व्यापमं का काम केवल प्रवेश परीक्षाएं आयोजित कराना था लेकिन वर्ष 2004 के बाद वो भर्ती परीक्षाएं आयोजित करने लगा, इसके लिये व्यापमं के पास ना तो कोई विशेषज्ञता थी और ना ही इसके लिए म.प्र. लोकसेवा आयोग या किसी अन्य एजेंसी से परामर्श लिया गया, यहाँ तक कि इसकी जानकारी तकनीकी शिक्षा विभाग को भी नहीं दी गई और इस तरह से राज्य कर्मचारी चयन आयोग की अनदेखी करके राज्य सरकार ने व्यापमं को सभी सरकारी नियुक्तियों का काम दे दिया और राज्य सेवा में से इसमें शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति कर दी गयी. रिपोर्ट के अनुसार व्यापमं घोटाला सामने आने के बाद भी व्यावसायिक परीक्षा मंडल में परीक्षा लेने के लिए कोई नियामक ढांचा नहीं था, रिपोर्ट में जो सबसे खतरनाक बात बतायी गयी है वो यह है कि प्रदेश सरकार ने कैग को व्यापमं से सम्बंधित दस्तावेजों की जांच की मंजूरी देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि व्यापमं सरकारी संस्था नहीं है जबकि व्यापमं पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में काम करने वाली संस्था थी.
दूसरी पार्टियों पर भ्रष्टाचार के आरोपों पर हमलावर रुख अपनाने वाली भाजपा इस मामले में हमेशा की तरह इस बार भी ना केवल खामोश है बल्कि उलटे उसने “कैग” जैसी संवैधानिक संस्था पर निशाना साधा है और कैग’ द्वारा मीडिया को जानकारी दिए जाने को ‘सनसनी फैलाने वाला कदम बताते हुए उस पर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का आरोप जड़ दिया है. भाजपा की का यह रुख बहुत ही गैर-जिम्मेदाराना एक संवैधानिक संस्था की स्थिति को कमजोर करने वाला है.
इधर विपक्षी कांग्रेस ‘कैग’ की रिपोर्ट के सामने आने के बाद हमलावर हो गयी है विपक्ष के नेता अजय सिंह ने कहा है कि “शिवराज सरकार उन सारे लोगों को बचाने में लगी है, जिन पर आरोप है. अब यह सवाल नहीं है कि मुख्यमंत्री व्यापमं घोटाले में दोषी हैं या नहीं लेकिन यह तो स्पष्ट हो चुका है कि यह घोटाला उनके 13 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में हुआ है, उनके एक मंत्री सहित भाजपा के पदाधिकारी जेल जा चुके हैं और उनके बड़े नेताओं से लेकर संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी सब जाँच के घेरे में हैं इसलिए अब उन्हें मुख्यमंत्री चौहान के इस्तीफे से कम कुछ भी मंजूर नहीं है.”
