अमित त्यागी
किसानों की कर्जमाफ़ी के एक बड़े जटिल और भारी भरकम वादे को आखिरकार उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने खुद के वित्तीय संसाधनों से पूरा कर ही लिया। सरकार ने बेहतर राजकोषीय प्रबंधन दिखाते हुये किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया और सरकारी फिजूल खर्ची पर रोक लगाकर लक्ष्य को प्राप्त कर लिया। सरकार के बेहतर प्रबंधन को इस आंकड़े से समझा जा सकता है। पिछले वर्ष जो राजकोषीय घाटा 3.22 प्रतिशत था उसे इस वर्ष घटा कर 2.97 प्रतिशत तक लाया जा चुका है। अब अगर सरकार, सरकारी नीतियों की लीकेज रोकने में कामयाब हो गयी तो उसे इस बजट के बेहतर परिणाम प्राप्त होने तय हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने बजट में योगी के वस्त्रों की तरह भगवे का पूरा ध्यान रखा है। किसानो और धार्मिक जरूरतों को पूरा करता पहला बजट उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को मजबूत करने वाला बजट है। किन्तु इस बजट के पहले एक घटना ने पूरे बजट का रुझान और दिशा ही परिवर्तित कर दी।
उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था और माननीयों की सुरक्षा व्यवस्था तब तार तार हो गयी जब विधानसभा के अंदर विस्फोटक पदार्थ मिला। कोई ऐसा वैसा विस्फोटक नहीं। एक शक्तिशाली विस्फोटक पीईटीएन। मुख्यमंत्री ने इसे आतंकवादी साजिश मानते हुये जांच एनआईए को सौंप दी। जांच शुरू हुयी तो पता चला कि 100 सीसीटीवी में से 94 तो काम ही नहीं कर रहे थे। अब इस घटना को कौन अंजाम दे गया इसका पता लगाना भी मुश्किल हो गया। विपक्ष ने इसे सरकार की नाकामी बताया तो सत्ता पक्ष ने पिछली सरकार की लापरवाही। आरोप प्रत्यारोप हुये। पर इन सबके बीच उत्तर प्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था शर्मसार हुयी। इसके बाद मुख्यमंत्री के तेवर कड़े हुये। उन्होने सदस्यों को ताकीद कर दी कि किसी को भी सुरक्षा जांच करने में शर्म नहीं आनी चाहिए। उन्होने अपना एक संस्मरण सुनाया कि जब वह पहली बार विधानसभा में आए तब उन्होने देखा कि विधानसभा सदस्यों से ज़्यादा तो अन्य लोग इधर उधर घूम रहे थे।
अब, जब एक घटना के द्वारा सब की आँखें खुल चुकी है। तब, अब सरकार को चेत जाना चाहिए। यह एक ऐसा पाउडर था जिसको सूंघने में डॉग स्ञ्चवॉड भी चूक गया था। यह विस्फोटक स्कैनिंग मशीन की भी पकड़ में नहीं आता है। तो समझा जा सकता है कि आतंकवादियों की तैयारी सरकार की तैयारी से कितनी ज़्यादा है? अयोध्या में हुये हमले में मारे गए आतंकवादियों से मिली जानकारी के आधार पर यह अंदेशा सुरक्षा अजेंसियों को था कि कुछ स्लीपिंग मॉड्यूल सक्रिय हो सकते हैं किन्तु इनकी कोई पुख्ता जानकारी उनके पास भी नहीं थी। जिस स्तर की यह चूक है उसके अनुसार बिना विधानसभा के कर्मचारियों की मिली भगत के यह संभव नहीं था। इसके बाद आनन फानन में सभी कर्मचारियों के पुलिस वेरीफिकेशन का कह दिया गया। पुराने विधायकों के वाहन पास रद्द कर दिये गए। सदन में मोबाइल और बैग लाने पर रोक के विषय पर सत्ता और विपक्ष सहमत हो गए। और हों भी क्यों न। यह सिर्फ सरकार की विफलता का मामला नहीं था। यह सत्ता और विपक्ष की सुरक्षा का मामला था।
कानून व्यवस्था पर सरकार को घेरता विपक्ष :
