आप भी क्यों या क्यों नहीं के कुछ कारण बताएँ तो अवश्य ही आँखों के आगे छाया धुँधलका छँटेगा और तरक़्क़ी की राहें रौशन होंगीं |
मैं न तो भाजपा का सदस्य हूँ, न कार्यकर्त्ता, फिर भी एक बार पुनः भाजपा की सरकार बनते देखना चाहता हूँ | आख़िर क्यों :-
1. भाजपा इकलौती ऐसी पार्टी है जिसकी नीति और नीयत स्पष्ट है | अतिशय तुष्टिकरण के कारण बाक़ी सभी पार्टियाँ संशयग्रस्त रहती हैं और आर-पार वाले निर्णय के वक्त में भी वोट की चिंता में ‘गिरगिट’ बनी नज़र आती है |
2. भाजपा के अलावा किसी और दल के पास साहसिक निर्णय लेने वाला राष्ट्रवादी नेतृत्व नहीं है |पहली बार किसी सरकार ने दूसरे देश की सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक करने की हिम्मत दिखाई |
3. कर्मठता, ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता, वक्तृत्व-कौशल, अंतरराष्ट्रीय प्रभाव एवं सूझ-बूझ , निष्कलंकता, पार्टी व कार्यकर्त्ताओं को अनुशासित रखने की क्षमता- ऐसी तमाम कसौटियों पर नरेंद्र मोदी जी शेष दलों के नेताओं से बीस ही पड़ते हैं, उन्नीस नहीं |
4. चाहे मुख्यमंत्री के रूप में मोदी जी का कार्यकाल हो या प्रधानमंत्री के रूप में, दूसरे दलों से एक भी ऐसे नेता का नाम सुझाएँ जो उनके आस-पास भी ठहरते हों !
5. दूसरे दलों के जितने भी समकालीन नेता हैं, जिनमें प्रधानमंत्री बनने की आकांक्षा-महत्त्वाकांक्षा पल रही है वे भ्र्ष्टाचार के मोर्चे पर बहुत ढुलमुल और कमज़ोर पड़ते हैं| जबकि विगत पाँच वर्षों में सरकार, प्रधानमंत्री या उनके किसी भी मंत्री पर भ्र्ष्टाचार का आरोप सिद्ध कर पाने में विपक्ष पूरी तरह विफल रहा है | ले-देकर राफेल एक मुद्दा रहा है,जिसे कैग और सुप्रीम कोर्ट भी ख़ारिज कर चुका है | और अब तो तमाम हथियार सौदागरों के नाम रॉबर्ट वाड्रा से होते हुए राहुल गाँधी जी से जुड़ते दिखाई दे रहे हैं | बल्कि काँग्रेस भ्र्ष्टाचार के प्रति कितनी गंभीर है, इसका अनुमान आप इसी से लगा सकते हैं कि उसने तमिलनाडु के शिवगंगा सीट से भ्र्ष्टाचार के अनेकानेक मामलों में घिरे कार्ति चिदंबरम को लोकसभा का टिकट थमा दिया ? यह प्रवृत्ति राजनीति के इस चलन को स्थापित करती है कि ” तुम भी खाओ, हम भी खाएँ !”
