भारत के भ्रष्टतम खानदान के चश्मो चिराग राहुल गांधी की अब तक की राजनीतिक यात्रा दिखावे और नाटकीयता के अनेक चरणों की गवाह रही है। अकूत संपत्ति के मालिक राहुल गांधी ने अपने दादा स्वर्गीय फिरोज गांधी की तरह पायजामे कुर्ते को अपना मौलिक परिधान बनाया। वैसे शुरूआत जींस से हुई, लेकिन किसी सा यवादी की सलाह पर वो पायजामे की शरण में आ गए। हैलीकॉप्टरों में घूमने वाले राहुल ने इस ओढ़ी हुई फर्जी सादगी का बेहतरीन इस्तेमाल भी किया और नोटबंदी के दौरान तो एक बार दर्शकों को कुर्ते की फटी जेब दिखाकर ये अहसास दिलाने की कोशिश भी की कि वो तो वास्तव में कंगाल हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का स्वागत महंगे सूट में किया तो राहुल गांधी ने संसद में मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए उसे सूट-बूट की सरकार बताया और उसपर क्रोनी कैपिटलिज्म का आरोप लगाया। लेकिन कपड़ों के माध्यम से राजनीतिक विचारधारा और गरीबों से नजदीकी दिखाने के उनके इस नाटक का जल्दी ही पटाक्षेप भी हो गया। जब एक के बाद एक गांधी परिवार के घोटाले सामने आने लगे तो स्पष्ट हो गया कि राहुल गांधी के कुर्ते की जेब में जो छेद था वो तो असल में हवाला का रूट था जिसके माध्यम से भारत का पैसा विदेशी बैंकों तक पहुंचाया जाता था।
कांग्रेस नीत यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलायंस (यूपीए) के प्रधानमंत्री भले ही मनमोहन सिंह रहे, पर असली सत्ता तो सोनिया गांधी और उनके परिवार के पास ही थी। फाइलों पर हस्ताक्षर भले ही मनमोहन सिंह के होते थे पर उसकी स्याही तो गांधी परिवार की होती थी। यूपीए सरकार में कैसे जूतों में दाल बंटी, कैसों खरबों रूपए के घोटाले हुए, दशकों से सत्ता सुख भोग रहे मंझे हुए खिलाडिय़ों ने ये धन कहां ठिकाने लगाया, इन सवालों के जवाब जानने और उन्हें साबित करने में दशकों लग जाएंगे। लेकिन जैसा की भारत का सूत्र वाक्य है- सत्यमेव जयते, घोटालों का सच और उनके सबूत धीरे-धीरे ही सही, सामने आने लगे हैं।
अफसोस की बात तो ये है कि भारत की जनता असलियत को समझने के लिए थोड़ी दिमागी कसरत करने की जगह, धर्म, जाति, क्षेत्र जैसे भावात्मक मुद्दों में उलझकर अब भी कांग्रेस को वोट दे रही है। मीडिया में बैठे इस पार्टी के लोग अफवाहों और फरेब का जाल फैला रहे हैं और जनता को भ्रमित कर रहे हैं। उनके लिए राजनीतिक शुचिता और ईमानदारी की जगह अपने गैंग के लिए सत्ता हासिल करना अधिक महत्वपूर्ण है। लेकिन उनके सारे प्रोपेगेंडा के बावजूद सत्य बार-बार सामने आ ही जाता है।
राहुल गांधी ने राफेल के मुद्दे पर मोदी को बदनाम करने की भरसक कोशिश की। रोज छोटी-छोटी और अधूरी खबरों को सनसनी के तौर पर पेश किया गया और लोगों को ये बताने की कोशिश की गई कि अब तो मोदी फंसा ही फंसा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट से लेकर क पट्रोलर एंड ऑडीटर जनरल (सीएजी) तक सबने मोदी को क्लीनचिट दी लेकिन अफसोस कि कुछ स्वार्थी तत्व अब भी इसे सुप्रीम कोर्ट में घसीट रहे हैं और स्वयं अदालत इसमें साथ दे रही है। शुरू में जब राहुल गांधी एंड कंपनी ने कथित राफेल बम उछाला तो उन्हें उ मीद नहीं थी कि एक दिन ये उनके घर के ऊपर ही फट जाएगा। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने आरोप लगाया कि राफेल सौदे की रूपरेखा सोनिया गांधी, उनकी दो बहनों और फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी की इटैलियन पत्नी कालॉ बू्रनी ने मिलकर तैयार की और इसमें कमीशन भी खाया। राफेल जांच में अब गांधी परिवार के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और उनके परम मित्र संजय भंडारी की भूमिका भी सामने आ रही है।