कानून व्यवस्था के विषय पर अखिलेश सरकार की खूब किरकिरी हुयी थी। तत्कालीन विपक्ष भाजपा ने इस विषय को प्रमुखता के साथ चुनावी मुद्दा बनाया था। अब कानून व्यवस्था में जब भी कोई लचरता दिखाई देती है। सपा और बसपा तुरंत उस मुद्दे को लपक लेती हैं। रायबरेली में पाच ब्राह्मण युवकों की हत्या के द्वारा कांग्रेस और बसपा ने सरकार को घेर दिया था । सबसे पहले कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू ने कहा कि मौजूदा सरकार के राज में कानून-व्यवस्था पूरी तरह चौपट है। इसके बाद कांग्रेस के विधान परिषद सदस्य दिनेश सिंह और कांग्रेस से रायबरेली सदर की विधायक अदिति सिंह बोलीं, यह हत्या अपराधियों के बेखौफ होने की तरफ इशारा है। इसके बाद बारी थी मायावती की। 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर ब्राह्मण का वोट पा चुकी बहन जी ने इस घटना को ‘बीजेपी सरकार के जंगलराज की तरफ बढ़ते कदम’ की संज्ञा दी। अपने को पुनर्जीवित करने की कोशिश में लगी मायावती ने इस बात को पुष्ट करने की भी कोशिश की कि उत्तर प्रदेश में न सिर्फ जघन्य अपराधों से लोग त्रस्त हैं बल्कि जातिवादी और सांप्रदायिक तनाव के साथ नृशंस हत्याओं से प्रदेश दहल गया है। सहारनपुर में दलित समुदाय और रायबरेली में ब्राह्मण समुदाय की दुखती रगों पर हाथ रखकर बसपा के लिये सहानुभूति जुटाने की कोशिश में बहन जी लगातार लगी रहीं। लाचारी और छटपटाहट के बीच ऊहापोह की स्थिति में मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे का आधार राज्यसभा में बोलने न देना रहा।
यह मायावती के वही पुराने बगावती तेवर की बानगी था जब एक बार उन्होने जयप्रकाश नारायण को हरिजन शब्द प्रयोग करने पर खरी खरी सुनाई थी। उस समय मायावती का तर्क था कि दलितों के लिये संविधान प्रदत्त अनुसूचित जाति शब्द का प्रयोग करना चाहिए। उस समय अपने आक्रामक तेवर के कारण मायावती सुर्खियों में आ गयी थीं। वैसा ही किया अब मायावती ने, जब उन्होने दलित अस्मिता के नाम पर राज्यसभा की तिलांजलि दे दी। राजनैतिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो मायावती का राज्यसभा कार्यकाल 2018 में समाप्त हो रहा था। उनके दुबारा चुने जाने का आवश्यक गणित भी उनके प्रतिकूल था। 2014 के लोकसभा और 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा परिणामों ने उनका जनाधार हिला दिया था। ऐसे में अपने दलित वोट बैंक पर फिर से पकड़ बनाने के लिये उनके द्वारा किसी बड़े त्याग की आवश्यकता थी। राज्यसभा की सीट त्याग कर उन्होने वह कर दिया।
यदि राजनैतिक विश्लेषक के रूप में देखा जाये तो मायावती ने इस्तीफा देने में थोड़ी देर कर दी है। यदि वह सहारनपुर के घटनाक्रम के बाद राज्यसभा से इस्तीफा देतीं तो शायद ज़्यादा सहानुभूति बटोरती। कानून व्यवस्था के नाम पर भी उत्तर प्रदेश सरकार को वह कटघरे में खड़ा कर सकती थीं। पर वह चूक गईं। अब वह उतनी सहानुभूति नहीं बटोर पायीं। उनका भावनात्मक दांव एक राजनैतिक स्टंट बन कर रह गया। राष्ट्रपति चुनावों के बाद अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर और उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर लोकसभा सीट खाली होंगी। ऐसी संभावना बन रही है कि मायावती फूलपुर सीट से विपक्ष की संयुक्त प्रत्याशी बना दी जाये। किन्तु विपक्ष की संयुक्त प्रत्याशी बनने की राह भी आसान नहीं है। एक ओर अखिलेश यादव मायावती से करीबी दिखाते हैं तो दूसरी तरफ मुलायम सिंह के बिहार के राज्यपाल बनने की अटकले तेज़ हो जाती हैं। यह विरोधाभास ही उत्तर प्रदेश की राजनीति की अनिश्चितता एवं रोचकता को बनाए रखता है। ऐसी ही रोचकता को बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने राष्ट्रपति चुनावों में कोविन्द का साथ देकर बढ़ा दिया था।
