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चुनाव, राष्ट्रवाद और राजनीति

देश का राजनीतिक माहौल नए रंग ले रहा है। वजह घिसे पिटे चुनावी नारों व मुद्दों का हवा हो जाना है। देश की जनता आंदोलित है। वजह देश की सुरक्षा, राष्ट्रीय अस्मिता, स्वाभिमान व सेना के शौर्य जैसे संवेदनशील मुद्दों का हावी हो जाना है। पुलवामा के आतंकी हमलों के बाद बालकोट में वायुसेना की सर्जिकल स्ट्राइक व विंग कमांडर अभिरंजन कुमार प्रकरण में मिली भारतीय राजनय को मिली जय विपक्षी पार्टियों को पच नहीं रही है। उनकी खिसकती राजनीतिक जमीन के बीच कश्मीर में अलगाववादी नेताओं व संगठनों, बर्मा में उत्तर पूर्व के अलगाववादी व आतंकवादी नेताओं व संगठनों व अंतरिक्ष में भी सर्जिकल स्ट्राइक की क्षमता हासिल करने की खबरों ने दुश्मनों व महा शक्तियों को हिला दिया और लोकसभा चुनावों के चढ़ते माहौल के बीच विपक्षी पार्टियों की राजनीति को बेरंग कर दिया। अब पूरा देश आंदोलित है व राष्ट्ररक्षा व सेना के शौर्य व बलिदान के मुद्दे केंद्र में हैं और अन्य सभी मुद्दे गौण हो गए हैं। पाकिस्तान को घर में घुसकर मारने की मोदी सरकार की रणनीति व आक्रामक राष्ट्रवाद ने प्रधानमंत्री मोदी को जनता में फिर से बेहद लोकप्रिय बना दिया है।
जनता विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के तीन प्रमुख नेताओं राहुल, ममता व माया को गंभीरता से नहीं ले रही है। कांग्रेस पार्टी को संजीवनी देने के लिए राजनीति में उतरी प्रियंका वाड्रा भी फीकी पड़ गयी हैं तो उन्होंने सरकार बनने पर 5 करोड़ गरीब परिवारों को 72000 रुपये न्यूनतम आय योजना की घोषणा कर डाली। प्रियंका को उत्तर प्रदेश में मंदिर मंदिर व घाट घाट घुमाया जा रहा है ताकि जाति, धर्म के कार्ड के माध्यम से सपा, बसपा व भाजपा के वोट बैंक में सेंध लग सके। किंतु उत्तर प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस की लाख कोशिशों के बाद भी गठबंधन को खासी बढ़त मिली हुई है यह विशेषकर भाजपा के लिए बड़ी चिंता व चुनौती है। राहुुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद गांधी परिवार द्वारा हाशिए पर धकेलने की कोशिश से क्षुब्ध कांग्रेसी बुजुर्गों के बयानों से कांग्रेस पार्टी की स्थिति खराब हो रही है। ऐसे में जब पूरा देश सुरक्षा के मसले पर सेना व सरकार के साथ खड़ा है, इसके नेता सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत व आतंकियों की लाशों की संख्या मांगने लगते हैं।
इस तरह के बयान कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति दिनोंदिन कमजोर कर रहे हैं। बुर्जुग नेता यही चाहते हैं कि गांधी परिवार के नेतृत्व में कांग्रेस बुरी तरह हारे व वे कांग्रेस पर कब्जा कर लें। आज कांग्रेस के साथ कुछ स्वार्थी व महत्वाकांक्षी नेता व कुछ कट्टरपंथी अल्पसंख्यक लोग ही बचे हैं और अब दिग्विजय सिंह व कपिल सिब्बल उनके नेता हैं। अंदरूनी रूप से कांग्रेस पार्टी में यह चर्चा जोरों पर है कि लोकसभा चुनाव हाथों से निकल चुके हैं और अब लकीर पीटने के सिवा कुछ नहीं बचा है। ऐसे में गांधी परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर लग चुकी है। हैरान-परेशान व बीमार सोनिया, तेजहीन राहुल तो नेशनल हेराल्ड का अवैध दफ्तर चुपचाप खाली करने में लगे हैं, वहीं बिना खिले ही मुरझाने वाली प्रियंका खासी हताश हैं। एक ओर उनका राजनीतिक भविष्य दांव पर है तो दूसरी ओर पति। बेल-गाड़ी में सवार गांधी परिवार को बुजुर्ग कांग्रेसी अपने बयानों से और भी कमजोर कर रहे हैं। लोकसभा चुनावों में हार की आशंका से पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं का मनोबल व आत्मविश्वास वैसे ही टूटा है ऊपर से अंदरखाने परिवार के नेतृत्व को चुनौती मिलती जा रही है। ऐसे में पार्टी में बड़ी भगदड़ देखने को मिल रही है। तो क्या माना जाए कि कांग्रेस में अब गांधी परिवार के दिन लद गए? पार्टी में दोफाड़ होगी या परिवार की सम्मानपूर्वक विदाई। यह लोकसभा से पहले होना थोड़ा मुश्किल है किंतु चुनाव परिणाम आने के साथ ही होना तय है।
