क्या कांग्रेस गरीबों को न्याय दिलाने के नाम पर फर्जी आंकड़ा बताकर चुनाव के पहले ही भविष्य में घोटाला करने की तैयारी कर रही है? 5 करोड़ परिवारों को 12 हजार रूपए प्रति माह देने के लिए साल में साढ़े तीन लाख करोड़ का भार पड़ने की संभावना जताई जा रही, जबकि गरीब परिवारों की संख्या मात्र पांचवां हिस्सा, 1 करोड़ के करीब है। ऐसे में क्या ढ़ाई लाख करोड़ का घोटाला करने की रणनीति बनाई जा रही है?
लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को रिझाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने घोषणा की है कि जब सरकार बनेगी तो देश के 20 प्रतिशत आबादी जो ग़रीबी रेखा के नीचे रहती है याने 5% परिवार को प्रति माह 12,000 ₹ की दर से न्यूनतम वेतन की गारंटी दी जाएगी। कांग्रेस पार्टी से न्याय योजना के रूप में प्रचारित कर रही है लेकिन इस योजना में गंभीर त्रुटियां है सबसे बड़ी त्रुटि ग़रीबी रेखा के बीच रहने वाले लोगों की संख्या को लेकर है।
रंगराजन समिति के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 32 रूपये और शहरी क्षेत्रों में 47 रूपये प्रतिदिन खर्च करने वालों को गरीबी रेखा रसे बाहर रखा गया और 2014 में इस नए मानदंड के अनुसार गरीबी रेखा में 30 फीसदी गिरावट की बात कहीं गई।वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भी वर्ष 2004 से 2011 के बीच भारत में गरीब लोगों की संख्या 38.9 फीसदी से घट कर 21.2 फीसदी रह गई. दूसरी ओर, अमेरिकी शोध संस्था की ओर से भारत में गरीबी को लेकर सितंबर 2018 को जारी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले कुछ साल में भारत में गरीबों की संख्या बेहद तेजी से घट रहे हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि भारत के ऊपर से सबसे ज्यादा गरीब देश होने का ठप्पा भी खत्म हो गया है. देश में हर मिनट 44 लोग गरीबी रेखा के ऊपर निकल रहे हैं. यह दुनिया में गरीबी घटने की सबसे तेज दर है. यह दावा अमेरिकी शोध संस्था ब्रूकिंग्स के ब्लॉग, फ्यूचर डेवलपमेंटमें जारी एक रिपोर्ट में किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार देश में 2022 तक 03 फीसदी से कम लोग ही गरीबी रेखा के नीचे होंगे.
रिपोर्ट के अनुसार मई 2018 के आकड़े लिये जाए तो भारत में घोर दरिद्रता की स्थिति में रहनेवालों की संख्या 7.30 करोड़ है। देश में प्रति मिनट 44 लोग ग़रीबी रेखा से ऊपर निकल रहे हैं, ऐसा है तो मई 2019 तक 2 करोड़ 31, लाख से अधिक लोग ग़रीबी रेखा से ऊपर जा चुके होंगे। इसका मतलब 2019 जून-जुलाई तक गरीबों की कुल संख्या पाँच करोड़ से कम होगी।गरीब परिवारों की संख्या 1 करोड़ होगी। जब देश के आर्थिक विकास के कारण ग़रीबी धीरे धीरे समाप्त हो रही है तो कांग्रेस पार्टी को अब 12, हज़ार रूपये के न्यूनतम आय जैसी योजना की क्या आवश्यकता है? महत्वपूर्ण बात यह है कि 2014 में कुल ग़रीबी संख्या देश में बीस प्रतिशत थी तो निश्चित यह 2019 आते आते और कम हो गयी है, ऐसे में कांग्रेस पार्टी अभी भी गरीबों की संख्या बीस प्रतिशत मानकर कैसे चल रही है?
ऐसा पूर्व में भी देखा गया है कांग्रेस पार्टी के शासन के दौरान बड़ी संख्या में फ़र्ज़ी राशन कार्ड और दूसे हथकंडों से सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी का दुरुपयोग किया गया है।यह भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा स्रोत रहा है। 2014 के बाद देश में काला धन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक मुहिम छेड़ा गया, उसमें कांग्रेस शासनकाल के और भी छिपे हुए भ्रष्टाचार सामने आए। गरीबों की योजनाओं में प्रति वर्ष 50,000 करोड़ रूपए सरकार के ओहदेदार हजम कर जाते थे। एक उदाहरण वर्ष 2018 तक डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर से 82,985 करोड़ रुपये की बचत हो चुकी है। डीबीटी योजना के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस के तहत जोड़ने से बीते जनवरी, 2018 से पहले के दस महीनों में 12,792 करोड़ रुपये की बचत हुई है। गौरतलब है कि सरकार ने 2,75 करोड़ नकली और बिना पहचान के राशन कार्ड को हटा दिया है। सरकार की इस सख्ती के कारण डीबीटी के तहत पीडीएस का कुल बचत 38, 877 करोड़ रुपये हो गया है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुमान के अनुसार 10 प्रतिशत जॉब कार्ड फर्जी है। मनरेगा में भी जनवरी, 2018 तक अब तक कुल 15, 374 करोड़ रुपये की बचत हो चुकी है।इसका मतलब है कि कांग्रेस सरकार में फर्जी गरीबों के आंकड़े बताकर भ्रष्टाचार किया जाता था।
लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को रिझाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने घोषणा की है कि जब सरकार बनेगी तो देश के 20 प्रतिशत आबादी जो ग़रीबी रेखा के नीचे रहती है याने 5% परिवार को प्रति माह 12,000 ₹ की दर से न्यूनतम वेतन की गारंटी दी जाएगी। कांग्रेस पार्टी से न्याय योजना के रूप में प्रचारित कर रही है लेकिन इस योजना में गंभीर त्रुटियां है सबसे बड़ी त्रुटि ग़रीबी रेखा के बीच रहने वाले लोगों की संख्या को लेकर है।
रंगराजन समिति के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 32 रूपये और शहरी क्षेत्रों में 47 रूपये प्रतिदिन खर्च करने वालों को गरीबी रेखा रसे बाहर रखा गया और 2014 में इस नए मानदंड के अनुसार गरीबी रेखा में 30 फीसदी गिरावट की बात कहीं गई।वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भी वर्ष 2004 से 2011 के बीच भारत में गरीब लोगों की संख्या 38.9 फीसदी से घट कर 21.2 फीसदी रह गई. दूसरी ओर, अमेरिकी शोध संस्था की ओर से भारत में गरीबी को लेकर सितंबर 2018 को जारी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले कुछ साल में भारत में गरीबों की संख्या बेहद तेजी से घट रहे हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि भारत के ऊपर से सबसे ज्यादा गरीब देश होने का ठप्पा भी खत्म हो गया है. देश में हर मिनट 44 लोग गरीबी रेखा के ऊपर निकल रहे हैं. यह दुनिया में गरीबी घटने की सबसे तेज दर है. यह दावा अमेरिकी शोध संस्था ब्रूकिंग्स के ब्लॉग, फ्यूचर डेवलपमेंटमें जारी एक रिपोर्ट में किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार देश में 2022 तक 03 फीसदी से कम लोग ही गरीबी रेखा के नीचे होंगे.
रिपोर्ट के अनुसार मई 2018 के आकड़े लिये जाए तो भारत में घोर दरिद्रता की स्थिति में रहनेवालों की संख्या 7.30 करोड़ है। देश में प्रति मिनट 44 लोग ग़रीबी रेखा से ऊपर निकल रहे हैं, ऐसा है तो मई 2019 तक 2 करोड़ 31, लाख से अधिक लोग ग़रीबी रेखा से ऊपर जा चुके होंगे। इसका मतलब 2019 जून-जुलाई तक गरीबों की कुल संख्या पाँच करोड़ से कम होगी।गरीब परिवारों की संख्या 1 करोड़ होगी। जब देश के आर्थिक विकास के कारण ग़रीबी धीरे धीरे समाप्त हो रही है तो कांग्रेस पार्टी को अब 12, हज़ार रूपये के न्यूनतम आय जैसी योजना की क्या आवश्यकता है? महत्वपूर्ण बात यह है कि 2014 में कुल ग़रीबी संख्या देश में बीस प्रतिशत थी तो निश्चित यह 2019 आते आते और कम हो गयी है, ऐसे में कांग्रेस पार्टी अभी भी गरीबों की संख्या बीस प्रतिशत मानकर कैसे चल रही है?
ऐसा पूर्व में भी देखा गया है कांग्रेस पार्टी के शासन के दौरान बड़ी संख्या में फ़र्ज़ी राशन कार्ड और दूसे हथकंडों से सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी का दुरुपयोग किया गया है।यह भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा स्रोत रहा है। 2014 के बाद देश में काला धन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक मुहिम छेड़ा गया, उसमें कांग्रेस शासनकाल के और भी छिपे हुए भ्रष्टाचार सामने आए। गरीबों की योजनाओं में प्रति वर्ष 50,000 करोड़ रूपए सरकार के ओहदेदार हजम कर जाते थे। एक उदाहरण वर्ष 2018 तक डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर से 82,985 करोड़ रुपये की बचत हो चुकी है। डीबीटी योजना के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस के तहत जोड़ने से बीते जनवरी, 2018 से पहले के दस महीनों में 12,792 करोड़ रुपये की बचत हुई है। गौरतलब है कि सरकार ने 2,75 करोड़ नकली और बिना पहचान के राशन कार्ड को हटा दिया है। सरकार की इस सख्ती के कारण डीबीटी के तहत पीडीएस का कुल बचत 38, 877 करोड़ रुपये हो गया है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुमान के अनुसार 10 प्रतिशत जॉब कार्ड फर्जी है। मनरेगा में भी जनवरी, 2018 तक अब तक कुल 15, 374 करोड़ रुपये की बचत हो चुकी है।इसका मतलब है कि कांग्रेस सरकार में फर्जी गरीबों के आंकड़े बताकर भ्रष्टाचार किया जाता था।