अयोध्या पर मुख्यमंत्री का ध्यान। हिन्दुत्व की राह पर उत्तर प्रदेश।
जैसी की उम्मीद थी वैसा ही किया योगी सरकार ने। अपना पहला बजट पेश किया और उसमे हिन्दुत्व के प्रतीकों को प्रमुखता दी। मुख्यमंत्री अयोध्या का दौरा करके एक संकेत पहले ही दे चुके हैं। अटकलें हैं कि अयोध्या से वह चुनाव लड़ सकते हैं। भाजपा की सरकार होने से अयोध्या का राजनैतिक महत्व बढ़ गया है। इसका एक सबूत तब मिला जब अपने पहले बजट में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने स्वदेश दर्शन योजना के तहत अयोध्या, वाराणसी एवं मथुरा के लिये 1240 करोड़ की लागत से रामायण, बौद्ध एवं कृष्ण सर्किट बनाने की घोषणा की। ये तीनों देव स्थान आदि काल से भारतीय संस्कृति का केंद्र बिन्दु रहे हैं। इन तीनों नगरों में अब प्रसाद योजना के तहत सरकार विकास करने जा रही है। बजट में 800 करोड़ का प्रावधान रखा गया है। इसके साथ ही विंध्याचल धाम के लिये अलग से 10 करोड़ दिये गये हैं। धार्मिक स्थानों को बढ़ावा देकर एक ओर धार्मिक पर्यटन तो मजबूत हो ही रहा है इसके साथ ही साथ 2019 लोकसभा चुनावों की रूपरेखा भी तैयार होती जा रही है। यदि योगी आदित्यनाथ अयोध्या से चुनाव लड़ते हैं तो यह 2019 के लिये बड़ा संकेत होगा। भाजपा को राम का सहारा मिलेगा और राम मंदिर के निर्माण का भी मार्ग प्रशस्त होगा।
सरकार की संस्कृति और धर्म से जुड़ाव की बात तब और पुख्ता हो गयी जब बजट में लोक मल्हार और सावन झूला जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया। एक और गोरखपुर में लोक मल्हार के लिए पैसा आवंटित हुआ है वहीं दूसरी तरफ अयोध्या में सावन के झूलों के लिए। सरकार द्वारा तीर्थ यात्रा परिषद की घोषणा पहले ही कर दी गयी है। सरकार अब प्रदेश भर में रामायण कांकलेव करने जा रही है। प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र काशी सदियों से भारतीय संस्कृति का केंद्र रहा है। वहाँ सांस्कृतिक केंद्र बनाने के लिए 200 करोड़ रुपये देना इस बात को दर्शाता है कि 2019 की तैयारी शुरू की जा चुकी है। सरकार के इस बजट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि हिन्दुत्व पर तो सरकार का पूरा ध्यान रहा है किन्तु अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं को ठीक वैसा ही रखा गया है जैसा अखिलेश सरकार के समय था। उस मद में न ही कटौती की गयी है न ही बढ़ोत्तरी।
नगर निगमों की तरफ भाजपा का ध्यान
भाजपा को पहले शहरी क्षेत्रों का दल कहा जाता था। इसके बाद भाजपा ने संघ के कैडर की मदद से गाँव में अपनी पकड़ मजबूत की। 2014 और 2017 के चुनावों में सफलता भी प्राप्त की। अब चूंकि नगर निकाय के चुनाव बेहद करीब हैं तो इस बजट में भाजपा का ध्यान ग्रामीण क्षेत्रों से ज़्यादा शहरी क्षेत्रों की तरफ दिखाई दे रहा है। राजनैतिक दृष्टि से यह एक अच्छा कदम भी कहा जा सकता है। दिल्ली एमसीडी चुनावों में भाजपा ने सभी के टिकट काटकर फिर से जीत हासिल की थी। उत्तर प्रदेश में भी भाजपा के नकारा साबित हो चुके मेयर या चेयरमैन के टिकट काट दिये जाएंगे। सरकार ने जनता में अच्छा संदेश देने के लिए इस बजट में 8235.74 करोड़ रुपये शहरी क्षेत्रों में खर्च करने की योजना बनाई गयी है। इसके साथ ही प्रदेश के 13 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की भी योजना है। 