– मार्लन पीटरसन, सामाजिक कार्यकर्ता
कैरेबियाई सागर का एक छोटा सा देश है त्रिनिदाद और टोबैगो। द्वीपों पर बसे इस मुल्क को 1962 में आजादी मिली। मार्लन के माता-पिता इसी मुल्क के मूल निवासी थे। उन दिनों देश की माली हालत अच्छी नहीं थी। परिवार गरीब था। लिहाजा काम की तलाश में वे अमेरिका चले गए।
मार्लन का जन्म बर्कले में हुआ। तीन भाई-बहनों में वह सबसे छोटे थे। अश्वेत होने की वजह से परिवार को अमेरिकी समाज में ढलने में काफी मुश्किलें झेलनी पड़ीं। सांस्कृतिक और सामाजिक दुश्वारियों के बीच जिंदगी की जद्दोजहद जारी रही। शुरूआत में मार्लन का पढ़ाई में खूब मन लगता था, पर बाद में मन उचटने लगा। उनकी दोस्ती कुछ शरारती लड़कों से हो गई। माता-पिता को भनक भी नहीं लग पाई कि कब बेटा गलत रास्ते चल पड़ा?
अब उनका ज्यादातर वक्त दोस्तों के संग मौज-मस्ती में गुजरने लगा। पापा की डांट-फटकार भी उन पर कोई असर नहीं होता था। किसी तरह स्नातक की डिग्री हासिल की। मां बेसब्री से उस दिन का इतंजार कर रही थीं, जब बेटा पढ़ाई पूरी करके नौकरी करेगा और परिवार की जिम्मेदारी संभालेगा। मगर एक दिन अचानक उनका सपना टूट गया, जब खबर आई कि पुलिस ने मार्लन को पकड़ लिया है। उनके ऊपर टैªफिक नियम तोड़ने का आरोप था। गिरफ्तारी के दौरान पुलिस ने अच्छा सुलूक नहीं किया उनके साथ। अश्वेत होने के नाते अपमानजनक टिप्पणियां सुननी पड़ी। जुर्माना भरने के बाद वह छूट गए। पापा ने खूब समझाया, मगर उन्हें अपनी गलती का जरा भी एहसास नहीं था।
इसके बाद तो उनका व्यवहार और उग्र भी हो गया। इस घटना के करीब एक वर्ष बाद पुलिस ने उन्हें दोबारा पकड़ लिया। इस बार उन पर एक संगीन जुर्म का आरोप था। दरअसल, बर्कले सिटी के एक मशहूर काॅफी हाउस में लूट की कोशिश हुई थी और फायरिंग भी। इस वारदात में दो लोग मारे गए थे। पुलिस ने दो दोस्तों के साथ मार्लन को गिरफ्तार किया। कोर्ट में साबित हो गया कि मार्लन और उनके दोस्तों ने ही फायरिंग की थी। जज ने उन्हें 12 साल की सजा सुनाई।
जेल की सलाखों के पीछे पहुंचकर मार्लन को एहसास हुआ कि उन्होंने कितना गलत किया? यह सोचकर उनका दिल बेचैन हो उठा कि उनकी वजह से परिवार वालों को कितना कुछ सहना पड़ेगा। 12 साल तक जेल में कैसे रहंूगा, यह सोचकर उनका दिल बैठने लगा। एक-एक दिन मुश्किल से बीता। उन्हीं दिनों जेल में कैदी-सुधार कार्यक्रम के तहत उन्हें स्कूली बच्चों से मिलने का मौका मिला। इस मुलाकात ने उन्हें नई दिशा दी। मार्लन कहते हैं- बच्चों से मिलकर एहसास हुआ कि जिंदगी अभी बाकी है। कार्यक्रम के दौरान एक स्कूल टीचर ने उनसे कहा कि आप मेरे क्लास के बच्चों के लिए प्रेरक खत लिखिए। पहले तो उन्हें समझ में नहीं आया कि वह बच्चों को क्या संदेश दें? मगर जब कलम और कागज हाथ में आया, तो ढेरों ख्याल उमड़ने लगे। खत में उन्होंने बच्चों को जिंदगी की अहमियत समझाते हुए नेक रास्ते पर चलने की सलाह दी। मार्लन बताते हैं- 13 साल की एक बच्ची ने मुझे जवाबी खत भेजा। उसमें लिखा था, आप मेरे हीरो हैं। यह पढ़कर बहुत अच्छा लगा। मैंने तय किया कि मैं ऐसा कुछ करूंगा, ताकि हकीकत में मैं लोगों का हीरो बन जाऊं।
वैसे तो जेल में बिजली मैकेनिक, कपड़ों की सिलाई आदि के काम भी सिखाए जाते थे, मगर उन्हें लिखने-पढ़ने का काम ज्यादा दिलचस्प लगा। नई उम्मीद के साथ वह सजा पूरी होने का इंतजार करने लगे। जेल में अच्छे व्यवहार के कारण उनकी सजा दो साल कम हो गई। दिसंबर 2009 में वह जेल से रिहा हुए। तब उनकी उम्र करीब 30 साल थी। मार्लन कहते हैं- जेल से बाहर आया, तो मम्मी-डैडी सामने खड़े थे। अच्छा लगा यह जानकर कि वे बीते दस साल से मेरे इंतजार में जी रहे थे। लंबे अरसे के बाद घर का खाना खाया। तब समझ में आया कि इंसान के लिए घर-परिवार का प्यार कितना जरूरी है।
रिहाई के बाद उन्होंने बंदूक विक्रेता लाॅबी के खिलाफ अभियान शुरू किया। दरअसल, अमेरिका में खुले बाजार में बिना लाइसेंस के बंदूक का मिलना एक बडी समस्या है। आए दिन सार्वजनिक जगहों पर गोलीबारी की घटनाएं होती हैं। मार्लन कहते हैं- वहां नौजवान मामूली बातों पर गोली चला देते हैं। एंटी-गन मुहिम में मुझे लोगों का भरपूर साथ मिला। कुछ दिनों के बाद उन्होंने प्रीसीडेंशियल ग्रुप नाम से कंसल्टिंग फर्म की स्थापना की, जिसका मकसद पीड़ितों को सामाजिक न्याय दिलाना था। 2015 में एक स्काॅलरशिप प्रोग्राम के तहत सामुदायिक हिंसा पर काम करने का उन्हें मौका मिला। न्यूयाॅर्क यूनिवर्सिटी में आॅर्गेनाइजेशनल बिहेवियर में स्नातक कोर्स के लिए आवदेन किया। मार्लन बताते हैं- दोबारा पढ़ाई शुरू करना आसान न था। लोग शक की निगाहों से देखते थे। यूनिवर्सिटी बोर्ड ने एडमिशन से पहले कई सवाल किए। मैंने कहा, मैं अपनी गलती की सजा भुगत चुका हूं। आप मुझे दोबारा पढ़ने का मौका दीजिए। इन दिनों मार्लन युवाओं के बीच बतौर सामाजिक कार्यकर्ता और प्रेरक वक्ता काफी लोकप्रिय हैं।
प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी
साभार: हिन्दुस्तान