किसी ने यह सच ही कहा है कि
‘‘दिल छोटा और बड़ा अहंकार, जिसने बिखेर कर रख दिया एक बड़ा सुखी परिवार।
टुकड़ों में सब जीते हैं अब, गम के घुट अकेले पीते है सब।
याद करते उन पलों को जब साथ में सब रहते थे, मिलजुल कर सब सहते थे।
यह बिल्कुल सत्य है कि समय ने हमारे अहंकार को बड़ा कर दिया है और दिल को छोटा बना दिया है जिसके वजह से हमारा संयुक्त परिवार एकल परिवार में तब्दील होता जा रहा है। एक समय था जब हमारे यहां रिश्तों, संस्कारो और परम्पराओं को सबसे बढ़कर माना जाता था। लेकिन आधुनिकता ने इन सभी रिश्तों को न केवल कमजोर किया है बल्कि ईष्र्या और वैमनस्यता को भी इन रिश्तों के बीच ला खड़ा किया है। इन बातों को आसानी से महसूस की जा सकती है जिसमें आप पाएंगे कि वो प्यार, वो दुलार तेजी से बदलते दौर में कहीं गुम-सी गयी है। आखिर ऐसी क्या वजहें हैं कि आज के रिश्तें केवल नाममात्र के रह गए हैं जिसमें व्यक्ति के अंदर प्यार कम दिखावा ज्यादा हो गया है?
विश्व के एशियाई समाज में गृहस्थ जीवन की इतनी पवित्रता, स्थायीपन और पिता-पुत्र, भाई-भाई और पति-पत्नी के इतने अधिक व स्थायी संबंधों का दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। संयुक्त परिवार की नींव एशियाई मूल के लोगों में शुरुआत से ही काफी मजबूत थी वहीं एशिया महाद्वीप को छोड़ दिया जाए तो बाकी देशों में संयुक्त परिवार की नींव काफी कमजोर और नहीं के बराबर थी जो आज भी विद्यमान है। ‘संयुक्त परिवार’ को दुनियाभर में आदर्श माना जाता है। इस परिवार के अंतर्गत माता-पिता, बेटा-बेटी, दादा-दादी, चाचा-चाची, आदि एक साथ एक छत के नीचे जीवन व्यतीत करते हैं। एक जमाना था जब हमारे समाज में संयुक्त परिवार का बोलबाला और एकल परिवार के लिए कोई स्थान नहीं था। उस दौर में एक परिवार में कम से कम दो-तीन पीढ़ी के लोग एक साथ रहा करते थे, जिसमें परिवार के सभी सदस्यों का योगदान होता था। प्यार-दुलार की भावनाएं प्रत्येक सदस्यों में कूट-कूट कर हुआ करती थी। किसी भी शुभ अवसरों पर सदस्यों की खुशी देखते ही बनती थी, दिल खुशी के मारेे गद्गद् हो जाया करता था जिसमें किसी ईष्र्या, घृणा, वैमनस्यता के लिए कोई जगह नहीं थी। लेकिन समय ने जैसे ही करवट ली, संयुक्त परिवार की परिभाषा बदलने लगी। नए परिभाषानुसार, लोग यह मानने लगे कि संयुक्त परिवार वह है जिसमें दादा-दादी, माता-पिता एवं बच्चें हों और इस प्रकार एकल परिवार की संरचना होती चली गयी और संयुक्त परिवार बिखरने लगा। पश्चिमी देशों से बहती हुई यह हवा अब एशियाई घरों में भी बहने लगी है। शहर तो शहर अब गांव भी इन चीजों से अछूता नहीं रहा।
संयुक्त परिवारों के टूटने के सबसे बड़े कारण मुख्यतः अपरिपक्वता, व्यक्तिगत आकांक्षा, स्वकेंद्रित विचार, व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि, लोभी मानसिकता, आपसी मनमुटाव आदि है। जिससे परिवार के सदस्यों में संवादहीनता एवं अविश्वास का माहौल बनने लगता है और यही अविश्वास आगे चलकर धीरे-धीरे संशय एवं क्लेश में परिवर्तित होता है। आज का इंसान इतना स्वतंत्र है कि रिश्ते उसे बंधन लगने लगा है।
देखा जाए तो आज के दौर में रिश्तों में कड़वाहट की असली वजह धन है जो कहीं न कहीं एकल परिवार को बढ़ावा देती है। एकल परिवार का अस्तित्व में आने के पीछे आधुनिकतम सोच सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। अधिकतर नारियां अपने पति व बच्चे के अलावा और किसी को परिवार में शामिल करने से सख्त परहेज करने लगी है। आज के इंसान को अपनों के नाम पर पत्नी और बच्चे ही अपने लगते है। ऐसी सोच के लोगों का मानना होता है कि अपनी जिंदगी में अपने पति के अलावा किसी और की दखलअंदाजी उन्हें पसंद नहीं। आज छोटे परिवार में अपने माँ-बाप के लिए भी जगह नहीं है। घर जाने के लिये छुट्टियाँ नहीं मिलती लेकिन घूमने के लिए इनके पास पर्याप्त समय है।
