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जन सुनवाई में जनता से खतरा क्यों?

उत्तराखंड शासन प्रशासन ने दिखा दिया कि बांध कंपनियां लोगों के अधिकारों और पर्यावरण से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।

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जखोल साकरी बांध परियोजना की पर्यावरणीय जनसुनवाई  प्रभावित क्षेत्र से 40 किलोमीटर दूर मोरी ब्लॉक में कथित रूप से पूरी कर दी गई। 1 मार्च को जन सुनवाई का समय 11:00 बजे से शुरू हुआ किंतु उसमें खास जखोल गांव के लोगों को रोका गया। जखोल गांव इस बांध के लिए प्रस्तावित 9 किलोमीटर लंबी सुरंग के ऊपर आता है और जहां सुरंग के दुष्परिणाम संभावित हैं।

प्रशासन ने चुनकर जखोल गांव के अलावा अन्य प्रभावित गांवों पांव तल्ला, मल्ला, सुनकुंडी और धारा के सैकड़ो लोगों को भी जनसुनवाई में जाने से मोरी जखोल मोटर मार्ग पर बैरिकेड लगा कर रोक दिया। जखोलगाँव के प्रधान सूरज रावत के नेतृत्व में लोगो ने ब्लॉक के दरवाजे पर धरना किया और लगातार तीखे नारे देकर बैठे रहे। कोट गांव के प्रधान सूरज दास, डगोली गांव की महिला प्रधान के साथ ग्राम प्रधान हडवाड़ी के मुंशीराम ने भी धरना दिया। मोरी बाजार की तरफ माटू जनसंगठन के साथी विमल भाई, रामलाल भाई, गुलाब सिंह रावत व राजपाल रावत को पुलिस ने यह कहकर रोका कि आपको लेने एस डी एम पूरणसिंह राणा आएंगे। लगातार निवेदन करने पर भी जबर सिंह असवाल कानूनगो और पटवारी अनिल असवाल ने नहीं जाने दिया।दोनों ही तरफ़ लोग लोगो को बाहर रोक कर अंदर जनसुनवाई की प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

जब सभी अधिकारी बाहर सड़क पर आए तो लोगों ने उनको वहां रोकने की कोशिश की। जिला अधिकारी आशीष चौहान जी सहित सभी अधिकारी तेज रफ्तार गाड़ियों से 1 किलोमीटर दूरी पी डब्लू डी के गेस्ट हाउस पहुंचे, जहां लोग भी दौड़ते हुए पहुचे और सड़क पर चक्का जाम किया।

बाद में जिला अधिकारी ने गेस्ट हाउस से बाहर आकर मामला सुलझाने की कोशिश की। विमल भाई ने लोगो की ओर से उनसे एक ही प्रश्न पूछा कि लोगों को अंदर आने से क्यो रोका गया? यह हमारी संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। यह जनसुनवाई पूरी तरह प्रायोजित कार्यक्रम की तरह पूरी की गई है।

गुलाब सिंह रावत ने कहा कि हम अपनी मांग जो पहले हमने कही थी उसी को दोहराना चाहते थे। जब तक हमें पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट, पर्यावरण प्रबंध योजना व सामाजिक समाघात योजना हिदी में नहीं मिल जाते हम बांध पर अपनी बात कैसे रखेंगे?  सुनकुंडी गांव के जयवीर ने कहा कि मुझे सुबह पुलिस ने पहले ही उठा दिया था। हम 2011 से इस बांध का विरोध कर रहे हैं हमारी बात तक नहीं सुनी गई।

रामलाल जी ने कहा लोगों को डराने के लिए जखोल के 21 लोगों पर झूठे मुकदमे कायम किये गए हैं।

साथी प्रदीप ने आरोप लगाए की जनसुनवाई में किन्ही आंगनबाड़ी की व आशा कार्यकर्ताओं को तथा अन्य सरकारी कर्मचारियों को बिठाया गया।

धारा गांव के प्रह्लादसिंह पवार बहुत मुश्किल से जनसुनवाई में जाकर अपनी बात कह पाए। उनका कहना है कि जब पर्यटन के लिए और लोगों के स्थाई रोज़गार के लिए आवश्यक हर कि दून मोटर मार्ग को गोविंद वन्य जीव बिहार के कारण स्वीकृति नहीं दी जा रही है तो बांध की 9 किलोमीटर लंबी सुरंग के लिए कैसे स्वीकृति की बात है? जब भूकंप नीचे से आता है तो सुरंगों के लिए भारी मात्रा में विस्फोटक इस्तमाल करने से ऊपर क्या स्थिति होगी?

राजपाल रावत के कहा कि सुरंग परियोजनाओं के असरों को पूरी तरह नकार कर जखोल गांव को प्रभावित तक की श्रेणी में नहीं रखा जा रहा?

शासन प्रशासन और बाध कंपनी ने 12 जून की जनसुनवाई स्थगित होने को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया। इसीलिए आज हर हालत में जनसुनवाई की प्रक्रिया पूरी करने के लिए भारी संख्या में लाठी और बंदूक के साथ पुलिस बल के साए में जन सुनवाई की प्रक्रिया पूरी की गई । जनता से दूर यह जनसुनवाई पूरी तरह से असंवैधानिक और शासन-प्रशासन की चालाकी का नमूना है।

हम इसको पूरी तरह नकारते हैं। प्रशासन ने इस बात को मद्देनजर नहीं रखा कि आज के अधिकारी हमेशा रहने वाले नहीं है, किंतु गांव, नदी और पर्यावरण स्थाई है। इस बिना जानकारी दिए आयोजित जन सुनवाई के असर लोक और पर्यावरण हमेशा झेलेंगे।

हम यह कहना चाहेंगे कि हमारे लिए यह प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं वरन लोगों के अधिकारों और पर्यावरण की सुरक्षा का है।  आंदोलन अपने तमाम संवैधानिक अधिकारों का उपयोग जन और पर्यावरण हक के लिए करेंगा।

 

रामबीर राणा।  भगवान सिंह रावत

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