रजनीश कपूर
गत एक सप्ताह मेंं कई विचारवान लोगों तथा राजनीतिक दलों द्वारा केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के प्रमुख आलोक वर्मा को पाक साफ सिद्ध करने के लिए काफी कुछ कहा गया। दावा किया जा रहा है कि वर्मा ईमानदार अधिकारी हैं। किन्तु तथ्य इस दावे को झुठलाते हैं। ‘कालचक्र’ के संपादक श्री विनीत नारायण ने कई टेलीविजन चैनलों पर आग्रहपूर्वक कहा है कि जेट एयरवेज घोटाले में हमारी शिकायत सीबीआई के पास अभी भी धूल फाक रही है, जबकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने उसका संज्ञान ले लिया है। यही नहीं, आरोप है कि एक बैंक घोटाले से जुड़े मामले में सीबीआई से जुड़े अपने एक सहयोगी को बचाने के लिए श्री वर्मा उस घपले की जांच को आगे नहीं बढऩे दे रहे हैं।
12 फरवरी, 2018 को भारतीय स्टेट बैंक वाराणसी के क्षेत्रीय प्रबंधक ने लखनउ स्थित सीबीआई के एसपी के समक्ष एक लिखित शिकायत (जिसकी प्रति कालचक्र के पास मौजूद है) दर्ज करायी, जिसमें उन्होंने वाराणसी के समीप स्थित भदोई के मैसर्स शिवांग कारपेट प्रा. लि. द्वारा किये गये एक घपले के संबंध में जानकारी दी। शिकायत के अनुसार पूर्ववर्ती स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर की भदोई शाखा से शिवांग कारपेट प्रा. लि. ने 6,56,38,093 का ऋण लिया। इसके बाद 1 मई, 2017 से स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर का भारतीय स्टेट बैंक में विलय कर दिया गया। फर्म ने यह ऋण जर्मनी के एक खरीददार को जारी 19 निर्यात बिलों के एवज में लिया। 19 बिलों में से 12 बिल बिना संबंधित दस्तावेजों के जमा किये गये और वायदा किया गया कि उनसे जुड़े शेष दस्तावेज सीधे जर्मन खरीददार द्वारा भेजे जाएंगे। इनमें से सात बिल बैंक द्वारा तकनीकी आधार पर पास करने योग्य नहीं पाए गये। बाद में जब भारतीय स्टेट बैंक के अधिकारियों ने इसकी जांच की तो कंपनी के कथित जर्मन खरीददार से पता चला कि उसे कथित बिल और उनसे जुड़े दस्तावेज ़कभी मिले ही नहीं। यह ऐसा घपला है, जिसमें भारतीय स्टेट बैंक की पूर्ववर्ती शाखा से 6.56 करोड़ रुपये से अधिक की राशि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ले ली गयी।
जांच के दौरान कारपेट फर्म के निदेशकों द्वारा बैंक अधिकारियों को आश्वासन दिया गया कि संबंधित दस्तावेजों का सैट जर्मन खरीददार को शीघ्र दे दिया जाएगा। किन्तु वे दस्तावेज और माल उस जर्मन खरीददार को भेजने की बजाए फर्जी तरीके से कुछ अन्य खरीददारों को भेज दिये गये। यही नहीं, उन दूसरे खरीददारों से प्राप्त राशि भी भारतीय स्टेट बैंक की उस शाखा में जमा नहीं की गयी, जिससे ऋण लिया गया था, बल्कि अन्य बैंकों की शाखाओं में जमा कर दी गयी। उस स्थिति में भारतीय स्टेट बैंक की भदोई शाखा द्वारा सीबीआई की लखनउ शाखा में शिकायत दर्ज करायी गयी। चूंकि इस घपले की आड़ में मनी लाउंड्रिंग अधिनियिम-2002 के कई प्रावधानों का भी उल्लंघन हुआ, इसलिए सीबीआई की लखनउ शाखा को चाहिए था कि वह तुरंत यह पूरा मामला प्रवर्तन निदेशालय के संज्ञान में भी लाती, जिसका नेतृत्व संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह कर रहे थे।
सीबीआई द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट
स्वाभाविक रूप से यह पूरा मामला करीब 7.40 करोड़ रुपये के एक सामान्य बैंक घपले का लगता है। परन्तु इस कहानी में एक गंभीर मोड़ है। पुष्ट सूत्रों से जानकारी मिली है कि मैसर्स शिवांग कारपेट प्रा. लि. के ऋण आवेदन पत्र पर गारंटर के रूप में एक भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी ने हस्ताक्षर किये थे और वह पुलिस अधिकारी उस समय सीबीआई में नियुक्त था। वह पुलिस अधिकारी सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा का निकट विश्वस्त बताया जाता है। यही कारण है कि सीबीआई ने अपनी एफआईआर (सं या आरसी0532018 एस0001, दिनांक 12 फरवरी, 2018) में दूसरे गारंटर को सहअभियुक्त नहीं बनाया। वह व्यक्ति मैसर्स शिवांग कारपेट प्रा. लि. के एक निदेशक का निकट रिश्तेदार बताया जाता है।
