मौलिक भारत: दो दशकों के नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरणों में सभी घोटाले व आरोपों की समयबद्ध रूप से विस्तृत जांच हो व इसके लिए उच्चतम न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल बने । आम्रपाली मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले पर पुनर्विचार हो।
राष्ट्रपति जी इस मामले को संज्ञान लेते हुए अपनी संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए जनहित में बड़ा निर्णय लें।
प्रतिष्ठित संस्था मौलिक भारत ने दिनांक 2 सितंबर को नोएडा के अग्रसेन भवन में आयोजित प्रेसवार्ता में उन दो प्रतिवेदनों को मीडिया को जारी किया जो संस्था ने नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरणों में पिछले दो दशकों से चल रही लूट के खेल को विस्तार से उजागर करते हुए राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी को लंबे मांगपत्र के साथ भेजे हैं। 300 से भी अधिक पृष्ठों के दस्तावेज सहित इस प्रतिवेदन की प्रतियां प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय, शहरी विकास मंत्री व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी भेजी गयीं है। बेहद विस्तृत व सनसनीखेज इस प्रतिवेदन पर संस्था की ओर से महासचिव अनुज अग्रवाल व केंद्रीय कार्यकारणी के वरिष्ठ सदस्यों , अनिल गर्ग, पंकज सरागवी व नीरज सक्सेना ने हस्ताक्षर किए। इन सभी ने आज की प्रेसवार्ता में प्रतिवेदन के प्रमुख बिंदुओं के बारे में विस्तार से मीडिया को बताया। संस्था का आरोप है कि सन 2010 से ही इन प्राधिकरणों के घोटाले उजागर होने के बाद भी पिछले एक दशक में दर्जनों विभिन्न प्रकार की जांच व कार्यवाही के नाटकों के बाद भी घोटाले की मूल वजहों को दुरस्त करने व मुख्य किरदारों के खिलाफ कार्यवाही करने के कोई प्रयास नहीं किए गए। लोकायुक्त, सीबीआई, सीएजी, ईडी व उच्च व उच्चतम न्यायालयों व प्रदेश सरकार की जांच व कार्यवाही के बाद भी न घोटाले रुके न निवेशकों को इंसाफ मिला और न ही व्यवस्थाएं दुरुस्त व पारदर्शी हो पाई। ऐसे में संस्था ने दर्जनों मांग की है जो अलग अलग पहलू को दुरुस्त करने से संबंधित हैं। जिनमे प्रमुख निम्न प्रकार हैं
- दो दशकों के सभी घोटाले व आरोपो की समयबद्ध रूप से विस्तृत जांच हो व इसके लिए उच्चतम न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल बने। इस जांच दल को पिछले दो दशकों में सरकार , संवैधानिक संस्थाओं व जांच दलों को मिले सभी दस्तावेज व जांच परिणाम भी सौपे जाएं।
- पूरे घोटालों में राजनेताओं व नोकरशाहो की जवाबदेही भी तय की जाए व दोषी को उचित व कठोर दंड दिया जाय।
- आम्रपाली मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले पर पुनर्विचार हो व निवेशकों की जगह राज्य सरकार को धन उपलब्ध करवाकर प्रोजेक्ट्स पूरे करने के निर्देश जारी हो। संस्था भी इसके लिए उच्चतम न्यायालय में अपील करने जा रही है।
- प्राथमिकता के आधार पर तीनो प्राधिकरणों के सभी पूरे हो चुके व निर्माणाधीन प्रोजेक्ट्स में आर्थिक रूप से गरीब वर्ग के लिए 25 प्रतिशत मकान बनाए जाएं।
संस्था को आशा है कि महामहिम राष्ट्रपति जी इस मामले को संज्ञान लेते हुए अपनी संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए जनहित में बड़ा निर्णय लेंगे ।
नोट :दोनों प्रतिवेदनों का मसौदा नीचे वर्णित है। अगर कोई पत्रकार बन्धु प्रतिवेदन में संलग्न दस्तावेजों का अध्ययन करना या फोटोकॉपी करवाना चाहते है तो वे हमारे 07,अपर ग्राउंग फ्लोर, ओसियन प्लाजा,सेक्टर18 , नोएडा, स्थित कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।
भवदीय
अनुज अग्रवाल
महासचिव
मौलिक भारत
9811424443
Maulikbharat.co.in
Representation No – 1
प्रतिष्ठा में,
आदरणीय रामनाथ कोविंद जी
महामहिम राष्ट्रपति महोदय
भारत सरकार, नई दिल्ली
विषय: नोएडा, ग्रेटर नोएडा एवं यमुना एक्सप्रेस प्राधिकरणों में चल रही अनियमितताओं व अराजकता के संदर्भ में शिकायत व मांगपत्र
परम आदरणीय,
मौलिक भारत संस्था विगत 6 वर्षों से देश मे सुशासन, पारदर्शिता को लाने व भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्य कर रही है। उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचारी यादव सिंह सिंडिकेट व डीएनडी टोल पर चल रही लूट का खुलासा करने व यादव सिंह को जेल में डलवाने एवं डीएनडी ब्रिज को टोलमुक्त करवाने में संस्था की प्रमुख भूमिका रही। जिला गौतम बुद्ध नगर के नोएडा,ग्रेटर नोएडा एवं यमुना एक्सप्रेस वे तीनों प्राधिकरणों में चलती रही अनियमितताओं , भ्रष्टाचार व लूट के विरुद्ध हमारी संस्था ने निरंतर संघर्ष किया व अनेक अपराधियों के विरुद्ध कार्यवाही भी करायी। सुशासन, पारदर्शिता व चुनाव सुधारों पर हमारी संस्था के प्रयास व विश्वशनियता असंदिग्ध है।
