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भ्रष्ट एमसीआई पर भारी एनएमसी

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति से हर भारतीय पूरी तरह वाकिफ है। पूर्ववर्ती सरकारों ने स्वास्थ्य शिक्षा के विषय को कभी राष्ट्रीय महत्व समझा ही नहीं। जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आज हम चांद पर तो जा रहे हैं लेकिन अपने देश के लिए जरूरी चिकित्सकों की संख्या की आपूर्ति करने में असफल रहे हैं। मजबूत इच्छाशक्ति हो तो हर मैदान फ़तह की जा सकती है। मोदी सरकार-2 मजबूत राजनीतिक शक्ति के साथ इस बार मैदान में उतरी है। इसका अंदाजा इस बार के संसद सत्र में पास हुए बिलों के देखकर सहज ही लगाया जा सकता है। जिन बिलों पर दशकों से राजनीति होती आ रही थी आज वे कानून बन चुके हैं। इसी कड़ी में 8 अगस्त, 2019 का दिन स्वास्थ्य शिक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण बन गया है। राष्ट्रपति ने 8 अगस्त को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग बिल-2019 पर अपना हस्ताक्षर कर दिया है। इस हस्ताक्षर के बाद अब राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के गठन का रास्ता साफ हो गया है। यह आयोग भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (एमसीआई) की जगह लेगा।

1933 से जिस एमसीआई की कहानी स्वास्थ्य शिक्षा में ब्रह्म लकीर की तरह कही-सुनी जाती रही, अब वह लकीर पूर्ण विराम में तब्दील हो चुकी है। अब वह लकीर इतिहास में दर्ज हो चुकी है। वर्तमान का नाम है एनएमसी यानी राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग।

स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 1 अगस्त बना ऐतिहासिक दिन

एनएमसी बिल के विरोध में राजनीति करने वाले कुछ चिकित्सकों एवं संगठनों के विरोध को छोड़ दिया जाए तो 1 अगस्त, 2019 भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र के इतिहास में एक क्रांतिकारी दिन के रूप में याद किया जाएगा। एनएमसी बिल के विरोध में जितने चिकित्सक हैं उससे कहीं ज्यादा उसके पक्ष में हैं। इसका एक उदाहरण दिल्ली के राजघाट पर पिछले दिनों देखने को मिला जब तख्तियां लेकर चिकित्सक एनएमसी बिल, 2019 का समर्थन करते हुए नजऱ आए थे।

1 अगस्त दोपहर बाद राज्यसभा में नेशनल काउंसिल बिल-2019 को स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने चर्चा के लिए प्रस्तुत किया। चर्चा की शुरुआत में ही विपक्ष ने इस बिल को लेकर आक्रामक रूख अपनाया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने इस बिल के क्लाज 10-1 (द्ब),  सेक्शन 4, सेक्शन 32 का विरोध किया। उन्होंने अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इस बिल में निजी कॉलेजों के 50 फीसद फी की कैंपिंग की जा रही है बाकी क्या होगा? उनकी दूसरी चिंता थी एनएमसी के सदस्यों में राज्यों की भागीदारी कमतर होने को लेकर। प्रस्तुत किए गए बिल में 25 सदस्यीय आयोग में 14 केन्द्र, 6 राज्य मेडिकल कॉउंसिल और 5 चुनकर आने थे। इसको लेकर उनका कहना था कि इससे राज्यों की भागीदारी कमतर हो जाएगी जो कि संघात्मक व्यवस्था के खिलाफ है और राज्यों के अधिकारों का हनन है। उन्होंने 14:15:05 के अनुपात यानी 14 केन्द्र 15 राज्य और 5 चुनकर अर्थात कुल 34 सदस्यीय एनएमसी बनाने का सुझाव दिया। जिसे सरकार ने थोड़े बदलाव के साथ मान लिया। नए संशोधित बिल में अब स्टेट मेडिकल काउंसिल से 5 की जगह 9 सदस्य होंगे और राज्य विश्वविद्यालयों से 6 की जगह 10 सदस्य होंगे। यानी कुल 34 सदस्यों का बोर्ड होगा।

इस संदर्भ में स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने राज्यसभा में बिल पास होने के बाद अपने फेसबुक पर लिखा कि, ‘प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार 130 करोड़ भारतीयों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं और इस दिशा में लगातार कदम उठाए जा रहे हैं। इस बिल से चिकित्सा शिक्षा में गुणवत्ता के साथ पारदर्शिता आएगी। उन्होंने आगे लिखा कि, ‘सरकार ने संसद की स्थायी समिति की सिफारिशों के आधार पर एनएमसी बिल, 2019 को तैयार किया है। चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में आज का दिन स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा क्योंकि प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में यह विधेयक एक बड़ा सुधारवादी कदम है। इससे चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा।’

मेडिकल की पढ़ाई महंगी होने के तर्क को स्वास्थ्य मंत्री ने सिरे से खारिज करते हुए कहा कि, ‘यह आशंका बिल्कुल निराधार है कि इससे मेडिकल छात्रों को परेशानी होगी बल्कि इस बिल के कानून बनने से छात्रों को कम फीस में गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा उपलब्ध होगी और साथ ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा।’ इस बिल में प्रस्तावित संशोधनों के बारे में बताते हुए स्वास्थ्य मंत्री ने अपने ट्वीटर हैंडल पर लिखा कि, ‘सरकार ने बिल से संबंधित पार्लियामेंटरी स्टैंडिंग कमेटी की कुल 56 सिफारिशों में से 40 को पूर्ण रूप से व 7 को आंशिक रूप से शामिल किया है जबकि 9 को खारिज कर दिया गया।