प्रवर्तन निदेशालय के पूर्व संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह
उस अधिकारी को बचाने के लिए सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने पूरे मामले को दबा दिया और अभी तक इस पूरे मामले में कोई जांच अथवा कार्रवाई नहीं की गयी है। पुष्ट सूत्रों से जानकारी मिली है कि आलोक वर्मा ने प्रवर्तन निदेशालय के विवादित संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह को भी कह दिया कि यदि यह मामला उनके संज्ञान में आता है तो वे उस पर कार्रवाई न करें। जब ‘कालचक्र’ ने सीबीआई के लखनउ ऑफिस से ईमेल भेजकर इस संबंध में जानकारी मांगी तो उस ईमेल का कोई जवाब नहीं दिया गया।
आलोक वर्मा और उसकी टीम के दूसरे अनेक घपलों में से यह भी एक घपला है। इससे पता चलता कि जो चमकता है वह हमेशा सोना नहीं होता। ‘कालचक्र’ की जांच टीम के पास आलोक वर्मा और उनके परिवार से जुड़े और भी कई घपलों की जानकारी है। जांच पूरी होने के बाद उन तथ्यों को सामने लाया जाएगा। यही कारण है कि कालचक्र के संपादक श्री विनीत नारायण द्वारा सीबीआई से जुड़े इस विवाद पर मीडिया में एक तथ्यात्मक रूख अपनाया गया है। ठ्ठ
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सुप्रीम कोर्ट ऐसा मंच नहीं जहां कोई आए और कुछ भी कहकर चला जाए
केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की जांच रिपोर्ट पर सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा के जवाब और डीआईजी मनीष कुमार सिन्हा के सनसनीखेज आरोप मीडिया में लीक होने पर सुप्रीम कोर्ट आग बबूला हो गया। गुस्से में शीर्ष कोर्ट ने यह तक कह दिया कि दोनों पक्षों के वकील किसी सुनवाई के ‘हकदार’ नहीं हैं। प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की, ‘कोर्ट कोई ऐसा मंच नहीं है, जहां कोई कुछ भी कह कर चल दे।’
दो बार सुनवाई, पर लीक ही मुद्दा
सीजेआइ की पीठ ने हाल ही में दो बार सुनवाई की, लेकिन कड़ी नाराजगी जताते हुए साफ कहा कि वह सीवीसी और अन्य किसी पक्ष को नहीं सुनेगी। कोर्ट ने सुनवाई को कथित लीक और मनीष सिन्हा के आरोपों के मीडिया में प्रकाशन तक ही सीमित रखा। पीठ में जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ भी शामिल थे।
याद दिलाया पिछला निर्देश
पीठ ने सबसे पहले मौजूद सभी पक्षों को अपना पिछला निर्देश याद दिलाया, जिसमें उनसे सीवीसी की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट और आलोक वर्मा के जवाब को लेकर गोपनीयता बरतने तथा सीबीआई की गरिमा कायम रखने को कहा गया था।
नरीमन से कहा, आप वरिष्ठ वकीलों में
जैसे ही कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई, पीठ ने एक न्यूज पोर्टल में प्रकाशित खबर की प्रति दिखाते हुए आलोक वर्मा की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील फली एस. नरीमन से कहा, ”यह आपके लिए है मिस्टर नरीमन, आलोक वर्मा के वकील के नाते नहीं, बल्कि आप संस्थान के सबसे आदरणीय व वरिष्ठ वकीलों में से एक हैं, इसलिए हम आपको यह बता रहे हैं, हमारी मदद कीजिए।’’
इस पर नरीमन ने खबर देखी और कहा, यह पूरी तरह ‘अनधिकृत’ है। इस लीक से बहुत व्यथित और आहत हूं। कोर्ट ने आलोक वर्मा के एक अन्य वकील गोपाल शंकर नारायणन से भी इसी मुद्दे पर सवाल किए। नरीमन को न्यूज पोर्टल की खबर की कॉपी सौंपने के बाद यह कहकर सुनवाई 29 नवंबर तक स्थगित कर दी, ‘हम नहीं समझते कि आप में से कोई भी किसी सुनवाई के हकदार हैं।’
नरीमन से पूछा, यह क्या चल रहा है?
