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संस्कृत – अब बाजार की बनती मजबूरी सिविल और राज्य सर्विस में लोकप्रिय होती संस्कृत

भाषा किसी भी देश की अस्मिता और उसके अस्तित्व की सबसे बड़ी पहचान होती है, भाषा और बोलियों के समाप्त होने से न केवल भाषा बल्कि वह राष्ट्र समाप्त हो जाता है। और उस पर यदि संस्कृत जैसी वैज्ञानिक भाषा हो, जिसमें शताब्दियों पूर्व न जाने कितने शास्त्र आदि की रचना हो चुकी हो, जिस भाषा के द्वारा प्रदत्त ज्ञान पर आज भी कई रहस्य अनसुलझे हैं, और जिस संस्कृत भाषा को नासा आज सबसे अधिक वैज्ञानिक भाषा मानता है, क्या वह वाकई में ही लुप्त प्राय भाषा बन गयी है? क्या वह वाकई ऐसी भाषा बन गयी है जिसका कोई अस्तित्व नहीं या फिर ऐसी भाषा जो एक दिन विलुप्त हो जाएगी? कई ऐसा सोचते हैं, मगर पिछले कुछ वर्ष के आंकड़े कुछ और ही कहते हैं। पिछले कुछ वर्षों में संस्कृत भाषा न केवल सबसे वैज्ञानिक भाषा के रूप में उभरी है बल्कि यह प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले बच्चों के लिए भी एक माध्यम के रूप में उभरी है। नई दिल्ली में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाली संस्था कैरियर प्लस के माध्यम से सिविल सर्विसेज में उत्तीर्ण हुए बच्चे भी इन सभी अवधारणाओं को गलत ठहराते हैं। संस्कृत माध्यम से ्रआज सैकड़ों छात्र सिविल सर्विस में उत्तीर्ण हो कर देश की सेवा करने के लिए तैयार हैं।
सिविल सेवा के प्रतिष्ठिïत कोचिंग संस्थान कैरियर प्लस एजुकेशन सोसाइटी में संस्कृत के शिक्षक डॉ. आर सिंह संस्कृत के विषय में हर प्रकार की मिथ्या अवधारणाओं को नकारते हुए इसे आधुनिक समय की सबसे आधुनिक और वैज्ञानिक भाषा मानते हैं। संस्कृत की उपयोगिता के विषय में उनसे हुई बातचीत में उन्होंने कई तथ्यों को स्पष्ट किया।

क्या यह सही बात है कि संस्कृत एक लुप्त प्राय भाषा है? यदि यह लुप्त प्राय है तो सरकार के द्वारा इसे पुनर्जीवित करने के प्रयास क्यों?
देखिये, सबसे पहले तो इस बात मैं खारिज करता हूँ कि संस्कृत एक लुप्त प्राय भाषा है। संस्कृत जैसी कोई भी भाषा जो ध्वनि आधारित हो, जो समय के साथ अपने आप विकसित हुई हो, जिसका एक वैज्ञानिक आधार हो, कभी भी लुप्त हो ही नहीं सकती है। हाँ, कुछ कारणों से यह उपेक्षित है। इसे आप अपने ही देश में उपेक्षित भाषा कह सकती हैं, मगर यह लुप्त नहीं है। यदि यह लुप्त प्राय भाषा होती तो क्या नासा के लिए इतनी महत्वपूर्ण होती, क्या यह आज प्रतियोगी परीक्षाओं में शीर्ष विषय के रूप में उभर रही होती? तो पहले तो आप यह स्पष्ट कर लें कि यह लुप्त भाषा है।
ठीक है सर, यह लुप्त प्राय भाषा नहीं है, परन्तु अभी अभी आपने कहा कि यह उपेक्षित भाषा है। आखिर इतनी प्राचीन भाषा की उपेक्षा क्यों? क्या कारण हैं?
