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सुस्त पड़ी अर्थव्यस्था को मिलेगी रफ्तार!

केंद्र सरकार ने सुस्त पड़ी देश की आर्थिक गतिविधियों को तेजी देने के लिए बैंकों को 70 हजार करोड़ देने, इसके अलावा करीब पांच लाख करोड़ की दूसरी सहायता देने के साथ ही उद्योग जगत और मध्यवर्गीय लोगों के लिए कई तरह के उपायों का ऐलान कर दिया है। सरकार ने जो उपाय किए हैं, उनकी तफसील से जानकारी हासिल करने के पहले जानना जरूरी है कि मंदी की आहट किन-किन क्षेत्रों में सुनाई दे रही है। भारत में खेती-किसानी के बाद जो क्षेत्र सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देता है, वह है टेक्सटाइल सेक्टर। यह सेक्टर 10 करोड़ लोगों को रोजगार देता है। लेकिन इन दिनों इसकी हालत खराब है। इस सेक्टर की बुरी हालत को लेकर आर्थिक अखबारों ने जितनी बड़ी खबरें नहीं की, उससे ज्यादा बड़ी खबर बनी नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन के इश्तेहार ने। जिसमें उसने कहा है कि कपड़ा उद्योग में 34.6 फीसद की गिरावट आई है, जिसकी वजह से इस सेक्टर से 25 से 30 लाख लोगों का रोजगार खत्म होने की आशंका है। कुछ ऐसी ही हालत रियल एस्टेट सेक्टर की भी है। जहां मकानों के खरीददार घट गए हैं। इस सेक्टर के अपने आंकड़ों के मुताबिक बीते मार्च देश के 30 बड़े शहरों में 12 लाख 80 हज़ार मकान बनकर तैयार हो चुके थे, लेकिन आर्थिक सुस्ती और अनिश्चित भविष्य की चिंता की वजह से इन मकानों के लिए खरीदार आगे नहीं आ रहे हैं। इसका मतलब यह है कि रियल एस्टेट कंपनियों ने जितने मकान बनाए हैं, उस अनुपात में मकानों की बिक्री नहीं हो रही है। रिजर्व बैंक के आंकड़े भी गवाही दे रहे हैं कि मकान और वाहन खरीदने के लिए लोगों ने बैंकों से कर्ज लेना कम कर दिया है। देश के केंद्रीय बैंक के ही मुताबिक पेट्रोलियम, खनन, टेक्सटाइल, फर्टिलाइजर और टेलीकॉम जैसे सेक्टर्स में कर्ज की खपत कम हो गई है। मंदी की मार का बड़ा असर ऑटोमोबाइल सेक्टर पर दिख रहा है। देश में वाहनों की बिक्री 19 साल के निचले स्तर पर रही। सबसे ज्यादा गिरावट तो जुलाई में देखने को मिली। इस महीने देश की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी मारूति-सुजुकी के वाहनों की बिक्री में 36 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। बड़ी बात यह है कि यह गिरावट सिर्फ कारों या मोटरसाइकिलों की बिक्री में ही नहीं, बल्कि ट्रैक्टर और ट्रक में भी देखी गई। एक अनुमान के मुताबिक करीब 250 वाहन डीलरशिप बंद हो चुकी हैं। ऑटोमोबाइल कंपनियों को पुर्जे आपूर्ति करने वाली कंपनियों के उत्पादन में मांग घटने के चलते कमी हुई है। इसकी वजह से अस्थायी कर्मचारियों की संख्या में कंपनियों ने कटौती की है। माना जा रहा है कि अगर हालात नहीं सुधरे तो इस सेक्टर में छह फीसद नौकरियां खत्म हो सकती हैं।