माननीय महोदय, इन प्राधिकरणों में चल रही लूट के विरुद्ध भारतीय जनता पार्टी ने सन 2010 में बड़ी मुहिम चलाई थी व प्रदेश के लोकायुक्त को शिकायत दर्ज कराई थी। आज केंद्र व राज्य दोनों में भाजपा की ही सरकार है , ऐसे में अपेक्षित है कि इन प्राधिकरणों के घोटालों की विस्तृत जांच व दोषियों को सख्त सजा मिले। प्रदेश में निवेश के बेहतर वातावरण बनाने के लिए भी जरूरी है कि निवेशकों के हितों की प्राथमिकता के आधार पर रक्षा हो। स्वयं प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने दो वर्ष पर्व घोषणा की थी कि अगले 100दिनों में इस जिले में कम से कम एक लाख निवेशकों को उनके मकानों का आबंटन कर दिया जाएगा मगर आज दो वर्ष बाद भी ऐसा नहीं हुआ और कई लाख और निवेशक बड़ा पैसा खरच करने के बाद भी मकान के लिए दर दर भटक रहे हैं।
इस पत्र में हम हाल ही में गौतम बुद्ध नगर में चल रहे आम्रपाली बिल्डर के प्रोजेक्ट्स के संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय के प्रकाश में कुछ सुझाव आपके माध्यम से भारत सरकार को देना चाहते हैं। संविधान के उद्देश्यों की पूर्ति व व्यापक जनहित में इन सुझावों पर गहराई से विचार व त्वरित कार्यवाही अतिआवश्यक है। यह एक सही दिशा में लिया गया निर्णय है यद्धपि हमारे विश्लेषण के अनुसार जनहित में इस निर्णय में और सुधार की आवश्यकता है।
विगत 23 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय ने तीन दर्जन से अधिक याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों को संबोधित करते हुए सरकार के स्वामित्व वाली नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कंपनी (एनबीसीसी)को नोएडा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आम्रपाली ग्रुप से 42,000 अधूरे घर लेने का निर्देश दिया। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्देश के बाद इससे संबंधित कई प्रासंगिक सवाल सामने आए।
क्या एनबीसीसी के पास इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए आवश्यक धन है? विचार करने योग्य सवाल है कि एनबीसीसी कितनी परियोजनाओं को और कैसे पूरा करेगी। 31 मार्च, 2019तक एनबीसीसी के पास 1,384 करोड़ रुपये रिजर्व और बचत थे, जबकि मौजूदा देनदारी 6,637 करोड़ रुपये थी। आम्रपाली समूह की अधूरी इकाइयों को पूरा करने की लागत 7,700करोड़ रुपये से अधिक है। सर्वोच्च न्यायालय के दरवाजे पर कतार में इंसाफ के लिए वे लोग भी खड़े हैं, जिन्होंने जेपी और यूनिटेक की करीब 85,000 रुकी हुई परियोजनाओं में निवेश किया है।
सर्वोच्च न्यायालय के दरवाजे पर लगी कतार उस बीमारी का संकेत है, जिसने घर खरीदने वालों को अधर में छोड़ दिया है और अर्थव्यवस्था को डुबो दिया है। रियल्टी सलाहकार कंपनी एनारॉक का अनुमान है कि 1.77 लाख करोड़ रुपये की कीमत वाले 1.74 लाख घरों के साथ 220 परियोजनाएं केवल सात शहरों में पूरी तरह से ठप हैं-‘पूरी तरह से ठप’अपने आप में परिदृश्य की गंभीरता बताता है। जेएलएल इंडिया नामक परामर्शी कंपनी के अनुसार, 1.5 लाख करोड़ रुपये कीमत की लगभग 2.2 लाख इकाइयां वर्ष 2011 से ठप हैं और यह संकट सबसे अधिक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे क्षेत्रों में दिखाई देता है। यह परिदृश्य आर्थिक और व्यवस्थागत जोखिम का प्रतिनिधित्व करता है,जिसमें खरीदार बिना संपत्ति के है और बिल्डर अधूरी परियोजनाओं के साथ।
कर्ज और उसे चुकाने में विफलता रियल्टी सेक्टर और बैंकों को गर्त में ले जा रही है। बैंकों का निवेश करीब 1.8 लाख करोड़ रुपये है और एनबीएफसी (गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान)का यह आंकड़ा 1.7 लाख करोड़ रुपये का है। कुल मिलाकर 3.5 लाख करोड़ रुपये का सार्वजनिक धन एक ऐसे क्षेत्र में लगा है, जो संकट में है और मंदी की तरफ बढ़ रहा है।
इस संदर्भ में हमारे निम्न सुझाव हैं –