व्यापमं घोटाले को देश के सबसे बड़े भर्ती घोटालों में से एक माना जाता है. जानकार इसे केवल एक घोटाले के रूप में नहीं बल्कि राज्य समर्थित नकल उद्योग के रूप में देखते हैं जिसने हजारों नौजवानों का कैरियर खराब कर दिया है. व्यापमं घोटाले का खुलासा 2013 में तब हुआ, जब पुलिस ने एमबीबीएस की भर्ती परीक्षा में बैठे कुछ फर्जी छात्रों को गिरफ्तार किया. ये छात्र दूसरे छात्रों के नाम पर परीक्षा दे रहे थे बाद में पता चला कि प्रदेश में सालों से एक बड़ा रैकेट चल रहा है, जिसके अंतर्गत फर्जीवाड़ा करके सरकारी नौकरियों रेवड़ियों की तरह बांटी गयीं हैं. मामला उजागर होने के बाद व्यापमं मामले से जुड़े 50 से ज्यादा अभियुक्तों और गवाहों की रहस्यमय ढंग से मौत हो चुकी है जो इसकी भयावहता को दर्शाता है. विपक्ष का आरोप है कि मौतों की संख्या इससे ज्यादा हो सकती है. इसी तरह से इस घोटाले के उजागर होने के बाद करीब 55 मामले दर्ज किए थे, जिसमें 2500 से ज्यादा लोगों को आरोपी बनाया गया था इनमें से 21 सौ से ज्यादा को गिरफ्तारियाँ हुई हैं. लेकिन जो गिरफ्तारियां हुई हैं, उनमें ज्यादातर या तो छात्र शामिल हैं या उनके अभिभावक या बिचौलिये. बड़ी मछलियाँ तो बची ही रह गयी हैं. हालांकि 2014 में मध्यप्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा जरूर गिरफ्तार हुए थे जिन पर व्यापमं के मुखिया के तौर पर इस पूरे खेल में सीधे तौर पर शामिल होने का आरोप था लेकिन दिसम्बर 2015 में वे रिहा भी हो गये थे. पहले पुलिस फिर विशेष जांच दल और अब सीबीआई द्वारा इस मामले की जांच की जा रही है लेकिन अभी तक इस महाघोटाले के पीछे के असली ताकतों के बारे में कुछ भी पता नहीं चल सका है और तमाम आरोप प्रत्यारोप के बावजूद अदालत में भी कुछ खास साबित नहीं हो सका है. कांग्रेस ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ के जो आरोप लगाये थे उसे भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किया जा चूका है, राजनीति में भी यह कोई मुद्दा नहीं बन सका है और सूबे की राजनीति में भाजपा अपनी जीत के सिलसिले को को बनाये हुए है.
हैरानी की बात है कि तमाम आरोपों और जवाबदेही की बावजूद व्यापमं घोटाले की जांच कर रही एजेंसियों ने मुख्यमंत्री चौहान से पूछताछ करने तक की जरूरत नहीं समझी है. अब तो कैग रिपोर्ट सीधे तौर पर उनकी सरकार की मंशा पर सवाल उठा रही है. वर्तमान में इसकी जांच सीबीआई द्वारा की जा रही है लेकिन दुर्भाग्य से इस घोटाले में पकड़े गए पूर्व मंत्री से लेकर तमाम प्रभावशाली लोग एक के बाद एक जमानत पर जेल से बाहर आ चुके हैं.
शिवराज सिंह चौहान ने व्यापम में हुई गड़बड़ियों को कभी भी ज्यादा अहमियत नहीं दी है.वह लगातार यही कहते आए हैं कि व्यापमं का घोटाला तो उनकी ही सरकार ने पकड़ा था. सत्तारूढ़ दल के तौर पर भाजपा का भी यही रुख रहा है. कैग रिपोर्ट आने के बाद तो इसके नेताओं की स्थिति उल्टा चोर कोतवाल को डांटे जैसी रही है. भाजपा के वरिष्ठ नेता और नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष डॉ. हितेष वाजपेयी का बयान आया है कि ‘कैग की रिपोर्ट तथ्यों पर आधारित नहीं है लिहाजा वह उसे खारिज करते हैं.’ उनका कहना है कि “अब समय आ गया है कि कैग के कार्यप्रणाली की पुनर्समीक्षा हो”. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राहुल कोठारी का बयान भी कुछ इसी तरह का रहा है जिसमें उन्होंने कहा है कि “कैग के अधिकारियों द्वारा रिपोर्ट को पटल पर रखने के अतिरिक्त तुरंत प्रेसवार्ता कर सनसनी फैलाना लोकतंत्र की स्वस्थ परंपरा के खिलाफ है”. राजनीतिक दलों विशेषकर सत्तारूढ़ दल से यह उम्मीद की जाती है कि वे संवैधनिक संस्थाओं की स्वायत्तता का ध्यान रखते हुए इनके प्रति सम्मान प्रदर्शित करेंगें, लेकिन भाजपा का ना तो ऐसा इतिहास रहा है और ना ही वर्तमान में ही ऐसा कुछ नजर आता है .