4 जुलाई, 2019 भी है महत्वपूर्ण

जिस संस्था का दशकों पहले अंतिम संस्कार कर देना चाहिए था, वह वेंटिलेटर के माध्यम से आज तक जीवित है। और इस वेंटिलेटर को ऑक्सिजन देने वाले कोई और नहीं बल्कि आपके-हमारे बीच के सफेदपोश हैं। यह बात मेरी अपनी नहीं है। 4 जुलाई, 2019 को राज्यसभा में पेश हुए एवं पास हुए इंडियन मेडिकल कॉउंसिल अमेंडमेंट बिल-2019 की बहस को देख लीजिए। आपको दूध का दूध और पानी का पानी समझ में आ जाएगा। दरअसल हम भारतीयों को संसदीय कार्यवाहियों को देखने की फुर्सत नहीं मिलती है। हम तो बस क्रिकेट, क्राइम और कॉमर्स में इस कदर डूब गए हैं कि देश के हित में अथवा अहित में क्या हो रहा है, इस पर हमारी नजऱ ही नहीं पड़ती है।

4 जुलाई, 2019 दोपहर 3 बजे के आस-पास उपसभापति हरिवंश जी के कहने पर आईएमसी अमेंडमेंट बिल-2019 को केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने पेश किया। सबसे पहले समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रो. रामगोपाल इस बिल पर बोले। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि, ”मुझसे कहा गया कि एमसीआई मामले में संसद-पटल पर कोई रिपोर्ट रखी ही नहीं जा सकती है! इसके पूर्व रखी ही नहीं गयी है। मुझे बताया गया था कि एमसीआई की पैठ बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी के साथ-साथ मेरी अपनी पार्टी एसपी में भी है। इसे मैं मानता भी हूं। उन्होंने कहा कि उन्हें हेल्थ कमेटि के चेयरमैन के नाते मैंने अपनी रिपोर्ट तय समय में दी। इसको लेकर मुझे बहुत कुछ झेलना पड़ा लेकिन मैंने किसी की परवाह नहीं की और यह रिपोर्ट संसद पटल पर रख दी। देशहित में हम उस रिपोर्ट को लाने का फैसला किए। जिसे बाद में पीएमओ के रास्ते इसे नीति आयोग भेज दिया गया। और नीति आयोग ने भी एमसीआई को भंग करने की सिफारिश कर दी।’’

प्रो. रामगोपाल की बात को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि ”1990 के दौर से भारत में दो ऐसी संस्थाएं हैं जिनको लेकर सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा है। एक है एमसीआई और दूसरी है बीसीसीआई। उन्होंने कहा कि एनएमसी बिल अभी तक तो पास हो जाना चाहिए था। लेकिन नहीं हुआ क्योंकि सरकार के फैसलों को एमसीआई प्रभावित करने में सफल रही है।’’ उन्होंने कहा कि 29 दिसंबर 2017 को एनएमसी बिल लोकसभा में रखा गया।  और डॉक्टरों के दबाव में उसे स्टैंडिंग कमेटि को भेजने का निर्णय लिया गया। जबकि स्टैंडिंग कमेटी में भेजने के लिए सरकार पर विपक्ष की ओर से कोई दबाव नहीं था। 4 जनवरी को इस मामले को स्टैंडिंग कमेटी को भेजा गया और 20 मार्च, 2018 को स्टैंडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट भी दे दी। 28 अप्रैल को कैबिनेट की मंजूरी भी मिल गई। बावजूद इसके सरकार इस बिल को अभी तक क्यों नहीं लेकर आई। वहीं दूसरी तरफ महाराष्ट्र से बीजेपी के सांसद डॉ. विकास महात्मे ने आईईएमसी (अमेंडमेंट) बिल पर कहा कि एमसीआई का भ्रष्टाचार इस कदर बढ़ गया था कि वो सिर्फ और सिर्फ निजी मेडिकल कॉलेजों के पक्ष में काम कर रही थी। 100 वर्ष पुराने सरकारी कॉलेज जहां पर हजारों की संख्या में मरीज आते हैं, वहां पर मेडिकल सीट न बढ़ाकर निजी मेडिकल कॉलेजों की सीट बढ़ती रही, जहां पर ओपीडी मरीजों की संख्या कम थी। उन्होंने इस भ्रष्टाचार की पोल खोलते हुए आगे कहा कि मेडिकल कॉलेजों को पोलिटिकल फंडिंग के बेहतर साधन के रूप में उपयोग किया गया। पार्टी लाइन देखकर पार्टी कार्यकर्ता को मेडिकल कॉलेज खोलने की अनुमति मिली। अगर कोई एमसीआई अधिकारी इसका विरोध करता तो अगले साल वह एमसीआई का सदस्य नहीं बना रह सकता था। इतना ही नहीं एमसीआई ने निजी कॉलेजों को आगे बढ़ाने के लिए सर्जरी एवं पोस्टमार्टम की शिक्षा देना उचित नहीं समझा। इन कॉलेजों से जो डॉक्टर निकले उन्होंने कभी पोस्टमार्टम किया ही नहीं। फिर वे बाहर निकलकर बेहतर सेवा कैसे दे सकते थे? इतना ही नहीं अनइथिकल प्रैक्टिस के लिए 2010 के पहले महज 8-10 चिकित्सकों को एमसीआई की ओर से दोषी ठहराया गया जबकि 2012 में यह संख्या 124 पर पहुंची। 8 लाख डॉक्टरों में क्या इतने ही लोगों ने अनइथिकल प्रैक्टिस की?