1500 करोड़ की लागत से इन शहरों के लिए बड़ी परियोजनाओं को अंतिम रूप देने का काम शुरू किया जा चुका है। इन परियोजनाओं में ई- गवर्नेंस एंड सिटिजऩ सर्विसेस, वेस्ट एवं वॉटर मैनेजमेंट, अर्बन मोबिलिटी जैसी योजनाएँ शामिल हैं। शहरी क्षेत्रों में भूखंड, अपार्टमेंट एवं भवन की बिक्री में आम जनता को संदेह लगातार बना रहता है। इसके लिए सरकार द्वारा भू-सम्पदा नियामक बोर्ड (रेरा) का गठन एक अच्छा कदम है। इसके द्वारा उपभोक्ताओं को एक बड़ी राहत मिलेगी और इस क्षेत्र में अनियमितताएँ कम होंगी। शहरों की सफाई के संदर्भ में एक बड़ा क्रांतिकारी कदम सीवरेज से जुड़ा है। सीवरेज, जलापूर्ति, ड्रेनेज नगरीय परिवहन एवं ठोस अपशिष्ट के लिए आवंटित 85.74 करोड़ रुपये अगर पूरी तरह सही स्थान पर लग गए तो शहरों में एक बड़ा परिवर्तन दिखने लगेगा। जब हम सीवरेज और जलापूर्ति की बात करते हैं तो हमारा ध्यान स्वत: तौर पर नदियों की तरफ जाता है। गंगा, यमुना और गोमती नदियों की सफाई के लिए 15 करोड़ का बजट है।
बजट के स्तर पर यह सब अच्छा लग रहा है किन्तु यदि नदियों की सफाई की बात करें तो नमामि गंगे प्रोजेक्ट को उमा भारती ने मज़ाक बना कर रखा हुआ है। देश के एक बड़े वर्ग और हिन्दू समाज की अपेक्षा साध्वी से बहुत ज़्यादा थी। कागजों पर तो काम काफी हुये किन्तु जमीनी स्तर पर ज़्यादा कुछ दिखाई नहीं दिया है। पहले केंद्र सरकार का नमामि गंगे अब प्रदेश सरकार का बजट आवंटन कितना गुल खिलायेगा। यह तो अब भविष्य बताएगा।पर शहरी क्षेत्रों के लिए बजट में बड़ा आवंटन करके सरकार ने शहरी क्षेत्र की जनता को आकर्षित कर ही लिया है।
पुलिस सुधार को होने जा रही नई भर्तियाँ :
उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था हमेशा से एक बड़ा विषय रहा है। समाजवादी सरकार में कानून व्यवस्था की हालत बहुत जर्जर थी। सरकार बदलने के बाद कानून व्यवस्था में कुछ सुधार तो दिखाई दिया किन्तु निचले स्तर पर वसूली में कमी नहीं दिखाई दी। डायल 100 के संरक्षण में खनन होता रहा। पुलिस सुधारों की जरूरत महसूस होती रही। जब विधानसभा में विस्फोटक मिला तब एक बात तो तय हो गयी कि आतंकवादियों की तैयारी पुलिस से बहुत ज़्यादा है। इसके बाद जब बजट आया तो उसमे पुलिस सुधार की कुछ झलक भी दिखाई दी। सरकार द्वारा सीसीटीवी के लिए 2137.81 लाख रुपये आवंटित किए गए। इसके द्वारा थाना, एसएसपी कार्यालय, जोने, रेंज, एसपी रेलवे, जीआरपी आदि स्थानो पर यह कैमरे लगाये जाने हैं। अपराध को नियंत्रण करने के लिए और बेहतर गुणवत्ता के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला को 10 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है। पुलिस के रिकार्ड के डिजिटल करने के लिए 6 करोड़ एवं प्रत्येक करगार में डीपसर्च मेटल डिटेक्टर लगाने के लिए 2.04 करोड़ दिये गए। इसके साथ ही जैसा भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में वादा किया था कि वह डेढ़ लाख पुलिस कर्मियों की भर्तियाँ करेंगी। वैसी घोषणा भी कर दी गयी है। 30,000 सिपाही प्रतिवर्ष की दर से पाँच साल में यह लक्ष्य पूरा कर दिया जाएगा। इसके साथ ही सरकार द्वारा 3200 दारोगा की भर्ती की भी योजना है। सरकार द्वारा प्रारम्भिक पुलिस सुधार की दिशा में जो कदम उठाए गए हैं उससे ऐसा आभास हो रहा है कि वह अन्य सुधार से पहले पुलिस बल को बढ़ाने एवं उनको जवाबदेह बनाने पर विचार कर रही है।
सिर्फ भर्तियों से नहीं होगा काम। पूरा विभाग हो चुका जाम।
