सामाजिक समन्वय की संवाहक है हिंदी
या
राष्ट्रीय एकता का बोध दिलाती है हिंदी
डॉ. शंकर सुवन सिंह
एक से अधिक लोगों के समुदायों से मिलकर बने एक वृहद समूह को समाज कहते हैं, जिसमें
सभी व्यक्ति मानवीय क्रिया-कलाप करते हैं। मानवीय क्रिया-कलाप में आचरण, सामाजिक
सुरक्षा और निर्वाह आदि की क्रियाएं सम्मिलित होती हैं। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। मनुष्य
सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है। अन्य प्राणियों की मानसिक शक्ति की अपेक्षा मनुष्य की
मानसिक शक्ति अत्यधिक विकसित है। समाज रूपी मकान जब भाषा रूपी स्तम्भ पर खड़ा
होता है तो ऐसा समाज सौम्यता, समानता और शांति का प्रतीक होता है। भाषाई आधार
पर समाज जुड़ते हैं। भिन्न भिन्न वर्गों के लोग एक भाषा के आधार पर समन्वय स्थापित
करते है। यही भाषा हिंदी कहलाती है। हिंदी भाषा किसी भी समाज में अभिव्यक्ति का
आधार है। हिंदी किसी भी समाज के लिए एक वरदान है। मनुष्य की वागिंद्रिय(वोकल
ऑर्गन)द्वारा उच्चरित ध्वनियाँ ही भाषा कहलाती है। जिसका प्रयोग समाज में करते हैं। हिंदी
मनुष्य की रचनात्मक यात्रा का संसाधन है। हिंदी संपर्क और संवाद का केंद्र बिंदु है। बिना
संपर्क और संवाद के किसी भी राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती है। अतएव हिंदी भाषा
सामाजिक समन्वय का सूत्रधार है। हिंदुस्तान में बोली जाने वाली भाषा में हिंदी सबसे
अग्रणी है। संपूर्ण भारत में प्रतिवर्ष सत्र 1953 ई. से 14 सितंबर को 'हिन्दी दिवस' के रूप में
मनाया जाता है। हिन्दी विश्व में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में से एक है। यह विश्व की
प्राचीन, समृद्ध और सरल भाषा रही है। वह दुनियाभर में हमें सम्मान भी दिलाती है। यह
भाषा है हमारे सम्मान, स्वाभिमान और गर्व की। हिन्दी ने हमें विश्व में एक नई पहचान
दिलाई है। हिन्दी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है। हिन्दी
हिन्दुस्तान की भाषा है। राष्ट्रभाषा/राजभाषा किसी भी देश की पहचान और गौरव होती है।
हिन्दी हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरोती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक,साक्षर से निरक्षर
तक प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति हिन्दी भाषा को आसानी से बोल-समझ लेता है। यही इस भाषा
की पहचान भी है कि इसे बोलने और समझने में किसी को कोई परेशानी नहीं होती। यह
भाषा युवाओं को उनकी जड़ों के बारे में याद दिलाने का एक तरीका है। कोई फर्क नहीं
पड़ता कि हम कहाँ पहुंचते हैं और हम क्या करते हैं, अगर हम अपनी जड़ों के साथ रहते हैं,
तो हम अचूक रहते हैं। प्रत्येक वर्ष, ये दिन हमें हमारी वास्तविक पहचान की याद दिलाता
है और हमें अपने देश के लोगों के साथ एकजुट करता है। हिंदी भाषा को लेकर राज्यों में
विवाद तक हो चुके हैं। हिंदी स्तब्ध है। हिन्दी बहुत दुखी है। हिंदी की पहचान भारत देश से
है। हिंदी हिदुस्तान की माटी से है। हिंदी, देश के कण-कण से हैं। हिंदी भाषा सब पर राज
करती है। अतएव हम कविता के रूप में कह सकते हैं कि "हिंदी है वो शब्द, जिसका है सब
पर वश। हिंदी है वो शब्द, जिसकी कोई नहीं है शर्त। हिंदी विरोधी, विरोध करें और करैं न
कुछ काम। आंदोलन कर दंगा करें, करैं न हिंदी सम्मान। देश को तोड़ा न की जोड़ा। ऐसे