निश्चित रूप से राज्यसभा सांसद डॉक्टर विकास ने जो सवाल उठाए, या प्रो. रामगोपाल या जयराम रमेश जो कह रहे हैं उसकी गहराईयों में जाया जाए तो समझ में आएगा कि किस तरह से एमसीआई-राजनीतिक दल एवं मेडिकल कॉलेजों के बीच में एक आर्थिक लाइन जुड़ती है और देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ करती है।

डॉ. हर्षवर्धन ने एनएमसी संबंधी भ्रमों को किया दूर

एनएमसी अधिनियम 2019 के बारे में पत्रकारों से बातचीत करते हुए केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन उपरोक्त दोनों ही बातों को सिरे से खारिज कर गए। उनका कहना था कि इस बिल में अगर किसी को यह लग रहा है कि सरकार क्वैकरी को बढ़ा रही है तो वह गलत है। वह भ्रम फैला रहा है। सच्चाई यह है कि इस बिल में यह प्रावधान किया गया है कि अगर कोई क्वैकरी करते हुए पकड़ा गया तो उसे एक साल की सजा और 5 लाख रुपये जुर्माना देना पड़ेगा।

डॉ. हर्षवर्धन ने कड़े शब्दों में कहा कि एमसीआई के जमाने में क्वैकरी पर महज कुछ 100 रुपये का जुर्माना लगाया जाता था जो अब बढ़ाकर 5 लाख कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम के बन जाने के बाद अगले 6 महीने में एनएमसी का गठन कर लिया जायेगा। हालांकि बिल में एनएमसी गठन करने की अवधि 9 महीने बताई गई है। स्वास्थ्य मंत्री ने देश की जनता को भरोसा दिलाया कि एनएमसी का गठन 6 महीने में ही पूर्ण कर लिया जायेगा।

स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि आईएमसी अधिनियम, 1956 में फीस के नियमन के लिए कोई प्रावधान नहीं था। परिणामस्वरूप कुछ राज्य  कॉलेज प्रबंधन के साथ समझौता ज्ञापन करके निजी मेडिकल कॉलेजों में कुछ सीटों की फीस का नियमन करते थे। इसके अतिरिक्त अंतरिम व्यवस्था के रूप में उच्चतम न्यायालय ने निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस निर्धारित करने के लिए सेवानिवृत हाईकोर्ट जजों की अध्यक्षता वाली समितियों का गठन किया है। मानित (डीम्ड ) विश्वविद्यालय दावा करते हैं कि वे इन समितियों के दायरे में नहीं आते। देश में एमबीबीएस की लगभग 50 प्रतिशत सीटें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हैं, जिनमें बहुत कम फीस देनी पड़ती है। सिर्फ 50 प्रतिशत सीटों को राष्ट्रीय मेडिकल आयोग नियंत्रित करेगा। इसका अर्थ यह है कि देश में कुल सीटों की 75 प्रतिशत सीटें उचित फीस पर उपलब्ध होंगी।

एनएमसी अधिनियम परिवर्तनकारी है

डॉ. हर्षवर्धन ने एनएमसी पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग अधिनियम, 2019 ऐतिहासिक, अग्रणी और परिवर्तनकारी है। पीएम मोदी को आभार प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि ”मैं माननीय प्रधानमंत्री के प्रति आभारी हूं जिनके मजबूत नेतृत्व में राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग अधिनियम पारित हुआ।’’

विद्यार्थियों के हितों की रक्षा करेगा यह अधिनियम

घंटो तक चली लंबी पत्रकार-वार्ता में स्वास्थ्य मंत्री ने इस अधिनियम को छात्रों का बोझ कम करने वाला बताया। उन्होंने अपने समय को याद करते हुए कहा कि उनके समय में एक साथ कई मेडिकल कॉलेजों की परीक्षाएं देनी पड़ती थी। इससे अफरा-तफरी का माहौल रहता था। उन्होंने कहा कि इस बिल में नीट परीक्षा और नेक्स्ट परीक्षा की व्यवस्था की गई है। नेक्स्ट परीक्षा से उपजे भ्रम को दूर करते हुए उन्होंने कहा कि, राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग अधिनियम विद्यार्थियों के अनुकूल है।

देशभर के चिकित्सा संस्थानों में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए समान प्रवेश परीक्षा (नीट) और समान काउंसलिंग प्रक्रिया की व्यवस्था है। उन्होंने बताया कि मौजूदा प्रणाली में प्रत्येक विद्यार्थी को अंतिम वर्ष की परीक्षा देनी पड़ती है। एनएमसी अधिनियम के अंतर्गत अंतिम वर्ष की परीक्षा देशव्यापी होगी और इसे नेक्स्ट कहा जाएगा। यह परीक्षा डॉक्टरी का लाइसेंस और एमबीबीएस की डिग्री और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश की सुविधा देगी। स्तनातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए भी समान काउंसलिंग का प्रावधान है। विद्यार्थी सभी मेडिकल कॉलेजों और एम्स, पीजीआई चंडीगढ़ तथा जिपमर जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों में प्रवेश पा सकेंगे।

