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सबको सन्मति दे भगवान!

‘मंदिर वहीं बनायेंगे’ का नारा बार-बार लगाने वाले योगी आदित्यनाथ अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उनके मुख्यमंत्री बनते ही सुप्रीम कोर्ट ने भी एक बार फिर आपसी समझबूझ से बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद को निपटाने की बात कही है। इस तरह से यह विवाद एक बार फिर सुर्खियों में है, उसे सुलझाने की कोशिशों को तेज करने की प्रक्रिया प्रारंभ होती दिखाई दे रही है। लेकिन प्रश्न यह है कि साम्प्रदायिकता को उग्र करके यह मसला कैसे सुलझाया जा सकता है। इन दिनों जो हालात बन रहे हैं उनमें हिन्दू-मुस्लिम पास-पास आने की बजाय उनमें दूरियां की बढ़ती दिखाई दे रही है। राजस्थान के अलवर में पहलू खां की गौरक्षा के नाम पर हत्या करना हो या उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा द्वारा कब्रिस्तान-श्मशान की बात उठाकर धर्म की राजनीति का सहारा लेने का प्रयास किया हो, वन्दे मातरम को गाये जाने का प्रश्न हो या तीन तलाक का मसला- ऐसी स्थितियों में मन्दिर-मस्जिद का संवेदनशील मसला कैसे बातचीत से हल हो सकता है? कैसे साम्प्रदायिक सौहार्द का वातावरण बन सकता है? कैसे प्रधानमंत्री की ‘सबका साथ, सबका विकास’ वाली बात में भरोसा जताया जा सकता है? क्योंकि आज न तो राजनीति से धर्म बाहर निकला है और न ही मूल्यों की राजनीति से वोट बाहर निकले। इसलिए जनजीवन में सद्भाव नहीं उत्पन्न हो सका और न ही उभर सकी राष्ट्रीयता।
बाबरी मस्जिद को ढहाये जाने के बाद से ही आपसी समझौते के प्रयास होते रहे हैं, प्रयास तो पहले भी होते रहे हैं। यह मसला दोनों कौमों से जुड़ा है, इसलिये इसके समाधान का सबसे अच्छा तरीका बातचीत ही है। अब तक इस विवाद के न सुलझने के अनेक कारण हंै, सबसे महत्वपूर्ण तो यही है कि कुछ राजनीति के लोग एवं दल अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए इस विवाद को जिन्दा रखना चाहते हैं। यह तो जाहिर है कि दोनों ही तरफ दिलों में गहरी गांठें बनी हुई हैं, कुछ घटनाक्रम भी ऐसे हो चुके हैं कि समझौते के प्रयास कुछ दूरी चलकर ही घुटने टेक देते हैं। असल में इसके लिये जिस तरह के त्याग एवं जिस तरह की खोने की तैयारी चाहिए, वह दोनों ओर ही नजर नहीं आ रही है। समझौते का मतलब ही कुछ पाना, कुछ खोना होता है। कभी-कभी स्थितियां ऐसी भी बन जाती हैं जब कुछ खोकर पाया जाता है। यह तो मानकर चलना ही होगा राम मन्दिर का निर्माण इतना आसान नहीं है। भले ही केन्द्र या प्रदेश में भाजपा की सरकार क्यों न हो।
बहरहाल, अब योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके हैं। केन्द्र में नरेन्द्र मोदी का जादू सर चढ़कर बोल रहा है। इस समस्या के समाधान की संभावनाएं काफी उजली प्रतीत हो रही है। क्योंकि नया भारत बनाने की पहली सीढ़ी साम्प्रदायिक सौहार्द एवं आपसी भाईचारा ही है। सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के मुद्दे को हमेशा उछाला है, उस पर खूब राजनीति की है, अपने लाभ एवं नुकसान के गणित पर उसने इस मामले को ठण्डे बस्ते में भी बरसों तक रखा है। अब भी यदि इस विवाद का कोई समाधान नहीं होता है तो फिर कब होगा? सबको सन्मति दे भगवान!
बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद एक राजनीतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-धार्मिक विवाद है जो नब्बे के दशक में सबसे ज्यादा उभार पर था। इस विवाद का मूल मुद्दा हिंदू देवता राम की जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद की स्थिति को लेकर है। विवाद इस बात को लेकर है कि क्या हिंदू मंदिर को ध्वस्त कर वहां मस्जिद बनाया गया या मंदिर को मस्जिद के रूप में बदल दिया गया। हिन्दुओं की मान्यता है कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ था और उनके जन्मस्थान पर एक भव्य मन्दिर विराजमान था जिसे मुगल आक्रमणकारी बाबर ने तोड़कर वहाँ एक मस्जिद बना दी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद और भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में इस स्थान को मुक्त करने एवं वहाँ एक नया मन्दिर बनाने के लिये एक लम्बा आन्दोलन चला। 6 दिसम्बर सन् 1992 को यह विवादित ढ़ांचा गिरा दिया गया और वहाँ श्रीराम का एक अस्थायी मन्दिर निर्मित कर दिया गया। इस विवाद का समाधान पहले स्वयं को देखने से ही संभव हो सकता है। एक अंगुली दूसरे की ओर उठाने पर तीन अगुलियां स्वयं की ओर उठती हैं।
इस तरह बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि का विवाद सुदीर्घ काल से भारतीय मनमस्तिष्क को न केवल झकझोरता रहा है बल्कि अशांति, हिंसा, नफरत एवं द्वेष का कारण भी बनता रहा है। देश की जनता अब इसका समाधान चाहती है। क्योंकि लम्बे समय से  साम्प्रदायिक सौहार्द एवं अपासी भाईचारें का आश्वासन, शांति का आश्वासन, उजाले का भरोसा सुनते-सुनते लोग थक गए हैं। अब तो समाधान, शांति व उजाला हमारे सामने होना चाहिए। इन्तजार मंे कितनी पीढ़ियां गुजारनी होंगी? इस अभूतपूर्व संकट के लिए अभूतपूर्व समाधान खोजना ही होगा। बहुत लोगों का मानना है कि जिनका अस्तित्व और अस्मिता ही दांव पर लगी हो, उनके लिए नैतिकता और जमीर जैसी संज्ञाएं एकदम निरर्थक हैं। सफलता और असफलता तो परिणाम के दो रूप हैं और गीता कहती है कि परिणाम किसी के हाथ में नहीं होता। पर जो अतीत के उत्तराधिकारी और भविष्य के उत्तरदायी हैं, उनको दृढ़ मनोबल और नेतृत्व का परिचय देना होगा, पद, पार्टी, पक्ष, प्रतिष्ठा एवं पूर्वाग्रह से ऊपर उठकर। अन्यथा वक्त इसकी कीमत सभी दावों व सभी लोगों से वसूल कर लेगा।
भारत की विविधता और बहुलता की रक्षा होनी ही चाहिए, क्योंकि यह हमारी ताकत है और इसी का तकाजा है कि हम साथ जीने, साथ बढ़ने के अपने अधिकार और कर्तव्य को पहचानें। ईश्वर की पूजा एवं खुदा की इबादत होनी ही चाहिए और इसके लिये मन्दिर भी बनना चाहिए और मस्जिद की भी व्यवस्था होनी ही चाहिए। दोनों मजहबों के मिलने से, मिलकर रहने से ही भारतीयता मजबूत होगी, यह बात हम जितनी जल्दी और जितनी अच्छी तरह समझ लेंगे, उतना ही हमारा देश सुदृढ़ होगा। एक भारतीय के रूप में गर्व से जीना एवं देश को मजबूत करना है तो इस मुश्किल से पार पाना ही होगा। इसके प्रयास दोनों सम्प्रदाय के लोग कर रहे हैं, यह खुशी की बात है। भगवान महावीर जयंती पर आयोजित एक समारोह में अनेक प्रख्यात मुस्लिम संगठनो के प्रतिनिधियों ने गाय को राष्ट्रीय प्राणी घोषित करने की मांग करते हुए अवैध बूचडखानों पर प्रतिबन्ध को जायज बताया। अखिल भारतीय इमाम संगठन के अध्यक्ष इमाम उमेर अहमद इलियासी, संबल उत्तर प्रदेश से मदरसा मौलाना मोहम्मद अली जौहर, हाजी शकील सैफी व अनेक धर्मगुरुओं ने गौ रक्षा व गौसेवा को धर्म संगत बताया। इन्हीं लोगों ने बातचीत के जरिये मन्दिर-मस्जिद विवाद को सौहार्दपूर्ण वातावरण में हल करने का संकल्प व्यक्त किया, इस तरह की घटनाओं से ही रास्ता निकलेगा।
साम्प्रदायिक समस्या का हल तो तभी प्राप्त हो सकेगा जब इस बात को सारे देश के मस्तिष्क में बहुत गहराई से बैठा दिया जाए कि भारतवर्ष की अपनी सांस्कृतिक विशिष्टता है और उसको आत्मसात करने में ही सबका हित है। हिन्दू और मुसलमान दोनों को ही जब इस देश में रहना है तो दोनों को ही अपनी-अपनी मानसिकता बदलनी होगी। क्यों न राम भक्त अयोध्या में मस्जिद बना दें और क्यों न खुदा के बंदे अयोध्या में मंदिर बना दें। ऐसा करने वाला कभी कुछ खोता नहीं, हमेशा पाता ही है चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान हो। खुशी-खुशी खोकर पाने की यह परंपरा ही भारत की संस्कृति है। जिस पर गर्व करने का हक हर हिंदुस्तानी को है। एक-दूसरे को नीचा दिखाकर नहीं, एक-दूसरे को ऊंचा उठाने की ईमानदार कोशिश से ही हम एक सच्चे भारतीय समाज की परंपरा, सभ्यता और संस्कृति को आकार दे सकते हैं, समाज के ताने-बाने को मजबूत बना सकते हैं। हम मंदिर और मस्जिद दोनों बनाकर सदियों तक देश में साम्प्रदायिक भाईचारे को प्रगाढ़ कर देंगे। काश! ऐसा हो जाए तो सर्वधर्म समभाव ही नहीं सद्भाव भी स्थापित हो जाएगा। इसके लिये मोदीजी एवं योगीजी को कोई ऐसा रास्ता निकालना होगा, जिससे हमारी राष्ट्रीयता एवं संस्कृति जीवंत हो जाए। राष्ट्रीय आदर्शों, राष्ट्रीय प्रतीकों और राष्ट्रीय मान्यताओं की परिभाषा खोजने के लिए और कहीं नहीं, अपनी विरासत में झांकना होगा, अपने अतीत मंे खोजना होगा। हमें राष्ट्रीय स्तर से सोचना चाहिए वरना इन त्रासदियों से देश आक्रांत होता रहेगा।
ललित गर्ग

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