6.वंशवाद के मोर्चे पर लगभग सभी पार्टियों में अगला अध्यक्ष कौन होगा यह लगभग जगतविदित तथ्य होता है, लेकिन क्या आप बता सकते हैं कि बीजेपी का अगला अध्यक्ष कौन होगा ? बीजेपी में नेता-पुत्र या पुत्रियों को टिकट अवश्य मिलता है, पर वहाँ अनुराग ठाकुर, वरुण गाँधी, दुष्यंत सिंह और पंकज सिंह जैसे तमाम युवा नेता भी मंत्री-पद के लिए प्रतीक्षा की कतार में खड़े कर दिए जाते हैं | है किसी पार्टी में ऐसी हिम्मत ! बीजेपी में आडवाणी जी और जोशी जी जैसे नेता यदि सेवानिवृत्त किए जाते हैं तो तेजस्वी सूर्या जैसे नितांत गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले प्रतिभाशाली युवा को बंगलौर जैसे प्रतिष्ठित सीट से बिन माँगे टिकट भी प्रदान किया जाता है |
7.भारतीय राजनीति में छोटे-छोटे दलों के अध्यक्षों या क्षेत्रीय दलों के प्रमुखों की कई-कई पुश्तें तर जाती हैं, उनके पास अकूत संपत्ति जमा हो जाती है, कई-कई हजार करोड़…. | उनके सगे-संबंधी सबका इहलोक-परलोक तक सध जाता है | पर मोदी जी ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो अपनी भावी पीढ़ी के लिए कुछ संचित करने की बात तो दूर अपितु उनके भाई-बंधु एवं परिवार के अन्य लोग सामान्य से भी बदतर स्तर की ज़िंदगी बड़े स्वाभाविक-सहज ढ़ंग से खुशी-खुशी जीते हैं | बल्कि सुना तो यहाँ तक जाता है कि मोदी जी भेंट में मिली वस्तुओं का भी दान कर उससे प्राप्त धन को गरीबों के उत्थान में लगा देते हैं |
8. बीजेपी ही एकमात्र पार्टी है जो धारा 370, अनुच्छेद 35 A, राम-मंदिर, समान नागरिक संहिता, तीन तलाक, नक्सलवाद, अलगाववाद, आतंकवाद, कश्मीर-समस्या, रोहिंग्या मुसलमान, बांगलादेशी घुसपैठिये, राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय पहचान-पत्र, गौ-संरक्षण एवं संवर्द्धन जैसे तमाम मुद्दों पर कम-से-कम अपना मत खुलकर रखती है, बाकी सभी दल तो वोट के लालच में ऐसे मुद्दों पर भी तुष्टिकरण की राजनीति या किंतु-परंतु करने से बाज नहीं आते |
9. गत पाँच वर्षों में भारत की अंतर्राष्ट्रीय साख़ विश्व-पटल पर बढ़ी है | इसे कोई अंधा-बहरा भी देख और समझ सकता है | अनेक अवसरों पर दुनिया के तमाम देशों ने गुटनिरपेक्षता का त्याग कर हमारा साथ दिया है | आप सर्जिकल स्ट्राइक पर दुनिया का रुख याद कर सकते हैं |
10. महँगाई पूरे पाँच वर्ष में कभी भी अनियंत्रित नहीं हुई और खाद्य-पदार्थों के मूल्य में तो आश्चर्यजनक रूप से कमी आई या स्थिरता रही |
11. वैश्विक मंदी के दौर में भी भारत का विकास-दर औसत से बेहतर रहा | विदेशी मुद्रा-भंडार बढ़ा | अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों की दृष्टि में हमारा स्तर सुधरा | विदेशी निवेश बढ़े | विगत सरकार की लचर नीतियों के कारण बैंकों में घोटाला कर भागे लुटेरों की संपत्तियाँ पहली बार जब्त हुईं | ऐसे लुटेरों में एक डर का माहौल व्याप्त हुआ |
12. स्वच्छता एक संस्कार के रूप में जन-आंदोलन बना | सार्वजनिक स्थलों, ट्रेनों, प्लेटफार्मों की स्वच्छता में आशातीत सुधार हुआ | बच्चों और विद्यालयों में स्वच्छता को लेकर जागरूकता का संचार हुआ |
13.बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, चिकित्सा, यातयात, आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं के क्षेत्र में भी इस सरकार का प्रदर्शन पिछली सरकारों से बहुत बेहतर रहा है | हर गाँव का विद्युतीकरण हुआ है | आजादी के 67-68 साल बाद पिछले वर्ष मेरे गाँव में बिजली पहुँची और इस गति से कि अब मेरे गाँव के किसान बिजली से सिंचाई तक की सोचने लगे हैं | कई गाँवों में पक्की सड़कें अब जाकर बनी हैं | हाई स्पीड ट्रेनों का सपना अब जाकर शुरू हुआ है | ट्रेनों में सुविधाएँ पहले की तुलना में अब देखिए | चादर और कंबल की साफ-सफाई पर ही ग़ौर कर लीजिए | बल्कि मैं यह कहूँगा कि इस सरकार के आने के बाद व्यवस्थागत जड़ता एवं शिथिलता दूर हुई है और गतिशीलता एवं सक्रियता आई है |