भ्रष्टाचार पर लगेगी लगाम

यह अधिनियम प्रगतिशील है जो विद्यार्थियों का बोझ कम करेगा, चिकित्सा क्षेत्र में शुचिता सुनिश्चित करेगा, चिकित्सा शिक्षा लागत में कमी लाएगा, प्रक्रियाओं को सरल बनाएगा, भारत में मेडिकल सीटों की संख्या बढ़ाने में सहायक होगा। गुणवत्ता सम्पन्न शिक्षा और लोगों को गुणवत्ता सम्पन्न स्वास्थ्य देखभाल सुविधा प्रदान करेगा। उन्होंने कहा कि यह परिवर्तनकारी सुधार है और मुझे विश्वास है कि आने वाले वर्षों में एनएमसी के अतंर्गत देश में चिकित्सा शिक्षा शिखर पर पहुंचेगी।

इस बाबत स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि विधेयक पर पांच वर्ष पहले काम शुरू हुआ जब चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में समस्याओं का अध्ययन करने के लिए प्रो. रंजीत राय चौधरी के नेतृत्व में विशेषज्ञों का समूह बनाया गया था। विशेषज्ञों के समूह ने पाया कि भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) सभी क्षेत्रों में विफल रही है और अत्यधिक भ्रष्ट और प्रभावहीन संस्था हो गई है। समूह ने सिफारिश की कि पारदर्शी तरीके से चुने गए स्वतंत्र नियामकों को निर्वाचित नियामकों की जगह लेनी चाहिए।

एनएमसी में एमसीआई की तरह कोई घपला न हो इसकी पूरी व्यवस्था सरकार ने की है। इसकी व्यवस्था से जुड़े सभी लोगों को अपनी आय का ब्यौरा पहले ही देना होगा। इतना ही नहीं जब इसका कार्यकाल 4 साल के बाद खत्म होगा तब भी देना होगा। अपनी आय के साथ-साथ परिवार के लोगों की आय पर भी नजऱ रखी जायेगी। एनएमसी से हटने के बाद अगले दो वर्षों तक इससे जुड़े अधिकारी या सदस्य किसी अन्य संस्थान के साथ नहीं जुड़ सकेंगे।

एनएमसी के तहत ये हैं चार स्वायत्त बोर्ड

  • स्नातक स्तर पर शिक्षा और मानकों का निर्धारण करने के लिए एवं चिकित्सा को नियंत्रित करने के लिए अंडर-ग्रेजुएट मेडिकल शिक्षा बोर्ड होगा।
  • स्नातकोत्तर स्तर पर शिक्षा और मानकों का निर्धारण करने के लिए एवं मेडिकल को विनियमित करने के लिए स्नातकोत्तर मेडिकल शिक्षा बोर्ड होगा।
  • चिकित्सा संस्थानों का मूल्यांकन और निरीक्षण करने के लिए मेडिकल आंकलन और रेटिंग बोर्ड होगा।
  • चिकित्सा, चिकित्सकों और चिकित्सा के बीच चिकित्सकीय नैतिकता के अनुपालन के लिए नैतिकता और चिकित्सा पंजीकरण बोर्ड का गठन किया जायेगा।

एनएमसी, 2019 की मुख्य बातें

निजी अस्पतालों के शुल्क का नियंत्रण : एनएमसी निजी अस्पतालों के 50 फीसद सीटों का शुल्क नियंत्रण खुद करेगी। बाकी 50 फीसद का नियंत्रण राज्य सरकारे कर सकेंगी। इस बाबत स्वास्थ्य मंत्री ने राज्यसभा में सदस्यों की चिंताओं को दूर करते हुए कहा कि, ‘देश की 80 हजार में से 40 हजार सीटें सरकारी कॉलेजों के पास हैं बाकी 40 हजार प्राइवेट कॉलेजों के पास हैं। सरकारी कॉलेजों की फीस काफी कम है। प्राइवेट कॉलेजों की फीस रेगुलेट करने का अधिकार एमसीआई के पास नहीं था लेकिन सरकार ने तय किया कि इन कॉलेजों की 50 फीसदी सीट को रेग्यूलेट और कैप किया जाएगा। साथ ही प्राइवेट सेक्टर की बाकी 50 फीसदी सीट को राज्य रेग्यूलेट कर सकते हैं, इसके लिए उन्हें कॉलेज से एमओयू करना पड़ेगा, जिसके बाद राज्य की जरूरतों के मुताबिक वह ऐसा कर पाएंगे। 50 फीसदी सीटें तो हमने पहले ही रेग्यूलेट कर दी हैं और बाकी राज्यों के लिए छोड़ दी है।’

नेक्स्ट परीक्षा : नेक्स्ट परीक्षा को लेकर बहुत से भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है। इस भ्रम को दूर करते हुए स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि, ‘नीट परीक्षा कुछ साल से देशभर में लागू है और सफलता से हो रही है। कई बोर्ड्स की सिफारिशों के बाद इसे लागू किया गया है। हर एमबीबीएस छात्र को फाइनल ईयर में नेक्स्ट परीक्षा देनी होगी। कॉलेज पास करने के लिए कॉमन फाइनल ईयर परीक्षा रखी जा रही है जिसमें थ्योरी के अलावा क्लीनिकल पार्ट भी शामिल होगा। इसे पास करने के बाद उसे डिग्री दी जाएगी और वह पीजी कोर्स के लिए योग्य होगा। इसी परीक्षा को पास कर के विदेश से पढ़ा एमबीबीएस का छात्र भी भारत में प्रैक्टिस करने का अधिकारी बनेगा। अगर कोई इस परीक्षा में फेल होता है तो उसे अगले साल इसे पास करने का मौका मिलेगा।

कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर्स : कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर्स को सिस्टम में लाने की पहल इस बिल की सबसे बड़ी खासियत है। कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर्स को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम पर स्वास्थ्य मंत्री ने लिखा है कि, ‘एनएमसी बिल के सेक्शन 32 में वर्णित कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर्स को लेकर भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है जबकि विकसित देशों में इसका प्रचलन पहले से ही है और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसे मान्यता दे रखी है।’ ध्यान देने वाली बात यह है कि  इस बिल से क्वैक प्रैक्टिसिंग पर प्रतिबंध लगेगा। जो भी स्वास्थ्य संबंधित प्रैक्टिस करेगा उसे सरकारी रजिस्टर में पंजीकृत होना पड़ेगा। बिना इसके प्रैक्टिस करते पकड़े जाने पर 5 लाख रुपए जुर्माना एवं 1 साल तक की जेल का प्रावधान है।

इतिहास में एमसीआई का काला अध्याय

आईएमसी अधिनिमय-1956 के तहत गठित एमसीआई का बुरा दौर उसके अध्यक्ष केतन देसाई की गिरफ्तारी से शुरू हो चुका था। जब इसका गठन किया गया था तब विचार यही था कि यह संस्था देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर करेगी लेकिन ऐसा नहीं हो सका। एमसीआई की भ्रष्ट स्थिति को देखते हुए 15 मई, 2010 को भारत सरकार को भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) अध्यादेश लेकर आना पड़ा। इसके तहत 1 साल के लिए आईएमसी एक्ट,1956 को स्थगित करते हुए बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) के हाथों एमसीआई का प्रबंधन दे दिया गया। एमसीआई की प्रबंधकीय बॉडी को नए सिरे से बनाने के लिए 14 मई 2013 तक यानी 3 वर्षों का समय इस अध्यादेश के माध्यम से दिया गया। इस दौरान सरकार बीओजी की कार्यावधि को 2011-12 में लगातार दो वर्षों तक बढ़ाती रही ताकि एमसीआई के लिए नया अधिनियम बनाया जा सके। इस बीच नेशनल कमिशन फॉर ह्यूमन रिसोसर्स फॉर हेल्थ (एनसीएचआरसी), एक ऐसी नियामक संस्था जो एमसीआई सहित देश की पूरी स्वास्थ्य शिक्षा एवं व्यवस्था का नियमन कर सके, बनाने की कोशिश की गई, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी।

14 मई, 2013 को बीओजी का कार्यकाल खत्म होने के पूर्व मार्च 2013 में सरकार आईएमसी (संशोधन) विधेयक-2013 लेकर आई। लेकिन बजट सेशन के कारण इसे संसद पटल पर नहीं लाया जा सका। और दूसरी तरफ बीओजी का कार्यकाल सरकार ने 6 महीने के लिए और बढ़ा दिया। कुछ बदलाव के साथ 19 अगस्त 2013 को आईएमसी (संशोधन) विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया। लेकिन यहां भी इसे पास नहीं करावाया जा सका। 16 सितंबर, 2013 के अध्यादेश के बाद 28 सितंबर 2013 को सरकार आईएमसी (संशोधन) अध्यादेश-2 लेकर आई। जिसके बाद 6 नवंबर 2013 को एमसीआई फिर से काम करने लगी। लेकिन एमसीआई पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप एवं मेडिकल शिक्षा की अव्यवस्था की चर्चा मीडिया में हमेशा होती रही।

23 सितंबर 2015 को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मामलो की संसदीय स्थायी समिति ने एमसीआई संबंधित मामले के परीक्षण करने का निर्णय लिया। इस विषय पर सभी पक्षों, हितधारकों की बात सुनने के बाद 8 मार्च 2016 को 92वीं राज्यसभा को संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी। इस रपट में भारत में मेडिकल शिक्षा को लेकर आमूल-चूल बदलाव करने का सुझाव दिया गया।

एमसीआई को भंग करने की मांग

7 अगस्त 2016 को नीति आयोग ने भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 की प्रासंगिकता पर अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट में एमसीआई की विफलता की पूरी कहानी बयां की गई। और एमसीआई को भंग करने के लिए कई कारणों को समिति ने सुझाया। जिनमें मुख्य निम्न हैं-

  • भारत की जरूरत के हिसाब से उपयुक्त चिकित्सकों का उत्पादन करने वाले पाठ्यक्रम बनाने में विफल रही है एमसीआई।
  • स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर मेडिकल शिक्षा हेतु समान मानक बनाने में विफल रही है एमसीआई।
  • निजी मेडिकल संस्थानों में प्रवेश लेने वाले छात्रों की योग्यता में गिरावट दर्ज की गई है। यह भी एमसीआई की विफलता है।
  • एक मजबूत गुणवत्ता आश्वासन तंत्र को स्थापित करने में एमसीआई विफल रही है।
  • मेडिकल कॉलेज के निरीक्षणों की पारदर्शी प्रणाली बनाने विफल रही है एमसीआई।
  • निरीक्षण के दौरान अवसंरचना और छोटी-मोटी गड़बडिय़ों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना, लेकिन कौशलयुक्त शिक्षा, प्रशिक्षण एवं दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान केन्द्रित न करके उसका सही मूल्यांकन करने में विफल रही है एमसीआई।

