17 वीं लोकसभा चुनाव की सारी प्रक्रिया अब पूरी हो चुकी है और केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार (एनडीए) ने अपना कामकाज फिर से शुरू कर दिया है। यूं तो इस सरकार को देश हित में बहुत से अहम निर्णय लेने हैं, यदि सरकार देश में आबादी को रोकने के लिए भी कोई ठोस नीति लेकर आए तो इसका चौतरफा स्वागत ही होगा। अब इस मसले पर अविलंब निर्णय लेने की आवशयकता है। वैसे ही हमने अपनी आबादी को कम या काबू में करने में भारी देरी कर दी है। इसके पीछे लंबे समय तक सत्तासीन पार्टियों की वोट की राजनीति ही जिम्मेदार थी। तब एक खास समुदाय को खुश करके उनके वोट हथियाने के लिए कभी भी सत्ताधारी नेताओं ने आबादी को रोकने के संबंध में सोचा ही नहीं गया। इसी सोच के कारण उस खास समाज को भी भारी नुकसान हुआ। वह विकास की दौड़ से पिछड़ गये ।
इस बीच,योग गुरु बाबा रामदेव ने भी देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून लाए जाने का पक्ष लेते हुए हाल ही में कहा कि दो बच्चों के बाद पैदा होने वाले बच्चे को मताधिकार, चुनाव लड़ने के अधिकार और अन्य सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाना चाहिए। भारत को दिल से चाहने वाला हरेक नागरिक बाबा रामदेव की सलाह के साथ खड़ा होगा। मैं यह जरूर कहूँगा कि बच्चों को मताधिकार से क्यों वंचित किया जाय ? क्यों न तीन बच्चों को पैदा करने वाले पति-पत्नी को मताधिकार से वंचित करने की सजा दी जाय । बाबा रामदेव ने देश के सामने उस मसले के हल को पेश किया जिससे देश जूझ रहा है। दरअसल बढ़ती हुई आबादी देश को दीमक की तरह से चाट रही है। बढती आबादी को विकास का पूरा लाभ कोई भी सरकार कैसे दे सकती है । हमारी सारी विकास परियोजनाओं की सफलता के रास्ते में सदैव आबादी एक बड़े अवरोध के रूप में खड़ी हो जाती है। पर यकीन ही नहीं होता कि जहां देश अपनी 130 करोड़ से अधिक आबादी को लेकर चिंतित है, वहीं एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने बाबा रामदेव की सलाह के जवाब में कहा- ‘लोगों को असंवैधानिक बातें कहने से रोकने के लिए कोई स्पष्ट कानून नहीं है, लेकिन रामदेव के विचारों पर बेवजह ध्यान क्यों दिया जाता है?’ ओवैसी ने ट्वीट किया, वह योग कर सकते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि नरेन्द्र मोदी सिर्फ इसलिए अपना मताधिकार खो देंगे, क्योंकि वह तीसरी संतान हैं। जरा अंदाजा लगा लीजिए कि ओवैसी कितनी ओछी बातें कर सकते हैं। वे हर मसले पर सियासत करने से तो बाज ही नहीं आते। उन्हें यदि इस देश की रत्तीभर भी फिक्र होती तो वे इतनी हल्की बातें तो नहीं करते। क्या ओवैसी को यह दिखाई नहीं देता है कि सारा देश जनसंख्या विस्फोट के कारण कितना कमजोर हो रहा है? हर तरफ भीड़ ही भीड़ तो दिखाई देती है। रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, बाजार, शॉपिंग मॉल्स, सड़कों पर सभी जगह इंसान ही इंसान दिखाई देते हैं। अगर अब भी ओवैसी जनसंख्या विस्फोट के प्रति गंभीर नहीं हैं तो यह एक शर्मनाक स्थिति है। कहना न होगा कि ओवैसी जैसे कथित नेताओं के कारण ही देश का मुसलमान अंधकार युग में जीने को अभिशप्त है। बाबा रामदेव कमोबेश वही कह रहे है,जिसे चीन ने वर्षों पहले