इस बीच, जस्टिस गोगोई ने मामले से संबंधित कुछ कागजात स्टाफ से मांगे जिन्हें ढूंढने में स्टाफ को समय लग गया, जस्टिस गोगोई ने इस पर भी नाराजगी जताई। हालांकि बाद में कागजात मिलने के बाद कोर्ट ने अदालत से बाहर जा रहे नरीमन को फिर बुलाया और उन्हें कागजात देते हुए कहा कि यह पिछले दिन का मामला है। वह जानना चाहते हैं कि यह क्या चल रहा है?
चंद मिनट में फिर कोर्ट रूम में पहुंचे नरीमन
सुनवाई स्थगित किए जाने के चंद मिनट बाद नरीमन फिर कोर्ट रूम में दाखिल हुए और दोबारा सुनवाई का आग्रह किया, जिसकी इजाजत दे दी गई। जब दोबारा सुनवाई हुई तो नरीमन ने कहा, ”चर्चा का विषय बनी खबर न्यूज पोर्टल ने 17 नवंबर को प्रकाशित की थी। यह सीवीसी की प्रारंभिक जांच के दौरान आलोक वर्मा द्वारा दिए गए जवाबों पर आधारित है, जबकि सीवीसी की जांच रिपोर्ट पर आलोक वर्मा का जवाब 19 नवंबर को दाखिल किया गया है।’’
न्यूज पोर्टल व पत्रकारों को कोर्ट में तलब किया जाए
मीडिया रिपोर्ट पर सुनवाई के पहले चरण में नरीमन ने कोर्ट से आग्रह किया, ”इसने जि मेदार प्रेस व प्रेस की आजादी जैसे शब्दों को नया मोड़ दे दिया है। न्यूज पोर्टल व उसके पत्रकारों को कोर्ट में तलब किया जाना चाहिए।’’ नरीमन ने हैरानी जताते हुए कहा था, ”यह कैसे हो सकता है? यह जिस तरह हुआ है, उससे मैं खुद हिल गया हूं।’’
न्यूज पोर्टल ने ट्वीट कर दी सफाई
इस बीच, रिपोर्ट लीक होने को लेकर न्यूज पोर्टल ने ट्वीट कर सफाई दी, ‘यह खबर सीवीसी द्वारा आलोक वर्मा से पूछे गए सवालों पर उनके जवाबों पर आधारित है। यह सीलबंद लिफाफे में नहीं थे और न ही सुप्रीम कोर्ट के लिए थे। सुप्रीम कोर्ट को सीवीसी की फाइनल रिपोर्ट पर आलोक वर्मा के जवाब सीलबंद कवर में सौंपे गए हैं, हमने उन्हें नहीं देखा है।’
मनीष सिन्हा के आरोप उजागर होने से भी चिढ़ा सुप्रीम कोर्ट
सीजेआई की पीठ ने सीबीआई के नागपुर ट्रांसफर किए गए डीआईजी मनीष कुमार सिन्हा की याचिका के अंश भी खबर के रूप में मीडिया में जारी होने को लेकर नरीमन के समक्ष नाराजगी जताई। सीजेआई गोगोई ने कहा, ”कल (सोमवार) हमने सिन्हा की याचिका की अर्जेंट सुनवाई से इन्कार कर दिया था। हमने कहा था कि इसमें सर्वोच्च गोपनीयता बरती जाए, लेकिन एक वादी ने इसका हमारे सामने उल्लेख (मेंशनिंग) किया और बाहर जाकर याचिका सबको बांट दी। इस संस्थान का स मान कायम रखने के हमारे प्रयासों को इन लोगों ने साझा नहीं किया।’’ सीवीसी की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता कुछ कहने को खड़े हुए तो पीठ ने कहा, ”हम कुछ नहीं सुनेंगे, किसी को नहीं सुनेंगे।’’
सीबीआई का गैरकानूनी सिस्टम, सुप्रीम कोर्ट से कैसे सुधरेगा
सीबीआई चीफ मामले की सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट ने एक ह ते के लिए स्थगित कर दिया है। राफेल मामले की विशेष जांच की याचिका पर भी सुनवाई खत्म होने के बाद, फैसला आना बाकी है। आरोपों की जांच करने वाली सीबीआई के संदेह के दायरे में आने के बाद, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने भी आंखे तरेरना शुरू कर दिया है। अफसरों के परस्पर विवाद के भयानक दौर में, क्या सीबीआई के कानूनी सिस्टम को ठीक करने की पहल होगी?