संजय भंडारी ने 2008 में वाड्रा के सहयोग से ‘ऑफसेट इंडिया सॉल्यूशंस’ नामक कंपनी की स्थापना की। देखते ही देखते भंडारी का शुमार देश के बड़े रक्षा सलाहकारों, दलालों में होने लगा। कभी छोटी सी दुकान का मालिक भंडारी पलक झपकते ही अरबों में खेलने लगा। भाजपा के मंत्री गजेंद्र शेखावत ने आरोप लगाया है कि गांधी परिवार ने वाड्रा और भंडारी की मदद से राफेल सौदे के ऑफसेट में हिस्सेदारी चाही। ध्यान रहे राफेल विमान का निर्माण दस्सॉल्ट कंपनी करती है। वर्ष 2014 में यूपीए सरकार के पतन के बाद राफेल में हिस्सेदारी का गांधी परिवार का वाब चूर-चूर हो गया और इसलिए अब राहुल गांधी और कांग्रेस मोदी सरकार से खुन्नस निकाल रहे हैं। मोदी सरकार आने के बाद जब भंडारी पर शिकंजा कसना शुरू हुआ तो वो 2017 में लंदन भाग गया।
गांधी परिवार और उसके दलालों का जाल सिर्फ संजय भंडारी तक ही सीमित नहीं था। उसमें और भी कई गुर्गे शामिल थे। इनमें से कुछ को पकडऩे में मोदी सरकार सफल भी रही है। इन दलालों में सबसे ऊपर नाम आता है क्रिश्चियन मिशेल का जिसके गांधी परिवार और कांग्रेस से पुश्तैनी संबंध रहे हैं। मिशेल को वीवीआईपी चॉपर खरीद घोटाले के आरोप में दुबई से पकड़ कर लाया गया जहां उसने अपना बड़ा व्यापार जमा रखा है। मिशेल के पास उन सभी नेताओं के नाम हैं जिन्होंने ये सौदा अगुस्ता वेस्टलैंड के पक्ष में झुकाने में सहायता की। सीबीआई और ईडी दोनों मिशेल से पूछताछ कर रहे हैं। समझा जाता है कि उसने ये कुबूल किया है कि उसने कैबिनेट बैठकों से लेकर कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्यूरिटी तक की वर्गीकृत जानकारियां अगुस्ता वेस्टलैंड समेत अपने अनेक ग्राहकों को लीक की। उसके पास संबंधित सौदों की फाइलों की मूवमेंट की जानकारी तक होती थी। उसकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसने तब के वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के सचिव को धमकाया कि वो उसकी सभी फाइलों की वित्तीय रूकावटें जल्दी से जल्दी दूर करे वर्ना नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहे।
मिशेल ने माना है कि उसे अगुस्ता से 2.425 करोड़ यूरो और 1.6 करोड़ पाउंड मिले और उसने ये पैसा बांटा भी। उसने दलाली लेने वाले कुछ लोगों के नाम भी बताए हैं जिनमें संभवत: सोनिया गांधी का नाम भी शामिल है। मिशेल अगुस्ता को जो जानकारियां भेजता था उनमें से एक कथित रूप से कहता है- ”वित्त मंत्री हमसे नाराज हैं और हमें पार्टी लीडर को उनसे बात करने के लिए कहना पड़ेगा।’’ जाहिर है पार्टी लीडर किसी राज्य की पार्टी लीडर तो नहीं थी, वो कांग्रेस पार्टी की ही लीडर थी। मिशेल से पूछताछ में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के बेटे का नाम भी आया है जिसने दलाली का पैसा भारत लाने और बांटने में मदद की। गांधी परिवार का राजदार मिशेल कांग्रेस के लिए कितना खास है उसे इस बात से समझा जा सकता है कि उसके भारत आने पर कांग्रेस ने सब लोकलाज छोड़ कर अपने वकीलों को उसकी सेवा में उतार दिया। इससे पहले कांग्रेस ने अगर किसी दलाल को बचाने में इतनी मेहनत की तो वो था बोफोर्स सौदे का दलाल ओतावियो क्वात्रोची जिसकी मिशेल की तरह ही दस जनपथ में सीधी पहुंच थी।