14. सामरिक शक्ति में वृद्धि हुई है | आतंकवादी वारदातों में कमी आई है | सेना को निर्णय लेने की छूट मिली है | सेना का मनोबल बढ़ा है | सैन्य उपकरणों एवं सुरक्षा संसाधनों पर बजट बढ़ाया गया है |
15. बाक़ी सभी दलों के पास देश को आगे ले जाने का कोई एजेंडा नहीं है | वे केवल एक नकारात्मक एजेंडे के तहत एक साथ आए हैं कि येन-केन-प्रकारेण मोदी जी को रोकना है, पर बीजेपी और मोदी जी के पास देश की, न्यू इंडिया की एक मुकम्मल भावी तस्वीर है|
16. दूसरी सरकारें अब भी मुफ़्तख़ोरी को बढ़ावा देते हुए जनता को झुनझुने थमा रही है | छह दशकों में जो सरकार ग़रीबी दूर नहीं कर पाई, वह एक बार फिर कुछ टुकड़े फेंक भारत के स्वाभिमानी जन-मन को “”पालतू” बनाने के लिए पाँसे फेंक रही है, जालें बिछा रही है | जबकि उसके पास अभी भी गरीबी दूर करने की कोई ठोस योजना नहीं है और उसके बरक्स वर्तमान सरकार मेकिंग इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्ट अप योजना आदि के माध्यम से कम-से-कम आत्मनिर्भरता की दिशा में कुछ तो प्रयास करती दिख रही है |
17. बीजेपी राष्ट्रीय हितों और मुद्दों पर न्यूनतम राजनीति करती दिखाई देती है |और जो राजनीति करती भी है, वह प्रायः अपने बचाव या स्पष्टीकरण के रूप में | शेष दल ऐसे मुद्दों पर भी देश से अधिक वोट-बैंक की चिंता करते नज़र आते हैं | आप जेएनयू प्रकरण, याकूब मेनन, अफजल गुरु, रोहिंग्या एवं बांग्लादेशी घुसपैठिए आदि प्रकरणों को उदाहरण के तौर पर याद कर सकते हैं |
18. बीजेपी पर संघ जैसे सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन का नैतिक अंकुश रहता है जो उसे और उसके नेताओं को स्वेच्छाचारी , अराजक, एवं व्यक्तिवादी बनने से रोकता है | आडवाणी जी के चरम दिनों में किसने सोचा होगा कि एक दिन नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे ? बलराज मधोक, कल्याण सिंह, शंकर सिंह बाघेला, केशु भाई पटेल जैसे कद्दावर नेता आपको याद हैं न ? यहाँ व्यक्ति से बड़ा दल और दल से बड़ा राष्ट्र का सिद्धांत आज भी कुछ अर्थों में देखने को मिलता है |
19. याद कीजिए चाहे वह सबरीमाला हो, चाहे पश्चिम बंगाल में जनसंख्या का असंतुलित विस्तार हो, चाहे पाकिस्तान के सिंध प्रांत में जबरन अगवा की गई हिंदू लड़कियाँ हों, चाहे त्योहारों-उत्सवों पर निकाली गई झाँकियों के दौरान जबरन उपस्थित किया गया गतिरोध हो- ऐसे तमाम मुद्दों पर किस पार्टी ने बहुसंख्यकों की भावनाओं को समझते हुए उसे स्वर दिया और किसने इसे प्रतिक्रिया देने लायक़ भी नहीं समझा | चलिए हमारा पक्ष न लें पर कम-से-कम दोषियों को मज़हब से ऊपर उठकर तो देखें | अस्तित्व रक्षा किसी का भी प्राथमिक दायित्व होता है | पूरी दुनिया में इस्लाम ने जिस प्रकार अपना विस्तार किया है, वह प्रभावित कम आतंकित अधिक करता है | जिस स्वतंत्रता में हमने साँसें लीं, हम चाहेंगें कि हमारे बच्चे भी उसी स्वतंत्रता में साँस लें | जिस प्रकार क्षद्म धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तमाम पार्टियाँ संस्थाओं के इस्लामीकरण पर आमादा हो जाती हैं, क्या उसमें हम सर्व-धर्म-समभाव और सनातन उदार, स्वतंत्र सोच का संरक्षण-संवर्द्धन कर सकेंगें ? यह यक्ष-प्रश्न मुझे केवल और केवल बीजेपी को ही चुनने को बाध्य करता है |