लोगों ने ही तो हिंदी को किया बदनाम।“ हिंदी को अपने ही देश में बेइज्जत कर दिया जाता
है। कहने को संविधान के अनुच्छेद 343 में हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। अनुच्छेद
351 के अनुसार संघ का यह कर्तव्य है कि वह हिंदी का प्रसार बढ़ाएं। आज यह सब क्यों
कहना पड़ रहा है? क्योंकि हिंदी का किसी 'राज्य-विशेष' में किसी की 'जुबान' पर आना
अपराध हो सकता है। अमीर खुसरो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने हिंदी में कविता लिखी थी।
हिंदी भाषा के इतिहास पर आधारित काव्य रचना सर्वप्रथम एक फ्रांस के लेखक ने की थी।
इस रचना का नाम था 'ग्रासिन द तैसी'। अमेरिका की 45 विश्वविद्यालय सहित समूचे
विश्व के करीब 175 विश्वविद्यालय ऐसे हैं जहां पर हिंदी में पढ़ाई की जाती है। हिंदी भाषा
70 प्रतिशत गांवों की अमराइयों में महकती है। हिंदी लोकगीतों की सुरीली तान में गुंजती
है। हिंदी नवसाक्षरों का सुकोमल सहारा है। हिंदी अभिव्यक्ति का स्पंदन है। अतएव कविता
के रूप में हम कह सकते हैं कि- "अब हुआ हिंदी का अभिवादन और नारा हुआ बुलंद। मान है
सम्मान है, हिंदी पर हमे अभिमान है। हिंदी है उस देश की भाषा जिस देश में बहती है गंगा
जमुना की धारा। हिंदी-हिंदुस्तान का गठबंधन है पावन, जैसे राम लक्ष्मण का हो रिश्ता
पावन। कर कुछ ऐसा, जिस दर पर हो हिंदी हमेशा। हिंदी है वो शब्द जिसका है सब पर
वश….हिंदी है वो शब्द जिसका है सब पर वश।” हिंदी आपकी सबकी-अपनी है। हिंदी
दिखावे की भाषा नहीं है। हिंदी झगड़ों की भाषा भी नहीं है। आज के समय में हिंदी भाषा के
ऊपर अंग्रेजी भाषा के शब्दों का ज्यादा असर पड़ा हैं। आज के समय में अंग्रेजी भाषा ने
अपनी जड़े ज्यादा घेर ली हैं। हिंदी भाषा के भविष्य में खो जाने की चिंतायें बढ़ गयी हैं। जो
लोग हिंदी भाषा में ज्ञान रखते हैं उन्हें हिंदी के प्रति अपने जिम्मेदारी का बोध करवाने के
लिये इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता हैं जिससे वे सभी अपने कर्तव्यों का
सही पालन करके हिंदी भाषा के गिरते हुए स्तर को बचा सकें। हिन्दी भाषा को आज भी
संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा भी नहीं बनाया जा सका है। हालात ऐसे आ गए हैं कि हिंदी भाषा
को हिंदी दिवस के मौके पर सोशल मीडिया पर आज भी “हिंदी में बोलो” करके शब्दों का
प्रयोग करना पड़ रहा हैं। कम से कम हिंदी दिवस के मौके पर तो हिंदी में बात-चीत करे
जिससे हिंदी भाषा को कुछ सम्मान मिल सकें। एक स्वतंत्र देश की खुद की एक भाषा होती
है, जो उस देश का मान-सम्मान और गौरव होती है। भाषा और संस्कृति ही उस देश की
असली पहचान होती है। भाषा ही एक ऐसा जरिया है, जिसकी मदद से हम अपने विचारों
का आदान-प्रदान कर सकते हैं। विश्व में कई सारी भाषाएँ बोली जाती है, जिसमें हिंदी
भाषा का विशेष महत्व है। हिंदी सिर्फ एक भाषा का काम ही नहीं करती है। यह सभी लोगों
को एक दूसरे को आपस में जोड़े रखने का काम भी करती है। हिंदी सिर्फ भारत में ही नहीं
बल्कि पूरे विश्व में बोली जाने वाली भाषा है। इसका अध्ययन विदेशों में भी होता है और
विश्व के कोने-कोने से लोग भारत सिर्फ हिंदी सिखने के लिए आते है। ऐसा माना जाता है कि
संस्कृत भाषा का सरलतम रूप हिंदी भाषा ही है। हिंदी भाषा में संस्कृत के काफ़ी शब्दों का