विपक्ष का महागठबंधन न बनने दे पाना भाजपा के लिए बड़ी उपलब्धि है और इसके न बनने के लिए उसकी ओर से लगातार अंदरखाने खेल खेले जा रहे हैं। इसके साथ ही बड़ी मात्रा में विपक्षी पार्टियों के नेताओं को भाजपा में शामिल किया जा रहा है। पुलवामा व बालकोट के बाद देश मे चली राष्ट्रवाद की बयार के बीच अनेक विपक्षी दलों विशेषकर कांग्रेस पार्टी ने हथियार डाल से दिए हैं और अनेक राज्यों में वह गठबंधन से परहेज कर रही है। ऐसा वह अपनी पार्टी के रूप में स्वतंत्र पहचान व ताकत बनाये रखने व बढ़ाने के लिए कर रही है ताकि सन 2024 या जब भी अगले लोकसभा चुनाव हो तो वह पुन: बड़ी ताकत बन फिर से सत्ता पा सके। देशभर में अनेक क्षेत्रीय दलों का अपना अपना मजबूत आधार है और वे अपने अपने प्रदेशों में भाजपा को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। मगर विपक्ष न ही एक हो पाया है और न ही भाजपा की नीतियों के विरुद्ध कोई वैकल्पिक कार्यक्रम व योजना दे पाया है। देश की अनेक समस्याएं यथा बेरोजगारी, किसानों की समस्या आज भी जनता को परेशान कर रही है, मगर विपक्ष उनको जनता के बीच चर्चा का विषय नहीं बना पाया। भाजपा के लिए यह बड़ी उपलब्धि है कि अधिकांश राज्यों में वह बड़ी ताकत बन चुकी है व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्दगिर्द ही पूरा लोकसभा चुनाव केंद्रित हो गया है। मोदी के व्यक्तित्व व कार्यों के विश्लेषण के केंद्र में ही सभी दल चुनाव लड़ रहे हैं।
देश की आक्रामक रक्षा नीति, विदेशों में भारत का बढ़ता मान- सम्मान, दंगा व आतंकी घटनाओं से मुक्त देश, एक राष्ट्र-एक कर, विमुद्रिकरण, ई गवर्नेंस व ई टेंडरिंग, आधार से सरकारी योजनाओं को जोड़ भ्रष्टाचार की समाप्ति, सबके बैंक खाते, उज्ज्वला योजना, स्वच्छ भारत अभियान, स्वास्थ्य बीमा योजना, देश में सड़क, रेल, जल व हवाई यातायात का द्रुत विकास, बिजली की बढ़ती उपलब्धता, कृषकों की आय में वृद्धि व सम्मान निधि, अंतरिक्ष के क्षेत्र में नई छलांग, सवर्ण आरक्षण, आयकर छूट की सीमा में वृद्धि, देश की दो तिहाई अर्थव्यवस्था को सफेद करना, सैकड़ों हज़ारों घोटालेबाजों पर कार्यवाही, लोकपाल की नियुक्ति, मजदूरों के लिए पेंशन योजना, स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, गंगा की सफाई, विशालतम कुंभ का सफल आयोजन, राष्ट्रवाद की अलख जगा हर देशवासी को देश से जोडऩा, उत्तर पूर्व, पूर्वी भारत, कश्मीर व नक्सली क्षेत्रों में विकास की नई लहर व सबसे बड़ी बात जाति व अल्पसंख्यक वाद से निकल ‘सबका साथ सबका विकासÓ की नीति पर कार्य करना मोदी सरकार की ऐसी उपलब्धियां है जिनके दम पर वह पुन: बहुमत प्राप्त कर सकती है। यद्यपि भाजपा व संघ परिवार के एजेंडे के प्रमुख मुद्दों यथा समान नागरिक संहिता, धारा 370, अयोध्या में राम मंदिर, न्यायपालिका व नौकरशाही पर नियंत्रण व उसका भारतीयकरण, फि़ल्म उद्योग में भारतीय संस्कृति को बढ़ाने, समलैंगिकता, अश्लीलता, सट्टा, पोर्न कल्चर, स्किल डेवलपमेंट, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, यातायात नियंत्रण व मल/ कूड़े के निस्तारण व भारत के भारतीयकरण आदि के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। राम मंदिर का मसला उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता के माध्यम से सुलझाने की पहल की है। अगर मोदी सरकार इस मुद्दे पर कोई निर्णायक पहल करती तो उसे चुनावों में बड़ा फायदा मिलना तय था।
कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव राष्ट्रवाद के मुद्दे के इर्दगिर्द आकर खड़े हो गए हैं और अभी तक मोदी हिंदुत्व के मुद्दे से परहेज कर रहे हैं। भाजपा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में बड़ी सैन्य कार्यवाही व कश्मीर में व्यापक स्तर पर आतंकियों व अलगाववादियों के खिलाफ कार्यवाही को ही चुनावी मुद्दा बनाए हुए है। भाजपा के कई बुजुर्ग व उग्र हिंदुत्ववादी नेताओं को हाशिए पर धकेला जा रहा है। किंतु कई राज्यों विशेषकर उत्तर प्रदेश में जनता दशकों से जाति व धर्म की राजनीति के इर्दगिर्द उलझा दी गयी है। ऐसे में राष्ट्रवाद की बयार के बीच बड़े बहुमत से जीतने के लिए भाजपा को हिंदुत्व का कार्ड चलना ही पड़ेगा। वैसे कश्मीर व पाक सीमा पर लगातार कार्यवाही व झड़पें चल ही रही हैं। अगर इनमें सरकार को कोई बड़ी सफलता मिलती है तो उसका श्रेय मोदी सरकार और अंतत: भाजपा को मिलना तय है। चलिए देखते हैं कि हिंदुत्व व राष्ट्रवाद किसके सहारे मोदी पुन: सत्ता में आते हैं? या विपक्ष कुछ नए तीरों से इनको भेद सारे सत्ता समीकरण व संभावनाएं ही बदल देगा?
अनुज अग्रवाल
संपादक

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