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भड़काऊ व बिगड़ैल आज़म खां 

लोकतांत्रिक मूल्यों का इतना अधिक बलात्कार सम्भवतः पहले कभी नही हुआ होगा। प्रजातंत्र में राज सत्ता पाने के लिए नेताओं में ऐसी कोई योग्यता अनिवार्य होनी चाहिये जिससे वह कम से कम सभ्यता व संस्कृति के विरुद्ध कोई आचरण न कर पाये। उसकी प्राथमिकता राष्ट्रहित व समाज के प्रति सकारात्मक होनी चाहिये। लोकतंत्र में अनेक अधिकार होने का अर्थ यह नही है कि उनका अपनी इच्छानुसार दुरुपयोग करो। समाज के सार्वांगिक विकास के साथ साथ उसका नैतिक व चारित्रिक उत्थान भी नेताओं का दायित्व होता है।
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मो.आज़म खान के द्वारा सुश्री जयप्रदा के प्रति किये गये अमर्यादित व अश्लील आचरण से आज सभ्य समाज व मानवता लज्जित हुई है।
पिछले 2-3 दिनों में ही आजम खान के कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर आने से चुनावी वातावरण और मैला होता जा रहा है। सरकारी अधिकारियों को बंधुआ मजदूर बनाने की मानसिकता से ग्रस्त आज़म खान का नेता बनना और फिर मंत्री तक बन जाना भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को आहत करता है। ऐसे दुर्व्यवहारी पर चुनाव आयोग में होने वाली आचार संहिता उल्लंघन की विचाराधीन याचिकायें प्रभावकारी होगी अथवा नहीं कहना कठिन है।
क्योंकि मोहम्मद आज़म खां का पूरा राजनैतिक जीवन विवादों से भरा हुआ है। उनकी बदजवानी व बदतमीजी किसी भी सभ्य नेता के लिये अशोभनीय हैं। पूर्व में जब भी वे  उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे तो भी इनका रौब मुख्यमंत्री से कम नहीं समझा गया। बिगड़ैल व बेलगाम आज़म खान अपनी सरकारी अकड़ में मानवीय संवेदनाओं को भूल जाते थे। उनका पूर्व में भी (16.3.2017) एक वीडियो वायरल हुआ उसमें जिस प्रकार अपने चुनावी जीत का प्रमाण पत्र लेने (11.3.17 की शाम ) जाने पर कीचड भरें मार्ग  के कारण उन्होंने वहां के रिटर्निंग अधिकारी (अभय कुमार गुप्ता) एसडीएम सदर, रामपुर को  डॉट लगाते हुए यहां तक कह दिया था कि “अभी तो हम मंत्री है और आपके विरुद्ध कार्यवाही कर सकते है”।उन्होंने यह भी कहा कि  “आप तो कूडें के ढेर में पड़े हुए थे, रोये थे, आप इतनी जल्दी नज़र बदलते हो” इत्यादि ।
आज़म खान के विवादों की सूची बहुत लंबी है सर्वप्रथम जब ये 1990 में पहली बार मंत्री बने थे तब भी अपने अधीनस्थ अधिकारी  ओंकारनाथ सिंह से गुत्थम-गुत्था हुई थी और उनको निलंबित कर दिया गया था। आज़म खान के राज्य अधिकारियों व कर्मचारियों के प्रति अभ्रद व्यवहार से पीड़ित सचिवालय संघ 2013  के अध्यक्ष यादवेंद्र सिंह सरकार को अवगत कराते रहें। नवम्बर  2013 के ही एक समाचार के अनुसार  प्रदेश के दो प्रमुख सचिव व एक विशेष सचिव सहित कुछ निजी कर्मचारियों ने तो इनके साथ काम करने को ही मना कर दिया था। भारत माता को डायन कहने वाले आजम खान हिन्दू अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार करते हुए कभी किसी को मुर्गा बनाते है तो किसी को कान पकड़ कर बैठक लगवाते है और चांटा मारना व डाट-डपट करना तो उनके लिये सामान्य बात होती थी । अधिक मूड खराब होने पर उसके लिये जिम्मेदार व्यक्ति को निलंबित करना आज़म खान के बिगड़े स्वभाव को दर्शाता है । एक बार 18 दिसम्बर 2012 को हावड़ा मेल से आजम खान अपने स्टाफ के साथ लखनऊ से रामपुर जा रहे थे तो रामपुर के निकट ए.