ऐसे माहौल में अकेले रहने से समाज को काफी कुछ खोना भी पड़ रहा है। परिवार से अलग रहने पर बच्चों को न तो बड़ों का साथ मिल पा रहा है जिसकी वजह से नैतिक संस्कार दिन-ब-दिन गिरते ही जा रहे हैं और दूसरा, इससे समाज में बिखराव भी होने लगा है। माता-पिता के पास इतना समय नहीं होता कि वे देखें कि उनके बच्चे क्या कर रहे हैं? परिवार में खुद पति-पत्नी पैसे कमाने की आपाधापी में इस कदर व्यस्त रहते हैं कि बच्चों के लिए समय निकालने के लिए उनके पास न तो वक्त होता है और न ही शरीर में इतनी ऊर्जा शेष रह जाती जिससे कि वे दिन भर के अपने सुख-दुःख बांट सके। और इस प्रकार बच्चों के दिल की बात दिल में ही रह जाती है। माता-पिता के साथ होने से जहां परिवार अत्यधिक कुशलता से किसी संकट से पार पा लेता है तो वहीं बच्चे को दादा-दादी का भरपूर समय मिल जाता है जिससे न केवल बच्चों की देखभाल हो जाती है बल्कि बच्चों का अनुशासित और कुशल होने में भी सहायता मिलती है। इसके साथ-साथ माता-पिता अपने आप को असुरक्षित, असहाय न समझते हुए बच्चों के साथ खुशी-खुशी जीवन व्यतीत करने में अधिक सुकून महसूस करते हैं।
मजबूरी में जो एक दूसरे से मिल रहे हैं वो मिलना नहीं है समय काटना है। आपको क्या लगता है यदि पूरा विश्व, देश, राज्य, जिला, गांव, मोहल्ले,परिवार सब एक हो जाये तो क्या जीना आसान होगा बल्कि मुश्किल हो जायेगा यही कारण है। कोई राज्य या जिला बड़ा होते ही अलग सत्ता की मांग करने लगते है क्यूंकि इस सत्य को नहीं झूठलाया जा सकता कि सब अपने जीवन को स्वतंत्र रूप देने की ओर प्राकृतिक रूप से अग्रसर हैं।
पहले माता-पिता को मार्गदर्शक और शुभचिंतक समझा जाता था, आजकल बेड़ियाँ समझा जाता है। एकल परिवार की सोच रखने वालों का मानना है कि इस प्रकार के परिवार से फायदे कम लेकिन नुकसान अधिक है। जब कोई विपदा आती है या कई ऐसे मौके आते हैं जिस समय अन्य सदस्यों की सख्त जरूरत होती है। चूंकि वो एकल परिवार से शारीरिक रूप से दूर हो चुके होते हैं लेकिन उनकी कमी हर पल महसूस की जाती है। जहां नारियां एकल परिवार को ज्यादा सुरक्षित मानती है वहीं पुरूष को एकल परिवार की मानसिकता व वजूद से खतरा महसूस होता है। प्रायः पुरूष कभी नहीं चाहते कि वह अपने माता-पिता को छोड़कर केवल पत्नी व बच्चों के साथ रहें।
परिवार पर बढ़ रहे संकट और बिखराव को ध्यान में रखते हुए ही संयुक्त राष्ट्र ने प्रत्येक वर्ष 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाने का निर्णय लिया था ताकि समाज में परिवार के महत्व को जनता तक पहुंचाया जा सके। साथ ही प्रत्येक सदस्य का यह फर्ज होता है कि इस रिश्तें की गरिमा को बनाए रखें। संयुक्त परिवार में रहने के लिए धैर्य की जरूरत है, प्रेम की जरूरत है, संतुलन की जरूरत है सामाजिक होने की व्यवहारिक होने की जरूरत है।
अपने अंदर जरा झांक कर देखिये तो पता चलेगा कि भटकते बचपन, बच्चों के प्रति असुरक्षा और उनके संस्कारों के प्रति जिम्मेदारी से संयुक्त परिवार से ही हासिल किया जा सकता है। संयुक्त परिवार से न केवल बच्चे अपने को सुरक्षित महसूस कर सकेंगे बल्कि आप भी निश्चिंत रहेंगे। यदि फिर भी आप एकल परिवार में रहने पर मजबूर हैं तो अपने बच्चों के लिए काम से समय निकालिये और उन्हें माता-पिता सहित एक सुरक्षित वातावरण दें जिससे कि उनका सर्वांगीण विकास हो सके। रिश्ते बने रहे, लोगों में अपनापन बना रहे और रिश्ते टूटने के ये आंकड़ें कम हो इसके लिए जरूरी है कि परिवार में आपसी सामंजस्य बना रहे, धन को महत्व देने की बजाय अपनों को और उनकी भावनाओं को महत्व दें। ताकि आने वाली पीढ़ी में परिवार को बांधे रखने की योग्यता विकसित हो सके।
निर्भय कर्ण