Shadow

मोदी सरकार का भ्रष्टाचार पर सशक्त वार

नरेन्द्र मोदी सरकार ने करप्शन पर सशक्त वार करते हुए भ्रष्टाचार और पेशेवर कदाचार के आरोप में आयकर विभाग के 12 वरिष्ठ अधिकारियों को सेवा से जबरन रिटायर करने का सराहनीय निर्णय लेकर एक मिसाल कायम की है। वरिष्ठ और अहम पदों पर बैठे भारतीय राजस्व सेवा के इन दंडित अधिकारियों पर रिश्वतखोरी, उगाही, यौन शोषण, अफसरशाही जैसे गंभीर आरोप हैं। वित्त मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत आयकर विभाग आर्थिक और वित्तीय संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मेहनत और ईमानदारी से अर्जित आय पर कर का भुगतान करनेवाले करदाताओं के बरक्स एक श्रेणी ऐसे लोगों की भी है, जो भ्रष्ट अधिकारियों से सांठ-गांठ कर करोड़ों रुपये की कर चोरी करते हैं एवं प्रशासनिक शुचिता को धुंधलाते हैं। ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई एक नई भोर का आगाज है।

वित्तीय लेन-देन और कराधान की प्रक्रिया को सुगम, सक्षम और पारदर्शी बनाने के लिए हाल के वर्षों में सरकार ने अनेक सार्थक कदम उठाये हैं। लेकिन, प्रशासनिक तंत्र में अगर भ्रष्टाचार और कदाचार का माहौल बरकरार रहेगा, तो सरकार के भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन के संकल्प का कोई अर्थ नहीं है। ऐसे में मोदी सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि न तो भ्रष्टाचार को बर्दाश्त किया जायेगा और न ही भ्रष्ट अधिकारियों को बख्शा जायेगा। यही कारण है कि इन वित्त अधिकारियों को घर का रास्ता दिखा दिया गया है। पहली नजर में यह एक सामान्य-सी खबर ही है। मगर यह जरूरी कदम है, और सराहनीय भी। इन अधिकारियों के खिलाफ लगे आरोपों के विस्तार में जाएं, तो पता चलता है कि ये सारे मामले न सिर्फ गंभीर हैं, बल्कि पूरी व्यवस्था को खोखला करने वाले हैं।

भ्रष्टाचार एवं आचरणहीनता भारत की प्रशासनिक व्यवस्था के बदनुमा दाग हैं, जिन्हें धोने एवं पवित्र करने के स्वर आजादी के बाद से गंूज रहे हैं, लेकिन किसी भी सरकार ने इस दिशा में कड़े कदम उठाने का साहस नहीं किया। काम कम हो, माफ किया जा सकता है, पर आचारहीनता तो सोची समझी गलती है- उसे माफ नहीं किया जा सकता। सिस्टम की रोग मुक्ति, स्वस्थ समाज का आधार होगा। राष्ट्रीय चरित्र एवं सामाजिक चरित्र निर्माण के लिए व्यक्ति को नैतिकता एवं चारित्रिक मूल्यों से बांधना ही होगा। प्रशासनिक अधिकारियों के लिये एक न्यूनतम आचार संहिता लागू होना अपेक्षित है। मोदी सरकार इस दिशा में नये इतिहास का सृजन करें, यह अपेक्षित है।

जबरन सेवामुक्त किये गये 12 अधिकारियों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के आरोप सही पाए गए थे और इन आरोपों के कारण उन्हें दस साल पहले ही निलंबित कर दिया गया था। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार कानून के तहत मामला दर्ज कराया गया, जो अभी तक चल रहा है। यह अकेला मामला ही बता देता है कि भ्रष्टाचार रोकने की मंशा एवं मिशन में कितने छिद्र हैं। जब किसी कर्मचारी को निलंबित करके उसके खिलाफ मामला चलाया जाता है, तो उसे इस निलंबन के दौरान उसके वेतन का एक हिस्सा दिया जाता है और इसके अलावा उसे सेवा से संबंधित अन्य सुविधाएं भी पहले की ही तरह मिलती रहती हैं। यह व्यवस्था तब तक रहती है, जब तक कि इस मामले में कोई अंतिम फैसला न हो जाए। यही कारण है कि ऐसे मामलों को लम्बा खिंचने के तमाम तरह के प्रयास होते हैं। यानी ऐसे मामलों में फैसले का लंबे समय तक लटके रहना, उस जनता के साथ अन्याय ही है, भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन जिसका अधिकार है।

दुष्टों की एकजुटता ही जगत में कष्टों की वजह है। जब तक सज्जन एकजुट नहीं होंगे, तब तक जगत की कोई समस्या हल नहीं होगी। और सज्जनों का एक जुट न होना दुष्टों का असली बल है। कभी-कभी ऊंचा उठने और भौतिक उपलब्धियों की महत्वाकांक्षा राष्ट्र को यह सोचने-समझने का मौका ही नहीं देती कि कुछ पाने के लिए उसने कितना खो दिया? और जब यह सोचने का मौका मिलता है तब पता चलता है कि वक्त बहुत आगे निकल गया और तब राष्ट्र अनिर्णय के ऊहापोह में दिग्भ्रमित हो जाता है।

