श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग
आनन्दरामायण में श्रीराम द्वारा कौए को अद्भुत वरदान
प्राय: सभी रामकथाओं में इन्द्र पुत्र जयन्त के कौए के रूप में सीताजी के पास आकर उनको उसके चोंच से क्षति पहुँचाने का तथा श्रीराम द्वारा एक नेत्र छेदन करने का वर्णन पाया जाता है। श्रीराम दया के सागर, करुणानिधान तथा क्षमा करने के लिए प्रसिद्ध हैं। अत: आनन्दरामायण में श्रीराम द्वारा कौए को अद्भुत वरदान देने का प्रसंग है। यथा-
एकदा राघव: शिष्य संभासंस्यो जनैर्वृत:।
ददर्श द्राक्षावल्लीनां मंडपे काकुमुत्तमम्।।
उभयोनैत्रयोरेकनेत्रमूर्तिसमन् वितम्।
अतिदीनं कृशं व्यग्रदृष्टिं दीर्घस्वरं चलन्।।
आनन्दरामायण राज्यकाण्डम् (पूर्वाद्ध) सर्ग ४-१-२
गुरु श्रीरामदास अपने प्रिय शिष्य विष्णुदास को कहने लगे- एक बार की बात है कि श्रीरामचन्द्रजी अपनी सभा में अनेक मनुष्यों से घिरे हुए बैठे हुए थे। तभी अंगूर की लताओं में बैठे एक कौए को देखा कि वह एक ही नेत्र से दोनों नेत्रों का काम ले रहा है। कौआ अपनी आकृति से ही अत्यन्त दीन व्यग्रदृष्टि ऊँचे स्वरवाला और चंचल दीखता है। श्रीराम ने देखा कि वह बार-बार मेरी ओर देख रहा है तथा काँव-काँव करके बोलता भी रहा है। कौए की यह दशा देखकर श्रीराम के हृदय में दया आई और अपने पूर्व किए हुए कोप का स्मरण करके कौए से बोले- हे काक! यहाँ मेरे निकट आओ। यह सुनकर कौआ उस द्राक्षावली से उड़ तथा श्रीराम के सन्मुख आकर बैठ गया। सभा में वह श्रीराम को देखता हुआ जोर-जोर से चिल्लाने लग गया। श्रीराम ने कौए से कहा- तू अपने नेत्रों के अतिरिक्त जो कुछ भी वर माँगना चाहे, माँग लो। इस प्रकार की बातें सुनकर श्रीराम से कौआ कहने लगा- हे राम! मेरे ऊपर इसी तरह सदा आपकी कृपा दृष्टि बनी रहे। केवल इस लोक में सुख देने वाले अन्य वरदानों को लेकर मैं क्या करूँगा। कौए की यह बात सुनकर श्रीराम ने कहा- किसी द्वीपान्तर में भी होने वाले भूत, भविष्य और वर्तमान की सब बातें तुम्हारी आँखों के सामने रहेगी। होने वाले अर्थात् भविष्य के सब कार्यों का तुम मेरे वरदान से जान सकोगे। मनुष्य कहीं जाते समय सदा तुम्हारा शकुन देखकर यात्रा करेंगे। जब तुम बैठे दिखोगे तब देखने वाला पथिक का काम रूक जाएगा। यदि तुम चलते रहे दिखोगे तो उसका कार्य शीघ्र पूर्ण हो जाएगा। इस प्रकार लोग तुम्हारा शकुन देखेंगे। ग्राम प्रवेश अथवा गृहप्रवेश के समय तुम जिसकी दाहिनी ओर से निकल जाओगे, वह परम् मंगलकारक शकुन होगा।
प्रेतदशाहपिंडाय यदि स्पर्शों भवेन्न ते।
सोऽस्तु तहि गतिस्तेषां प्रेतानां मम वाक्यत:।
आनन्दरामायण राज्यकाण्डम् पूर्वाद्ध सर्ग ४-१४
प्रेत के दशाहपिण्डों को जब तक नहीं छू लोगे, तब तक उसे प्रेत (मृतात्मा) सद्गति कदापि प्राप्त नहीं होगी। यदि प्रेत के दशाहपिण्ड को नहीं छुओगे तो उसके घरवाले लोग समझेंगे कि अभी प्रेत की इच्छा पूरी नहीं हुई है। प्रेत को कोई वंशज, तुम जिन-जिन चीजों को नहीं छुओगे, उनको अधूरी समझकर जब पूर्ण करेगा, तब जाकर उस प्रेत को सद्गति प्राप्त होगी। तुम भी उसके दशाहपिण्ड को तभी छूना, जब उनका प्रत्येक अंग पूर्ण हो जाए। श्रीराम ने पुन: कौए से कहा कि अब मैं तुम्हें दूसरा वरदान यह भी देता हूँ कि जो लेखक लिखते-लिखते उस समय कुछ लिखना भूल जाए तो वे वहाँ पर तुम्हारे पैर का चिह्न ( ) बना दिया करेंगे। पुस्तक में उस लेखन सामग्री में तुम्हारे पैर का चिह्न देखकर लोग समझ जाएंगे कि वहाँ पर कोई भूल या शब्द लिखना रह गया है। इस प्रकार उस कौए को वरदान देकर श्रीराम हँसते हुए चुप हो गए। कौआ भी भगवान श्रीराम को प्रणाम करके वहाँ से उड़ गया। इस प्रकार श्रीराम अनेक लीलाएँ करते थे।सन्दर्भ ग्रन्थ
आनन्दरामायण प्रकाशक चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान
३८, यू.ए., जवाहर नगर, बंगलो रोड, दिल्ली ११०००७