राफेल पर अफवाहें उड़ाने में लगे राहुल गांधी ने एक अफवाह ये भी फैलाई कि मोदी सरकार ने राफेल के ऑफसेट का 30,000 करोड़ का काम अनिल अंबानी को दिलवाया जिससे देसी कंपनी हिंदुस्तानन एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को जबरदस्त घाटा हुआ। यहां एक दिलचस्प बात बताते चलें – वीवीआईपी चॉपरों की आपूर्ति के लिए टाटा और एचएएल भी उत्सुक थे, लेकिन मिशेल ने उनका पत्ता कटवा दिया। यहां एचएएल का पत्ता कटने पर राहुल को क्यों कोई अफसोस नहीं हुआ, ये बताने की आवश्यकता नहीं। अगुस्ता वेस्टलैंड असल में इटली की कंपनी है, लेकिन मिशेल ने बाजीगरी कर इसे ब्रिटिश कंपनी के तौर पर पेश किया ताकि कोई कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर उंगली न उठा सके। ये काम कैसे हुआ इसकी भी जांच जारी है। ईडी के मुताबिक मिशेल ने वीवीआईपी चॉपर डील के अलावा भी कई अन्य रक्षा सौदों में दलाली खाने की बात स्वीकार की है। उनकी जांच भी जारी है। उन सौदों में उसका साथ किसने दिया होगा और किसने दलाली खाई होगी, इसकी आप सहज ही कल्पना कर सकते हैं।
क्रिश्चियन मिशेल के अलावा मोदी सरकार दुबई आधारित व्यापारी राजीव सक्सेना को भी भारत लाने में सफल हुई है। सक्सेना वीवीआईपी चॉपर घोटाले में सहअभियुक्त है। समझा जाता है कि उसने अगुस्ता वेस्टलैंड से मिली दलाली को ठिकाने लगाने में बड़ी भूमिका निभाई।
मोदी सरकार सिर्फ क्रिश्चियन मिशेल और राजीव सक्सेना को ही नहीं, यूपीए के एक अन्य विश्वासपात्र दलाल दीपक तलवार को भी भारत लाने में सफल हुई। उससे पूछताछ में भी नए-नए घोटाले उजागर हो रहे हैं। तलवार मु यत: नागरिक विमानन क्षेत्र में लॉबिंग और दलाली करता था। ईडी जांच कर रही है कि उसके यूपीए के किन मंत्रियों, अफसरों, पार्टी पदाधिकारियों आदि से संबंध थे। ईडी ने उसके बैंक ऑफ सिंगापुर के खाते में 270 करोड़ रूपए जमा होने का पता लगाया है। ये पैसा एयर कतार, एयर एशिया, एयर अरेबिया, एमिरेट्स, एयरबस आदि ने जमा करवाया।
मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद तलवार दुबई भाग गया था। उसपर आरोप है कि वो अंतरराष्ट्रीय विमान सेवाओं को लाभप्रद रूट दिलवाने की एवज में दलाली लेता था जिसे फिर आगे मंत्रियों, अधिकारियों आदि में बांटा जाता था। कहना न होगा इस कॉकस ने विदेशी विमान सेवाओं से पैसा खा कर एयर इंडिया का भ_ा बैठा दिया और इन्हें ऐसा करते शर्म भी नहीं आई। जांच एजेंसियां यूपीए के नागरिक विमानन मंत्री पर एयर इंडिया के लिए अवैध तरीके से बोइंग और एयरबस से 111 विमान खरीदने के आरोप की जांच भी कर रही हैं जबकि एयर इंडिया ने सिर्फ 67 विमानों की मांग ही की थी। इस मामले में भी तलवार से पूछताछ हो रही है। जांच एजेंसियां इस मामले में 370 करोड़ की दलाली का पता लगा चुकी हैं। अफसोस ये है कि कांग्रेसी मीडिया राफेल पर अफवाहें फैलाने में तो पूरा दम लगा रहा है, लेकिन जो घोटाले असल में हुए हैं उन्हें नजरअंदाज कर रहा है।