इतना ही नहीं संसदीय स्थाई समिति को भेजी अपनी रिपोर्ट में कमिटी ने कहा कि वर्तमान परिस्थिति में आईएमसी एक्ट, 1956 के अधीन चल रही एमसीआई स्वास्थ्य शिक्षा की मौजूदा चुनौतियों का सामना करने में असमर्थ हो चुकी है। आउटडेटेड हो गई है। इसमें संशोधन कर के भी बहुत कुछ हासिल नहीं किया जा सकता है। इसे मूल रुप से ही बदलने की जरूरत है।

सर्वोच्च न्यायलय का एमसीआई मामले में फैसला

माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने 2 मई, 2016 की सिविल अपील संख्या-4060 (मोडर्न डेंटल कॉलेज एंड रिसर्च सेंटर एवं अन्य बनाम मध्यप्रदेश एवं अन्य) के मामले में निर्देश दिया कि रंजीत रॉय चौधरी समिति की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए जरूरी कदम सरकार उठाए। संविधान के अनुच्छेद 142 में निहित शक्ति का प्रयोग करते हुए न्यायालय ने एक अंतरिम निगरानी समिति का गठन किया और कहा कि यह समिति एमसीआई की कार्य-प्रणाली का निरीक्षण करेगी और अंतिम निर्णय विधायी स्तर पर होगा।

इस संदर्भ में सरकार ने पहले ही नीति आयोग के वाइस चेयरमैन अरविंद पनगढिय़ा की देखरेख में 28 मार्च, 2016 को एक कमिटी का गठन कर दिया था, जिसे इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट, 1956 के सभी आयामों की समीक्षा कर अपना सुझाव देना था। इस समिति में प्रधानमंत्री के अतिरिक्त मुख्य सचिव पी.के. मिश्रा, नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के सचिव बीपी शर्मा को शामिल किया गया था। इस कमिटी ने भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम-1956, आईएमसी (संशोधन) बिल-2013, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मामलों का संसदीय स्थाई समिति का 60वां एवं 92वां रिपोर्ट, एनसीएचआरएच बिल-2011, स्व.रंजीत रॉय चौधरी की अध्यक्षता में बनी एक्सपर्ट समूह की रिपोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट का सिविल अपील संख्या 4060 पर दिए गए निर्णय को पढऩे-समझने के बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी।

राष्ट्रीय मेडिकल आयोग का विचार यहां से आया

एमसीआई मसले पर अपनी राय देने के लिए जुलाई 2014 में (स्व.) प्रो. रंजीत रॉय चौधरी की अध्यक्षता में एक एक्सपर्ट कमिटी का गठन किया गया था। इस कमिटी ने संसदीय स्थाई समिति को फरवरी 2015 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में एक्सपर्ट कमिटी ने नेशनल मेडिकल कमिशन (एनएमसी) को नए अधिनियम के तहत बनाने का सुझाव दिया था। इस कमिशन को कार्यकरण के हिसाब से चार भागों में बांटने का सुझाव भी समिति ने दिया। इसी सुझाव को मानते हुए सरकार ने एनएमसी बिल-2017 को संसद में पहली बार प्रस्तुत भी किया था। लेकिन तब बात नहीं बनी। एक बार फिर से इस बिल को थोड़ा संशोधित रूप में एनएमसी बिल-2019 के नाम से लोकसभा में पास करा लिया गया है। इसके बारे में सरकार का कहना है कि इसके तहत सरकार एक राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद का गठन करेगी, जो चिकित्सा सेवा, चिकित्सा शिक्षा, चिकित्सा व्यवसाय एवं संबंधित सभी पहलुओं पर काम करेगा। इसमें चार स्वायत बोर्ड होंगे। एक सलाहकार परिषद होगी। सभी पैथियों के चिकित्सकों के लिए एक राष्ट्रीय रजिस्टर होगा। निम्न चार स्वायत्त बोर्डों का गठन किया जायेगा।

  • स्नातक स्तर पर शिक्षा और मानकों का निर्धारण करने के लिए एवं चिकित्सा को नियंत्रित करने के लिए अंडर-ग्रेजुएट मेडिकल शिक्षा बोर्ड होगा।
  • स्नातकोत्तर स्तर पर शिक्षा और मानकों का निर्धारण करने के लिए एवं मेडिकल को विनियमित करने के लिए स्नातकोत्तर मेडिकल शिक्षा बोर्ड होगा।
  • चिकित्सा संस्थानों का मूल्यांकन और निरीक्षण करने के लिए मेडिकल आंकलन और रेटिंग बोर्ड होगा।
  • चिकित्सा, चिकित्सकों और चिकित्सा के बीच चिकित्सकीय नैतिकता के अनुपालन के लिए नैतिकता और चिकित्सा पंजीकरण बोर्ड का गठन किया जायेगा।

इस बिल में उपरोक्त सभी प्रावधान वैसे ही हैं जैसा कि (स्व.) प्रो. रंजीत रॉय चौधरी समिति ने अपनी रपट में सुझाया था।