1) तीनों प्राधिकरणों के सैकड़ों हाउसिंग व कॉमर्शियल प्रोजेक्ट्स में लाखों लोगों ने उत्तर प्रदेश सरकार की विश्वशनियता के आधार पर ही सरकार द्वारा सूचीबद्ध बिल्डरों के प्रोजेक्ट्स में निवेश किया था। ऐसे में अगर बिल्डर पैसा लेकर भागे या समय पर फ्लैट आदि नहीं दे रहे हैं तो इसमें सीधा सीधा दोष उत्तर प्रदेश सरकार का है जिसके मुख्यमंत्री कार्यालय के आदेश पर तीनों प्राधिकरण बिल्डरों को निर्धारित शर्तों को बदलकर व मास्टर प्लान के विरुद्ध प्लाट आबंटित कर रहे थे। ऐसे में तत्कालीन मुख्यमंत्री,अधिकारियों व बिल्डरों से हुए नुकसान की वसूली कर अधूरे प्रोजेक्ट्स पूरे करवाए जाएं न की निवेशकों को शेष राशि उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री में जमा करवाने के लिए कहा जाए। अगर वसूली में देरी हो रही हो तो आवश्यक रकम उत्तर प्रदेश सरकार उपलब्ध करवाए व निवेशकों से प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद उसको हुए नुकसान की रकम कम कर शेष राशि ही वसूली जाए।
2) सन 2001 से लेकर अबतक तीनों प्राधिकरणों के सभी प्रकार के निर्णयों पर उत्तर प्रदेश सरकार को श्वेत पत्र जारी करने के निर्देश दिए जाएं व हुई कुल गड़बड़ियों को चिन्हित कर सभी दोषियों के विरुद्ध अति शीघ्र सख्त कानूनी कार्यवाही की जाए।
माननीय महोदय, दिल्ली से सटे इस जिले गौतमबुद्ध नगर में तीव्र औधोगिक विकास व रोजगार के सृजन हेतू उत्तर प्रदेश सरकार ने क्रमशः नोएडा, ग्रेटर नोएडा एवं यमुना एक्सप्रेस वे प्राधिकरणों की स्थापना पिछले चार दशकों में की यद्धपि यह कार्य एक ही प्राधिकरण कर सकता था। इन नव विकसित शहरों में कोई नगर पालिका या निगम भी नहीं बनाया गया व इनको संचालित करने वाली नोकरशाही को विशेषाधिकार दिए गए ताकि इस क्षेत्र में तीव्र औधोगिक विकास हो सके। किंतू पिछले एक दशक में जिस प्रकार से इन तीनों प्राधिकरणों के खिलाफ जनता की शिकायतें आयी हैं उनसे यह स्पष्ट हो चुका है कि ये तीनों ही प्राधिकरण अपनी स्थापना के मूल उद्देश्यों से पूरी तरह भटक चुके हैं व राजनेताओं – नोकरशाहो – ,बिल्डर सिंडिकेट के अतिशय घोटालों, लूट व अराजकता का शिकार हो गए हैं । इन प्राधिकरणों द्वारा किए गए आबंटन के बाद आबंटी द्वारा समय से भुगतान व प्रोजेक्ट का निर्माण, शर्तों के पालन की जांच व सख्त कार्यवाही जैसी कोई व्यवस्था ही नहीं थी। सभी अधिकारी व कर्मचारी लूट में हिस्से को ज्यादा आतुर रहे व अपनी जिम्मेदारियों से भागते रहे। ऐसे में क्यों न इनको भंग कर नगर निगमों में बदल दिया जाना चाहिए व इन तीनों प्राधिकरणों की लूट की जांच उच्चतम न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल से करायी जाए ?
अपनी इस मांग के समर्थन में हम निम्न तथ्य व साक्ष्य प्रस्तुत कर रहे हैं –
1) तीनों ही प्राधिकरण अपने मूल उद्देश्य यानि ” औधोगिक विकास” व “तीव्र रोजगार सृजन” में आंशिक रूप से भी सफल नहीं हो पाए हैं व बिल्डर माफिया के साथ मिलकर इन्होंने औधोगिक विकास के लिए चिन्हित ग्रामीणों व किसानों की जमीनों को ” आपातकालीन धाराएं” लगा कर बहुत सस्ते में अधिग्रहित किया व ऊंची दरों पर “आवासीय इकाइयों”के निर्माण के लिए आबंटित कर दिया। आबंटी बिल्डर इसे कई गुना दाम पर आगे बेच देते हैं। ऐसे में जमीन का मूल मालिक किसान स्वयं को ठगा सा महसूस करता है। जन औधोगिक प्लाट्स का आबंटन भी पिछले 15 वर्षों में किया गया है उन आबंटियो की उद्योगपति के रूप में पहचान संदिग्ध ही है व उन्होंने आबंटन के लिए फर्जी दस्तावेजों,किराए की मशीनों व प्लांट व कच्चे निर्माण की संरचना दिखलाई। आईटी पार्कों को भी बहुत बड़े बड़े प्लाट्स का आबंटन निर्धारित मापदंडों को दरकिनार कर किया गया व अधिकांश आबंटी बिल्डर माफिया ही हैं व आबंटियो को जिस प्रकार घर व ऑफिस दोनों बनाने की छूट दे गयी व मनमाना एफएआर बढ़ाया गया वह एक महाघोटाले की कहानी कह रहा है। इन आबंटनो की प्रक्रिया में पूरी तरह धांधली की गई व निविदा प्रक्रिया को फिक्स कर मनचाहे व्यक्ति या संस्था को प्लाट आबंटित किए गए। इन सभी आबंटनो मे प्लाट की कीमत तक कमीशन लिया गया व राजनेताओं को 10 से 20 प्रतिशत तक हिस्सेदारी दी गयी।
2) उद्योग लगाने के लिए प्लाट आबंटन की दरें बहुत अधिक रखी जाती रहीं व आबंटित प्लाट की कीमत के आसपास कमीशन भी लिया जाता रहा। आबंटन की प्रक्रिया में भी घोर अनियमितताएं रहती आई है। ऐसे में महँगी जमीनों के कारण उत्पादन लागत बढ़ गई व अधिकांश उधोग बाज़ार की प्रतिस्पर्धा में पिछड़कर बंद होते गए। औधोगिक क्षेत्रों में सुविधाओं का अभाव, खराब आधरभूत संरचना, बिजली,पानी, सीवर, सड़को, ट्रांसपोर्ट आदि की खराब हालत, इंस्पेक्टर राज, ऊंची कर दर्रे व राजनीतिक हस्तक्षेप ने स्थिति को और ज्यादा बिगाड़ दिया।
3) आबंटित आवासीय भूखंडों में भी व्यापक मनमानी की गई। पूरी प्रक्रिया मुख्यमंत्री कार्यलय से नियंत्रित रहती आई है व शासनादेशों से संचालित रही है। आबंटन की निर्धारित प्रक्रिया का कभी पालन नहीं हुआ व पूरी तरह मनमानी की गई जिससे सरकार को व्यापक राजस्व की हानि हुई। बिल्डरों का ग्रुप हाउसिंग के लिए आबंटित प्लॉट्स मूलतः औधोगिक इकाइयों के लिए निर्धारित थे। बड़ी मात्रा में प्लाट की कीमत का मात्र 10% धनराशि लेकर ही आबंटन कर दिया गया। बिना अतिरिक्त कीमत लिए व ढांचागत सुविधाओं के विकास के एफएआर कई गुना तक बढ़ा दिया गया। तीनों ही प्राधिकरणों में एक ही प्रकार से घोटाले अंजाम दिए जाते रहे, टेंडर की घोषणा की जाती,बोली फिक्स कर दी जाती, खली प्रतिस्पर्धा न हो इसलिए टेंडर फार्म की उपलब्धता ही नहीं करवाई जाती रही, जिस बिल्डर के साथ लेनदेन की सेटिंग हो जाती उसकी सुविधा के अनुरूप नियमों में फेरबदल किया जाता रहा। एक लाख रुपए की चुकता पूँजी वाले बिल्डर को 20-25 एकड़ जमीन आबंटित कर दी जाती व ऐसे सैकड़ो आबंटन किए गए। लागत के मात्र 10%ही देने के बाद आबंटित प्लाट पर बिल्डर बड़ी लूट शुरू कर देता व कई बैंकों से लोन लिए जाते , प्रोजेक्ट लांच, प्री लांच व अन्य तरीकों से मकान के इच्छुक लोगों से बड़ी मात्रा में निवेश कराकर अन्य प्रोजेक्ट्स में पैसा लगाया गया व कई जगह से बड़ी मात्रा मे धन बटोरकर अन्य व्यापार, उद्योग व विदेशों में हवाला या अन्य तरीकों से डाइवर्ट कर दिया गयव निवेशक को फ्लैट या मकान का आबंटन नहीं किया गया।
4) सभी ठेकों, आबंटनो, भुगतान, निर्माण आदि में अनियमितता, घोर भ्रष्टाचार, लूट, अपारदर्शी प्रक्रिया व अपार राजस्व की हानि होती रही है। निविदा व आबंटन की प्रक्रिया में इतनी धांधली रही कि माननीय उच्च्तम न्यायायल ने जिस ” नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन” को अब अधूरे प्रोजेक्ट्स पूरे करने की जिम्मेवारी दी है वह भी कभी इन प्राधिकरणों से ग्रुप हाउसिंग योजना का एक भी निविदा फार्म तक नहीं ले पाया। नोएडा स्पोर्ट्स सिटी, फार्म हाउस, सिटी सेंटर, ग्रेट इंडिया पैलेस, जेपी स्पोर्ट्स क्लब, फार्मूला वन कॉम्प्लेक्स,यमुना एक्सप्रेस वे प्रोजेक्ट के आबंटनव व्यापक धांधली की यही कहानी कहते है, जिनमे पूरी तरह नियमों की अवहेलना हुई व जनता के हित के नाम पर चंद लोगों ने बड़ी लूट की।
5) एनसीआर प्लानिंग बोर्ड के स्पष्ट निर्देश कि “हर हालात में कुल आवासीय इकाइयों का 20 से 25% आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए होना चाहिए”के बाद भी किसी भी ग्रुप हाउसिंग में एक भी मकान इस वर्ग के लिए नहीं बना। इस कारण जिले के सैकड़ों गांव इस वर्ग की आबादी के बोझ के कारण स्लम में बदल गए।
5) बिल्डरों द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक फ्लैट बनाने, एक ही प्रोजेक्ट के लिए कई बैंकों से ऋण लेने, अपनी किश्त न चुकाने, प्रोजेक्ट का पैसा अन्य प्रोजेक्ट्स में लगाने या मनी लॉन्ड्रिंग द्वारा विदेश ले जाने, फर्जी कम्पनियों में लगाने, आबंटीयो से मनमानी वसूली करने व समय से आबंटन न देने , गैरकानूनी तरीके से प्रोजेक्ट कई भागों में बांटकर आउटसोर्स करना,खिलाफ किसी भी प्राधिकरण,जिला प्रशासन या प्रदेश सरकार द्वारा कोई सख्त कार्यवाही नहीं की गई।
6) अधिकांश आबंटन ऐसी कम्पनियों को किए गए जिनका इस क्षेत्र में कार्य करने का कोई अनुभव नहीं था । ऐसी कम्पनियों का वास्तविक मालिकाना राजनेताओं,नोकरशाहो व प्राधिकरण कर्मियों के पास था। खादर की , गांवों की व मास्टर प्लान से बाहर की भूमि को भी बेचने, खाली कराने व बेचने का बहुत खेल किए जाते रहे हैं व प्राधिकरणों की ज़मीनों पर अवैध कब्जे कर बेचने का खेल भी संगठित रूप से चलता आ रहा है। शाहबेरी गांव के अवैध निर्माण इसका ज्वलंत उदाहरण है व अन्य अधिकांश ग्रामो में यही खेल किए गए जिनकी गहन जांच बहुत जरूरी है।
7) तीनो प्राधिकरणों की कुल लूट लाखो करोड़ रुपयों की है और इनकी जांच के लिए सन 2011 में ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दे दिए थे। इसके अलावा अनेक दिखावटी जांच भी की गई व सैकड़ों दोषी राजनेताओं,नोकरशाहो, कर्मचारियों, बिल्डरों, ठेकेदारों के नाम भी सामने आए मगर इक्का दुक्का दिखावटी कार्यवाही के अतिरिक्त कभी कुछ नहीं हुआ और लूट जारी रही।