जिन अधिकारियों को सेवा मुक्त किया गया है, उनमें एक ऐसे अधिकारी भी हैं, जिन पर एक तथाकथित राजनीतिक संत के इशारों पर एक कारोबारी से दबाव डालकर धन उगाहने का आरोप है। एक ऐसे अधिकारी भी हैं, जिन्होंने अपने और अपने परिवारजनों के नाम पर सवा तीन करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति जमा कर रखी थी, जबकि उनकी आमदनी के सारे स्रोतों से इतनी संपत्ति बनाना मुमकिन नहीं था। वैसे इन 12 में से ज्यादातर के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले ही हैं। इसके अलावा, इसी फेहरिस्त में एक ऐसे अधिकारी भी हैं, जिन पर अपने ही विभाग की दो महिला अधिकारियों के यौन उत्पीडऩ का मामला चल रहा है। जिन महिला अधिकारियों का उत्पीडऩ हुआ, वे आयुक्त स्तर की अधिकारी थीं। यह बताता है कि महिलाएं भले ही वरिष्ठ अधिकारी हो जाएं, पर वे सुरक्षित नहीं हैं, साथ ही यह भी कि कार्यस्थलों पर महिलाओं को यौन उत्पीडऩ से बचाने के लिए अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।

प्रशासनिक क्षेत्र एवं सर्वोच्च नौकरशाही कितनी भ्रष्ट, अनैतिक, अराजक एवं चरित्रहीन है, इन 12 अधिकारियों के कारनामों से सहज अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे मामलों को निपटाने में कई बरस लगते हैं और न तो समय रहते सजा मिल पाती है और न सजा बाकी लोगों के लिए सबक बन पाती है। भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए सबसे जरूरी यह है कि मामलों का निपटारा जल्दी हो और भ्रष्टाचारियों के लिए सजा की पक्की व्यवस्था बने। अधिकारियों को सेवामुक्त किया जाना स्वागत योग्य है, पर प्रशासन से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए इससे आगे बढ़कर बहुत कुछ करने की जरूरत है।

हर स्तर पर दायित्व के साथ आचार संहिता अवश्य हो। दायित्व बंधन अवश्य लायें। निरंकुशता नहीं। आलोचना भी हो। स्वस्थ आलोचना, पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों को जागरूक रखती है। पर जब आलोचक मौन हो जाते हैं और चापलूस मुखर हो जाते हैं, तब फलित समाज को भुगतना पड़ता है। आज हम अगर दायित्व स्वीकारने वाले समूह के लिए या सामूहिक तौर पर एक संहिता का निर्माण कर सकें, तो निश्चय ही प्रजातांत्रिक ढांचे को कायम रखते हुए एक मजबूत, शुद्ध व्यवस्था संचालन की प्रक्रिया बना सकते हैं। हां, तब प्रतिक्रिया व्यक्त करने वालों को मुखर करना पड़ेगा और चापलूसों को हताश, ताकि सबसे ऊपर अनुशासन और आचार संहिता स्थापित हो सके अन्यथा अगर आदर्श ऊपर से नहीं आया तो क्रांति नीचे से होगी। जो व्यवस्था अनुशासन आधारित संहिता से नहीं बंधती, वह विघटन की सीढिय़ों से नीचे उतर जाती है। राष्ट्र केवल पहाड़ों, नदियों, खेतों, भवनों और कारखानों से ही नहीं बनता, यह बनता है उसमें रहने वाले लोगों के उच्च चरित्र से। हम केवल राष्ट्रीयता के खाने (कॉलम) में भारतीय लिखने तक ही न जीयें, बल्कि एक महान राष्ट्रीयता (सुपर नेशनेलिटी) यानि चरित्रयुक्त राष्ट्रीयता के प्रतीक बन कर जीयें।

शासन-प्रशासन के किसी भी हिस्से में कहीं कुछ मूल्यों के विरुद्ध होता है तो हमें यह सोचकर निरपेक्ष नहीं रहना चाहिए कि हमें क्या? गलत देखकर चुप रह जाना भी अपराध है। इसलिए बुराइयों से पलायन नहीं, उनका परिष्कार करना सीखें। ऐसा कहकर हम अपने दायित्व और कर्तव्य को विराम न दें कि सत्ता और प्रशासन में तो आजकल यूं ही चलता है। चिनगारी को छोटी समझ कर दावानल की संभावना को नकार देने वाला जीवन कभी सुरक्षा नहीं पा सकता। बुराई कहीं भी हो, स्वयं में या समाज में, परिवार में अथवा देश में, शासन में या प्रशासन में तत्काल हमें अंगुली निर्देश कर परिष्कार करना अपना दायित्व समझना चाहिए। क्योंकि एक स्वस्थ समाज, स्वस्थ राष्ट्र, स्वस्थ प्रशासन स्वस्थ जीवन की पहचान बनता है।

 

ललित गर्ग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *