जब भारत की रियासतों का एकीकरण हो रहा था तब रियासत के राजाओं को यह अधिकार दिया गया था कि वो चाहे तो पाकिस्तान में मिले या अपना स्वतंत्र राज्य बनाये या फिर भारत में मिले। वहां के राजा अपना एक अलग राज्य बनाना चाहते थे। लेकिन जब पाकिस्तान ने मुस्लिम बहुल क्षेत्र समझकर कश्मीर पर हमला किया तो वहां के राजा ने हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री से सहायता मांगी। उस समय जवाहर लाल नेहरू ने भारत में विलय की शर्त पर मदद की और अंतत: कश्मीर भारत का हिस्सा बना। 1947 में ही एक तिहाई कश्मीर पर पाकिस्तान ने कब्जा तो किया पर उनके पास कश्मीर के महाराजा हरि सिंह की रियासत पाकिस्तान में मिलाने का कोई आदेश नहीं था।
20 अक्तूबर, 1947 को पाकिस्तान समर्थित आजाद कश्मीर सेना ने राज्य के अग्रभाग पर आक्रमण किया। इस असामान्य स्थिति में, राज्य के शासक ने राज्य को भारत में विलय करने का निर्णय लिया। इसके अनुसार, 26 अक्तूबर, 1947 को जवाहरलाल नेहरु तथा महाराजा हरिसिंह द्वारा ‘जम्मू और कश्मीर के भारत में विलय-पत्र’ पर हस्ताक्षर किए गए। इसके अंतर्गत, राज्य ने केवल तीन विषयों यानी रक्षा, विदेशी मामले तथा संचार पर ही अपना अधिकार छोड़ा। जिसके तहत भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 सम्मिलित किया गया।
ऐसे में उन्होंने उसे पाकिस्तान का आधिकारिक तौर पर अपना सूबा नहीं बनाया बल्कि उसे एक अस्थायी देश के तौर पर आज़ाद कश्मीर नाम के अर्धदेश के रूप में रखा जिसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री होते हैं।
वास्तव में ये भारत के मुस्लिम कश्मीरियों को उत्तेजित करने का प्रयास था जिससे भारत वाले कश्मीरी विद्रोह करें और पाकिस्तान पूरे कश्मीर को एक स्वतंत्र देश बनाने में मदद करेगा ऐसा विश्वास पैदा करना था। आतंकवाद के द्वारा आज भी ये दिलासा पाकिस्तान कश्मीरी मुस्लिमों को देता रहता है।
पाकिस्तान इस तरह से अपने हिस्से के कश्मीर को कब्जा करने के बावजूद उस पर पिछले 70 वर्षों से एक पैसा भी नहीं खर्च करता है क्योंकि वह उसका कोई आधिकारिक प्रदेश न हो कर एक अस्थायी कब्जा मात्र है। पाकिस्तानी संसद में उनका कोई प्रतिनिधि नहीं है और केंद्रीय बजट से उन्हें एक पैसा नहीं मिलता है। पिछले 70 साल में वहां कोई विकास कार्य नहीं हुआ है। उस प्रदेश का प्रयोग एक कूड़ेदान या लड़ाई और आतंकियों के पनाहगाह के रूप में होता है।
जबकि भारतीय कश्मीर एक वैध भारतीय प्रदेश है जिस पर हर साल हजारों करोड़ रुपए खर्च होते रहते हैं। भारतीय संसद में उसके प्रतिनिधि हैं।
ऐसे में नेहरू जी के कश्मीर को पाक अधिकृत कश्मीर जैसा अलग देश जैसा प्रावधान अनुच्छेद 370 से बनवाना सिवाय नकल करने और ये दिखाने के लिए कि हमने भी कश्मीर को भारत में पूरी तरह से मिलाया नहीं है, यह एक बहुत बड़ी बेवकूफी ही कही जाएगी।
हमारे पास महाराज हरि सिंह का दिया प्रमाणपत्र होने से हमारा वैध प्रदेश है और हमें तथाकथित आज़ाद कश्मीर जैसे प्रशासन की नकल करने के लिए अनुच्छेद 370 बनाने की भी कोई जरूरत नहीं थी।