8) आम्रपाली बिल्डर द्वारा की गई अनियमितताओं पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का जो निर्णय आया है वह हमारे उपरोक्त सभी आरोपों की पुष्टि करता है। ऐसे में इस तरह की लूट को “पोंजी स्कीम”के दायरे में माना जाए व उसके कानून के अनुरूप ही लुटेरे बिल्डरों व उनके सहयोगियों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जाए।
9) उत्तर प्रदेश सरकार के अनुरोध पर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा सन 2016 से नोएडा प्राधिकरण के खातों की जांच चल रही है किंतू आज तक इस जांच की आंशिक या पूर्ण रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है और न ही किसी के विरुद्ध कोई कार्यवाही की गई।
10) पिछले एक दशक में समय समय पर केंद्र सरकार, केंद्रीय जांच एजेंसियों, उच्चतम न्यायालय,उत्तर प्रदेश सरकार, उच्च न्यायालय, लोकायुक्त व अन्य सभी उपलब्ध फोरम पर इन तीनों प्राधिकरणों में चल रहे घपलों, लूट, अराजकता, घोटालों आदि के विरुद्ध हजारों शिकायतें दर्ज कराई गईं मगर कुछ एक फौरी व दिखावटी कार्यवाही के अतिरिक्त आज तक कुछ भी नहीं हुआ।
ऐसे में हम आपके माध्यम से भारत सरकार, उच्चतम न्यायालय व उत्तर प्रदेश सरकार से निम्नलिखित मांग करते हैं –
1) चूंकि नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना एक्सप्रेस वे तीनों प्राधिकरण अपनी स्थापना के मूल उद्देश्य से पूर्णतः भटक चुके हैं इसलिए इनको तत्काल प्रभाव से भंग किया जाए।
तीनों प्राधिकरणों की जगह एक नगर निगम को स्थापित किया जाए ताकि इस क्षेत्र के विकास में व्यापक जनभागीदारी व पारदर्शिता आ सके।
2) मकान व फ्लेट की चाह में निवेश करने वाले वाले लाखों बुरी तरह परेशान निवेशकों से बची हुई धनराशि वसूलने से पहले बिल्डरों, सरकारी कर्मचारियों व राजनेताओं से की गई लूट वसूली जाए व उसको लंबित प्रोजेक्ट्स में लगाया जाए। अगर उसके बाद भी प्रोजेक्ट पूरा करने में धन की कमी हो तो निवेशकों से वसूला जाए।
3) उच्चतम न्यायालय की निगरानी में एक विशेष जांच दल बनाया जाए जो इन तीनों प्राधिकरणों के निर्माण से लेकर आज तक के सभी निर्णयों, अधिग्रहण, आबंटन, ठेकों,आमदनी व भुगतान की जांच व समीक्षा निर्धारित समय में करे व प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दोषियों व अनियमितताओ को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्यवाही करे।
4) तीनों प्राधिकरणों के वर्तमान व सेवानिवृत्त कर्मचारियों की व यहाँ पोस्टिंग पर रहे अधिकारियों की एक मकान या प्लाट के अतिरिक्त आबंटित सभी आबंटन रद्द किए जाए व इन सभी की परिवार सहित संपत्तियों की जांच हो साथ ही सभी पुराने कर्मचारियों का यहाँ से स्थानांतरण हो।
5) सभी पूरे हो चुके अथवा निर्माणाधीन ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट्स में अनिवार्य रूप से 25% मकान आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए आबंटित/ निर्माण करने के आदेश तुरंत जारी किए जाएं।
6) विभिन्न जांचों में चिन्हित दोषियों के खिलाफ तत्काल प्रभाव से कानूनी कार्यवाही की जाए व इस प्रकार के अपराधों को देशद्रोह की श्रेणी में रखा जाए। रेरा कानून को और प्रभावी बनाया जाए।
7) पूरे जिले में नए प्रोजेक्ट्स के निर्माण पर रोक लगे, पुराने अधूरे प्रोजेक्ट्स सरकार अपनी जिम्मेदारी पर पूर्ण करवाए। निवेशकों से पूरे पैसे लेकर समय पर आबंटन नहीं देने से हुए नुकसान की भरपाई की प्रक्रिया निर्धारित हो।
8) जो भी दोषी पाए जाएं उनको उचित सजा के साथ ही उनसे लुटे हुए धन की वापसी/वसूली की प्रक्रिया भी निर्धारित हो व एक विशेष कोष बनाकर वसूला धन उसमें जमा हो व उससे अधूरे प्रोजेक्ट पूरे कराए जाएं।
9) तीनो प्राधिकरणों के अंतर्गत आने वाले ग्रामो के अवैध निर्माण गिराए जाएं व इनमें रह रही अतिरिक्त आबादी जो अधिकांशतः उधोगों में काम करने वाले कर्मचारी है को विकसित व व्यवस्थित स्थानों पर बसाया जाए।
10) इन प्राधिकरणों में काम करने वाले बड़े बिल्डरों विशेष रूप से आम्रपाली, गौड़, सुपरटेक, गार्डेनिया, थ्री सी, लोजिक्स, बेब, बीपीटीपी, जेपी, व यूनीटेक जिनकी धांधलियों की लगातार शिकायतें आ रही के विरुद्ध विशेष जांच करायी जाए व इनके सभी आबंटन रद्द किए जाएं व इनके व अन्य सभी घपलेबाज बिल्डरों, सरकारी कर्मचारियों, ठेकेदारों व राजनेताओं के विरुद्ध देशद्रोह के मुकदमे दर्ज कर कार्यवाही की जाए।
नोट:
संस्था अपनी मांग व आरोपों के समर्थन में पिछले दस वर्षों में स्वयं , मीडिया, राजनीतिक दलों व विभिन्न संस्थाओं ( विशेषकर राइस एनजीओ) द्वारा की गई /प्रकाशित शिकायतों को संलग्न कर रही है –
( पृष्ठ संख्या 1 से 312 तक)