कानून व्यवस्था के विषय पर सरकारें कभी भी गंभीर नहीं रही हैं। लचर पुलिस द्वारा नेता अपने स्वार्थ साधते रहते हैं। अंग्रेजों की व्यवस्था में हमने कोई बदलाव नहीं किया। पुलिस की दमनकारी नीति जारी रही। प्रारम्भ में जब तक आदर्शवादी नेता रहे तब तक तो यह मशीनरी कुछ ठीक काम करती रहीं किन्तु जैसे जैसे सत्ता धन प्राप्ति का माध्यम बनती चली गयी। यह व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो गयी। उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के बाद भी कोई सुधार अभी लागू नहीं हुआ है। कानून के अनुपालन में कोताही और लचर न्याय व्यवस्था के कारण आज लोग उग्र होते जा रहे हैं। वह छोटी छोटी बातों पर झगड़ा कर रहे हैं। अगर किसी की गाड़ी पर कुछ खरोंच भी आ जाती है तो वह पुलिस से मदद नहीं मांगते हैं। वह स्वयं लडऩे लगते हैं और पैसे वसूल लेते हैं। पुलिस पर उनका भरोसा नहीं बचा है। वह जानते हैं कि पुलिस आएगी तो वह भी कुछ हिस्सा लेकर छोड़ देगी। अगर केस हो भी गया तो आरोपी के रसूखदार होने पर वह भी छुट जाता है। एक बड़ा दिलचस्प आंकड़ा है कि भारत में सिर्फ 45 प्रतिशत आरोपी ही अदालत से सज़ा पाते हैं। अमेरिका में यह 93 प्रतिशत एवं जापान में 99 प्रतिशत है।
उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था सुधारने के लिए सरकार को अब पुलिस रेफ़ोर्म पर काम तेज़ी के साथ शुरू करने होंगे। इसके लिए सभी राजनैतिक दलों, राजनैतिक व्यवस्था एवं जनता को आपसी समझ बूझ दिखानी होगी। विधानसभा में पाउडर तो सिर्फ एक ट्रेलर है। यदि सुधार नहीं हुआ तो कुछ भी बड़ा कभी भी घटित हो सकता है। उत्तर प्रदेश के बजट के बाद सरकार की गंभीरता दिखने लगी है। सरकार जितनी हिन्दुत्व के लिए चिंतित दिख रही है उतनी ही सुरक्षा के लिए भी । 2019 में सिर्फ लोकसभा चुनाव नहीं होने हैं बल्कि अर्धकुंभ भी होना है। पिछली सरकार में आजम खान ने इलाहाबाद में शानदार आयोजन किया था। अब जि़म्मेदारी वर्तमान सरकार पर है। अब देखना यह है कि यह सरकार सिर्फ हिन्दुत्व और सुधार का ढ़ोल पीटेगी या वास्तव में ज़मीन पर भी सुधार दिखाई देंगे। जनता की अपेक्षाएँ बहुत ज़्यादा हैं और सरकार के पास दो साल से भी कम का समय बचा है। ठ्ठ
किसानों की कजऱ् माफी के लिये
36 हज़ार करोड़ का प्रावधान
100 दिन पूरा करने के बाद अपने योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में अपना पहला बजट पेश किया। वित्त मंत्री राजेश अग्रवाल ने सदन में 3.84 लाख करोड़ का बजट प्रस्तुत किया जो यूपी के लिए अब तक का सबसे बड़ा बजट है। सरकार ने लगभग सभी वर्गों और योजनाओं का ध्यान रखते हुए, अगले पांच सालों में प्रदेश की विकास दर को 10 फीसदी करने का लक्ष्य तय किया है। साथ ही 55,781 करोड़ रुपये की नई योजनाओं को भी बजट में शामिल किया गया है। बजट पर मुख्यमंत्री का कहना है कि फिजूलखर्ची रोककर और टेक्नॉलजी के इस्तेमाल आदि से किसानों की कर्जमाफी के लिए 36 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है।
