सर्जना शर्मा
ग्यारह दिसंबर से आरंभ हो रहा संसद का शीतकालीन सत्र इस बार कई मायनों में महत्वपूर्ण और निर्णायक होगा। हालांकि पहले दिन कोई काम नहीं होगा। भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार को श्रृद्धांजलि देने के साथ ही दिन भर की कार्यवाही स्थगित हो जाएगी। लेकिन ग्यारह दिसंबर का दिन शीतकालीन सत्र की दशा दिशा तय करेगा। पांच राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम, तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आ जायेंगे। परिणाम किसके पक्ष में जाएगा इसी पर सत्ता और विपक्ष दोनों का रूख निर्भर करेगा। ये चुनाव बीजेपी बनाम सभी विपक्षी दल और मोदी बनाम समूचा विपक्ष है। यदि बीजेपी की विधानसभा चुनावों में यथास्थिति रहती है तो विपक्ष उतना हावी नहीं हो पाएगा। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकारें हैं। यदि बीजेपी यहां अपना आधार खो देती है तो संसद में काफी छिछालेदार होने की आशंका है। विपक्षी मुद्धा बनाएंगे और तर्क देंगे कि बीजेपी को जनता नकार रही है, लोकप्रियता कम हो रही है। यदि बीजेपी ने अपने तीनों राज्य बरकरार रखे और बाकी दो राज्यों में भी कुछ सीटें हासिल कर ली तो बीजेपी 2019 में अपनी वापसी का दावा ठोकेगी, जनता के बीच अपनी लोकप्रियता का बखान करेगी। इन चुनावों को 2019 के आम चुनावों का सेमीफाइनल कहा जा रहा है। जाहिर सी बात है जो जीतेगा उसका मनोबल ऊंचा होगा।
इस बार भी शीतकालीन सत्र 2017 की तरह देर से आरंभ हो रहा है। जबकि 23 -24 दिसंबर तक शीतकालीन सत्र समाप्त होने की परंपरा हमेशा से चलती आ रही है। दिसंबर के तीसरे सप्ताह तक सत्र का समापन और फिर क्रिसमस की छुट्टियां पड़ जाया करती थीं। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने परंपरा को बदला। पिछले साल भी गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनावों के कारण शीतकालीन सत्र 15 दिसंबर से आरंभ हो पाया था। इस बार 11 दिसंबर 2018 से 8 जनवरी 2019 तक चलने वाले सत्र में वैसे तो बीस वर्किंग दिन है लेकिन कुल मिला कर 18 वर्किंग दिन ही होंगे। पहले दिन दिवंगत सांसदों को श्रृद्धाजंलि देकर सदन स्थगित कर दिया जाएगा। सत्र के दौरान सदन कितनी बार स्थगित होगा कुछ कहा नहीं जा सकता। पिछले सत्र यानि मानसून सत्र 2018 को देखें तो संसद ने इतिहास कायम किया। संसद के पिछले 18 साल के इतिहास में बहुत ही सार्थक सत्र रहा, 18 जुलाई से 10 अगस्त तक चले सत्र में 20 बिल पारित किए गए जिनमें 6 वित्तीय बिल थे। विपक्ष एकजुट होकर मोदी सरकार के खिलाफ सदन में पूरी तैयारी के साथ उतरेगा। राफेल सौदे और सीबीआई मामले पर विपक्ष भरपूर हंगामा करेगा और सरकार को घेरेगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला इस मामले में अभी सुरक्षित रखा हुआ है। सीबीआई के दो वरिष्ठ अफसरों की लड़ाई के मामले में पक्षपात के आरोपों पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के इस्तीफे की मांग पर भी विपक्ष अड़ सकता है।
सत्ताधारी दल भी इस सत्र में सभी महत्वपूर्ण बिल पारित करवाना चाहेगी। तीन मुद्दे ऐसे हैं जिन पर सरकार अध्यादेश लाने की तैयारी में है। तीन तलाक पर सरकार अध्यादेश लाकर मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के अभिशाप से छुटकारा दिला देगी। बाकी दो अध्यादेश हैं भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) अध्यादेश, 2018 (चिकित्सा शिक्षा और अ यास में सुधार लाने के लिए) और (द्बद्बद्ब) कंपनियां (संशोधन) अध्यादेश, 2018 (व्यवसाय करने में आसानी लाने और दायरे को बढ़ाने के लिए कॉर्पोरेट अनुपालन)।