आनन्दरामायण में श्रीराम द्वारा कौए को अद्भुत वरदान
प्राय: सभी रामकथाओं में इन्द्र पुत्र जयन्त के कौए के रूप में सीताजी के पास आकर उनको उसके चोंच से क्षति पहुँचाने का तथा श्रीराम द्वारा एक नेत्र छेदन करने का वर्णन पाया जाता है। श्रीराम दया के सागर, करुणानिधान तथा क्षमा करने के लिए प्रसिद्ध हैं। अत: आनन्दरामायण में श्रीराम द्वारा कौए को अद्भुत वरदान देने का प्रसंग है। यथा-
एकदा राघव: शिष्य संभासंस्यो जनैर्वृत:।
ददर्श द्राक्षावल्लीनां मंडपे काकुमुत्तमम्।।
उभयोनैत्रयोरेकनेत्रमूर्तिसमन्
अतिदीनं कृशं व्यग्रदृष्टिं दीर्घस्वरं चलन्।।
आनन्दरामायण राज्यकाण्डम् (पूर्वाद्ध) सर्ग ४-१-२
गुरु श्रीरामदास अपने प्रिय शिष्य विष्णुदास को कहने लगे- एक बार की बात है कि श्रीरामचन्द्रजी अपनी सभा में अनेक मनुष्यों से घिरे हुए बैठे हुए थे। तभी अंगूर की लताओं में बैठे एक कौए को देखा कि वह एक ही नेत्र से दोनों नेत्रों का काम ले रहा है। कौआ अपनी आकृति से ही अत्यन्त दीन व्यग्रदृष्टि ऊँचे स्वरवाला और चंचल दीखता है। श्रीराम ने देखा कि वह बार-बार मेरी ओर देख रहा है तथा काँव-काँव करके बोलता भी रहा है। कौए की यह दशा देखकर श्रीराम के हृदय में दया आई और अपने पूर्व किए हुए कोप का स्मरण करके कौए से बोले- हे काक! यहाँ मेरे निकट आओ। यह सुनकर कौआ उस द्राक्षावली से उड़ तथा श्रीराम के सन्मुख आकर बैठ गया। सभा में वह श्रीराम को देखता हुआ जोर-जोर से चिल्लाने लग गया। श्रीराम ने कौए से कहा- तू अपने नेत्रों के अतिरिक्त जो कुछ भी वर माँगना चाहे, माँग लो। इस प्रकार की बातें सुनकर श्रीराम से कौआ कहने लगा- हे राम! मेरे ऊपर इसी तरह सदा आपकी कृपा दृष्टि बनी रहे। केवल इस लोक में सुख देने वाले अन्य वरदानों को लेकर मैं क्या करूँगा। कौए की यह बात सुनकर श्रीराम ने कहा- किसी द्वीपान्तर में भी होने वाले भूत, भविष्य और वर्तमान की सब बातें तुम्हारी आँखों के सामने रहेगी। होने वाले अर्थात् भविष्य के सब कार्यों का तुम मेरे वरदान से जान सकोगे। मनुष्य कहीं जाते समय सदा तुम्हारा शकुन देखकर यात्रा करेंगे। जब तुम बैठे दिखोगे तब देखने वाला पथिक का काम रूक जाएगा। यदि तुम चलते रहे दिखोगे तो उसका कार्य शीघ्र पूर्ण हो जाएगा। इस प्रकार लोग तुम्हारा शकुन देखेंगे। ग्राम प्रवेश अथवा गृहप्रवेश के समय तुम जिसकी दाहिनी ओर से निकल जाओगे, वह परम् मंगलकारक शकुन होगा।
प्रेतदशाहपिंडाय यदि स्पर्शों भवेन्न ते।
सोऽस्तु तहि गतिस्तेषां प्रेतानां मम वाक्यत:।
आनन्दरामायण राज्यकाण्डम् पूर्वाद्ध सर्ग ४-१४
प्रेत के दशाहपिण्डों को जब तक नहीं छू लोगे, तब तक उसे प्रेत (मृतात्मा) सद्गति कदापि प्राप्त नहीं होगी। यदि प्रेत के दशाहपिण्ड को नहीं छुओगे तो उसके घरवाले लोग समझेंगे कि अभी प्रेत की इच्छा पूरी नहीं हुई है। प्रेत को कोई वंशज, तुम जिन-जिन चीजों को नहीं छुओगे, उनको अधूरी समझकर जब पूर्ण करेगा, तब जाकर उस प्रेत को सद्गति प्राप्त होगी। तुम भी उसके दशाहपिण्ड को तभी छूना, जब उनका प्रत्येक अंग पूर्ण हो जाए। श्रीराम ने पुन: कौए से कहा कि अब मैं तुम्हें दूसरा वरदान यह भी देता हूँ कि जो लेखक लिखते-लिखते उस समय कुछ लिखना भूल जाए तो वे वहाँ पर तुम्हारे पैर का चिह्न ( ) बना दिया करेंगे। पुस्तक में उस लेखन सामग्री में तुम्हारे पैर का चिह्न देखकर लोग समझ जाएंगे कि वहाँ पर कोई भूल या शब्द लिखना रह गया है। इस प्रकार उस कौए को वरदान देकर श्रीराम हँसते हुए चुप हो गए। कौआ भी भगवान श्रीराम को प्रणाम करके वहाँ से उड़ गया। इस प्रकार श्रीराम अनेक लीलाएँ करते थे।सन्दर्भ ग्रन्थ
आनन्दरामायण प्रकाशक चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान
३८, यू.ए., जवाहर नगर, बंगलो रोड, दिल्ली ११०००७
प्रेषक
डॉ. नरेन्द्रकुमार मेहता
‘मानसश्री, मानस शिरोमणि, विद्यावाचस्पति एवं विद्यासागर