अब 70 साल बाद तो इसको बनाए रखने का कोई तुक ही नहीं था। आज हम इसे बहुत आसानी से हटा सकते हैं इसके लिए मजबूत सरकार और इच्छाशक्ति की जरूरत थी जिसे मोदी जी के नेतृत्व ने कर दिखाया। अब गिने चुने कश्मीरी कुछ दिन विरोध करेंगे, फिर सब कुछ सामान्य हो जाएगा।
लेकिन जैसे ही भारत ऐसा करेगा, तो क्या पाकिस्तान भी अपने हिस्से के कश्मीर को अपना पांचवां प्रदेश बना लेगा और ये नाटक समाप्त हो जाएगा? अगर पंजाब दोनों देशों में एक प्रदेश हो सकता है तो कश्मीर भी हो सकता है।
अब 370 हटने के बाद एक बड़ी समस्या पाक अधिकृत कश्मीर को छुड़वाने की है और इसका सामथ्र्य आज की तारीख में भारत में नहीं है या शायद इसका समय अब निकल चुका है। फिर भी मोदी है तो कुछ भी मुमकिन है।
ध्यान रहे कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही परमाणु देश हैं और किसी भी तरह का युद्ध परमाणु युद्ध में बदल सकता है। इसके अलावा पाक अधिकृत कश्मीर अब पाकिस्तान का राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सामाजिक रुप से एक अभिन्न अंग बन चुका है। भारत की पाक अधिकृत कश्मीर को छुड़वाने की कोई भी कोशिश बेकार ही साबित होगी।
यह तो जाहिर है कि पाक अधिकृत कश्मीर को छुड़वाने के लिए भारत को कूटनीति के बजाय बल का प्रयोग करना पड़ेगा और बल प्रयोग करने की वजह से यह मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन जाएगा और भारत को एक युद्ध थोपने वाले देश के रूप में देखा जाएगा जिसकी वजह से देश पर राजनीतिक एवं आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाएंगे।
पाक अधिकृत कश्मीर को छुड़वाने की कोशिश करने पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इस्लामिक देशों का समर्थन पूरी तरह से पाकिस्तान के पक्ष में जाने की संभावना है जिसका खामियाजा आर्थिक रूप से भारत को भुगतना पड़ सकता है। भारत कच्चे तेल का आयात ज्यादातर मुस्लिम देशों से करता है और मुस्लिम बहुल पाक अधिकृत कश्मीर में बल प्रयोग करने पर धर्म का कोण प्रमुख तौर पर बीच में आएगा या लाया जाएगा।
पाक अधिकृत कश्मीर को छुड़वाने की भारत की कोई भी कोशिश सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय जगत में राजनीतिक रूप से मजबूती प्रदान करेगी क्योंकि अभी तक भारत ने पाकिस्तान को आतंकवाद आयोजित करने वाले देश के रूप में प्रचारित किया है और काफी हद तक भारत इसमें सफल भी रहा है। पाक अधिकृत कश्मीर छुड़वाने के लिए बल प्रयोग करने पर यह पाकिस्तान के लिए एक सुनहरा अवसर होगा जिसमें वह भारत के खिलाफ छद्म युद्ध को जस्टिफाई कर सकेगा।
पाक अधिकृत कश्मीर को छुड़वाने के लिए भारत को पाकिस्तान के साथ साथ चीन का भी सामना करना पड़ेगा वह इसलिए क्योंकि चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है। भारत द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर में किसी भी तरह का फौजी तनाव उत्पन्न करना मतलब चीन के आर्थिक हितों को चोट पहुंचाना होगा और इसका जवाब चीन भारत की ही तरह बल प्रयोग की भाषा में दे सकता है।
डगर आसान तो कदापि नहीं है। इतने झंझावतों के बाद एक अलौकिक उम्मीद तो जगाई ही मोदी जी ने तो समाधान भी अपेक्षित है और अंतिम उम्मीद भी इन्हीं से है।