हाल ही में मोदी सरकार द्वारा लागू हुए मोटर व्हीकल (संशोधन) अधिनियम 2019 को लेकर मिली जुली प्रतिक्रिया सामने आ रही है। कुछ लोग इसे एक अच्छी पहल बता रहे हैं तो वही पर दूसरे लोग इसे जनता के बीच ख़ौफ़ पैदा करने का एक नया तरीक़ा। कुछ तो इसे यातायात पुलिस में भ्रष्टाचार बढ़ाने का एक नया औज़ार भी बता रहे हैं। मोटर नियम को सख्त बनाकर मोदी सरकार के परिवहन विभाग ने यातायात नियम का उल्लंघन रोकने की कोशिश तो ज़रूर की है। लेकिन इसे कामयाब बनाने के लिए केवल जुर्माने की राशि पांच से सौ गुणा तक बढ़ा देने से कुछ नहीं होगा।
मौजूदा नियम को अगर काफ़ी सख़्ती से लागू किया जाता और जुर्माने की राशि को दुगना या तिगुना किया जाता, तो काफ़ी सुधार हो सकता सम्भव था। उदाहरण के तौर पर आपको याद दिलाना चाहेंगे कि जब भारत में जब राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन हुआ था तो दिल्ली में एक लेन केवल खिलाड़ियों की बस और आपातकालीन वाहनों के लिए निर्धारित की गई थी। यातायात पुलिस के कर्मी इस व्यवस्था को काफ़ी अनुशासन और कड़ाई से लागू करते दिखे थे, और नागरिकों ने भी नियमों का पालन किया था। इस बात से यह स्पष्ट होता है कि अगर पुलिस प्रशासन अपन काम क़ायदे से करे तो जनता को नीयमों का पालन करने में कोई भी दिक्कत नहीं होगी।
ऐसा देखा गया है कि जब भारतीय कभी भी विदेश यात्रा पर जाते हैं तो वहाँ के नियमों का पालन निष्ठा से करते हैं लेकिन अपने ही देश में नियमों की धज्जियाँ इसी उम्मीद में उड़ाई जाती हैं कि ‘जो होगा देखा जाएगा’।
पुलिस अधिकारियों की सुनें तो उनके अनुसार नए नियम के जो भी चालान किए जा रहे हैं उनको कोर्ट में भेज जा रहा है क्योंकि अभी सड़क पर तैनात अधिकारियों को इतनी बड़ी राशि के चालान काट कर जुर्माने की रक़म लेने के लिए अधिकृत नहीं किया गया है। लेकिन इतना ज़रूर है कि इतने भारी जुर्माने की ख़बर सुन कर सभी शहरों में वाहन चालकों के ख़ौफ़ का अंदाज़ा पेट्रोल पंपों पर गाड़ियों में प्रदूषण की जाँच करवाने की लम्बी क़तारों से लगाया जा सकता है, जो कि समय पर नहीं कराई गई थी। ऐसा तभी हुआ जब पुलिस प्रशासन ने नियम उल्लघन करने वालों के विरध अपना शिकंजा कसा।
सोशल मीडिया में कुछ ऐसा भी देखा गया है जहाँ पर कुछ लोग, जिन्हें भारी जुर्माने का चालान दिया गया तो उनका ग़ुस्सा भी फूटा। मोटर व्हीकल (संशोधन) अधिनियम 2019 के प्रावधानों के अनुसार, यदि कोई पुलिसकर्मी नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए पाए जाता है तो, उन्हें जुर्माने के रूप में दोगुनी राशि का भुगतान करना होगा। सरकार की यह पहल केवल पुलिस अधिकारियों पर नहीं बल्कि सभी सरकारी गाड़ियों के चालकों पर लागू होनी चाहिए।
उदाहरण के तौर पर, दिल्ली की सड़कों पर चलने वाली डीटीसी की बसों के ड्राइवर खुले आम नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हैं और पुलिस अधिकारी उनका चालान नहीं करते। मोटर व्हीकल (संशोधन) अधिनियम 2019 के लागू होने के बाद भी, इस आरोप को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। डीटीसी की बसों के ड्राइवर न तो सीट बेल्ट का उपयोग करते हैं और न ही अपनी बसों को सही लेन में चलाते हैं, इतना ही नहीं वे बसों को सड़क के बीचों बीच इस क़दर रोक देते हैं कि जाम लग जाता है। यदि कोई इनकी शिकायत दिल्ली यातायात पुलिस को करे तो उनका चालान करने के बजाए ये जवाब मिलता है कि ‘इस लापरवाही के शिकायत वे परिवहन विभाग को भेज देंगे’। इस दोहरे मापदण्ड को लेकर भी सवाल उठते रहते हैं।
जानकारों की मानें तो इन सभी नियमों को लागू करने से पहले सरकार को चाहिए था कि नए जुर्माने का प्रचार उसी तरह से करना चाहिए था जिस तरह से नियम के लागू करने के बाद, भारी जुर्माने के शिकार हुए नागरिकों की प्रतिक्रिया का किया जा रहा है। जानकारी के आभाव में नागरिकों को दंडित किए जाने से बेहतर होता कि सरकार जगह जगह आधार कार्ड या वोटर कार्ड बनवाने जैसे अभियान चला कर जनता को नए नियमों से वाक़िफ़ कराती। इस अभियान के तहत लगने वाले कैम्प पर प्रदूषण की जाँच से लेकर वाहन बीमा करने की भी व्यवस्था रहती तो नोटबंदी के दौरान बेंकों के बाद पेट्रोल पंपों पर लगने वाली क़तार शायद छोटी होती।
कुलमिलाकर देखा जाए तो इस समय सभी नागरिक इस ख़ौफ़ में या तो अपने वाहन चला नहीं रहे या मोटर व्हीकल (संशोधन) अधिनियम 2019 के लागू होने के बाद भारी जुर्माने से बचने के लिए अपने वाहन के सभी ज़रूरी दस्तावेज़ दुरुस्त कर रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं था की जनता को इन नियमों का ज्ञान पहले नहीं था, सड़क पर पड़ा हुआ पत्थर तो सबको दिखता है लेकिन जब तक उस पत्थर से ठोकर खा कर चोट न खा लें कोई सीखता नहीं है। विपक्ष की मानें तो ये क़दम मोदी सरकार द्वारा उठाए गए नोटबंदी और जीएसटी जैसा ही है जिसमें जनता को सुकून का सपना दिखा कर ख़ौफ़ में जीने को मजबूर किया जा रहा है। लेकिन ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि ये क़दम फ़ायदे का था या नहीं।
Sh. Vineet Narain