आपसे अपेक्षा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि जनहित के इस अत्यंत संवेदनशील मुद्दे पर त्वरित कार्यवाही हेतू यथोचित दिशानिर्देश जारी करेंगे। इस संदर्भ में किसी भी स्पष्टीकरण व सलाह के लिए हमारी संस्था सदैव उपलब्ध है।
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप अपनी संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए इस दिशा में ठोस व निर्णयकारी कदम उठाएंगे।
भवदीय
अनुज अग्रवाल, महासचिव, मौलिक भारत
अनिल गर्ग, सदस्य, केंद्रीय कार्यकारणी, मौलिक भारत
पंकज सरावगी, सदस्य, केंद्रीय कार्यकारिणी, मौलिक भारत
नीरज सक्सेना, सदस्य, केंद्रीय कार्यकारिणी, मौलिक भारत
Date: 20/08/2019
प्रति प्रेषित –
1) प्रधानमंत्री, भारत सरकार
2) मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय
3) मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार
4) शहरी विकास मंत्री, भारत सरकार
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Representation No – 2
सेवा में,
महामहिम राष्ट्रपति जी
राष्ट्रपति भवन, रायसीना हिल्स
नई दिल्ली-110 001
दिनांकः 20/8/2019
विषयः आम्रपाली के संबंध में उच्चतम न्यायालय का निर्णयः उद्देश्यों से भटकाव
आदरणीय महामहिम राष्ट्रपति जी
सादर नमस्कार
देश में रीयल इस्टेट क्षेत्र इस समय अत्यधिक मुश्किल दौर से गुजर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप मकानों के लाखों निरपराध खरीददारों को फ्लैटों पर कब्जा नहीं मिल पा रहा है।
इस संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय ने 23 जुलाई, 2019 को एक ऐतिहासिक एवं युगान्तरकारी निर्णय दिया है। यह निर्णय बिक्रम चटर्जी व अन्य बनाम यूनियन आॅफ इंडिया मामले में आया है, जिसके माध्यम से उन 42,000 मकान खरीददारों की समस्या को हल किया गया है, जिन्होंने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सक्रिय आम्रपाली समूह के करीब 20 प्रोजेक्टस में पैसे का निवेश किया था।
अत्यंत आदर व सम्मान के साथ माननीय उच्चतम न्यायालय से असहमति व्यक्त करते हुए हम निम्नलिखित बिन्दुओं की ओर आपका ध्यान आकृश्ट करना चाहते हैंः
(1.) देश में माननीय उच्चतम न्यायालय उच्चतम न्यायिक ज्ञान का भंडार है और न्यायालय कक्ष से निकला प्रत्येक शब्द सभी के लिए एक ऐसा पवित्र आदेश है जिसका पालन करना ही है। वर्तमान निर्णय में माननीय न्यायाधीशों ने बहुत ही स्पष्ट ढंग से अपनी राय व्यक्त की है जिसमें कहा गया है किः
(अ) जिस मकान के लिए मकान खरीददार ने पैसे का निवेश किया है उस मकान को प्राप्त करने का अधिकार नोएडा, जीएनआईडीए, वाईईआईडीए जैसी वित्तीय एवं विकास संस्थाओं से भी पहले खरीददार का है।
(ब) जो पैसा वित्तीय व विकास प्राधिकरणों की निगरानी में दूसरी गतिविधियों में लगाया गया है अथवा जिस पैसे में बेईमानी हुई है, चूंकि वह पैसा मुख्य रूप से मकान खरीददारों का है, इसलिए वित्तीय एवं विकास प्राधिकरणों की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वे मकान खरीददारों को फ्लैटों की डिलीवरी सुनिश्चित करें। इसलिए वित्तीय एवं विकास संस्थाओं से पहले मकान खरीददारों का अधिकार बनता है।
(स) सभी मकान खरीददारों को गुणवत्तायुक्त फ्लैटों की डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए माननीय उच्चतम न्यायालय ने एनबीसीसी को ‘प्रोजेक्ट कंसल्टैंट’ नियुक्त किया है, जिसे प्रोजेक्ट से प्राप्त होने वाली राशि से कुछ भुगतान किया जाएगा।
(द) आम्रपाली समूह की ‘लीज डीड’ रद्द कर जमीन नोएडा, जीएनआईडीए, वाईईआईडीए सहित उन संस्थाओं को वापस नहीं की गयी है जिन्होंने एक दशक पहले जमीन आम्रपाली को आबंटित की थी। इन संस्थाआंे ने हमेशा स्वयं जमीन का असली मालिक होने का दावा किया है (क्योंकि इन्होंने जमीन लीज पर दी थी) और पिछले एक दशक में इन्होंने आम्रपाली से ‘प्रीमियम’ और ‘लीज रेंट’ के रूप में काफी पैसा वसूल भी लिया है जो मुख्य रूप से मकान खरीददारों का ही पैसा है। आम्रपाली ने यह पैसा भोले-भाले किसानों से जमीन हथियाने के लिए खर्च किया।
(क) वित्तीय संस्थाओं ने भी पिछले एक दशक में करीब-करीब उतनी ही राशि ब्याज के रूप में आम्रपाली समूह से वसूल ली है जो इन्होंने आम्रपाली समूह को मूलधन के रूप में उधार दी थी।