अब कुछ बात सोनिया गांधी के दामाद और क्रोनी कैपिटलिज्म के साक्षात उदाहरण रॉबर्ट वाड्रा की। उन पर आरोप हैं कि उन्होंने अवैध कमाई से लंदन में महंगे लैट खरीदे और हरियाणा, राजस्थान आदि में बड़े पैमाने पर अवैध जमीन सौदे किए। अदालतों, नौकरशाही, जांच एजेंसियों में बैठे कांग्रेस के पुराने वफादारों ने वाड्रा के भ्रष्टाचार के मामलों को दबाने और टालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन काफी हील हुज्जत के बाद आखिरकार ईडी उनसे सीधे पूछताछ करने में सफल हुई। कांग्रेसी नेता और उनके वकील केटीएस तुलसी ने इसे चुनावी स्टंट बताया तो शारदा-नारदा घोटालों में कोलकता के पूर्व पुलिस कमिश्नर की जांच के खिलाफ धरने पर बैठीं ममता बनर्जी भी वाड्रा के समर्थन में उतर आईं। आश्चर्य नहीं कि बेल पर बाहर लालू पुत्र तेजस्वी भी उनके दुख में शरीक हुए। कांग्रेसी प्रवक्ताओं ने तो सीधे जांच अधिकारियों को धमकी देना शुरू कर दिया कि कल अगर कांग्रेस सरकार आई तो उनकी खैर नहीं होगी। खैर ईडी अधिकारियों ने धमकियों की परवाह न करते हुए बीकानेर लैंड केस में वाड्रा की एक संपत्ति को जब्त भी कर लिया है जिसकी कीमत 4.62 करोड़ रूपए है।
राहुल गांधी भले ही मोदी सरकार पर क्रोनी कैपिटलिज्म की तोहमत लगाते रहे हों, लेकिन जैसे उन्होंने और उनकी मां ने बिना एक धेला लगाए एसोसिएट जर्नल लिमिटेड की 5,000 करोड़ रूपए की जायदाद पर कब्जा कर लिया वो क्रोनी कैपिटलिज्म और सत्ता का दुरूपयोग नहीं तो और क्या है। याद दिला दें कि दोनों मां-बेटे इस मामले में बेल पर हैं। राहुल, सोनिया और पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता ऑस्कर फर्नांडिस पर तो इस घोटाले में आयकर छुपाने का मामला भी चल रहा है।
टूजी, सीडब्लूजी, कोयला घोटाला, आदर्श घोटाला…यूपीए के घोटालों और क्रोनी कैपिटलिज्म की नजीरों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। लेकिन ये तब के वित्त मंत्री और गृह मंत्री रहे पी चिदंबरम के उल्लेख के बिना पूरी नहीं होती। चिदंबरम, उनकी पत्नी नलिनी और पुत्र कर्ति सभी घोटालों में घिरे हैं और बेल पर हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन पर भी अब आरोप लग रहे हैं कि वो चिदंबरम के घोटालों में ही नहीं, देश की बैंकिंग व्यवस्था की लुटिया डुबोने में भी काफी सक्रिय रहे। आश्चर्य नहीं आजकल कांग्रेस उनसे आर्थिक मामलों में सलाह ले रही है।
अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में बैंक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन यूपीए के क्रोनी कैपिटलिज्म ने इनक जीना भी मुहाल कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी यूपीए के तौर-तरीकों पर स त एतराज जताते हुए कहते हैं कि उसने नामदारों को टेलीफोन बैंकिंग की सुविधा दी हुई थी। नामदारों के कहने पर वित्त मंत्रालय से बैंकों को फोन जाता था और वो बिना किसी जांच पड़ताल के अरबों-खरबों के ऋण दे दिया करते थे। यूपीए की टेलीफोन बैंकिंग से बैंकों की हालत ही पतली नहीं हुई, देश को भी खरबों रूपए का नुकसान हुआ। इस आंकड़े पर गौर करें कि स्वतंत्र भारत में 2008 तक 18 लाख करोड़ रूपए के बैंक ऋण दिए गए, लेकिन 2008 से 2014 के बीच 52 लाख करोड़ रूपए के कर्ज बांटे गए। अगर प्रधानमंत्री मोदी की मानें तो इसमें से अधिकांश वो ऋण थे जो कांग्रेसी नेताओं की सिफारिश पर दिए गए और जिनका डूबना लगभग तय था। इसे मोदी सरकार की उपलब्धि ही माना जाएगा कि हर कठिनाई के बावजूद वो तीन लाख रूपए उगाहने में सफल रही है। बैंकों से बड़े-बड़े कर्ज लेने वालों में विजय माल्या, मेहुल चौकसी, नीरव मोदी जैसे ठग शामिल थे जिनके विदेश भागने पर कांग्रेस ने खूब हो हल्ला किया। ये सवाल सहज ही मन में उठता है कि जब बैंकों की दुर्गति की जा रही थी तब रघुराम राजन क्यों खामोश बैठे थे?
