इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र संघ में झूठ का पुलिंदा रखा। पर हैरानी इसलिए हो रही है कि उनके चेहरे पर कोई अपराधबोध नहीं दिखाई दिया। हालांकि उनके चेहरे पर बेबसी के भाव को तो आराम से पढ़ा जा सकता था। जम्मू–कश्मीर से धारा 370 और 35 ए समाप्त करने के बाद भारत को परमाणु जंग की धमकी देने वाले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र में नफरत से भरी हुई तकरीर दी। इमरान खान नियाज़ी का रोना–पीटना भी दुनिया ने देख लिया।पहले उन्होंने किसी मंजे हुए इस्लामी जानकार की तरह इस्लाम की शिक्षाओं के बारे में बताया। यहां तक तो ठीक था,मगर फिर इसके बाद जब उन्होंने कश्मीर को लेकर झूठ का पुलिंदा खोलना शुरू किया तो उनका पूरा झूठ दुनिया के सामने आ गया। कश्मीर के लोगों से हमदर्दी रखने वाले इमरान नियाज़ी अगर गिलगिट–बलूचिस्तान,पश्तूनों , सिंधियों और मोहाज़िरों और अपने शहद से भी ज़्यादा मीठे दोस्त चीन में उईगरों मुसलमानों पर अत्याचार के बारे में भी ज़रा बोलते तो ज़्यादा अच्छा होता। पर वे तो भारतीय प्रधानमंत्री मोदी पर ही हल्ला बोलते रहे। जबकि भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी तकरीर में इमरान खान का नाम तक नहीं लिया था। इमरान खान ने मोदी जी के खिलाफ निहायत घटिया और नफरतअंगेज़ बातें कहीं,जिसे सुनकर शर्म आती है।इमरान खान संयुक्त राष्ट्र को डराने वाले अंदाज में एटमी जंग की ओर इशारा कर रहे थे।उन्होंने इस मंच का इस्तेमाल एक बार फिर दुनिया को एटम बम के नाम पर ब्लैकमेल करने के लिए किया।
इमरान खान के पास अब कुछ नहीं बचा है। उन्होने संयुक्च राष्ट्र में भी अपना भाषण दे दिया है। इस भाषण को देने से पहले ही वे निराश लग रहे थे। वे निराश इसलिए हैं कि क्योंकि उनके देश का किसी ने साथ नहीं दिया। वे तो लंबे–चौड़े दावे कर रहे थे कि कश्मीर में भारत के कदम के खिलाफ जिस मुहिम को पाकिस्तान ने छेड़ा है, उसे विश्व बिरादरी का व्यापक समर्थन मिलेगा। पर हुआ इसके विपरीत। उन्हें तो इस्लामी देशों का भी साथ नहीं मिला। दो प्रमुख अरब देशों क्रमश: सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरत (यूएई) ने पाकिस्तान को साफ कह दिया कि कश्मीर मसले पर वे उसके साथ खड़े नहीं हो सकते।
अमेरिका में पत्रकारों से बात करते हुए इमरान खान ने कश्मीर मुद्दे पर अपनी हार स्वीकार की। इमरान खान ने माना कि पाकिस्तान कश्मीर मु्ददे के अंतरराष्ट्रीयकरण के अपने प्रयासों में विफल रहा। इमरान खान ने माना कि वह इस मुददे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन हासिल ना कर पाने से निराश हैं। अब इमरान खान को यह भी समझ लेना चाहिए कि विश्व बिरादरी न तो उनपर और न ही पाकिस्तान पर यकीन करती है। दरअसल पाकिस्तान दुनियाभर में आतंकवाद की फैक्ट्री के रूप में अपने को स्थापित करके बदनाम तो हो ही चुका है। दुनिया में कहीं भी कोई आतंकवाद की घटना हो, उसमें किसी न किसी रूप में पाकिस्तानी का हाथ अवश्य ही होता है। जिस देश ने ओसामा बिन लादेन को छिपाकर रखा उस देश पर दुनिया यकीन किस आधार पर करेगी? लादेन वहां पर मजे से अपने पूरे कुनबे के समेत रह रहा था। इमरान खान बताएं तो सही कि उनके पाकिस्तान में हाफिज सईद और अजहर महमूद जैसे आतंकी क्यों पल रहे हैं? इन्हें पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई से खाद –पानी क्यों मिलता है। जिस पाकिस्तान में हाफिज सईद और महमूद जैसे मानवता के शत्रु रहें, उस देश पर कोई भरोसा करे भी तो कैसे करे। उनके पाकिस्तान पर तो उनके देश के पड़ोसी मुसलमान देश जैसे ईरान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान तक भी तो भरोसा नहीं करते। क्या यह सच नहीं है कि इन सभी देशों से पाकिस्तान के संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं? आखिर वे भारत के आतंरिक मसले पर हस्तक्षेप करने की हिम्मत ही क्यों कर रहे हैं?