(ख) मकान खरीददार पहले ही फ्लैट की करीब 60 प्रतिशत राशि गृह ऋण के माध्यम से भुगतान कर चुके हैं। इस समय वे दोहरा नुकसान झेल रहे हैं। एक तरफ वे हर महीने अपने मकान का किराया भरते हैं और दूसरी तरफ हर महीने गृह ऋण की किश्तें चुका रहे हैं। उन्हें अब माननीय उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया है कि वे अब फ्लैट की शेष राशि माननीय न्यायालय की निगरानी में गठित ‘एस्क्रौ अकाउंट’ में जमा करें।
(2.) माननीय उच्चतम न्यायालय ने इस फैसले में जिस वाणिज्यिक सूूझ-बूझ का परिचय दिया है हम उससे सहमत नहीं हैं। यह निर्णय अव्यावहारिक, अपूर्ण, अनिर्णीत एवं असंगत है। यह न तो निर्दोष गृह क्रेताओं को मकान दिलाता प्रतीत होता है और न ही भविष्य में जालसाजी की ऐसी किसी अन्य घटना को रोकने में कामयाब होता दिखायी देता है। इस संबंध में हमारी दलीलें इस प्रकार हैंः
(क) इस बात को समझना चाहिए कि गृह क्रेताओं को अपने निवेश पर एक भी पैसा अभी तक वापस नहीं मिला है जबकि दो अन्य प्रभावित पार्टियांे यानि विकास प्राधिकरणों तथा बैंकों को कम से कम उनके निवेश की मूल राशि वापस मिल चुकी है। इसके बावजूद गृह के्रताओं को ही मकानों की शेष राशि ‘एस्क्रौ अकाउंट’ में जमा करने का आदेश दिया गया है। विकास प्राधिकरणों तथा बैंकों के निकम्मेपन के कारण पहले निरीह गृह क्रेताओं को लूटा गया और अब उन्हें दंडित किया जा रहा है। यह किसी भी प्रकार से औचित्यपूर्ण नहीं है।
(ख) गृह ऋण की किश्तों और मकान के किराये के बोझ तले दबे गृह क्रेता खुद को लुटा हुआ महसूस करते हुए आठ साल से मकान की उम्मीद में इधर से उधर चक्कर काट रहे हैं। बिल्डर से मकान मिलने की वे उम्मीद खो चुके हैं। जरूरत उनकी उम्मीद को फिर से कायम करने की है। इस भरोसे को कायम करने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था को खरीददारों पर अधिक भरोसा करना चाहिए। इसलिए फ्लैटों का निर्माण खरीददारों से और राशि लिये बगैर प्रारंभ होना चाहिए और खरीददारों से शेष राशि तभी ली जाए जब उन्हें तैयार मकान पर कब्जा मिल जाए। उससे पहले किसी भी हालत में शेष राशि न ली जाए। हमें लगता है कि माननीय न्यायालय से यहां चूक हुई है।
(ग) इसके विपरीत निर्माण कार्य को फिर से शुरू करने और उसे पूरा करने की जिम्मेदारी विकास संस्थाओं तथा बैंकांे पर होनी चाहिए। जिस प्रकार एनबीसीसी को तकनीकि निगरानी के लिए नियुक्त किया गया है उसी प्रकार विकास प्राधिकरणों को आदेश दिया जाए कि वे इस प्रोजेक्ट को शुरू करने और उसे पूर्ण करने के लिए आवश्यक धनराशि की व्यवस्था करें। इस निर्णय में ‘बेसिक प्लान आॅफ रेज़लूशन’ की कमी है। बिना धन की व्यवस्था किये महज एनबीसीसी को निर्देश देने से समस्या का समाधान नहीं होने वाला। इस संबंध में एक व्यावहारिक और लागू किये जाने लायक व्यवस्था बनायी जाए ताकि पूरे प्रोजेक्ट को जल्दी से जल्दी पूरा किया जा सके।
(घ) आम्रपाली समूह में 40 कंपनियां शामिल हैं जो मकान खरीददारों को मकान उपलब्ध कराने में असफल रही हैं। यही कंपनियां बैंकों का ऋण चुकता करने में असफल रही हैं और इन्होंने ही जमीन की एवज में भुगतान नहीं किया है। इसलिए आईबीसी कोड 2016 के तहत इसे समूह दिवालियेपन का मामला मानना चाहिए। इसके तहत माननीय उच्चतम न्यायालय तीनों विकास संस्थाओं यानि नोएडा, जीएनआईडीए तथा वाईईआईडीए को अपनी निगरानी मंे एक विशेषज्ञ इंप्लीमेंटेशन कमेटी गठित कर ‘सोल रेज़लूशन एप्लीकेंट’ माने।
(च) जिन तीन संस्थाओं पर मकान खरीददारों के हितों के संरक्षण की जिम्मेदारी थी उन्हें ही अब इस समस्या के समाधान हेतु एनबीसीसी के प्रतिनिधियों, वित्तीय संस्थानों, विकास संस्थाओं, गृह क्रेताओं, न्यायालय द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षकों, एमीकस क्यूरी तथा अन्य रीयल इस्टेट उद्योग के विशेषज्ञों को मिलाकर एक समाधान समिति बनानी चाहिए और उस योजना को मूर्त रूप देने के लिए वित्त का भी प्रबंध करना चाहिए।
(छ) समाधान समिति को ऐसी योजना तैयार करनी चाहिए जिससे सभी 40 कंपनियों के लंबित प्रोजेक्टस को पूरा करने के लिए लागू किया जा सके। इन सभी 40 कंपनियों की संपत्ति को ’रेज़लूशन इस्टेट’ के तहत एकत्र किया जाए, उनके बोर्ड को तुरंत प्रभाव से बर्खास्त किया जाए और सभी 40 कंपनियों का नियंत्रण समाधान समिति को सौंपा जाए।
(ज) जब तक विस्तृत और बारीकी से पूरी योजना तैयार नहीं होती तब तक व्यावहारिक समस्याओं, बाधाओं तथा प्रोजेक्टस को पूरा करने के लिए आवश्यक धन का आंकलन नहीं किया जा सकता। तभी वास्तव में प्रोजेक्टस को पूरा करने की समयावधि, विभिन्न स्टेकहोल्डर्स को मिलने वाली छूट अथवा कटौती आदि का पता चल सकेगा।