यूपीए सरकार में क्रोनी कैपिटलिज्म, हवाला, दलाली, राउंड ट्रिपिंग का जाल कितना फैला हुआ था उसे इस छोटे से तथ्य से समझा जा सकता है कि नोटबंदी के दौरान मिली जानकारी के बाद सरकार ने कालेधन के कारोबार में लगी 1.63 लाख फर्जी कंपनियों का पंजीकरण रद्द किया।
कांग्रेस के क्रोनी कैपिटलिज्म के किस्से अनंत हैं। अभी तो हमने सिर्फ यूपीए के जमाने के कुछ उदाहरण गिनवाए हैं। अगर हम नेहरू युग से चर्चा शुरू करें तो कई ग्रंथ लिखने पड़ेंगे। लेकिन अंत में संक्षेप में ये भी बताते चलें कि जिस मोदी पर राहुल गांधी क्रोनी कैपिटलिज्म के बेसिरपैर के आरोप लगाते हैं, उन्होंने इसे और इसके कारण पैदा होने वाले काले धन को रोकने के लिए क्या कदम उठाए।
मोदी ने प्रधानमंत्री पद संभालते ही भ्रष्टाचार समाप्त करने की मुहिम की शुरूआत कर दी। सुप्रीम कोर्ट लंबे समय से कह रहा था कि विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने के लिए सरकार विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाए। घोटालों से कलंकित यूपीए सरकार इसे नजरअंदाज कर रही थी। मोदी ने सत्ता संभालते ही सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज एमबी शाह के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया। इसमें सीबीआई, आईबी के वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा वित्तीय और आर्थिक विभागों के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल थे।
आज विपक्षी दल बार-बार ये कटाक्ष करते हैं कि मोदी ने कहा था कि वो सत्ता में आने के बाद विदेश से कालाधन लाएंगे और हर व्यक्ति को 15 लाख रूपए मिलेंगे, वो कहां हैं। तो उनकी जानकारी के लिए बता दें कि मोदी ने सत्ता में आते ही जिस एसआईटी का गठन किया था वो अब तब सुप्रीम कोर्ट को छह अंतरिम रिपोर्ट सौंप चुकी है। कालेधन पर लगाम लगाने के संबंध में इसकी अधिकांश सिफारिशें सरकार ने स्वीकार भी कर लीं हैं। इनके मुताबिक तीन लाख रूपए से अधिक का नकद लेन-देन गैरकानूनी करार दिया गया है। 15 लाख रूपए से अधिक नकद रखने को गैरकानूनी करार देने पर भी विचार चल रहा है। एसआईटी के गठन के बाद 70,000 करोड़ रूपए से अधिक के काले धन का पता लगाया जा चुका है जिसमें 16,000 करोड़ का विदेश में जमा कालाधन शामिल है। अगर 2जी और नेशनल हेरल्ड घोटाले का पर्दाफाश करने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी पर यकीन करें तो गांधी परिवार ही नहीं, वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम सहित यूपीए के अनेक नेता कमीशन एजेंट के रूप में काम करते थे। ये तरह-तरह के हवाला रूटों के जरिए विदेशों में पैसा जमा करवाते थे और संकट पडऩे पर इस धन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में भी माहिर थे। इनके विदेशी खातों में लाखों करोड़ों रूपए का काला धन जमा है। जाहिर है मोदी के आने के बाद इन्होंने अपना कालाधन कहीं न कहीं तो ठिकाने लगाया होगा। मोदी सरकार ने काले धन के स्वर्ग माने जाने वाले स्विट्जरलैंड और मॉरीशस सहित अनेक देशों से भी जानकारी हासिल करने के लिए समझौते किए हैं। जाहिर है, जांच जारी है और बहुत सी जानकारियां हासिल भी हुईं हैं। अगर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सहयोग करें और ईमानदारी से अपना कालाधन घोषित कर दें तो मोदी सरकार हर भारतीय के खाते में 15 लाख तो क्या 20 लाख रूपए भी जमा करवा सकती है।