राज्यसभा में 8 महत्वपूर्ण लंबित बिल हैं और लोकसभा में लगभग 15 महत्वपूर्ण बिल लंबित हैं। राज्यसभा में लंबित कुछ महत्वपूर्ण बिल हैं- मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2017 शामिल है; प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थलों और अवशेष (संशोधन) विधेयक, 2017; शिक्षक शिक्षा परिषद (संशोधन) विधेयक, 2017 और नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2017 के बीच बच्चों का अधिकार। जबकि लोकसभा में उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018 जैसे महत्वपूर्ण बिल; मनुष्यों की तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, 2018; अनियमित बचत योजना विधेयक, 2018 पर प्रतिबंध; सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (संशोधन) विधेयक, 2018 और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक जैसे बिल लंबित हैं।
सत्ता दल और विपक्ष दोनों जानते हैं कि इस लोकसभा का ये अंतिम पूर्णकालिक सत्र है। सत्ताधारी दल अपनी उपलब्धियों अपनी नीतियों को शो केस करने का मौका नहीं चूकेगा। विपक्ष एकजुट होकर मोदी सरकार के खिलाफ सदन में पूरी तैयारी के साथ उतरेगा। राफेल सौदे और सीबीआई मामले पर विपक्ष भरपूर हंगामा करेगा और सरकार को घेरेगा। हालांकि दोनों ही मामले सुप्रीम कोर्ट में हैं। दोनों मामलों पर सरकार से जवाब मांगा गया है। राफेल पर सरकार ने सीलबंद लिफाफे में पूरी जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दे दी है, अदालत ने फैसला इस मामले में अभी सुरक्षित रखा हुआ है। सीबीआई के दो वरिष्ठ अफसरों की लड़ाई के मामले में पक्षपात के आरोपों पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के इस्तीफे की मांग पर भी विपक्ष अड़ सकता है। इसके अलावा किसानों का मुद्दा, सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों की गिर तारी, बढ़ती महंगाई आदि कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर विपक्ष सरकार को घेरेगा। सदन नहीं चलने देगा। सत्र हंगामेदार रहा तो काम काज नहीं हो पाएगा।
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शीतकालीन सत्र पर विधानसभा चुनाव परिणामों सेज्यादा 2019 चुनाव की छाया रहेगी
यह आम धारणा बनी हुई है कि संसद के आगामी शीतकालीन सत्र पर पांच राज्यों में हुए विधान सभा चुनावों के नतीजों की छाया रहेगी लेकिन मेरा मानना है कि विधानसभा चुनाव परिणामों से कहीं ज्यादा लोकसभा चुनाव 2019 की छाया रहेगी। यह ध्यान रखना अधिक महत्वपूर्ण होगा कि 2019 के चुनावों की छाया संसद के शीतकालीन सत्र पर ना पड़े। सभी राजनैतिक दलों के नेताओं पर ये जि मेदारी है कि वो संसद का कामकाज ठीक से चलने दें। अपने राजनीतिक फायदे के लिए संसद के बेशकीमती समय का दुरूपयोग ना करें। निजी लाभ से ज्यादा जनहित का ध्यान रखें। मुझे पूरा पूरा विश्वास है और आशा भी है कि संसद के समय का दुरूपयोग नहीं किया जाएगा।
संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण लोकसभा टीवी और राज्यसभा टीवी पर होता है। पूरा देश देखता है कि कौन संजीदगी से काम कर रहा है और कौन बेवजह संसद के कामकाज में बाधा डाल रहा है। जनता बहुत समझदार है। कुछ सासंद सस्ती लोकप्रियता के लिए वैल में आ जाते हैं। जबकि अपनी बात अपना विरोध यदि वो ठोस तर्कों के साथ अच्छे तरीके से सदन में रखेंगे तो उसका उन्हें ज्यादा फायदा मिलेगा। छवि भी अच्छी बनेगी और जनता के बीच संदेश भी अच्छा जाएगा। आजकल एक और ट्रेंड चल पड़ा है कि संसद में बहस होने के बजाए न्यूज़ चैनलों पर ज्यादा बहसें हो रही हैं। जो बातें सदन में रखी जानी चाहिए वो टीवी पर रखी जा रही हैं। जब सदन में बहस और चर्चा का पूरा पूरा मौका सरकार दे रही है तो शोर शराबा क्यों? वैल में जाकर हंगामा क्यों?