सी. स्लीपर कोच के अटेंडेंट  निर्मल यादव को बिस्तर गंदे होने पर डांट लगाई परंतु अटेंडेंट के यह कहने पर की उसके पास ऐसे ही बिस्तर है , आज़म खान ने उसे थप्पड़ जड़ दिया और कान पकडवा कर 50 बैठकें लगवायी । इतना ही नही मंत्री के समर्थकों ने बाकी अटेंडेंटो को मुर्गा बनाया उनकी पिटाई की व माफ़ी मांगने पर छोड़ा था। निर्मल यादव इस घटना से इतने पीड़ित हुए कि वे कुछ दिन छुट्टी लेकर कोलकत्ता अपने घर पर रहें थे । इन पीड़ित रेल स्टाफ ने जीआरपी थाने अमृतसर में 20 दिसम्बर 2012 को  रिपोर्ट भी लिखवायी थी ।
वैसे उनकी मानसिकता को समझने के लिए  8 फरवरी 2012 को  गोरखपुर में हुई एक चुनावी सभा में मुसलमानों को भड़काते हुए उन्होंने जो कहा था वह पर्याप्त है कि “बदलाव लाओ और सपा सरकार के गुजरे उस कार्यकाल (2002 से 2007) को याद करो जब थाने के लोग “दाढ़ी” पर हाथ धरने से डरते थे”।( दैनिक जागरण 08.02.2012)। आज़म खान प्रदेश में  दादागिरी दिखाते हुए मुसलमानों को भी दबंग बने रहने के लिए कहते थे। वे अधिकारियों के लिए उनसे कहते थे कि “अधिकारी न आपके रिश्तेदार है और न मेरे, आप चाबुक हाथ मे रखिये वह सब सुनेंगे “।( दैनिक जागरण 31.01.2013) ।
पिछले वर्षों के समाचार पत्र गवाह है कि इनके कार्यकाल में जितने भी छोटे-बड़े साम्प्रदायिक दंगे हुए लगभग सभी में हिंदुओं का ही एकतरफा सरकारी उत्पीड़न हुआ । साथ ही दंगो के अतिरिक्त अन्य सामान्य दुर्घटनाओं में भी मुस्लिम समुदाय पर जम कर सरकारी कोष लुटाया गया। अगर रामजन्मभूमि मंदिर व प्रधानमंत्री मोदी जी पर इनके अत्यधिक कुटिल विवादास्पद बयानों का उल्लेख किया जाय तो मुझे ही साम्प्रदायिक घोषित कर दिया जायेगा।
इनकी देश भक्ति के विषय में वरिष्ठ पत्रकार श्री पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के एक वीडियो से ज्ञात हुआ कि जब 1965 में भारत-पाक युद्ध के समय रामपुर छावनी से सेना का युद्ध क्षेत्र में प्रस्थान हो रहा था तो इन्होंने अपने कालेज के  लगभग 50 साथियों के साथ वहां रास्ते में सड़क को क्षतिग्रस्त करके बाधा पहुँचाने का दुःसाहस किया था। जब इनकी पिटाई भी हुई और इनको रामपुर छोड़ कर अलीगढ़ भागना पड़ा था। सम्भवतः इस घटना से अधिकांश देशवासी अनजान होंगे।
इस कट्टरपंथी मुस्लिम नेता की तुलना औरंगजेब जैसे शासक से की जाय तो थोड़ी अतिश्योक्ति हो सकती है।
लेकिन भारत माँ को डायन कहने वाला, हिन्दू कर्मचारियों व अधिकारियों को बेइज्जत करना व पीटने का दुःसाहस करने वाला, औरंगज़ेबी भाषा बोलने वाला व महिलाओं का अपमान करने वाला ये कट्टरपंथी  मुस्लिम नेता कब तक अपने पापों से बचता रहेगा? ऐसे सिरफिरे नेता देश को अस्थिर करना चाहते है। अतः लोकतंत्र के उच्च आदर्शो को स्थापित करने के लिए मिथ्या व अपमानजनक भाषा का प्रयोग करने वालों पर वैधानिक सर्जिकल स्ट्राइक हो तो इसमें कुछ भी अनुचित न होगा। राजनेताओं की राष्ट्रविरोधी, आपत्तिजनक व विवादित शब्दावली को प्रतिबंधित करके ही भारत जैसे सभ्य देश में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हो सकती है।

विनोद कुमार सर्वोदय

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