करके दिखा भी दिया। चीन ने एक बच्चे से अधिक पैदा करने वाले अपने नागरिकों को बहुत सी सुविधाओं से वंचित कर दिया था। बाबा रामदेव भी कह रहे हैं कि दो से ज़्यादा बच्चे पैदा करने वालों को मिलने वाली सभी सरकारी सुविधाएं छीन लेनी चाहिए। यहां तक कि मतदान का अधिकार भी। आख़िर चीन ने भी अपनी बढ़ती आबादी रोकने के लिए यही किया। वहां ‘एक दंपति एक बच्चा’ को सख्ती से लागू किया गया। भारत में भी “दो हम, हमारा एक” के सिधान्त पर अगले पचास वर्षों तक के लिए जब किहमारी आबादी घटकर कम से कम 100 करोड़ से कम नहीं हो जाती है।
जहां जनसंख्या विस्फोट के कारणदेश की नींद हराम हो जानी चाहिए थी, वहीं कुछ ज्ञानी जनसंख्या को एक वरदान के रूप में देखते हैं। वे यह मानते हैं कि जितने अधिक लोग होंगे, उतना ही अधिक काम हो सकेगा और उसी अनुपात में आय भी बढ़ेगी। हालांकि ये सोच घोर अतार्किक है। जनसंख्या विस्फोट में भी संभावनाएं देखने वाले जन्नत की हकीकत से वाकिफ नहीं हैं। बेरोजगारी, अशिक्षा और अपराध का सीधा संबंध तेजी से बढ़ती आबादी से है। देखा जाए तो अब हमारे लिए अपनी जनसंख्या का प्रबंधन करना अब असंभव सा हो चुका है। बेरोजगारी का आलम यह है कि तीन–चार हज़ार रूपये मासिक पर भी पढ़े-लिखे शिक्षित नौजवान पढ़ाने को तैयार हो जाते हैं। इंजीनियर को 15 हजार मिल जायें तो गनीमत है। मजदूर और किसान अमानवीय स्थितियों में जीने के लिए मजबूर हैं। इसे ही सस्ता श्रम कहकर विदेशी पूंजीनिवेश को आमंत्रित किया जाता है। बालश्रम अमानवीयता की हद तक स्वीकृत है। गांवों में अशिक्षा और निरक्षरता की स्थिति भयावह है।
भारत में 2011 में जनगणना हुई थी। उसी समय भारत की आबादी 1.20 करोड़ से अधिक हो चुकी थी। हम चीन के बाद दूसरे स्थान पर थे। पर अगर हमने तुरंत कठोर कदम नहीं उठाए तो हम 2025 तक हम तो चीन को भी मात दे चुके होंगे। भारत के साथ एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि हमारे देश के असम और पश्चिम बंगाल जैसे कुछ सूबों में हर साल लाखों बांग्लादेशी अवैध रूप से घुस जाते है। भारत की बांग्लादेश से चार हजार किलोमीटर से लंबी सीमा लगती है।
एक अनुमान के मुताबिक, भारत में तीन-चार करोड़ बांग्लादेशी नागरिक अब बस चुके हैं। ये देश के हर शहर में छोटा -मोटा काम करते हुए देखे जा सकते हैं। ये मुख्य रूप से आपराधिक मामलों में भी लिप्त रहते हैं। आपको याद होगा कि कुछ वर्ष पहले राजधानी के विकासपुरी में गैर-कानूनी तरीके से भारत में आकर बस गए बांग्लादेशी गुंडों ने डाक्टर पकंज नारंग का कत्ल कर दिया था। राजधानी के यमुना पार में बांग्लादेशियों का आतंक बढ़ता ही चला जा रहा है। जनकपुरी की घटना से सारी दिल्ली सहम गई थी। उस अभागे डा. पकंज नारंग का कसूर तो बस इतना ही था कि उन्होंने कुछ युवकों को तेज मोटर साइकिल चलाने से रोका था। बस इतनी सी बात के बाद बांग्लादेशियों ने डाक्टर नारंग को मार दिया था।
दरअसल अब देश को अपनी आबादी पर नियंत्रण करने के लिए एक व्यापक नीति बनानी ही होगी। इस मसले को राजनीति और धार्मिक आस्थाओं से ऊपर हटकर देखना ही उचित होगा। सबको याद रख लेना होगा कि देश बचेगा तो धर्म और राजनीति बचेगी।
आर.के. सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)