जानिए कौन थे स्व. प्रो. रंजीत राय चौधरी

जब जब हम और आप एनएमसी अधिनियम 2019 की चर्चा करेंगे उसमें एक नाम प्रमुखता से लिया जायेगा स्व. प्रो. रंजीत राय चौधरी। उनकी अनुशंसाओं के आधार पर ही एनएमसी अधिनियम बना है। रंजीत राय चौधरी का जन्म 4 नवंबर 1930 को बिहार के पटना शहर में हुआ था। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित तमाम कमेटियों के साथ वे जुड़े रहे। भारत सरकार द्वारा क्लिनिकल ट्रायल एवं ड्रग्स पर नीति एवं दिशा-निर्धारण तय करने वाली समिति के प्रमुख के रूप में उन्होंने अपनी सेवाएं दी। क्लिनिकल फार्माक्लोजिस्ट एवं अकादमिक एवं स्वास्थ्य संबंधित नीतियों को लेकर उनकी समझ बेहतरीन थी। दिल्ली मेडिकल काउंसिल के वे संस्थापक अध्यक्ष थे। पद्मश्री, डॉ.बीसी राय पुरस्कार से सम्मानित प्रो. रंजीत रॉय चौधरी 1964 में पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) चंडीगढ़ के फार्माकोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष बनाए गए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ भी वे जुड़े। भारत सरकार स्वास्थ्य मंत्रालय में सलाहकार के रूप में भी इन्होंने अपनी सेवाएं दी। 27 अक्टूबर 2015 को चेन्नई में 84 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हुआ।

एमसीआई से एनएमसी तक की कहानी

एमसीआई को भंग करने की मांग विगत 1 दशक से चल रही थी। एमसीआई के पतन की कहानी को कुछ बिंदुओं में समझा जा सकता है।

  • 15 मई, 2010 को भारत सरकार, भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) अध्यादेश लेकर आई। 1 साल के लिए बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) के हाथों एमसीआई का प्रबंधन दे दिया गया।
  • इस बीच नेशनल कमिशन फॉर ह्यूमन रिसोसर्स फॉर हेल्थ (एनसीएचआरसी), बनाने की कोशिश की गई, सफलता हाथ नहीं लगी।
  • 14 मई, 2013 को बीओजी का कार्यकाल खत्म होने के पूर्व मार्च 2013 में सरकार आईएमसी (संशोधन) विधेयक-2013 लेकर आई। लेकिन बजट सेशन के कारण इसे संसद पटल पर नहीं लाया जा सका।
  • 19 अगस्त 2013 को आईएमसी (संशोधन) विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया। लेकिन यहां भी इसे पास नहीं करवाया जा सका।
  • 16 सितंबर, 2013 के अध्यादेश के बाद 28 सितंबर 2013 को सरकार आईएमसी (संशोधन) अध्यादेश-2 लेकर आई। जिसके बाद 6 नवंबर 2013 को एमसीआई फिर से काम करने लगी।
  • एमसीआई मसले पर अपनी राय देने के लिए जुलाई 2014 में (स्व.) प्रो. रंजीत रॉय चौधरी की अध्यक्षता में एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी ने संसदीय स्थाई समिति को फरवरी 2015 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में एक्सपर्ट कमेटी ने नेशनल मेडिकल कमिशन (एनएमसी) को नए अधिनियम के तहत बनाने का सुझाव दिया था।
  • 23 सितंबर 2015 को स्वास्थ्य मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने एमसीआई संबंधित मामले के परीक्षण करने का निर्णय लिया।
  • 8 मार्च 2016 को 92वीं राज्यसभा को संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी। यह रिपोर्ट मेडिकल शिक्षा में बदलाव का आधार बनी।
  • 7 अगस्त 2016 को नीति आयोग ने भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 की प्रासंगिकता पर अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट दी।
  • नीति आयोग के वाइस चेयरमैन अरविंद पनगढिय़ा की देखरेख में 28 मार्च, 2016 को एक कमेटी का गठन किया गया, जिसे इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट, 1956 के सभी आयामों की समीक्षा कर अपना सुझाव देना था।
  • माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने 2 मई, 2016 के सिविल अपील संख्या-4060 (मॉडर्न डेंटल कॉलेज एंड रिसर्च सेंटर एवं अन्य बनाम मध्यप्रदेश एवं अन्य) के मामले में निर्देश दिया कि रंजीत राय चौधरी समिति की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए जरूरी कदम सरकार उठाए।
  • रंजीत राय चौधरी समिति की रिपोर्ट में दर्ज सुझाव को मानते हुए सरकार ने एनएमसी बिल-2017 को संसद में पहली बार प्रस्तुत किया।
  • इस बिल को थोड़ा संशोधित रूप में एनएमसी बिल-2019 के नाम से 29 जुलाई, 2019 को लोकसभा में पास करा लिया गया।
  • 1 अगस्त, 2019 को एनएमसी बिल-2019 को आंशिक संशोधन के साथ राज्यसभा ने पास कर दिया।
  • 8 अगस्त 2019 को राष्ट्रपति ने एनएमसी बिल 2019 पर हस्ताक्षर कर दिया। इसी के साथ एमसीआई का काला इतिहास हमेशा के लिए इतिहास बन गया और एनएमसी एक्ट 2019 को अंगीकार कर लिया गया।