लेकिन एसआईटी का गठन तो सिर्फ शुरूआती कदम था। काले धन और दलालों को बढ़ावा देने वाली व्यवस्था को समाप्त करना, नई पारदर्शी व्यवस्था का निर्माण करना अभी बाकी था। मोदी सरकार ने इसके लिए युद्धस्तर पर काम किया और एक ऐसी व्यवस्था स्थापित की जो न केवल सत्ता के गलियारों में दलालों का दखल रोकती थी, बल्कि ये भी सुनिश्चित करती थी कि पारदर्शी तरीके से सिर्फ ऐसे लोगों को काम मिले जो इसके काबिल हों। इसके लिए सरकार ने एक रणनीति अपनाई जिसके प्रमुख अंग थे – जनजागरण, तकनीक आधारित ई-गवर्नेंस, व्यवस्था आधारित नीति के अनुसार चलने वाली सरकार, कर प्रणाली का सरलीकरण, हर स्तर पर प्रक्रियाओं को सरल, व्यावहारिक और ग्राह्य बनाना, मौजूदा कानूनों को संशोधित करना और आवश्यकता पडऩे पर नए कानून बनाना।
अपने कार्यकाल में मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जितना काम किया है अगर हम उसका विस्तार से वर्णन करने लगें तो कई पत्रिकाएं छापनी होंगी, लेकिन हम यहां बहुत संक्षेप में बताना चाहेंगे कि इस क्षेत्र में सरकार का क्या योगदान रहा। सरकार ने काले धन और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए अनेक विधायी, प्रशासनिक और तकनीकी कदम उठाए हैं। विधायी उपायों में शामिल हैं – ब्लैक मनी (अनडिस्क्लोस्ड फॉरेन इनकम एंड असेट्स) इंपोसिशन एक्ट, बेनामी ट्रांसेक्शन (प्रोहीबिशन) अमेंडमेंट एक्ट, 2016, सिक्योरिटीज लॉज़ (अमेंडमेंट) एक्ट, 2014, स्पेसीफाइड बैंक नोट्स (सीसेशनन ऑफ लाएबिलिटीज एक्ट), 2017, भगोड़े आर्थिक अपराधियों के खिलाफ यूजिटिव इकोनॉमिक ऑफेंडर्स एक्ट, 2018, चैकों के जरिए धोखाधड़ी रोकने के लिए नेगोशियेबल इंस्ट्रूमेंट (अमेंडमेंट) एक्ट, 2018 आदि।
इन सबके साथ ही मोदी सरकार ने डिजीटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया ताकि लेन-देन ईमानदारी से हो और वो सरकार की निगाह में भी रहे।
प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। आप देख सकते हैं कि यूपीए सरकार के भ्रष्टाचारी शासन के बरक्स मोदी सरकार ने न केवल स्वच्छ प्रशासन दिया, बल्कि भ्रष्टाचार मुक्त नई व्यवस्था की नींव भी रख दी। अब ये आपके हाथ में है कि आप इस नींव पर नई इमारत बनाना चाहते हैं या भ्रष्टाचार के दलदल में फिर से फंसना चाहते हैं।
रामहित नंदन
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राफ़ेल का भुगतान – राहुल गांधी का दर्द
राहुल गांधी का राफ़ेल प्रलाप विक्षिप्तता के शिखर पर पहुंच गया है। मुझे शुरू में इस बात को लेकर डर लगता था कि राफ़ेल के चक्कर मे कहीं राहुल गांधी पूरी तरह से अपना मानसिक संतुलन न खो दे लेकिन जिस अहंकारपूर्ण निर्लज्जता से गांधी परिवार पोषित है, उसकी संभावना अब कम ही लग रही है। राहुल गांधी ने अपनी पूरी दिनचर्या राफ़ेल को समर्पित कर दी है। उनका एक ही कार्य है कि नित्य रात को राफ़ेल का स्वप्न में आह्वान करके नए झूठ का सृजन करना और सुबह उसका उद्वेलित हो कर उवाच करना है। और फिर दिन के ढलने तक उसी उवाच की विष्ठा में अपना मुंह सनाये, नये झूठ के सृजन में लग जाना है।
