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जम्मू-कश्मीर में आतंकियों का पुनर्वास व मुस्लिम घुसपैठ

 

यह कितनी पक्षपातपूर्ण कुटिलता है कि पुनर्वास नीति के अंतर्गत 20-25 वर्षों से आतंकी बने हुए कश्मीरी जो पीओके व पाकिस्तान में शरण लिये हुए थे/हैं को धीरे-धीरे वापस ला कर पुन: कश्मीर में लाखों रुपये व नौकरियां देकर बसाया जा रहा है। ये आतंकी अपनी नई पाकिस्तानी पत्नी व बच्चों के साथ वापस आकर कश्मीर की मुस्लिम जनसंख्या और बढ़ा रहे हैं। इनको संपूर्ण नागरिक अधिकार व अन्य विशेषाधिकार मिल जाते हैं। मुख्यधारा में लाने के नाम पर इन कश्मीरी आतंकियों को हथियार छोडऩे पर उस हथियार के अनुसार अलग अलग राशि भी दी जाती है। फिर भी यह सुनिश्चित नहीं रहता कि ऐसे वापसी करने वाले आतंकी कब पुन: आतंक की दुनिया मे लौट जाएंगे! राष्ट्रीय सहारा में छपे 27 मार्च 2013 के समाचार के अनुसार तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर की विधान सभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया था कि ”जम्मू-कश्मीर में सन् 1990 से 28 फरवरी 2013 तक 4081 आतंकवादियों ने समर्पण किया।’’ इसी समाचार से यह भी ज्ञात हुआ जिसमें एक पूर्व आतंकी सैफुल्लाह फारूक ने बताया था कि सरकार को पहले कश्मीर के ही (उस समय के) 27000 उग्रवादियों/आतंकियों का पुनर्वास अच्छे से करना चाहिए। उसके बाद सीमा पार के आतंकियों को लौटने के लिए कहना चाहिए। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कितनी बड़ी संख्या में प्रशिक्षित उग्रवादी/आतंकवादी कश्मीर की गलियों में बारुद के ढेर लगाये हुए हैं।

ध्यान रहे कि 2004 में केंद्रीय व जम्मू-कश्मीर की सरकार ने तथाकथित भटके हुए कश्मीरी आतंकियों को मुख्य धारा में लाने के लिये ‘पुनर्वास एवं समर्पण नीति’ लागू की थी और बाद में वर्ष 2010 में इसे संशोधित करके लागू किया गया था। इसके अनुसार 1990 के दशक में आतंकी बना कोई भी कश्मीरी युवक अगर अपने देश में समर्पण करता है तो उसे इस नीति के अंतर्गत क्षमा करके पुनर्वास के लिए भी अनेक सुविधाएं भी दी जाएंगी। इस नीति का विरोध करते हुए जनहित याचिका की सुनवाई के अवसर पर सर्वोच्च न्यायालय में पेंथर्स पार्टी के अध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता श्री भीमसिंह ने कहा था कि ”ये नीतियां देश व राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा हैं तथा इससे जम्मू-कश्मीर में समाप्त हो रहे आतंकवाद को बढ़ावा ही मिलेगा।’’ इसके अतिरिक्त इस याचिका में मांग की गई कि अब तक समर्पण कर चुके 4000 आतंकियों के पते बताए जाएं और केंद्र व सरकार को निर्देश दे कर पाकिस्तानी पासपोर्ट धारक समर्पण करने वाले आतंकियों की भारतीय नागरिकता भी समाप्त करवाई जाये। वैसे अभी ये आंकंड़े स्पष्ट नहीं हुए हैं फिर भी अनेक आतंकी घटनाओं में पुनर्वास नीति का लाभ उठाने वाले तथाकथित पूर्व आतंकियों की भी संलिप्तता पाये जाने के समाचार आते रहे हैं।

नेपाल सीमा पर सन 2013 में आतंकी लियाक़त अली के पकड़े जाने पर जम्मू-कश्मीर की आतंकियों की आत्मसमर्पण व पुनर्वास नीति का अधिक विस्तार से प्रचार हुआ था। लियाक़त अली पूर्व आतंकी पुनर्वास नीति का लाभ उठाने के लिए अपनी पाकिस्तानी बीवी और बच्चों के साथ 20 मार्च 2013 को सोनाली सीमा, गोरखपुर में नेपाल के रास्ते भारत आते हुए पकड़ा गया था, जिसको अत्यधिक विवादित करके दिल्ली पुलिस को ही कटघरे में खड़ा कर दिया गया था। जबकि लियाक़त अली का नाम जम्मू-कश्मीर पुलिस ने सन 2000 में मोस्ट वांटेड आतंकियों के विरुद्ध एफआईआर की सूची में 84 नंबर पर रखा था। यह मूलरूप से कुपवाड़ा का रहने वाला है और पिछले 20 वर्षों से आतंकी गतिविधियों में लिप्त था। सन 1997 में लियाक़त पीओके जाकर प्रशिक्षण लेकर हिजबुल मुजाहिदीन से जुड़ गया था। दिल्ली पुलिस के अनुसार यह मार्च 2013 में होली के अवसर पर दिल्ली में कोई बड़ी आतंकी घटना के षड्यंत्र रचने आया था। बाद में उस समय के जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के हस्तक्षेप करने व एनआईए की जांच के बाद इसे छोड़ा गया था। इसी प्रकार और भी आतंकी अपनी पाकिस्तानी बीवी व बच्चों सहित आ कर आत्मसमर्पण नीति का लाभ उठा रहे हैं। यहां एक बात और विचार की जानी चाहिये कि अगर ये आतंकी पकड़े गए तो समर्पण नीति का लाभ पाते हैं और अगर न पकड़े जाते तो आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने में सफल हो जाते। पुलिस इस सच तक पहुंचने से पहले ही राजनीति का शिकार हो जाती है, जैसा कि लियाक़त अली के संदर्भ में होने का अनुमान है/ था!