एनएमसी के लिए चिकित्सकों की संख्या बढ़ाना सबसे बड़ी चुनौती

एनएमसी यानी राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के बनने के बाद उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी चिकित्सकों की कमी से देश को बाहर निकालना। इस संदर्भ में स्वास्थ्य मंत्री ने अपने लिखित और मौखिक जवाब में कहा कि भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद द्वारा प्रदत सूचना के अनुसार, दिनांक 31 मार्च, 2019 तक भारत में राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद्/भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद के तहत कुल 11,59,309 एलोपैथिक चिकित्सक हैं। उन्होंने आगे कहा कि पंजीकृत चिकित्सको की 80 प्रतिशत उपलब्धता मानते हुए यह अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 9.27 लाख चिकित्सक स्वास्थ्य सेवा के लिए वास्तविक रूप से उपलब्ध होंगे। यह वर्तमान में अनुमानित 1.35 बिलियन जनसंख्या के अनुसार चिकित्सक-जनसंख्या अनुपात 1:1456 है। यह डब्ल्यूएचओ मानदंड 1:1000 से कम है। इसके अलावा, देश में 7.88 लाख आयुर्वेदिक, यूनानी और होमियोपैथी डॉक्टर हैं। 80 प्रतिशत उपलब्धता का आधार माने तो यह अनुमान है कि लगभग 6.30 लाख आयुर्वेदिक, यूनानी और होमियोपैथी (आयुष) चिकित्सक हैं। सेवा के लिए वास्तविक उपलब्ध एलोपैथिक चिकित्सक एवं आयुष डॉक्टरों को साथ मिलाकर देखा जाए तो चिकित्सक-जनसंख्या अनुपात 1:867 बनता है, जो की डब्ल्यूएचओ के मानदंड से बेहतर है।

चिकित्सा संबंधी पढ़ाई को बढ़ावा

सरकार ने देश भर में विभिन्न चिकित्सकीय शैक्षणिक संस्थान/ मेडिकल कॉलेज में सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। इस बारे में स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि, स्नातक स्तर पर सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार ने एमबीबीएस स्तर पर प्रवेश की अधिकतम क्षमता को 150 से बढ़ाकर 250 कर दिया है। साथ ही भूमि, फैकल्टी, स्टाफ, बिस्तर संख्या तथा अन्य बुनियादी सुविधा संबंधी आवश्यकता अनुसार मेडिकल कॉलेज स्थापित किए जाने के मानक में छूट दिये हैं। महानगरों में मेडिकल कॉलेज की स्थापना के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 243पी(सी) में अधिसूचित भूमि की न्यूनतम शर्त को हटा दिया गया है। इसके अलावा एमबीबीएस सीट में वृद्धि करने के लिए राज्य सरकार/ केन्द्र सरकार के विद्यमान मेडिकल कॉलेजों का सुदृढ़ीकरण/ उन्नयन किया जा रहा है। अपने लिखित उत्तर में उन्होंने कहा है कि सरकार द्वारा निधि पोषित मेडिकल कॉलेज और 15 वर्ष से कायम निजी मेडिकल कॉलेज में सभी एमडी/एमएस पाठ्यक्रमों के लिए शिक्षक और विद्यार्थियों के अनुपात को प्रोफेसर के लिए 1:1 से बढ़ाकर 1:2 तथा सभी क्लिनिकल विषय में इस अनुपात को 1:1 से बढ़ाकर 1:3 कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त, सरकार द्वारा निधि पोषित मेडिकल कॉलेज और 15 वर्ष से कायम निजी मेडिकल कॉलेज में उक्त अनुपात को सभी नैदानिक विषय में एसोसिएट प्रोफेसर के लिए 1:1 से बढ़ाकर 1:2 और यदि एसोसिएट प्रोफेसर यूनिट अध्यक्ष हैं वहां इसे 1:1 से बढ़ाकर 1:3 कर दिया गया है। डॉ. हर्षवर्धन का मानना है कि इससे देश में स्नातक स्तर पर सीटों की संख्या में वृद्धि होगी। फैकल्टी की कमी को ध्यान में रखते हुए फैकल्टी के रुप में नियुक्ति के लिए डीएनबी योग्यता मान्यता दे दी गई है। कुछ अन्य उपायों को इन बिन्दुओं से समझा जा सकता है।

  • मेडिकल कॉलेज में शिक्षक/डीन/ प्रधानाचार्य/निदेशक पद पर नियुक्ति/ विस्तार/पुन: रोजगार के लिए आयु सीमा को बढ़ाकर 70 वर्ष किया गया है।
  • नए पीजी पाठ्यक्रमों को शुरू करने/पीजी सीट को बढ़ाने के लिए राज्य सरकार के मेडिकल कॉलेज का सुदृढ़ीकरण/उन्नयन किया जा रहा है।
  • विनियमनों को संशोधित करते हुए सभी मेडिकल कॉलेजों के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया है कि वे अपनी एमबीबीएस मान्यता/ मान्यता को जारी रखने की तारीख से तीन वर्ष के भीतर पीजी पाठ्यक्रम प्रारंभ करें।
  • कॉलेजों को चौथे नवीकरण के समय क्लिनिकल विषयों में पीजी पाठ्यक्रमों के लिए आवेदन करने की अनुमित दी गई है, इससे पीजी पाठ्यक्रम प्रारंभ करने की प्रकिया में कम समय लगेगा।

पीजी एवं यूजी सीटों में हुआ है इजाफा

संसद में जवाब देते हुए स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने अपने लिखित जवाब में कहा कि विगत दो वर्षों में डॉक्टरों की संख्या में इजाफा करने के लिए स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर सीटों की संख्या बढ़ाई गई है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2017-18 में 2340 यूजी एवं 4965 पीजी सीटों की बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं 2018-19 में यूजी में 2910 एवं पीजी में 1765 सीट तथा 2019-20 में यूजी में 10565 तथा पीजी में 2153 सीटों की बढ़ोत्तरी हुई है।

आशुतोष कुमार सिंह

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