इस बजट में साल 2017-18 में 3 लाख 77 हजार करोड़ रुपये के राजस्व प्राप्ति का अनुमान एवं 3 लाख 84 हजार करोड़ के खर्च का अनुमान लगाया गया है। इसके साथ ही 12 हजार 278 करोड़ की बचत एवं 42 हजार 967 करोड़ के राजकोषीय घाटा अनुमानित है। यदि बजट के कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों को देखें तो बजट में प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छ भारत अभियान पर भी पूरा ध्यान दिया गया है। स्वच्छ भारत अभियान के लिए 3255 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया गया है। सरकार ने 2 अक्टूबर, 2018 तक प्रदेश को खुले में शौच से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा मलिन बस्ती विकास योजना के लिए 385 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है। सरकार ने यूपी में 1.50 लाख पुलिस कर्मियों की भर्ती की योजना बनाई है।
सड़को के रखरखाव और गड्ढा मुक्त सड़क के लिए 3 हजार 972 करोड़ रुपये की व्यवस्था है तो सड़कों के चौड़ीकरण के लिए 598 करोड़ का प्रावधान है। कानपुर, वाराणसी, आगरा और गोरखपुर में मेट्रो चलाए जाने का प्रस्ताव दिया गया है। मेट्रो रेल परिजयोजनाओं के लिए 288 करोड़ का बजट है। प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना के लिए 3 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था, प्रधानमंत्री आवास योजना ( ग्रामीण) के लिए 4500 करोड़ रुपए, दीनदयाल उपाध्याय नगर विकास योजना के लिए 300 करोड़ रुपये दिये गए हैं।
इसके अलावा मलिन बस्ती विकास योजना के लिए 385 करोड़ रुपये का बजट दिया गया है।
पूर्वांचल के विकास के मकसद से बनाई गईं विशेष योजनाओं के लिए 300 करोड़ का बजट रखा गया है। बुंदेलखंड की विशेष योजनाओं के लिए 200 करोड़ रुपये एवं ‘स्वदेश दर्शन योजना’ के तहत अयोध्या, वाराणसी और मथुरा में रामायण सर्किट, बौद्ध सर्किट और कृष्ण सर्किट के लिए 1240 करोड़ रुपये की व्यवस्था है। अयोध्या में सावन झूला के विशेष आयोजन, मथुरा में गीता शोध संस्थान, कृष्ण संग्रहालय बनेगा। ‘प्रसाद योजना’ के तहत अयोध्या, वाराणसी और मथुरा में अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिए 800 करोड़। वाराणसी में सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना के लिए 200 करोड़ रुपये की व्यवस्था।
यूपी के प्राइमरी के छात्र-छात्राओं को 300 करोड़ रुपये से एक जोड़ी जूता, दो जोड़ी मौजे, एक स्वेटर दिया जाएगा। बैग आवंटन के लिए 100 करोड़ रुपये दिये गए हैं। बेसिक शिक्षा में यूनिफॉर्म के लिए 123 करोड़ 96 लाख रुपये एवं सभी लड़कियों को ‘अहिल्याबाई नि:शुल्क शिक्षा योजना’ के तहत ग्रेजुएट स्तर तक नि:शुल्क शिक्षा के लिए 21.12 करोड़ रुपये की व्यवस्था है। इसके साथ ही अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं की छात्रवृत्ति के लिए 941 करोड़ रुपये दिये गए हैं।
हमारी सरकार बेहतर कार्य कर रही है : राम नाईक
उत्तर प्रदेश के महामहिम राज्यपाल राम नाईक से डाइलॉग इंडिया (अमित त्यागी) ने एक शिष्टमंडल के सदस्य के रूप में भेंट की। डाइलॉग इंडिया की प्रति भेंट के साथ ही इस दौरान उनसे संक्षिप्त बात की। बातचीत में महामहिम ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार अच्छा काम कर रही है। मेरे कार्यकाल में पहले अखिलेश यादव और अब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं। उत्तर प्रदेश में तेज़ी के साथ कार्य हो रहे हैं बातचीत के दौरान महामहिम ने डाइलॉग इंडिया को देखा, सराहा और उसको पढऩे का आश्वासन दिया। मुलाकात के दौरान बेहद सौम्य एवं सादगी से भरे महामहिम ने इस बात को भी बताया कि किस तरह उनके कार्यकाल में राजभवन के दरवाजे आम जनता के लिये खोल दिये गए हैं।
आपके अब तक के कार्यकाल में आपने दो सरकारें देखी हैं। एक अखिलेश यादव की और एक योगी जी की। क्या अंतर लगता है आपको ?