पिछले 6 माह से राहुल गांधी राफ़ेल को लेकर सीएजी(कैग) की रिपोर्ट के पीछे पड़े थे और अब वह सार्वजनिक हो गयी है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार मोदी सरकार द्वारा किया गया राफ़ेल सौदा यूपीए सरकार द्वारा 2012 में किये गए अपूर्ण सौदे से 2.86 प्रतिशत सस्ता है, जिससे भारत की सरकार को 27000 करोड़ की बचत हुई है। अब यही 27000 करोड़ की सं या है जो राहुल गांधी और कांग्रेस को न सोने दे रही है और न ही रोने दे रही है। इस नए सौदे से भारत सरकार को लाभ हुआ है वह दरअसल सोनिया गांधी सहायतार्थ कोष का विशुद्ध नुकसान है। राहुल गांधी का यह राफ़ेल विलाप, उसके मां के प्रलाप की अंतर्कथा है।
यह भारतीय राजनीति और पत्रकारिता की विशुद्ध दरिद्रता ही है कि इस पूरी राफ़ेल गाथा में भारत की सरकार द्वारा प्रयुक्त भुगतान प्रक्रिया पर कोई बात नहीं की गयी है। ऐसा नहीं है कि इसकी कोई सर्वजिनिक जानकारी उपलब्ध नहीं थी लेकिन इस पर मौन बना हुआ है क्योंकि उसके तथ्य दुराग्राही मीडिया के एजेंडा के अनकूल नहीं है। मैं आज उसी को लिख रहा हूं जिसपर मीडिया चुप है।
जब भारत द्वारा राफ़ेल युद्धक विमान को खरीदने का अनुबंध किया गया तब इन विमानों का भुगतान करने के लिए एक कोष बनाया गया। इसके लिए फ्रांस की सरकार ने अपने राष्ट्रीय बैंक में एक ट्रेसरी एकाउंट खोला है जिसपर फ्रांस की सरकार का नियंत्रण है। इस खाते में भारत की सरकार एक मुश्त रकम का भुगतान नहीं जमा करती है बल्कि इसमे श्रृंखलावर पैसा जमा करती है। इससे भुगतान की प्रक्रिया, फ्रांस व भारत के प्रतिनिधियों के बीच होने वाली हर तिमाही उस बैठक के अनुसार होती है जो राफ़ेल सौदे की प्रगति की समीक्षा करती है। यह सब फ्रांस में, भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टेन रैंक के अधिकारी की निगरानी में होता है।
जब दोनो ही पक्ष, फ्रांस व भारत, इस परियोजना के लक्ष्यों की प्रगति को लेकर आपसी सहमति बना लेते हैं, तब इस खाते से दस्सॉल्ट एविएशन और एकबीडीए को धन संवितरित किया जाता है। इसके अलावा, भारत व फ्रांस के बीच हर 6 माह पर सामरिक सहभागिता के स्तर की बैठक होती है, जो राफ़ेल सौदे की समीक्षा करती है। यहां यह बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट है कि भारत की सरकार राफ़ेल परियोजना में भागी बने विभिन्न विक्रेताओं को कोई भी सीधे भुगतान नहीं कर रही है।
राफ़ेल परियोजना के भुगतान के लिए बना कोष व उससे भुगतान करने की प्रक्रिया ही अपने आप में स्पष्ट कर देती है कि यह राफ़ेल सौदा पूरी तरह से दो राष्ट्रों, भारत और फ्रांस के बीच है न कि दस्सॉल्ट एविएशन और भारत के बीच है। राहुल गांधी की नैराश्य से उपजी विक्षिप्तता यही सोंच कर है कि यह सौदा दस्सऑल्ट एविएशन और सोनिया गांधी सहायतार्थ कोष के बीच क्यों नही हुआ है?
-पुष्कर अवस्थी