भारत एक युगान्तकारी मोड़ पर है। जिस तेजी से सरकार व समाज में राष्ट्रीयता का भाव घर कर रहा है वह स्वागतयोग्य है। जम्मू कश्मीर में अलगाववाद को प्रश्रय देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 की समाप्ति से जहां देश एक हुआ वहीं विभाजनकारी ताकतें व अर्बन नक्सलियों व पेड देशद्रोही बुद्धिजीवियों की नस्ल ही तबाह हो गयी। तीन तलाक, मोटर वाहन अधिनियम सहित दर्जनों अनेक ऐसे विधेयक संसद में पारित किए गए जिनसे भारत के एक समरस, समृद्ध व विकसित समाज बनने की राह प्रशस्त हो गई है और उससे भी बड़ी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जल, जनसंख्या व पर्यावरण के लिए की गई अभिनव पहल देश में बड़े समाज सुधारों की राह खोलने जा रही है।
इन उपलब्धियों के बीच चुनौतियां भी उतनी ही बड़ी हैं। अनुच्छेद 370 की समाप्ति से देश में अनेक विपक्षी दल विशेषकर कांग्रेस पार्टी में बड़ी बौखलाहट है। विभाजन की राजनीति की विषबेल जिस प्रकार आजादी के समय से ही बड़ी धूर्तता से कांग्रेस पार्टी व तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने खड़ी की उसमें कश्मीर समस्या की प्रमुख भूमिका है। इस समस्या की आड़ में भारत पाकिस्तान की सीमाएं दुनिया के सबसे संवेदनशील क्षेत्र व युद्ध मैदान में बदल गयीं। साथ ही भारत महाशक्तियों के षड्यंत्र व हथियारों की बिक्री, आपूर्ति व प्रयोगों का बाज़ार बन गया। निश्चित रूप से कांग्रेस पार्टी को इस खेल में लंबे समय तक बड़ा राजनीतिक फायदा मिलता रहा व कश्मीर समस्या को सांप्रदायिक रंग देकर इसकी आड़ में मुस्लिमों को अपने पक्ष में मोड़ती रही। ऐसे में अनुच्छेद 370 की राजनीति की आड़ में देश को चूसने व मौज करने वाले कई राजनीतिक दल, संगठन व एनजीओ गैंग खड़े हो गए जिनको पाकिस्तान बड़ी मात्रा में वित्तीय मदद देकर भारत में परोक्ष रूप से व्यापक राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को पनपाता रहा। पाकिस्तान की इन दुस्साहसिक हरकतों में दक्षिण एशिया के सामरिक समीकरणों की भी बड़ी भूमिका रही जैसे भारत द्वारा सीधे युद्धों में हमेशा पराजय, भारत के समर्थन व सहयोग के कारण पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश के रूप में स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उदय, सोवियत संघ व अमेरिका के बीच शीत युद्ध व अफगानिस्तान में सोवियत संघ का हस्तक्षेप व कब्जा, अमेरिका द्वारा सोवियत संघ को रोकने के लिए पाकिस्तान में सैन्य बेस बनाना व सऊदी अरब द्वारा वहाबी/कट्टरपंथी इस्लाम को बढ़ावा देने के लिए आतंकी गुटों व मदरसों को भारी मात्रा में आर्थिक सहायता देना, ओसामा बिन लादेन को निबटाने के नज़्म पर अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमला आदि। कश्मीर की आजादी के नाम पर पाकिस्तान ने नब्बे के दशक से सरकारी नीति के तौर पर आतंकियों को प्रशिक्षण व समर्थन देना शुरु कर गुरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया और अमेरिका व नाटो देशों को अपनी जमीन सैन्य बेस के रूप में देने के नाम पर सौदेबाजी के रूप में अपनी कश्मीर नीति पर समर्थन देने को मजबूर किया। अब चूंकि इस क्षेत्र में सामरिक समीकरण बदल चुके हैं व अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी सेनाएं वापस बुला चुका है व तालिबान से समझौते की राह पर है, ऐसे में उसके लिए पाकिस्तान अप्रासंगिक हो चला है। परिस्थितियों को भांपकर मोदी सरकार ने आक्रामक कूटनीति का सहारा लेते हुए विश्व जनमत को अपने साथ कर व घरेलू मोर्चे पर लोकसभा चुनावों में बड़ी जीत के साथ ही संसद में बड़े बहुमत से अनुच्छेद 370 की समाप्ति का विधेयक पारित किया। ‘एक राष्ट्र एक विधान’ की अपनी दशकों पुरानी मांग को वास्तविक रूप दे दिया। पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने व गिराने के खेल के बीच राज्यपाल शासन और बड़ी मात्रा में आतंकियों के सफाए व व्यापक जन केंद्रित योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करने के कारण जम्मू, कश्मीर व लद्दाख को देश की मुख्यधारा से जोडऩे का कार्य तमाम आशंकाओं के बीच निर्विघ्न एक ‘रक्तहीन क्रांति’ के रूप में अपने लक्ष्य तक पहुंच गया।
इस बड़ी चुनौती के बीच पी चिदंबरम सहित बड़े बड़े भ्रष्टाचारी नेताओं के खिलाफ भी सरकार की मुहिम जारी है और मंदी की ओर बढ़ती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिशें भी, यद्धपि गौतमबुद्ध नगर सहित देश के कई बड़े शहरों में चल रहे भू माफिया के घोटालों से ठगे गए निवेशकों की लड़ाई सरकार के लिए आज भी बड़ी चुनौती है। उम्मीद है कि एक के बाद एक शतक लगाती नरेंद्र मोदी सरकार इस समस्या के भी स्थायी समाधान को तलाशेगी। फिलहाल बड़ी उपलब्धियों के बीच सावधान व चौकन्ना रहने का समय है क्योंकि मात व चोट खाया दुश्मन कब पलटवार कर क्या नुकसान पहुंचा दे पता ही नहीं।
Anuj Agarwal
Dialogue India