राज्यपाल के रूप मे मेरे लिए दोनों सरकारें एक जैसी हैं। कुछ कामों के अंतर के कारण मुझे वर्तमान सरकार ने ज़्यादा प्रभावित किया है। जैसे महाराष्ट्र सरकार की तरह इस बार उत्तर प्रदेश मे स्थापना दिवस मनाया गया। मैंने इसको मनाने के लिए अखिलेश यादव से भी कहा था पर उन्होने ध्यान नहीं दिया। योगी जी ने इसे मानते हुये मुख्य अतिथि के रूप मे आना स्वीकार किया। भावनात्मक रूप से यह मुझे अच्छा लगा।
पिछली सरकारों में पत्रकारों पर हमले हुये। जगेंद्र सिंह प्रकरण में एक मंत्री राममूर्ति वर्मा का नाम आया। वर्तमान मे भी पत्रकारों पर हमले रुक नहीं रहे हैं?
मैं इस बात को स्वयं मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाने जा रहा हूँ। कानून व्यवस्था और पत्रकारों की सुरक्षा पर पूरा ध्यान दिया जाएगा। पत्रकारों से मुझे बहुत सहयोग मिला है। आज जनता के बीच मे राजभवन की जो अच्छी छवि बनी है उसमे पत्रकारों का बहुत बड़ा योगदान है। पत्रकारों की समस्याओं पर ध्यान दिया जाएगा।
डाइलॉग इंडिया ने अपने अगस्त-16 अंक में ही योगी आदित्यनाथ को अगला मुख्यमंत्री लिखा था। क्या आपको भी ऐसा लगता था ?
यह राजनैतिक प्रश्न है। आपका अनुमान सही निकला इसके लिए आपको बधाई। आपके द्वारा दिये गये पत्रिका के अंक को मैं अवश्य पढ़ूँगा।
अतिक्रमण हटाने में किसी तरह की
सिफ़ारिश नहीं मानी जाएगी : सुरेश खन्ना
योगी सरकार के 100 दिन के कार्यकाल के बाद संघ व पार्टी के सर्वे में नगर विकास एवं संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना एक ईमानदार नेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं। अखिलेश सरकार में नगर विकास जैसा कमाऊ विभाग आजम खान के पास था। पिछली सरकारों में ऐसी चर्चाएँ सुनने में आती थीं कि ठेके में ईमानदारी से 3 प्रतिशत मंत्रालय में चढ़ावा दिया जाता था। वर्तमान योगी सरकार में यह चढ़ावा बंद हो चुका है। इस विभाग के मंत्री सुरेश खन्ना की इस ईमानदारी की चर्चा आजकल सियासत के गलियारों में सुनी जा रही है। बतौर कैबिनेट मंत्री खन्ना की चुनौती भ्रष्टाचार उन्मूलन के संदर्भ में कम नहीं है। खन्ना के आगे बड़ी चुनौती भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुकीं नगर निगमों और नगर पालिकाओं को पटरी पर लाना है। इसमे वह कितने कामयाब होते हैं यह देखना दिलचस्प होगा।
श्री खन्ना वक़्त के पाबंद व्यक्ति हैं। इसकी बानगी तब मिली जब वह प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के दौरे पर थे। वह सुबह सुबह 9.40 बजे जनसंपर्क कार्यालय पर पहुंच गए। उस समय कार्यालय का शटर गिरा हुआ था और ऑफिस हेड समेत अन्य लोग नदारद थे। सुरेश खन्ना ने नेताओं को फोन करवाया और खुद कार में बैठ कर इंतजार करते रहे। आधे घंटे बाद कार्यालय की चाबी आने पर मंत्री ने वहां बैठकर लोगों की समस्याएं सुनीं। इसके बाद अस्सी घाट जाकर काफी देर तक वह फावड़ा चलाते रहे। अस्सी घाट वह स्थान है जहां