देखिये, हर विषय के अध्ययन के पीछे तीन कारक या प्रेरक होते हैं। हर विषय के अध्ययन के लिए हमें या तो समाज प्रेरित करता है, या अभिभावक या शिक्षक! तो आज इन तीनों कारकों के स्तर पर ही आपको संस्कृत विषय के प्रति उपेक्षा परिलक्षित होगी क्योंकि ये तीनों ही वैश्विकता के दौर में अंग्रेजी को महत्ता दे रहे हैं। उन्हें लगता है संस्कृत पर समय क्यों बर्बाद करना, आखिर क्या होगा? ये तीनों ही तमाम और विषयों की तरफ ध्यान आकर्षित करते हैं, बायो पढो, साइंस पढो, गणित पढ़ो, प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए ह्यूमैन स्टडीज पढ़ो, सब कुछ पढो, मगर संस्कृत मत पढ़ो। दरअसल हम त्वरित लाभ के लिए संस्कृत के प्रति उदासीन हो रहे हैं।
अब बात करें भाषा के स्तर की तो कोई भी भाषा तभी तक महत्व में रहती है जब तक वह चलन में हो। दूसरे शब्दों में कहें यदि वह बाजार की भाषा हो। आज संस्कृत अगर बाजार की भाषा होती, यदि यह पारस्परिक संवाद की भाषा होती तो आज यह भी उसी तरह से महत्व में होती।
संस्कृत की उपेक्षा के कारण कुछ सांस्कृतिक भी हैं। सांस्कृतिक कारणों से मेरा अर्थ है संस्कृत को कतिपय स्वार्थों के कारण एक षड्यंत्र के चलते एक वर्ग विशेष की भाषा निर्धारित कर दिया गया। इसके बारे में तमाम तरह के भ्रम फैलाए गए कि यह ब्राह्मणों की भाषा है, यह केवल मंदिरों की भाषा है। इसे देव भाषा का दर्जा तो दिया गया मगर इसका राजनीतिक दुरूपयोग हुआ और कुछ लोगों ने भाषाई अस्मिता के नाम पर इसे केवल और केवल विवाद का हिस्सा बना लिया।
और सबसे बड़ी बात, कि उपनिवेश काल के दौरान जब संस्कृत के विषय में यह सामाजिक विद्वेष उत्पन्न किया जा रहा था तो वहीं उसके बारे में और भी धारणाएं फैलाई गईं कि यह रटने की भाषा है। हाँ, यह सच है, संस्कृत में बार बार और जोर जोर से बोलने पर जोर दिया जाता है क्योंकि यह बात हमें समझनी होगी कि संस्कृत किसी व्यक्ति द्वारा रचित भाषा नहीं है, यह ध्वनि पर आधारित भाषा है। ऐसी भाषा है जिसमें आकृति और ध्वनि का आपस में संबंध होता है। और भाषाएं लिखने पर आधारित हैं, परन्तु संस्कृत के साथ ऐसा नहीं है। जो लिखा जा रहा है, वह मानदंड नहीं है, मानदंड तो ध्वनि है क्योंकि आधुनिक विज्ञान यह साबित कर चुका है कि पूरा अस्तित्व ऊर्जा की गूंज है। ध्वनि का उच्चारण करते समय हम आकृति की ही चर्चा कर रहे होते हैं। अगर ध्वनि में आप सिद्ध हो जाते हैं तो आकृति अपने आप आपके मस्तिष्क में आकार ले लेगी। यही कारण हैं कि जब लोगों को संस्कृत भाषा पढ़ाई जाती है, तो उसे रटाया जाता है। लोग शब्दों का बार बार उच्चारण करते हैं। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि उन्हें इसका मतलब समझ आता है या नहीं, लेकिन ध्वनि महत्वपूर्ण है, अर्थ नहीं।
तो आप रटने की जटिलता पर न जाकर उसकी वैज्ञानिकता पर जाइए!
क्या भाषाई संरचना ही इसकी उपेक्षा का कारण है? बच्चे डरते हैं कि कौन पढ़े, कौन रटे?
नहीं ऐसा नहीं है! रटना नहीं है, यह इसे समझने की ही एक प्रक्रिया है।
मान लीजिये यदि बच्चा पढता भी है संस्कृत, तो अभी आपने ही कहा कि यह बाजार की भाषा नहीं है, तो उसके लिए यह किसलिए और कैसे महत्वपूर्ण हो सकती है? कैसे यह उसके लिए उपयोगी हो सकती है?
