केंद्र सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सुरक्षा का स्तर घटाते हुए उनसे एसपीजी सुरक्षा घेरा वापस लेने का निर्णय लिया है। सरकार ने यह कदम उनकेजीवन को खतरे की सुरक्षा विशेषज्ञों की समिति द्वारा गहन समीक्षा के बाद उठाने का दावा किया है। एसपीजी अधिनियम की व्यवस्था के अनुसार पूर्व प्रधानमंत्रियों औरउनके परिवार को उपलब्ध कराई गई एसपीजी सुरक्षा की वार्षिक समीक्षा अनिवार्य है। सरकार के इस फैसले के बाद अब एसपीजी सुरक्षा घेरा केवल प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनकी संतानों राहुल गांधी और प्रियंका के कुनबे के लिए उपलब्ध है। इनमें से प्रियंका गांधी वाड्रा किसी स्तर की निर्वाचितप्रतिनिधि भी नहीं हैं। वैसे भी एस.पी.जी. एक्ट में पूर्व प्रधान मंत्रियों के परिवार की जो परिभाषा दी गई है, उसमें “दामाद” कहीं भी नहीं है। परिवार की परिभाषा में पति–पत्नी, बच्चे और माता–पिता मात्र हैं। भारतीय क़ानूनों के मुताबिक़ बच्चों से मतलब नाबालिग़ पुत्र और अविवाहित पुत्री ही आती है। अब सवाल यह है कि जब राहुलनाबालिग़ नहीं हैं और प्रियंका भी विवाहित हैं तो इनकी एस.पी.जी. की सुरक्षा पर जो सैकड़ों करोड़ अबतक ख़र्च कर दिए गये उसे कौन भरेगा?
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की हत्या के बाद से उनके परिजनों को जिस तरह की सुरक्षा व्यवस्था मिली है वह अभूतपूर्व है। मनमोहन सिंह ही नहीं, अतीत मेंपीवी नरसिंह राव, इंद्र कुमार गुजराल तथा एच.डी. देवगौड़ा से भी एसपीजी सुरक्षा वापस ले ली गई थी, लेकिन गांधी परिवार के चारों ओर से यह सुरक्षा चक्र कभी कमनहीं किया गया।
उल्लेखनीय है कि पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिजनों ने कई अवसरों पर यह सुरक्षा स्वेच्छा से वापस कर दी तो अनेक मामलों में यह सुरक्षा पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिजनोंको मिला ही नहीं या उन्होंने कभी लिया ही नहीं। ऐसे उदाहरणों में पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव के पुत्र पी.वी. राजेश्वर राव की चर्चा की जा सकती है जिनका निधनकुछ ही समय पहले हुआ था। वे 70 वर्ष के थे। श्री राव कांग्रेस के पूर्व सांसद भी थे और उन्होंने तेलंगाना में कुछ शिक्षा संस्थानों की शुरुआत भी की थी। उन्हें कभीकोई स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप से सुरक्षा नहीं मिली। उनके बाकी भाई–बहनों को भी कभी एसपीजी सुरक्षा नहीं प्राप्त हुई। वे लगभग अनाम–अज्ञात इस संसार से कूच करगए। राव की तरह से बाकी भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवार के सदस्य भी सामान्य नागरिक की तरह से ही जीवन बिता रहे हैं। इनमें उनके पत्नी और बच्चे भी शामिलहैं। डा. मनमोहन सिंह की पुत्री दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास पढ़ाती हैं। उन्होंने यह सुरक्षा सुविधा स्वेच्छा से लौटा दी थी। वह पहले सेंट स्टीफंस कालेज से भी जुड़ीथीं। एक अन्य पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के दोनों पुत्र भी बिना किसी खास सुरक्षा व्यवस्था के जीवनयापन कर रहे हैं। एक पुत्र नीरज शेखर तो अभी तक सपा सांसद थेऔर राज्य सभा से इस्तीफ़ा देकर भाजपा में शामिल हुये हैं। यहाँ तक कि वर्तमान प्रघानमंत्री का पूरा परिवार भी आम नागरिक की जिंदगी ही जी रहा है। उनकी माताजी भी एक सामान्य वृद्धा की तरह ही रह रही हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के परिवार को ही सबसे ज्यादा खर्चीली एसपीजी सुरक्षा का औचित्य क्या है ? क्या बाकी प्रधानमंत्रियों के परिवारके सदस्यों की जान को किसी से कोई खतरा नहीं है? क्या वे पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं?
एसपीजी का गठन 1985 में बीरबल नाथ समिति की सिफारिश पर हुआ था। इसके पीछे कारण था तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के राजघाट जाने पर झाड़ियों मेंछिपा बैठा एक सिरफिरा नौजवान जो बाद में डाक्टरी जांच में पागल निकला। उसकी वहां मौजूदगी का कोई उद्देश्य भी सिद्ध नहीं हुआ था फिर भी इस घटना केपरिप्रेक्ष्य में उच्च स्तरीय बीरबल नाथ समिति बनाई गई और उसकी सिफारिश पर प्रधानमंत्री की सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए 8 अप्रैल, 1985 को आनन फ़ानन मेंएक नए अत्याधुनिक सुरक्षा दस्ते एसपीजी का गठन हुआ। तत्कालीन स्थितियां गंभीर थीं। अकालतख्त को ढहाने के प्रधानमंत्री इंदिरा गॉंधी के विवेकहीन निर्णय कीप्रतिक्रिया स्वरूप प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा की साल 1984 में उनके दो सिख सुरक्षा गार्डों द्वारा हत्या से सारा देश ही अत्यंत संवेदनशील मनःस्थिति में था। शुरु मेएस.पी.जी. की सुरक्षा मात्र प्रधानमंत्री राजीव गॉधी के लिए ही बनी थी। लेकिन जब राजीव गॉधी प्रधानमंत्री नहीं रहे तब सरकार ने तय किया कि एसपीजी पूर्वप्रधानमंत्रियों को भी सुरक्षा उपलब्ध करवाएगी। उन्हें उनके पद से मुक्त होने के पॉंच साल बाद तक एसपीजी सुरक्षा देने का नियम था। बाद में 1991 में पूर्व प्रधानमंत्रीराजीव जी की लिट्टे उग्रवादियों के हाथों हत्या के बाद सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्रियों की एसपीजी सुरक्षा कवर की अवधि को दस साल कर दिया था जिसे बाद मेंसंशोधित करके वार्षिक समीक्षा के आधार पर एस.पी.जी. सुरक्षा कवर रखना या हटाना तय कर दिया गया था।
एसपीजी एक्ट में साल 2002 में एक बड़ा संशोधन किया गया। इसमें व्यवस्था कर दी गई कि “कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके परिवार (राहुल गांधी औरप्रियंका गांधी और उनके कुनबे)को भी प्रधानमंत्री के स्तर की सुरक्षा मिलेगी रहेगी।” इस संशोधन के फलस्वरूप अब तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्रियों क्रमशःडा. मनमोहन सिंह सोनिया गांधी और उनके बच्चों राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा, उनके पति राबर्ट और दोनों बच्चों को एसपीजी सुरक्षा मिल रही थी। पूर्व प्रधानमंत्रीअटल बिहारी वाजपेयी को भी उनके आखिरी समय तक यह सुरक्षा उपलब्ध थी।
वर्ष 2019-20 के बजट में एसपीजी के लिए रु. 535 करोड़ की व्यवस्था की गई है। यह तो सिर्फ एसपीजी पर होने वाला सीधा खर्च है। लेकिन, ये एस.पी.जी. कवरप्राप्त वीवीआईपी जहां भी जाते हैं उस राज्य में पूरी कानून–व्यवस्था, बैरिकेडिंग, कारवां आदि का खर्च इस बजट से भी कई गुना अधिक है। इस खर्च के मद्देनजर नेहरू–गांधी परिवार को इस सुरक्षा व्यवस्था के औचित्य पर सार्वजनिक बहस तो होनी ही चाहिए। आख़िरकार, पैसा तो मेहनत कर टैक्स भरने वालों का ही है। इनमें सेसोनिया गांधी और राहुल तो सांसद भी हैं, लेकिन देश में सांसद तो 795 हैं। उन्हें तो मात्र तीन अंगरक्षक ही मिलते हैं। न दस गाड़ियॉ न बड़ी कोठी, न गृह रक्षक फोर्स,न हेलीकाप्टर न और कोई तामझाम। इस परिवार पर होने वाला सरकारी खर्च वाजिब है या नाजायज इसपर बहस तो होनी ही चाहिए। इस बहस का एक मुद्दा यह भी हैकि प्रियंका गांधी और उनके पूरे कुनबे की सुरक्षा पर इतना भारी–भरकम खर्चा करने की जरूरत ही क्या आन पड़ी है ? प्रियंका तो सांसद भी नहीं हैं। उनके पास कोईसरकारी पद भी नहीं है। फिर भी उन्हें भव्य केन्द्रीय मंत्रियों के बराबर बंगला मिला हुआ है। एक परिवार को बाल–बच्चों, नाती–पोंतों समेत सबको एसपीजी कवर प्राप्त होऔर बाकी सब के सब उससे वंचित हों, यह कैसा न्याय है?
एक विचारणीय प्रश्न यह भी है कि एस.पी.जी. की सुरक्षा तो संवैधानिक पदों के लिये बनी थी। पार्टी के पदाधिकारियों के लिए तो हर्गिज भी नहीं । अब सोनिया, राहुलऔर प्रियंका तो कॉंग्रेस पार्टी के पदाधिकारी हैं। ये चुनाव प्रचार के लिए सरकारी ख़र्चे पर घूमते रहते हैं और पानी– पी पीकर सरकार और सरकार की योजनाओं कोगालियॉं देते रहते है। आरोपों की बौछार करते रहते हैं। चुनाव आयोग के आदर्श आचार संहिता की धज्जियाँ उड़ाते रहते हैं लेकिन इनपर एस. पी. जी. के कवर केकारण कोई कार्रवाई भी नहीं हो सकती क्योंकि एस.पी.जी. एक्ट के अनुसार जब उनकी सुरक्षा कवर का कोई भी वीवीआईपी जब कहीं भी दौरा करता है तो जिले काप्रशासन– पुलिस सब निष्प्रभावी हो जाते हैं क्योंकि जबतक एस.पी.जी. कवर प्राप्त कोई भी वीवीआईपी कहीं भी जाता है, वह वहॉं जबतक रहता है, एसपीजी एक्ट लागू रहताहै और वहॉं एसपीजी का अधिकारी जो भी कहेगा वही अंतिम आदेश होगा। ऐसी स्थिति में पार्टी के पदाधिकारियों को एसपीजी कवर देना लोकतंत्र का मखौल नहीं तोक्या है?
आर.के. सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)