प्रधानमंत्री मोदी ने खुद फावड़ा चला कर स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत की थी। श्री खन्ना की सादगी की बात करें तो अरबों रुपये के घोटाले वाले गोमती रिवर फ्रंट जांच समिति के अध्यक्ष होने की बजह से जब उनको जेड क्षेणी की सुरक्षा प्रदान की गयी तब उन्होने यह कहते हुये सुरक्षा लेने से इंकार कर दिया कि उनको जनता के बीच रहना है। काले कपड़े पहने हुए कमांडो को देखकर गांव के लोग डर जाएंगे। 100 दिन के कार्यकाल में पार्टी हाईकमान द्वारा कराये सर्वे में सुरेश खन्ना को काम करने बाले मंत्रियो में प्रथम पायदान पर पाया गया है। बेहतर कार्यशैली वाले खन्ना के खिलाफ किसी तरह के भ्रष्टाचार का कोई मामला नही है। श्री खन्ना सचिवालय से रोज 11 बजे के बाद ही सबसे आखिर में अपने आवास पर लौटते है। एक ओर जहां उत्तर प्रदेश में परिवारवाद हावी है वहीं श्री खन्ना राजनीति में भाई भतीजों को दूर रखते है। उनकी राजनीति में परिवार का कोई सदस्य हस्तक्षेप नही करता है। श्री खन्ना से डाइलॉग इंडिया की तरफ से अमित त्यागी ने संक्षिप्त बात की।
पिछली सरकार ने साइकल ट्रैक बनवाए थे। आप तुड़वा रहे हैं ?
साइकिल ट्रैक बनने से सड़कों पर अतिक्रमण हो गया है इन साइकिल ट्रैक को जल्द ही तुड़वाया जाएगा। सब ट्रैक नहीं तोड़े जाएंगे। सिर्फ वही जो समस्या पैदा कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में जाम एक बड़ी समस्या है? इस ओर क्या कर रहे हैं आप ?
हम पूरे प्रदेश के शहरों में उन सुविधाओं को लाएँगे जो अन्तराष्ट्रिय स्तर के शहरों में होती हैं। अतिक्रमण एक बड़ी समस्या है हम इस पर गंभीर हैं। अतिक्रमण हटाने के दौरान किसी तरह की सिफ़ारिश नहीं मानी जाएगी। आप लोगों ने हमें वोट दिया है उसका आभार व्यक्त करता हूँ किन्तु शहरों के सौंद्रीयकरण के लिये हमें कठोर कदम उठाने पड़ रहे हैं। आप लोग हमें सहयोग दीजिये।
विश्वस्तरीय शहर बनाने के लिये सीवर लाइन ज़रूरी है? प्रदेश के कई बड़े शहरों में सीवर लाइन नहीं है। क्या कहना है आपका ?
पूरे प्रदेश में सीवर लाइन पर हमारा ध्यान है। सर्वे कराये जा रहे हैं। एक बड़ी प्रक्रिया है। समय लगेगा। एक बार सीवर लाइन बनने से 50-100 सालों की छुट्टी हो जाती है। हम संपूर्णता के साथ सर्वे कराकर एक प्लानिंग के साथ इस पर काम कर रहे हैं। मैं फिर कह रहा हूँ कि समय लगेगा पर परिणाम अद्भुत होंगे। सातवे वेतन आयोग की सिफ़ारिशें लागू करने और किसानो की कजऱ् माफी के कारण एक बड़ा बजट इस बार उसमे खर्च हो गया है। थोड़ा विलंब इसके कारण भी है।
कानून व्यवस्था की स्थिति में ज़्यादा सुधार नहीं दिखाई दे रहा है ?
सपा सरकार में अपराधी और गुंडों को संरक्षण दिया जा रहा था। कार्यवाही के नाम पर कुछ भी नहीं था। जबसे प्रदेश में योगी सरकार आई है गुंडे अपराधियों पर कार्यवाही हो रही है। एफआईआर कर जेल भेजा जा रहा है। अपराध में कमी आने लगी है। सुधार हो रहा है। दिखाई भी दे रहा है।