यूं तो मंदी की आहट छह महीने पहले ही महसूस की जाने लगी थी। लेकिन जब केंद्र में दोबारा मोदी सरकार बड़े बहुमत के साथ वापस लौटी थी, तो माना गया कि केंद्र सरकार अपने बजटीय प्रावधानों के जरिए कुछ ऐसे उपाय करेगी, जिससे सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिलेगी। लेकिन बजटीय प्रावधानों ने कारपोरेट सेक्टर को निराश किया। इसका असर यह हुआ कि बरसों बाद देश के शेयर मार्केट में गिरावट देखी गई। इससे विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से अपनी रकम बाहर निकालनी शुरू कर दी। माना जा रहा है कि जुलाई तक विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार से करीब 11 हजार करोड़ की रकम निकाल चुके हैं। इसकी वजह से आई बाजार में गिरावट की वजह से भारतीय निवेशक करीब 10 हजार करोड़ की अपनी रकम गवां चुके हैं। आर्थिक जानकारों का मानना है कि शेयर बाजार की बुरी हालत के लिए बजट में किए गए नए प्रावधानों ने भी बड़ी भूमिका निभाई। नए प्रावधानों के तहत सरकार ने कंपनियों के लिए पब्लिक होल्डिंग 25 से 35 फीसद करने का प्रस्ताव किया है। इससे प्रमोटर्स अपने पास कंपनियों के 65 फीसद से ज्यादा शेयर नहीं रख पाएंगे। इस वजह से भी शेयर बाजार में गिरावट नहीं थम रही है। निवेश और औद्योगिक उत्पादन घटने से शेयर बाजार में मंदी का ही असर है कि सेंसेक्स 40 हजार का आंकड़ा छूकर फिर 37 हजार पर आकर अटक गया है। मंदी की वजह से अप्रैल से जून 2019 की तिमाही में सोना-चांदी के आयात में 5.3 फीसद की कमी आई है। जबकि पिछले साल इसी अवधि के दौरान इस आयात में 6.3 प्रतिशत की बढ़त देखी गई थी।

यह तो अंदरूनी वजहें रहीं, जिन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था की सुस्ती की वजह माना जा रहा है। लेकिन कुछ बाहरी वजहें भी हैं, जिनसे भारतीय बाजार में भी सुस्ती दिख रही है। इसमें सबसे बड़ी वजह पेट्रोलियम पदार्थों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी है। इसकी वजह से महंगाई दर बढ़ती गई है। फिर अंतरराष्ट्रीय वजहों से डॉलर के मुकाबले में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज हुई है। अब एक डॉलर की कीमत भारतीय रूपये में 72 से ज्यादा हो गई है। इस वजह से भारत का आयात खर्च बढ़ा है। इसकी वजह से राजकोषीय घाटा बढ़ा है और देश के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है। इसके अलावा अमेरिका और चीन के बीच में जारी ट्रेड वार की वजह से दुनियाभर में आर्थिक मंदी छाई हुई है। इसका असर भारत पर भी पड़ा है। इसके साथ ही भारतीय टेलिकॉम और विमानन उद्योग भी संकट का सामना कर रहा है। देश की निजी क्षेत्र की सबसे प्रभावशाली विमानन कंपनी जेट अप्रैल से बंद पड़ी है और सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। इसके साथ ही भारतीय बैंकिंग व्यवस्था अभी एनपीए की त्रासदी को झेल रही है। इन दिनों बैंकों का कुल एनपीए 9,49,279 करोड़ रुपये है। इस एनपीए का 50 प्रतिशत हिस्सा तो देश के सिर्फ 150 बड़े पूंजीपतियों की वजह से हुआ है। यह बात और है कि मोदी सरकार के प्रयासों से पिछले चार साल में करीब एक लाख करोड़ के एनपीए की कमी हुई है। इसके बावजूद इसमें कमी हालात को सुधारने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके साथ ही निजी बजत में कमी आई है। भारत जैसे देश में घरेलू निवेश की बुनियाद हाउसहोल्ड सेविंग पर टिकी है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था में हाउसहोल्ड सेविंग में गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2011-12 में हाउसहोल्ड सेविंग की दर 68.2 फीसद थी, लेकिन  2017-18 में यह घटकर 56.3 प्रतिशत ही रह गई है। इसी तरह 2017 में आम लोगों की कुल बचत दर जीडीपी के अनुपात में घटकर 17 प्रतिशत पर आ गई जो पिछले 20 सालों में सबसे कम है। इसी तरह कृषि विकास दर भी ऐतिहासिक गिरावट के साथ 2.9 फीसद की दर से आगे बढ़ रही है। इसके साथ ही भारत की जीडीपी वृद्धि दर 5 साल के न्यूनतम स्तर पर आ चुकी है। जनवरी-मार्च तिमाही में जीडीपी की दर 5.8 फीसद थी। बहरहाल मौजूदा आर्थिक सुस्ती की वजह से कईं अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट के पूर्वानुमान में कमी कर रही हैं। दरअसल निवेश को किसी भी अर्थव्यवस्था में एक मजबूत कड़ी माना जाता है। लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था निजी निवेश की कमी से जूझ रही है। वित्त वर्ष 2015 में निजी निवेश की दर 30.1 प्रतिशत थी, जो  2019 में यह घटकर 28.9 फीसद रह गई है। बहरहाल केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2018-19 में देश की जीडीपी विकास दर 6.8 प्रतिशत रही जो बीते 5 सालों में सबसे कम है। जिसके बाद रिजर्व बैंक ने मंदी की आहट को भांपते हुए साल 2019-20 के लिए विकास दर का अनुमान घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है।