(झ) सभी 40 कंपनियों के कारण जो अव्यवस्था पैदा हुई है जब तक उन्हें लेकर एक प्रभावी योजना तैयार नहीं हो जाती तब तक माननीय न्यायालय के सभी निर्देश और निर्णय निष्प्रभावी सिद्ध होंगे।
(ट) इस प्रकार गठित होने वाली ‘रेज़लूशन इस्टेट’ को आईबीसी-2016 के प्रावधानों के तहत इस बात के लिए अधिकृत किया जाए कि वे 40 कंपनियों की पूरी संपत्ति को लिक्विडेट कर सके ताकि किसी भी स्टेकहोल्डर की तरफ से किसी प्रकार की परेशानी अथवा देरी न की जा सके। इस समस्त प्रक्रिया का उद्देश्य सभी प्रोजेक्टस को पूरा करने और खरीददारों को तैयार मकान सौंपना होना चाहिए।
हमारा मत है कि यदि उपरोक्त कदम उठाये जाते हैं तो इससे न केवल मकान खरीददारों का व्यवस्था पर से खोया विश्वास फिर बहाल होगा, बल्कि इस पूरी समस्या का एक व्यावहारिक समाधान भी हो सकेगा।
(3) अब हम इस निर्णय के आपराधिक पक्ष पर आते हैं। निर्दोष मकान खरीदारों के पैसे को जिस प्रकार दूसरी गतिविधियों में ‘डायवर्ट’ किया गया है (जिसका क्राॅसहोल्डिंग्स और स्वामित्व के कारण सही आंकलन अभी तक नहीं हो सका है) वह एक सुनियोजित और दिन दहाडे किया गया वित्तीय अपराध है। इस अपराध में संलिप्त सभी दोषियों को कड़ा दंड दिया जाना चाहिए।
(अ) माननीय न्यायालय के इस निर्णय में सभी 40 कंपनियों के निदेशकों तथा ज्यादातर स्टेकहोल्डर्स को अपने पदों तथा स्वामित्व से तत्काल और स्पष्टतया वंचित कर दिया जाना चाहिए था। उनकी निजि संपत्तियों को भी जब्त कर ‘रेज़लूशन इस्टेट’ में समाहित कर देना चाहिए था।
(ब) चूंकि आम्रपाली प्रबंधन ने अपना अपराध लगभग स्वीकार कर लिया है (जिसकी महज मात्रा अभी तय होनी शेष है), इसलिए इसमें किसी भी प्रकार की दया नहीं दिखायी जानी चाहिए थी। अपराध की मात्रा तय होने से पहले ही अपराध की सजा सुनायी जानी चाहिए थी ताकि आम्रपाली समूह द्वारा न्यायिक प्रक्रिया का किसी प्रकार से दुरूपयोग न किया जाए।
(स) धन को दूसरी गतिविधियों में डायवर्ट करने का काम निश्चित रूप से नोएडा, जीएनआईडीए और वाईईआईडीए के अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ है। इसलिए इनके प्रमुखों को उनके पदों से तुरंत हटा दिया जाना चाहिए। आबंटन प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों व निगरानी तथा रिकवरी प्रक्रिया के प्रमुुखों को जिम्मेदारी मानकर उनके विरुद्ध कडी कार्रवाई की जाए।
(द) यहां इस बात का उल्लेख करना अप्रासंगिक नहीं होगा कि जो धृष्टता नोएडा, जीएनआईडीए और वाईईआईडीए के अधिकारियों ने पिछले आठ साल से मकान खरीददारों द्वारा की जा रही शिकायकों को अनसुना करके और आम्रपाली घोटाले पर पर्दा डालकर की है वह राजनीतिक संरक्षण के बगैर नहीं हो सकती। इसलिए इस घोटाले में जो भी राजनीतिज्ञ शामिल हैं उनकी पहचान कर उन्हें दंडित किया जाए।
(4) भूमि आबंटन, जमीन का प्रीमियम एकत्र करने, डवलेपर के चयन, नोएडा, जीएनआईडीए और वाईईआईडीए की व्यवस्था को दूषित करने की पूरी प्रक्रिया गलत है जिसमें से भ्रष्टाचार और छल-कपट की बू आती है तथा वह इस प्रकार के बडे घोटालों के पनपने के लिए अनुकूल माहौल उपलब्ध कराती है। यदि आज इस प्रक्रिया को जारी रहने दिया गया और उसे रोकने के लिए सख्त कदम नहीं उठाये गये तो आने वाले दिनों में आम्रपाली जैसे और भी अनेक बडे़ घोटाले सामने आएंगे। इसलिए आज तीनों विकास संस्थाओं यानि नोएडा, जीएनआईडीए और वाईईआईडीए की उपयोगिता, उद्देश्यों, जिम्मेदारियों, प्रबंधन तथा जवाबदेही पर फिर से विचार करने की जरूरत है। माननीय न्यायालय को इस पूरी गंदगी को साफ करने के अवसर को नहीं गंवाना चाहिए।
इसलिए आपसे हाथ जोड़कर विनती है कि आप इस परिस्थिति की गंभीरता को समझें और संबंधित अधिकारियों को कार्रवाई करने और गलती सुधारने का निर्देश दें। आपकी थोड़ी सी मदद सभी 42,000 मकान खरीददारों के अपने मकान के स्पप्न को साकार करने में मददगार साबित होगी।
भवदीय
अनुज कुमार अग्रवाल (महासचिव, मौलिक भारत) 9811424443
पंकज सरौगी (सदस्य, राष्ट्रीय कार्यसमिति, मौलिक भारत) 9818644228
अनिल के. गर्ग (सदस्य, राष्ट्रीय कार्यसमिति, मौलिक भारत) 9891242323
नीरज सक्सेना (सदस्य, राष्ट्रीय कार्यसमिति, मौलिक भारत) 9871057114
www.maulikbharat.co.in
दिनांक
नोटः उच्चतम न्यायालय के निर्णय के महत्वपूर्ण अंश संलग्न हैं
प्रतिलिपिः
माननीय प्रधानमंत्री, भारत सरकार
माननीय मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय
माननीय शहरी विकास मंत्री, भारत सरकार
माननीय मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार