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सोनभद्र हत्याकांड : आदिवासियों का हक़ लूटने की कहानी

By राजेश कुमार आर्य
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में हालही में ज़मीन पर कब्ज़े की कोशिश के दौरान हुए खूनी संघर्ष में 10 आदिवासी मारे गए। दरअसल यह घटना दो तरह के सवाल खड़े करती है, पहला उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति और दूसरा जंगल की ज़मीन को लेकर हुए फर्जीवाड़े। यह घटना उत्तर प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न सोनभद्र जि़ले में हुई। इस जि़ले में पहाडिय़ां और जंगल भूरपूर हैं। इस वजह से यहां कल-कारखाने और खदाने भी बहुतायत में हैं।
आदिवासियों का विस्थापन
राबट्र्सगंज के वरिष्ठ पत्रकार आवेश तिवारी बताते हैं कि सोनभद्र जिले का औद्योगिकीकरण यहां के आदिवासियों के लिए परेशानी का सबब भी बना है। हालात यह है कि यहां के आदिवासी परिवारों को कई-कई बार विस्थापित होना पड़ा है। वो बताते हैं कि आदिवासियों को पहले रिहंद बांध के लिए विस्थापित होना पड़ा। उसके बाद उन्हें यहां बने बिजली घरों और रेणूकूट में बिड़ला घराने के एल्मुनियम प्लांट के लिए विस्थापित होना पड़ा।
आवेश बताते हैं कि आदिवासियों के शोषण का आलम यह है कि इस जिले का शायद ही कोई ऐसा आदिवासी होगा, जिस पर कोई मुकदमा न चल रहा हो।
हालही में हुई घटना सोनभद्र जिला मुख्यालय से करीब 70 किमी दूर घोरावल ब्लाक के मूर्तिया ग्राम पंचायत के उम्भा और सपही गांव की है। आवेश तिवारी बताते हैं कि जिस ज़मीन पर कब्ज़े की कोशिश की गई, उसका इतिहास भी काफी पुराना है। वो बताते हैं कि बिहार कैडर के आईएएस अधिकारी प्रभात कुमार मिश्र के पिता वहां तहसीलदार के रूप में कार्यरत थे। किसी तरह से उन्होंने 623 बीघे जमीन का गोलमाल कर दिया। इसमें से 200 बीघे जमीन 1989 में आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी के नाम कर दी गई थी। यही ज़मीन बाद में यज्ञदत्त को बेच दी गई।
ज़मीन पर कब्ज़ा
अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वाले यज्ञदत्त भूर्तिया उस ज़मीन की पैमाइश कराकर उस पर कब्ज़ा करने की नीयत से गए थे। ज़मीन को पैमाइश कराने भूर्तिया पूरी तैयारी के साथ गए थे। वो अपने साथ करीब 35 ट्रैक्टर-ट्रालियों में भर कर 100-150 लोगों को ले गए थे। वो लोग हथियारों से लैस थे। जब प्रधान के साथ आए ट्रैक्टरों ने ज़मीनों को जोतना शुरू किया तो गांव के गोंड आदिवासियों ने उसका विरोध किया।
जमीन पर कब्जे को लेकर हुई संघर्ष में घायल हुए लोग।
यह विरोध बढ़ते-बढ़ते मारपीट पर पहुंच गया। इस दौरान प्रधान के साथ आए लोगों ने गोलीबारी की। इसमें 9 लोगों की वहीं मौत हो गईं। इसमें तीन महिलाएं और छह पुरुष शामिल थे। वहीं एक घायल ग्रामीण की बाद में वाराणसी के ट्रॉमा सेंटर में इलाज के दौरान मौत हो गई। गोलीबारी में घायल हुए 25 लोगों में से 21 का इलाज राबट्र्सगंज और 4 का इलाज वाराणसी के ट्रामा सेंटर में चल रहा है। पुलिस ने इस मामले में अब तक 24 आरोपियों को गिरफ्तार किया है। हालांकि मुख्य आरोपी यज्ञदत्त भूर्तिया अभी भी फरार है।
सोनभद्र की इस घटना ने देश में आदिवासियों के हालात को एक बार फिर उजागर कर दिया है। जंगल की जिस ज़मीन पर आदिवासी पिछले कई पीढिय़ों से खेती-बाड़ी कर रहे हैं, उस पर उनका मालिकाना हक नहीं है। वह ज़मीनें कागजों पर किसी और के नाम दर्ज है और उस पर कब्ज़ा किसी और का है। अब 10 लोगों की मौत हो जाने के बाद प्रशासन की नींद खुली है। सोनभद्र के जिलाधिकारी ने प्रदेश के मुख्य सचिव को एक पत्र भेजा है। इस पत्र में मांग की गई है कि इस घटना में जो लोग मारे गए हैं और जो उक्त जमीन पर खेती-बाड़ी कर रहे थे, उन्हें 10-10 बीघे और जो लोग घायल हुए हैं, उन्हें पांच-पांच बीघे जमीन दी जाए। इसके अलावा ऐसे मृतक जिनके घर कोई और कमाने वाला नहीं है, उनके एक निकट आश्रित को सफाईकर्मी की नौकरी देने की गुज़ारिश की गई है।

सोनभद्र नरसंहार
सोनभद्र की घोरावल तहसील में हुआ नरसंहार नौकरशाहों और भूमाफिया की मिलीभगत से आदिवासियों की जमीन हड़पने के तिकड़मों का नतीजा है। भूमाफिया से चकबंदी अफसरों की सांठगांठ ने 600 बीघा जमीन का रिकॉर्ड ही बदल दिया। गरीब किसानों की हजारों एकड़ जमीन हड़पने का खेल हिंसक हुआ, तो ये पोल खुलने लगी। इलाके में आदिवासी समुदाय के गरीब किसानों की हजारों एकड़ जमीन भूमाफिया ने नौकरशाहों की सांठगांठ से हड़प ली। नरसंहार की इस घटना में आदिवासी समुदाय के 10 किसानों की हत्या कर दी गई। स्थानीय माफिया के कहने पर आईएसएस अधिकारी ने 600 बीघा जमीन के राजस्व रिकॉर्ड में हेराफेरी कर दी।
इस जमीन की कीमत 48 करोड़ रुपए से अधिक है। उत्तर प्रदेश के इस आदिवासी इलाके में राजस्व अधिकारियों द्वारा की गई धोखाधड़ी की पड़ताल करने पर पता चला कि हाल के दिनों में सोनभद्र भ्रष्ट नौकरशाहों, राजनेताओं और माफिया डॉन का अड्डा बन गया है जो औने-पौने दाम में जमीन खरीदते हैं।
तहसील के उम्भा गांव में जहां नरसंहार की वारदात हुई वहां से महज कुछ सौ गज की दूरी पर स्थित विशंब्री गांव में 600 बीघे का बड़ा भूखंड उत्तर प्रदेश सरकार के चकबंदी विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने हड़प लिया।
10 लोगों के नरसंहार का कारण बनी जमीन भी एक आईएएस अधिकारी के नाम थी, जिसने ग्राम प्रधान यगदत्त को बेच दी थी, जो मुख्य आरोपी है। कब्जा लेने के लिए नरसंहार को अंजाम दिया गया।
मृत व्यक्ति को मालिक बता कर रिकॉर्ड में हेराफेरी की गई थी। अदालत के निर्देश पर की गई जांच में पता चला कि चकबंदी अधिकारियों ने राजस्व रिकॉर्ड में हेराफेरी की थी जहां जमीन का मालिक मृत व्यक्ति को बताया गया था। जमीन के असली मालिक को अदालत में पेश करने पर साजिश की पोल खुल गई और उसके बाद चकबंदी विभाग के 27 अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।
हैरानी की बात है कि कानूनगो ने बेटे पैदा भी नहीं हुए, तब जमीन नाम कर दी थी। राजमार्ग (अल्ट्राटेक सीमेंट फैक्टरी के समीप) स्थित 14 बीघा जमीन के रिकॉर्ड में कानूनगो ने हेराफेरी की है। कानूनगो ने जमीन का पंजीकरण (विगत तारीख में) अपने दो बेटों के नाम कर लिया, जबकि पंजीकरण के समय उनके ये दोनों बेटे पैदा भी नहीं हुए थे।

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