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वजह बहुत सारी है मगर…

 

देश में किसी न किसी भाग में अक्सर चुनाव होते रहते हैं, किंतु लोकसभा चुनावों की बात कुछ और ही है। भारत एक अर्ध संघीय ढांचे वाला देश है और इसमें केंद्र सरकार के पास राज्यों की तुलना में कई गुना अधिक शक्तियां हैं। ऐसे में देश की दशा दिशा और विकास के दृष्टिकोण पर केंद्र सरकार हावी रहती है। ऐसे में केंद्र में मजबूत, जनकेन्द्रित, राज्यों को साथ लेकर चलने वाली व परिपक्व सरकार का आना बहुत आवश्यक है। वर्तमान लोकसभा चुनावों में देश में दर्जनों दलों के गठबंधन एनडीए व यूपीए के साथ हैं, इसके अलावा अनेक राज्यों में इन गठबंधनों से अलग बहुत सारे दल भी मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं और अनौपचारिक रूप से हम इन दलों में आपसी तालमेल देख इनको भविष्य का तीसरा या चौथा मोर्चा भी कह सकते हैं। इन सभी गठबंधनों का स्वरूप लोकसभा चुनावों के परिणामों के बाद ही वास्तविक रूप ले पायेगा क्योंकि वास्तविक स्थिति के अनुरूप ही फिर से सौदेबाजी व लेनदेन होंगे और स्थिति स्पष्ट हो पाएगी कि कौन सा दल व गठबंधन अंतत: देश पर राज करेगा।

देश की जनता के एक वर्ग में इस बार के चुनावों के प्रति बहुत ज्यादा उत्साह व भावनात्मक प्रवाह न होकर समझ, बौद्धिकता व परिपक्वता दृश्यमान है। यह वर्ग अनेक प्रकार की नाराजगी व कमियों के बाद भी मोदी सरकार की वापसी चाहता है क्योंकि उसे लगता है कि मोदी सरकार अगर और पांच साल आ गयी तो देश प्रथम, सांस्कृति के राष्ट्रवाद व  ‘सबका साथ-सबका विकास’ के लक्ष्य के साथ जिन परिवर्तनों की बुनियाद मोदी सरकार ने रखी है, वे पूर्ण स्वरुप ले लेंगे और देश का कायापलट हो जाएगा। इसलिए यह वर्ग स्थिरता के लिए सरकार चाहता है बदलाव के लिए नहीं। इनको लगता है कि देश की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छवि सुधरी है। बुनियादी काम जो दशकों से लटके थे उन पर काम शुरू हुआ है। देश मे घोटाले, दंगे व आतंकी घटनाएं समाप्त सी हो गयी हैं व प्रतिरक्षा के मामले में भी मोदी सरकार ने दुश्मनों के घर में घुसकर मारने की जो नीति बनाई है उससे देश का मान बढ़ा है।

एक दूसरा बौद्धिक वर्ग है जो मोदी सरकार की नीतियों व कार्यों का मुखर आलोचक है और देशहित में धर्मनिरपेक्ष सरकार लाना चाहता है। इस वर्ग को लगता है कि देश मे असहिष्णुता बढ़ गयी है व अल्पसंख्यक और दलित समुदाय पर अत्याचार भी। मोदी की नीतियों ने देश को बर्बाद कर दिया है और जुमलेबाजी ने अंतर्राष्ट्रीय छवि बिगाड़ दी है। इनके काम, राष्ट्रवाद व बहुसंख्यकवाद का नारा सब धोखा है और खुली अर्थव्यवस्था, अन्तर्राष्ट्रीयवाद व मानवतावादी दृष्टिकोण बेहतर हैं और अल्पसंख्यकों व दलितों-पिछड़ों को शेष समाज से ऊपर माना जाये व इस वर्ग के हितों के संरक्षण में अगर कुछ भ्रष्टाचार, अराजकता व कुशासन भी होता है तो वह गलत नहीं। इस सिद्धांत की आड़ में ये दल दलितों, अल्पसंख्यकों व पिछड़ों को गरीब व वोटबैंक बनाकर रखने में विश्वास करते हैं।

इन दो वर्गों व पाटों के बीच आम जनता है जो बौद्धिक रूप से परिपक्व नहीं है और भावनात्मक आधार पर वोट देती है।  यही वर्ग देश की राजनीति की दिशा तय करता है और बड़ी मात्रा में वोट देने भी जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस वर्ग में आज भी नायक की तरह हैं। इस वर्ग को लुभाने के लिए ही राजनेता नित नए नए स्वांग रचते हैं व बयानबाजी करते हैं। इस वर्ग को कट्टरपंथी व बाहुबली छवि के नेता ज्यादा पसंद आते हैं। इसलिए समाजसेवियों, उच्चतम न्यायालय व चुनाव आयोग की लाख कोशिशों के बाद भी इन चुनावों में सभी दलों द्वारा धनबल व बाहुबल का अपरिमित प्रयोग नहीं रुकता।

लाख कोशिशों के बाद भी इन चुनावों में सभी दलों द्वारा धनबल व बाहुबल के अपरिमित प्रयोग से जनता में खासी निराशा है। सच्चाई यही है कि 90 प्रतिशत से अधिक लोग अपने सांसदों से नाराज हैं। इसलिए काम के आधार की जगह जाति व धर्म के नाम पर राजनीति, अपराधियों को टिकट देने, मतदाताओं को पैसे, शराब आदि का लालच देकर खरीदने, चुनावी घोषणापत्रों में मतदाताओं को लुभाने के लिए नकदी बांटने की योजनाओं के वादे आदि खुलेआम किए जा रहे हैं। धर्म व जाति के नाम पर वोट देने की अपील पर उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर अंतत: चुनाव आयोग ने दर्जनों नेताओं के खिलाफ कार्यवाही भी की है किंतु बदजुबान नेता बदतमीजी से बाज नहीं आ रहे क्योंकि इनको लगता है कि ऐसा कर वे वोटरों के एक खास वर्ग को अपने पक्ष में कर सकते हैं।

देश मे चार चरणों का मतदान पूरा हो रहा है व तीन चरणों का बाकी है। तीन राज्यों में हार के बाद पिछड़ती दिख रही भाजपा, पुलवामा व बालकोट के बाद राष्ट्रवाद के मुद्दे के सहारे अपनी खोई हुई जमीन तलाशती दिखी तो राहुल राफेल को मुद्दा बनाए रखने के चक्कर में उच्चतम न्यायालय की अवमानना व मुख्य न्यायाधीश को यौन उत्पीडऩ के आरोपों में घेर कर दबाव डालने वाली हरकत के सूत्रधार तक बन गए। माया, ममता और सिद्धू मुसलमानों से भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर वोट करने की अपील कर भाजपा को चुनावों में हिंदुत्व के मुद्दे की ओर ले जाने की पृष्ठभूमि तैयार कर बैठे। अब भाजपा की ओर से साध्वी प्रज्ञा चुनाव मैदान में हैं और ‘हिन्दू आतंकवाद’ का मुद्दा भी, साथ ही भाजपा नेताओं व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बातें।

चुनावी परिणाम कुछ भी रहे मगर विपक्ष मोदी-शाह व संघ परिवार द्वारा बिछाई बिसात पर ही चाल चल रहा है और ऐसे में बहुमत से या गठजोड़ से कैसे भी एनडीए की सरकार बनने की संभावनाएं ज्यादा प्रबल है यानि देश सन 2009 वाली स्थिति दोहरा सकता है। ऐसा इसलिए भी है कि देश मे वामपंथी बुद्धिजीवियों, घोटालेबाजों, दलालों, भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों व अल्पसंख्यक समुदाय के एक वर्ग के अलावा प्रधानमंत्री मोदी से कोई नफरत नहीं करता।

By Anuj Agarwal

Editor

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