इमरान खान से पहले पाकिस्तान के गृह मंत्री ब्रिगेडियर एजाज अहमद शाह ने स्वीकार किया था कि पाकिस्तान, कश्मीर मुद्दे पर अपने रुख को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन पाने में विफल रहा है। मंत्री एजाज शाह ने कहा था कि, लोग हम पर विश्वास नहीं करते हैं लेकिन वे उनपर (भारत) भरोसा करते हैं।
दरअसल अब तो पाकिस्तान के अन्दर भी एक मज़बूत राय यह बन रही है कि इमरान खान अपने देश की जनता के साथ किए वादे पूरे करने में नाकाम रहे हैं। इसलिए अब वे जनता को महंगाई, निरक्षरता, गरीबी जैसे बुनियादी सवालों से दूर लेकर जाना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि कश्मीर के मसले पर हाय–तौबा मचा कर वे अपने अवाम को एकबार फिर चकमा दे देंगे। पर इसमें वे सफल होने वाले नहीं हैं। पाकिस्तान की जनता उनसे अब लगातार यह सवाल पूछ रही है कि वे चुनाव के दौरान किए अपने वादे कब पूरे करेंगे।
इमरान खान आजकल मोटा–मोटी दो विषयों पर ही बोलते हैं। पहला, कश्मीर और दूसरा, नवाज शरीफ और आसिफ अली जरदारी के कथित करप्शन से जुड़े मसलों पर। पर पाकिस्तान की अवाम उनसे कुछ ठोस ज़मीनी काम की अपेक्षा कर रही है। जनता का धैर्य अब जवाब दे रहा है।
इमरान खान पाकिस्तान में महंगाई के सवाल पर जुबान भी नहीं खोल रहे। वहां ज्यादातर सब्जियों की आपूर्ति भारत से ही होती है। ऐसे में इमरान सरकार के व्यापार न करने के फैसले का असर दिखाई दे रहा है। कराची शहर में ही प्याज, अदरक, लहुसन और टमाटर जैसी सब्जियों की कीमतों में सबसे ज्यादा तेजी देखने को मिल रही है। इमरान खान अब हर मोर्चे पर असफल रहे हैं। इस बीच, पाकिस्तान के सिंध सूबे में सिंधूदेश की मांग मुखर होती जा रही है। बलूचिस्तान वैसे ही पाकिस्तान के साथ रहने को तैयार नहीं है। सिंधूदेश का मसला हाल ही में पाकिस्तान की संसद में भी उछला था।सिंध में सिंधी बोलने वाले और उर्दू भाषियों में भी दूरियां बढ़ती जा रही हैं। उर्दू बोलने वाले मुहाजिर हैं। ये देश के विभाजन केसमय भारत से पाकिस्तान चले गए थे। इन्हें सिंधी बोलने वालों ने कभी अपना नहीं माना।
इमरान खान कश्मीरी जनता के लिए घड़ियाली आंसू बहा रहे है। वे मानवाधिकारों का रोना रो रहे हैं।आख़िरकार वे तब क्यों चुप थे जब पुलवामा में एक पाक– प्रशिक्षित मानव बम ने भारत के 40 से अधिक निर्दोष सुरक्षा कर्मियों को सड़क पर मार दिया था। तब क्या इमरान खान भूल गए थे कि मानवाधिकार क्या होता है? उन्होंने संवेदना का एक शब्द भी नहीं बोला था। वे वाक़ई एक पत्थर दिल इंसान हैं।
आर.के. सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)