पहले माना गया था कि सरकार अपनी तरह से बजट में ही उपाय करेगी। लेकिन सरकार को उम्मीदें थी कि बजट प्रावधान से ही सुस्ती दूर होगी। जब ऐसा नहीं हुआ तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को 32 सूत्री उपायों के साथ मंदी पर प्रहार के लिए आगे आना पड़ा। इसके तहत केंद्र सरकार ने बैंकों की मुद्रा का प्रवाह बनाए रखने के लिए 70 हजार करोड़ देने, बैंकों के नगदी संकट को दूर करने के लिए पांच लाख करोड़ देने, स्टार्टअप के लिए एंजल टैक्स खत्म करने, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक के निवेश पर लगे सरचार्ज को हटाने, घरेलू निवेशक पर लगे सुपर रिच सरचार्ज को हटाने के साथ ही सरकारी दफ्तरों द्वारा नए वाहन खरीदने, रिजर्व बैंक के रैपो रेट के हिसाब से सस्ती दरों पर होम और ऑटो लोन के लिए कर्ज देने, जीएसटी रिफंड आसान बनाने और तीस दिन में वापस करने, आयकर नोटिस केंद्रीकृत तरीके से भेजने, कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के उल्लंघन के मामले को फौजदारी की बजाय दीवानी बनाने आदि की घोषणा की। रियल एस्टेट क्षेत्र को राहत देने के लिए आवास वित्त कंपनियों की लिक्विडिटी को बीस हजार करोड़ से बढ़ाकर तीस हजार करोड़ करने की घोषणा की।

मंदी से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को रफ्तार दिलाने के लिए सरकार द्वारा किए गए ऐलानों का उद्योग जगत ने स्वागत किया है। सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि शानदार पैकेज से अर्थव्यस्था लंबी छलांग के साथ अगले स्तर पर पहुंच जाएगी। वहीं आनंद महिंद्रा ने कहा कि एफपीआई और घरेलू निवेशकों के सरचार्ज घटाने से बाजार की धारणा मजबूत होगी। 23 अगस्त को निर्मला सीतारमन द्वारा किए गए इन ऐलानों का समर्थन शेयर बाजार में भी दिखा और वह 288 अंकों के साथ बंद हुआ। उधर गोरखपुर में इन्फोसिस के संस्थापक नारायणमूर्ति ने कहा, ”लगभग 300 सालों में पहली बार हमारे पास एक आर्थिक वातावरण है जो विश्वास दिलाता है कि हम सच में अपनी गरीबी को दूर कर सकते हैं और लोगों के लिए एक बेहतर भविष्य बना सकते हैं।’’ नारायणमूर्ति ने यह भी कहा, ”हमारी अर्थव्यवस्था इस साल 6 से 7 फीसदी की दर से बढ़ रही है। भारत दुनिया का सॉफ्टवेयर विकास केंद्र बन गया है। वहीं विदेशी मुद्रा भंडार ने 40 लाख करोड़ डॉलर को पार कर लिया है। इन हालात में निवेशक का विश्वास ऐतिहासिक ऊंचाई पर है।’’ वैसे उम्मीद की जानी चाहिए कि जब दशहरा के साथ भारतीय त्योहारी सीजन शुरू होगा, भारतीय बाजार एक बार फिर उपभोक्ताओं की मांग से चमकेंगे। वैसे भी 2008 की भयानक वैश्विक मंदी के दौर में भारतीय बाजार को भारतीय त्यौहारों, शादी-ब्याहों ने एक हद तक बचाया था। उम्मीद की जाऩी चाहिए कि नए उपायों से सुस्त पड़ी भारतीय अर्थव्यस्था रफ्तारपकड़ेगी।

उमेश चतुर्वेदी

 

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