समावेश देखने को मिल जाएगा। इसकी लिपि देवनागरी लिपि है। विश्व में कुल 3 हजार
भाषाएं बोली जाती है, उनमें से हिंदी एक भाषा है। रूप या आकृति के आधार पर हिंदी
वियोगात्मक भाषा है। भारत देश में 4 भाषा के परिवार मिलते है, जो भारोपीय, द्रविड़,
ऑस्ट्रिक व चीनी तिब्बती है। भारत में सबसे अधिक बोला जाने वाला भाषा परिवार
भारोपीय परिवार है। यह भाषा की आदि जननी संस्कृत है। संस्कृत पाली, प्राकृतिक भाषा
से होती हुई और अपभ्रंश तक पहुंचती है। फिर अपभ्रंश से गुजरती हुई प्राचीन/प्रारंभिक
हिंदी का रूप लेती है। सामान्यता हिंदी भाषा के इतिहास का आरंभ अपभ्रंश से माना जाता
है। हिंदी भाषा का विकास क्रम इस प्रकार है- संस्कृत⇾ पालि⇾ प्राकृत⇾ अपभ्रंश⇾
अवहट्ट⇾ प्राचीन/प्रारम्भिक हिन्दी। यह एक ऐसी भाषा है, जो सभी धर्मों के लोगों को जोड़े
रखने का काम करती है। हिंदी एक भाषा का काम ही नहीं करती, बल्कि यह एक देश की
संस्कृति, वेशभूषा, रहन सहन, पहचान आदि को भी व्यक्त करती है। हिन्दी भाषा के विकास
में संतों, महात्माओं तथा उपदेशकों का योगदान भी कम नहीं आंका जा सकता। क्योंकि ये
आम जनता के अत्यंत निकट होते हैं। इनका जनता पर बहुत बड़ा प्रभाव होता है। उत्तर
भारत के भक्तिकाल के प्रमुख भक्त कवि सूरदास, तुलसीदास तथा मीराबाई के भजन
सामान्य जनता द्वारा बड़े शौक से गाए जाते हैं। इसकी सरलता के कारण ही ये कई लोगों
को कंठस्थ हैं। इसका प्रमुख कारणहिन्दी भाषा की सरलता, सुगमता तथा स्पष्टता है।
संतों-महात्माओं द्वारा प्रवचन भी हिन्दी में ही दिए जाते हैं। क्योंकि अधिक से अधिक लोग
इसे समझ पाते हैं। उदाहरण के रूप में दक्षिण-भारत के प्रमुख संत वल्लभाचार्य, विट्ठल
रामानुज तथा रामानंद आदि ने हिन्दी का प्रयोग किया है। महाराष्ट्र के संत नामदेव, संत
ज्ञानेश्वर आदि, गुजरात प्रांत के नरसी मेहता, राजस्थान के दादू दयाल तथा पंजाब के गुरु
नानक आदि संतों ने अपने धर्म तथा संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए एकमात्र सशक्त
माध्यमहिन्दी को बनाया। हिंदी दिवस के बहाने ही सही हम अपनीहिन्दी को सहेजे,
संवारे और प्रसारित करें। आधुनिक काल में मनुष्य अपनी सभ्यता तथा संस्कृति को खो
दिया है। भारतीय संस्कृति एक सतत संगीत है। संस्कृति, संस्कार से बनती है। सभ्यता बनती
है नागरिकता से। किसी भी नागरिक की पहचान उसकी भाषा से ही होती है। किसी भी देश
की नागरिकता का सम्बन्ध उस देश की भाषा से होता है। संस्कृति व सभ्यता ही मानवता
का पाठ पढाती है। संस्कृति आशावाद सिखाती है। संस्कृति का दर्शन से घनिष्ठ सम्बन्ध है।
दर्शन जीवन का आधार है। संस्कृति बौद्धिक व मानसिक विकास में सहायक है। कवि
रामधारी सिंह दिनकर के अनुसार संस्कृति जीवन जीने का तरीका है। भारत का संस्कृति
शब्द संस्कृत भाषा से आया। संस्कृति शब्द का उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है। ऐतरेय,
ऋग्वेद का ब्राह्मण ग्रन्थ है। ऋग्वेद संपूर्ण ज्ञान व ऋचाओं (प्रार्थनाओं) का कोष है। ऋग्वेद
मानव ऊर्जा का स्रोत है। हिंदी भाषा हिंदुस्तान की संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है। हिंदी
राष्ट्रीय एकता का बोध दिलाती है। अतएव हम कह सकते है कि हिंदी सामाजिक समन्वय
की संवाहक है।
लेखक
डॉ. शंकर सुवन सिंह
वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विचारक