संसद का इस साल का मॉनसून सत्र बहुत सार्थक रहा। बहुत काम हुआ। लगभग 20 बिल पारित हुए। विपक्ष के सहयोग के बिना ये संभव नहीं था। संसदीय मंत्री होने के नाते मैं आशा करता हूं कि शीतकालीन सत्र भी मॉनसून सत्र की तरह ही प्रोडक्टिव होगा। बहुत से जन उपयोगी बिल पारित किए जाने हैं। मेरा मानना है कि जहां जनता का हित होता है वहां सत्ताधारी और विपक्ष नहीं होता, जनहित सर्वोपरि होता है। हां लोकतंत्र में ये बहुत आवश्यक है कि विपक्ष जिन मुद्दों पर सत्तादल से सहमत नहीं है अपना विरोध ज़रूर प्रकट करे। संसद में विपक्षी दल के अपने सभी मित्रों को मैं भरोसा दिलाना चाहता हूं कि नियमों के अनुसार हर विषय पर चर्चा के लिए हमारी सरकार तैयार है और उन्हें बहस का पूरा पूरा मौका दिया जाएगा।
लोकसभा चुनाव 2019 से पहले विपक्ष के लिए भी ये अंतिम मौका है कि वो संसद के बीस दिन के पूर्णकालिक सत्र में अपनी बातें अपने मुद्दे ठीक से रख कर रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएं। संसद के सत्र के दौरान जनता तक अपनी राय पहुंचाने का उनके पास भी ये आखिरी सुनहरी अवसर है। इस सत्र में ये सावधानी रखना सभी के लिए ज़रूरी होगा कि शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट ना चढ़े। लोक सभा, राज्यसभा दोनों में ही कईं महत्वपूर्ण बिल लंबित हैं। लोकसभा में 15 और राज्यसभा में 8 महत्वपूर्ण बिल लंबित हैं। जनहित में जिन्हें पारित किया जाना बहुत ज़रूरी है। विपक्ष का सहयोग रहा तो पारित हो जायेंगे। जिसकी मुझे पूरी पूरी उ मीद है कि हमें सकारात्मक रूख ही देखने को मिलेगा। इस सत्र में तीन तलाक, मेडिकल काऊंसिल ऑफ इंडिया और संविधान में संशोधन संबंधी तीन महत्वपूर्ण अध्यादेश लाए जायेंगे।
शीतकालीन सत्र आरंभ होने से पहले मैं सहयोगी और विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात करूंगा। उनसे समर्थन और सहयोग का अनुरोध करूंगा। चुनाव में जाने से पहले जनता के हित और लाभ से जुड़े बिल पारित करना सबका कर्तव्य है। मुझे आशा है कि सबका भरपूर सहयोग मिलेगा।
वरिष्ठ पत्रकार सर्जना शर्मा
से बातचीत पर आधारित