यह भारत की इंडिया पर जीत है। यह मोदीत्व की जय है। यह कर्मयोगियों की जीत है। यह सनातन संस्कृति के उन पहरुओं की जीत है जो ‘राष्ट्र प्रथम’ बस इसी भाव से अपना सर्वस्व न्यौछावर कर इस भारत भूमि को पुष्पित पल्लवित करने को उद्धत हैं। यह उस आक्रामक राष्ट्रवाद की जीत है जो हम पर बुरी नजऱ रखने वाले दुश्मन देश की आंख निकाल लेने की दृढ़ इच्छाशक्ति रखता है। यह ‘नए भारत’ की उस संकल्पना की जीत है जो प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने देश की जनता के सामने रखी और जनता ने उस पर अपने भरोसे व समर्थन की मुहर लगा दी। टूटते वंशवाद के किलों और सम्प्रदाय-जाति की हवेलियों के बीच नए भारत की नयी इमारत बनकर सामने आ रही है जिसमें पहली बार इतनी व्यापक जनभागीदारी और जनसहभागिता है। एक जगे हुए आंदोलित राष्ट्र के एक एक जन ने उन स्वरों व भाषाओं के कहकरों को सुन समझ ताल से ताल मिला ली है और द्रुतगति से विश्वपटल पर अपनी खोयी पहचान पुन: स्थापित करने को एक साथ नरेंद्र मोदी के साथ उठ खड़ा हुआ है। यह भारत, भारतीयता और सनातन संस्कृति व भारत के योग, ज्ञान व आध्यात्म के माध्यम से प्रत्येक देशवासी को दीक्षित करने का समय है। मौलिक भारत के निर्माण का समय है। एक राष्ट्र-एक धर्म यानि राष्ट्रधर्म से ओतप्रोत समाज की भौतिक, बौद्धिक व आध्यात्मिक उन्नति के वृहद लक्ष्य को विश्व की सभी संस्कृतियों व सभ्यताओं की भी अच्छी बातों को स्वीकार कर आगे बढऩे का समय है। यह जीत कदापि सभ्यताओं के संघर्ष के रूप में नहीं ली जानी चाहिए। यह लम्पटों, स्वार्थी तत्वों, आत्मकेंद्रित, विभाजनकारी मानसिकता वाले लोगों की हार है जो ‘बांटो और राज करो’ की नीति पर चल जनता को छलते आए हैं। संकल्प यह करना है कि यह जीत शाश्वत रहे और इसके लिए निरंतर प्रयास करते रहने पड़ेंगे। जागना पड़ेगा और जगाना पड़ेगा। देश की जनता की सोच और मानसिकता आरोपों की राजनीति, घटिया बयानबाजी व झूठ बोलने वाले राजनेताओं के खिलाफ है। मोदी को निशाना बना घटिया राजनीति करने वाले हर राजनेता को जनता ने हाशिए पर धकेल दिया चाहे वो ममता हो, अखिलेश हो, मायावती हो, चंद्रबाबू नायडू हो, शरद पवार हो, लालू प्रसाद यादव हो या अरविंद केजरीवाल। यह सकारात्मक व जमीनी राजनीति करने वालों की जीत है चाहे नवीन पटनायक हो, जगन रेड्डी हो, केसीआर हो या स्टालिन। मोदी अब लगभग अजेय मुद्रा में आ गए हैं। उनके विरोधी व आलोचक निबट गए हैं। पार्टी के अंदर भी और बाहर भी। यह उनके लिए खुलकर काम करने का समय है।
देश एक नए दौर में है। जनता एक नागरिक के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान चाहती है, यह उस थोपी हुई बाजारू संस्कृति व छद्म धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ जनमत है जो हमारी पहचान से खिलवाड़ करता रहा। जिसका उद्देश्य ही भारत को तोडऩे, बिखेरने व मिटाने का है। यह हिंदुत्व व सनातन संस्कृति की खोई हुई पहचान को पुनस्र्थापित करने का जनमत है जो बड़े और भारत केंद्रित बदलावों की दिशा में बढऩे का जनादेश देता है। यह पारदर्शिता, सुशासन, जनकेन्द्रित नीतियों व देश की भौतिक उन्नति व आधारभूत ढांचे के द्रुत विकास की उन सभी नीतियों व योजनाओं का समर्थन है जिनसे देश की जनता को जबरदस्त लाभ पहुंचा है और वह इनको और ईमानदारी व गहराई से लागू कराने की अपेक्षा रखती है। यह धार्मिक व जातीय कट्टरता, नक्सलवाद, आतंकवाद और घृणा की राजनीति के खिलाफ जनमत तो है ही, साथ ही उस वामपंथ के खिलाफ भी है जो हमारी मूल संस्कृति व पहचान को ही मिटाने में सेकुलरपंथियों के साथ लगा था। यह भ्रष्टाचार, लूट, घोटाले व अराजकता के खिलाफ जनादेश है और नोटबन्दी, जीएसटी व डिजिटलीकरण को समर्थन है। यह उस विदेश नीति पर जनता की मुहर है जिससे पिछले 500 वर्षों में पहली बार पूरी दुनिया में भारतीयों को विशिष्ट पहचान व सम्मान मिला है। यह शिव, राम, कृष्ण, गौ, ग्राम, गंगा और गायत्री वाली संस्कृति की जीत है जो वसुधैव कुटुम्बकम के भाव से कार्य करती है। यह भारत की मौलिक सोच, वेदों की वैज्ञानिकता और प्रकृति व पर्यावरण केंद्रित हमारी जीवन शैली, सोच व दर्शन की विजय है।
यह पुनर्निर्माण के जो प्रयास प्रारंभ हुए हैं उनको स्थायित्व देने का समय है, इस अपेक्षा की जीत है और कहती है कि शिक्षा, संस्कृति, खेल, विज्ञान, अनुसंधान और एंटरप्रेन्योरशिप को नई ऊंचाई देने का समय है ताकि भारत पुन: ज्ञान परंपरा वाला देश बन सके और उद्योग व्यापार आदि में भी इतनी वृद्धि कर सके कि हम आयातक की जगह पुन: निर्यातक देश बन सके। ‘सबका साथ-सबका विकास’ अब राजनीतिक नारा न बन इस राष्ट्र की पहचान बन जाए और प्रत्येक देशवासी के समग्र कल्याण का भाव स्थायी रूप ले ले। भारत तत्व की खोज व उसकी स्थापना, भारत केंद्रित नीतियों का निर्माण और उनको लागू करवा ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की स्थापना। राष्ट्र निर्माण के इस यज्ञ में हर व्यक्ति को मोदी बनना होगा, कर्मयोगी बनना होगा।
By Anuj Agarwal, Editor