रत व दुनिया के राजनय व कूटनीति में यह अकल्पनीय व अभिनव मोड़ है। ‘खुली कूटनीति’ की नई धार जो गति पकड़ रही है उसमें स्थापित मापदंड टूटकर बिखर गए हैं। ‘हाउडी मोदी’ नाम का शो दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के कूटनीतिक इतिहास में लंबे समय तक विवाद का विषय रह सकता है मगर भारतीय कूटनीति के इतिहास की सबसे बड़ी सफलता व मील का पत्थर बन चुका है। अमेरिका व चीन के विकराल व्यापारिक युद्ध व करेंसी वार, हांगकांग में चल रहे आजादी के आंदोलन और अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उतावलेपन के बीच दक्षिण एशिया व एशियाई देशों के स्थापित सत्ता संतुलन बिखर चुके हैं। रिपब्लिकन राष्ट्रपति ट्रंप ने जिस राष्ट्रवाद की लहर चला अमेरिका में सत्ता हथियाई थी उस मुद्दे व विचारधारा को उन्होंने व्यवहार में उतारकर भूमंडलीकरण के खोखलेपन को दुनिया के सामने स्थापित कर दिया है। अब इसी मुद्दे पर वे और गहराई से काम कर व पुराने वादों को पूरा कर दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति बनने का सपना संजोए बैठे हैं। वे अमेरिका का आयात, सैन्य बिल व अंतरराष्ट्रीय मामलों पर खर्च घटा रहे हैं। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था में खासा सुधार तो आया ही है साथ ही रोजगार भी बढ़ रहे हैं। वे वापस अमेरिका को मैन्युफैक्चरिंग हब बना रहे हैं व तेल निर्यातक देश भी। ऐसे में चीनी माल की आमद अमेरिका में कम की जा रही है व आउटसोर्सिंग को भी नियंत्रित किया गया है।
दुनिया के मसलों में टांग अड़ाने व दुनिया का पुलिसमैन बन जहां तहां अपने सैन्य बलों की तैनाती कर भारी भरकम आर्थिक बोझ अमेरिका के खजाने पर डालने की पुरानी नीति ट्रंप ने बदली है और इसमें महत्वपूर्ण निर्णय है अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी। ट्रंप किसी भी हालत में अगले वर्ष होने वाले राष्ट्रपति चुनावों से पहले यह वापसी सुनिश्चित करना चाहते हैं। इसीलिए तालिबान से कई दौर की बातचीत हो भी चुकी है। ऐसे में अब जबकि अमेरिका को मिलिट्री बेस बनाने के लिए पाकिस्तान की आवश्यकता नहीं रही व रूस की भूमिका इस क्षेत्र में सीमित ही रह गयी है, चीन द्वारा इस वैक्यूम को भरे जाने की चिंता है। इसलिए अमेरिका के लिए भारत की दक्षिण एशिया में प्रभावी भूमिका की दरकार है ताकि वह चीन से ‘बैलेंस ऑफ पावर’ बना सके। नाटो संगठन का एसोसिएट मेंबर बन चुका भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आज अमेरिका का विश्वसनीय साथी बन चुका है और मजबूरी भी। इसी कारण डेमोक्रेटिक पार्टी से नजदीकी रखने वाली भाजपा व मोदी रिपब्लिकन के भी सगे बन चुके हैं व दक्षिण एशिया में रिपब्लिकन पार्टी भी कमोबेश उसी नीति पर चलने को मजबूर है जिसको डेमोक्रेटिक पार्टी ने बनाया था। उसी समय भारत को विश्व स्तर पर चीन के समानांतर खड़ा करने व नरेंद्र मोदी को वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करने की कूटनीतिक सहमति भारत व अमेरिका में बनी। अमेरिका एक ओर जहां चरण से आयातित माल पर इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाकर उसके माल को महंगा करते जाने की कोशिश में है वहीं उससे आयात भी कम करता जा रहा है। अन्य नाटो देश भी इसी रणनीति पर चल रहे हैं। दूसरी बड़ी बात चीन के नियंत्रण वाले बड़े आर्थिक जोन हांगकांग में आजादी के आंदोलन को हवा देना। तीसरा अफगानिस्तान से अपनी सेना की वापसी से पूर्व अफगानिस्तान व पाकिस्तान के तालिबानी गुटों से समझौता कर इस क्षेत्र में अपनी समर्थक सरकार स्थापित करना। चौथा चीन के मुकाबले भारत को खड़ा करना ताकि वह इस क्षेत्र में चीन की भूमिका बढऩे न दे।
भारत इसी स्थिति व नीति का लाभ लेने की कोशिश में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिनको राष्ट्रपति ट्रंप ‘टफ नेगोशिएटर’ कहते हैं कई बड़ी शर्तें ट्रंप प्रशासन से मनवाने में सफल हो गए हैं जैसे पाकिस्तान को आतंकी फंडिंग पर अरब व अन्य देशों की रोक, जम्मू व कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति व राज्य का दो केंद्र शासित राज्यों में विभाजन। मामला यहां नहीं रुकने जा रहा है। पाक अधिकृत कश्मीर पर शीघ्र कब्जे की बात भारत के सेना प्रमुख, गृह, रक्षा व विदेश मंत्री के साथ ही अब प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति व राष्ट्रपति तक कह रहे हैं और बात अब पाकिस्तान के चार छ: टुकड़े करने तक की होने लगी है। यह यूं ही अचानक नहीं हो रहा है। आक्रामक गृह, रक्षा व विदेश नीति वाला भारत अमेरिका के नेतृत्व में नाटो देशों व भारत की निर्धारित कूटनीति का हिस्सा है जिसमें दक्षिण एशिया में भारत को बड़ी महाशक्ति के रूप में चीन के समानांतर खड़ा करने का कार्य चल रहा है। इसीलिए भारत का नाटो देशों से व्यापार भी तीव्र गति से बढ़ रहा है तो भारत को आधुनिकतम हथियारों की आमद भी। ‘आक्रामक भारत’, ‘न्यू इंडिया’ का नया चेहरा है जो भारत सरकार की नीतियों का हिस्सा बन चुका है। ‘प्रबल राष्ट्रवाद’ के इस वातावरण में हिंदी, हिंदू, हिंदुस्थान की बातें भी तेजी से फिजाओं में तैरेंगी और ‘अखंड भारत’ की ओर भी हम बढ़ते दिखेंगे। पाकिस्तान के खाक में मिलने का समय भारत तय कर सकता है यदि हम सोच समझकर ऐसे ही अपने अगले कूटनीतिक कदम उठाते रहें। देश की जनता, राजनीतिक दलों, बुद्धिजीवियों व मीडिया को समझना होगा कि मोदी सरकार देश को बहुत तेजी से एक नई दिशा में लेकर जा चुकी है और उनको उसके साथ खड़ा ही नहीं रहना है वरन कदम से कदम मिलाकर चलना भी है। जो साथ नहीं होगा वह अप्रासंगिक हो जाएगा व हाशिए पर होगा। इसीलिए फिलहाल राजनीतिक युद्ध मे किसी भी राज्य में चुनाव हो, पड़ला मोदी का ही भारी रहना है। आर्थिक मोर्चे पर भी जिस मुस्तैदी से स्थिति संभाली जा रही है, मंदी दूर की कौड़ी हो जाएगी। किंतु आक्रामक राष्ट्रवाद व कूटनीति से अगले कुछ माह में हम पड़ोसी देश से युद्ध की स्थिति में आ सकते हैं उसके लिए हमको मानसिक रूप से तैयार रहना होगा।
Anuj Agarwal
Editor