अभी यूपीएससी ने सिलेबस में एथिक्स जोड़ा है। चूंकि संस्कृत का सारा साहित्य और संस्कृत में लिखे गए अधिकतर ग्रन्थ ज्ञान और न्याय एवं नियम आधारित हैं, तो इन बच्चों को एथिक्स के विषय में अलग से कुछ भी नहीं पढऩा और समझना होता। वे केवल संस्कृत के अध्ययन से ही एथिक्स में बहुत अच्छा कर लेते हैं। संस्कृत में एक और बात खास है कि यदि आपने इसके व्याकरण को समझ लिया तो आप जानिये आपके सामने न केवल भाषा का संसार होगा बल्कि आपके सामने ज्ञान के सभी स्रोत होंगे।
ज्ञान के स्रोत मतलब?
देखिये यह साबित हो चुका है, कि संस्कृत दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा है। और हमारे यहाँ न केवल भाषा रची गयी बल्कि विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में भी शोध हुए थे, गणित में टीकाएँ और भाष्य लिखे गए, नैतिक और विधि शास्त्र की स्थापना हुई, स्मृतियां हमारे न्यायिक जगत का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। आप ही देखिये, स्मृतियों के गलत अनुवाद ने हमारे समाज के पूरे ताने बाने को बिगाड़ दिया है। तो यदि जितने ज्यादा से ज्यादा बच्चे संस्कृत पढेंगे तो वे स्मृतियों के माध्यम से फैलाए जा रहे सामजिक वैमनस्य को समझेंगे और सामाजिक स्तर पर सौहार्द लाएंगे।
और दूसरी सबसे जरूरी बात कि कई बार हमें लगता है कि हमारे प्राचीन विद्वानों ने विज्ञान के तमाम क्षेत्रों में प्रगति की थी, फिर चाहे औषधि में सुश्रत हों या गणित में आर्यभट्ट। मगर हमारे लिए ज्ञान के ये सभी क्षेत्र एक तरह से बंद हैं क्योंकि हमें भाषा ही नहीं आती। हम इन सबको अंग्रेजी के माध्यम से सीखते हैं। एक बार भाषा का यह बंधन हटेगा तो बच्चा विषय को पड़ेगा और उसके सामने शोध के द्वार खुलेंगे।
तो आप समझिये कि संस्कृत केवल एक भाषा ही नहीं है, वह ज्ञान का द्वार है, वह शोध का द्वार है और वह न केवल भारत बल्कि विश्व के कल्याण के लिए आवश्यक है।
डॉ. सिंह आपने कहा कि यह सबसे वैज्ञानिक भाषा है, आप इसे और विस्तार से समझाएंगे?
जी, देखिये हर भाषा की अपनी एक बुनावट होती है। इसकी भी है। किसी की जटिल होती है किसी की सरल। किसी की सुगठित होती है, किसी की थोड़ी लचीली। भाषा के रूप में संस्कृत की जो बुनावट है वह एकदम स्पष्ट है। इसमें शब्द निर्माण, पद निर्माण और वाक्य निर्माण के सभी नियम इतने सरल हैं कि एक बार आपने वह नियम जान लिया तो बाकी निर्माण करना तो आपके बाएँ हाथ का खेल है। आपको बस कुछ नियमों को अपने मस्तिष्क में स्थापित करना होगा। और प्रतियोगिता की द्रष्टि से भाषा की दक्षता के समान ही विषय की दक्षता अपेक्षित होती है, जैसे मान लीजिए, बच्चे को भाषा तो आती है, मगर विषय नहीं तो वह क्या लिख पाएगा? और यदि उसकी पकड़ उसकी भाषा पर है और विषय पर भी है तो भाषा कोई भी हो वह श्रेष्ठ प्रदर्शन ही करेगा, क्योंकि उसके पास यह एकदम सही जानकारी है कि शब्द, पद और वाक्य निर्माण कैसे करना है? कैसे कोई शब्द बनाना है! तो जब वह शब्द बनाना सीखेगा तो निबंध तो अपने आप ही तुरंत लिख लेगा।
शुक्रिया सर, मुझे उम्मीद है संस्कृत के विषय में कई मिथ्या अवधारणाएं इस साक्षात्कार के बाद स्पष्ट होंगी। आपका बहुत बहुत आभार
शुक्रिया

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