हाईकोर्ट ने सीबीआई के सिस्टम को गैरकानूनी बताया : संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार पुलिस राज्यों का विषय है। यूनियन लिस्ट की एन्ट्री नंबर 8 के तहत केंद्र सरकार को सीबीआई जैसी संस्था के गठन का अधिकार है। इसके बावजूद, सरकार ने संसद से इस बारे में कोई कानून नहीं बनाया और शॉर्टकट रास्ते से दिल्ली पुलिस के 1946 के विशेष कानून के तहत 1963 में सीबीआई की स्थापना कर दी गई। भ्रष्टाचार और संगठित अपराध के खिलाफ काम कर रही देश की प्रीमियर एजेंसी के कानूनी ढांचे को गौहाटी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रशासनिक आदेश से गठित सीबीआई के कानून को मंत्रिमंडल या संसद का अनुमोदन नहीं मिला। हाईकोर्ट द्वारा सीबीआई की वैधता पर सवालिया निशान खड़ा करने के खिलाफ केंद्र सरकार की अजऱ्ी पर सुप्रीम कोर्ट ने सन् 2013 में स्थगनादेश दे दिया, पर समस्या जस की तस रही।
सीबीआई को पु ता कानूनी आधार देने में सभी सरकारें फेल : सीबीआई के कमज़ोर कानूनी ढांचे को ठीक करने के लिए संसद की समितियों ने अनेक रिपोर्ट दी हैं। केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के तहत सीबीआई काम करती है। विभाग की संसदीय समिति ने 14वीं, 19वीं और 24वीं रिपोर्ट में सीबीआई के लिए संसद के माध्यम से समुचित विधान बनाने का सुझाव दिया। समिति की सिफारिशों पर कार्यवाही के बारे में विभाग की 37वीं रिपोर्ट में, कानून नहीं बनाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई। इन सारे गंभीर सवालों के बावजूद पूर्ववर्ती यूपीए और वर्तमान भाजपा सरकार ने सीबीआई की व्यवस्था को पु ता आधार देने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए।
हवाला मामले के बाद सीबीआई पर सीवीसी का सुपरविजऩ : जैन हवाला डायरी के खुलासों ने भारतीय राजनीति में तूफान ला दिया था। इस मामले में, विनीत नारायण की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की कार्यप्रणाली को दुरुस्त करने के लिए 1997 में अनेक सुझाव दिए। इसके पश्चात सन् 2003 में सीबीआई को केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के दायरे में लाया गया। सीबीआई के कानूनी सिस्टम का ठोस सुधार तो नहीं हुआ, लेकिन कानूनी प्रावधान से डायरेक्टर के लिए दो साल का कार्यकाल सुनिश्चित कर दिया गया। क्या सीवीसी द्वारा सीबीआई के डायरेक्टर के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है, इस पर अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है।
सीबीआई डीआईजी का सनसनीखेज़ आरोप
मोदी के मंत्री ने ली रिश्वत, डोभाल ने अस्थाना के घर छापा मारने से रोका
छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के मामले की सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में एक नया मोड़ आ गया है। सीबीआई के डीआईजी मनीष कुमार सिन्हा ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए एक याचिका दायर की। इस याचिका में उन्होंने मोदी सरकार में कोयला एवं खदान राज्य मंत्री हरिभाई पार्थीभाई पटेल पर मोईन कुरैशी मामले में करोड़ों रुपए की रिश्वत लेने का आरोप लगाया। सिन्हा की याचिका के मुताबिक, गुजरात से सांसद हरिभाई पार्थीभाई को अहमदाबाद के किसी विपुल नाम के श स द्वारा पैसे दिए गए थे। वेबसाइट ‘द वायर’ ने इस याचिका में लगाए आरोपों को लेकर हरिभाई पार्थीभाई को कुछ सवाल भेजे थे, जिसका उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
इसके अलावा मनीष कुमार सिन्हा ने अपनी याचिका में यह भी बताया कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के कथित तौर पर मोईन कुरैशी मामले में गिर तार भाईयों मनोज प्रसाद और सोमेश प्रसाद से नजदीकी संबंध हैं।
उनकी याचिका में साफ तौर यह आरोप लगाया गया है कि सीबीआई के विशेष निदेशक और डीएसपी देवेंद्र कुमार के खिलाफ चल रही सीबीआई जांच के एक महत्वपूर्ण मौके पर डोभाल ने हस्तक्षेप किया, ताकि उनके मोबाइल फोन सबूत के तौर पर जब्त न किए जाएं। सिन्हा ने दावा किया कि उनके व्हाट्सएप संदेशों में उनके खिलाफ कई सबूत थे। यहां तक कि डोभाल ने अस्थाना के आवास में की जा रही तलाशी अभियान को भी रोकने के निर्देश दिए थे।