बांग्लादेशी व रोहिंग्या आदि मुस्लिम घुसपैठिये

यह अत्यंत दुखद व निंदनीय है कि म्यांमार से भागे रोहिंग्या मुसलमान घुसपैठियों को सरकार ने जम्मू में बसाने की अनुमति दे दी है। इस प्रकार जम्मू क्षेत्र में जनसंख्या अनुपात को बिगाड़ कर ‘निज़ामे-मुस्तफा’ कायम करने का घिनौना षड्यंत्र रचा जा रहा है। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि शरणार्थियों व विस्थापित हिन्दुओं की इतनी विकराल समस्याओं के रहते हुए भी हज़ारों रोहिंग्या मुसलमानों (म्यांमार के घुसपैठियों) को मदरसों व एनजीओ की सहायता से जम्मू के बाहरी व सांबा क्षेत्र में कई वर्षों से बसाया जा रहा है, जिससे जम्मू में भी मुस्लिम जनसंख्या बढ़ रही है। जबकि बांग्लादेशी घुसपैठिये तो पहले से ही वहां बसाये जाते रहे हैं। इनको उन स्थानों पर बसाया जा रहा है जिन मार्गों से हिन्दुओं का आना-जाना लगा रहता है। प्राप्त समाचारों से यह भी ज्ञात हुआ है कि पूर्व की सरकारों ने भी चीन से भागकर आये हज़ारों तिब्बती मुसलमानों को कश्मीर में ईदगाह, बड़मवारी और गुलशन मौहल्ला और लद्ददाख की बस्तियों में बसाया था। ऐसे में जम्मू कश्मीर में रोहिंग्या व अन्य मुसलमान घुसपैठियों को बसाने का विचार केवल मज़हबी कट्टरता को ही बढ़ाने के संकेत हैं। क्या यह देश के साथ द्रोह और धर्मनिरपेक्षता पर इस्लाम का आक्रमण नहीं है? हमको याद रखना होगा कि सीरिया-ईराक़ से शरणार्थियों के रूप में आये मुस्लिम घुसपैठियों के अत्याचारों से आज विश्व के अनेक देश पीडि़त हैं। जबकि हम भी पहले ही लगभग 5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण आतंक व अपराध से ग्रस्त हैं। ऐसे में म्यांमार के मुस्लिम घुसपैठियों को प्रवेश देकर क्या आतंकियों व अपराधियों का दु:साहस नहीं बढ़ेगा? क्या बढ़ती हुई राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का कभी अन्त हो सकेगा? कब तक मुस्लिम तुष्टिकरण से हिन्दू स्वाभिमान हारता रहेगा? यहां एक महत्वपूर्ण विचारणीय बिंदु यह भी है कि सीरिया, ईराक़, बांग्लादेश, अफगानिस्तान व म्यांमार आदि से भागे या भगाये गये वास्तविक पीडि़त या तथाकथित पीडि़त मुसलमान शरणार्थी बन कर सऊदी अरब आदि किसी भी मुस्लिम देश मे मुसलमान होने के उपरांत भी शरण नहीं पाते, क्यों?

इसके अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर की एक और संवेदनशील समस्या विचार करने योग्य है कि पीओके के नागरिकों को कश्मीर में अपने बिछुड़े हुए परिवार से मिलने व स्वास्थ्य सम्बंधित सेवाओं के लिये पहले केवल एक माह तक रहने की छूट थी परंतु पिछली सोनिया गांधी/मनमोहन सिंह की सरकार ने मार्च 2011 में इस अवधि को छह माह तक बढ़ा दिया और उसपर भी मल्टीपल एंट्री की छूट और दे दी। इस प्रकार पीओके से आने वाले विभिन्न लोग कश्मीर में छह माह तक रह सकते हैं और इस अवधि में वे कितनी ही बार पीओके व कश्मीर के मध्य आना जाना कर सकते हैं। जब यह वर्षों से सर्वविदित ही था और है कि पीओके में अनेक आतंकवादियों के अड्डे बने हुए हैं और उनका कश्मीर के रास्ते भारत में आतंक फैलाना ही मुख्य मिशन है तो यह आत्मघाती निर्णय किस राजनीति का भाग है? इस प्रकार न जाने कितने मुस्लिम घुसपैठियों को भी कश्मीर में बसाया जाता रहा होगा?

अत: केंद्र सरकार को सभी मुस्लिम घुसपैठियों के देश में प्रवेश को ही निषेध करने के साथ साथ आतंकियों की पुनर्वास नीति व पीओके से आवागमन की अत्यधिक छूट को भी प्रतिबंधित करना होगा।

 

विनोद कुमार सर्वोदय

 

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