जब अयोध्या में विवादित ढांचे के स्वामित्व के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई अपने अंतिम चरण में पहुंच चुकी है। तब कहीं जाकर इस जटिल मसले परसमझौते की एक उम्मीद जगी है। देश को लग रहा है कि यह मामला सौहार्दपूर्ण तरीके से हल होने के रास्ते पर बढ़ चला है। इस सकारात्मक माहौल को पैदा करने काकाफी हद तक श्रेय भारतीय सेना के पूर्व जनरल श्री जमीरउद्दीन शाह और उनके साथियों को जाता है। शाह साहब कुछ समय पहले तक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी केउप कुलपति भी थे।दरअसल जनरल साहब की सरपरस्ती में इंडियन मुस्लिम्स फॉर पीस नामक संस्था ने एक प्रेस वार्ता करके बताया कि अनेक मुस्लिम संगठन मानतेहैं कि अयोध्या मसले का हल आपसी समझौते से निकाला जा सकता है। इन्होंने एक मसौदा भी तय किया है जिसके अनुसार अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जमीन कोसुन्नी वक्फ बोर्ड के जरिए हिन्दुओं को सौंप दिया जाएगा और उसके लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी भी दी जाएगी। यह सच में एक शानदार पहल है। बेशक यदि अयोध्या मसले का हल सर्वानुमति से हो जाता है, तो इससे देश को बहुत राहत मिलेगी और हिन्दुओं और मुसलमानों में आपसी विश्वास और सदभाव भी बढेगा। तब वे शक्तियां पूरीतरह पस्त हो जाएंगी जो सदा दोनों समूहों को लड़ाने में ही व्यस्त रहती है।
दरअसल उपर्युक्त पहल से पहले शिया वक़्फ़ बोर्ड भी कह चुका है कि अयोध्या में राम मंदिर बने और एक विशाल मस्जिद भी अयोध्या और फ़ैज़ाबाद से बाहर कहीं औरबन जाए।शियाबोर्ड का दावा है कि बाबरी मस्जिदको मीर बाक़ी ने बनवाया था। इसके आख़िरी मुतवल्ली भी शिया मुसलमान ही थे। अत:, ये शिया संपत्ति है। इसलिएशिया वक़्फ़ बोर्ड ही उसके बारे में कोई फ़ैसला लेगा। पर कुछ कठमुल्ला संघटन शिया बोर्ड के दावे को इस तरह से खारिज करते हैं कि मानों उनके पास ही सारी दुनियाका ज्ञान हो। शिया बोर्ड की राय को खारिज करने वालों में कुछ सुन्नी संगठन हैं। शिया बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान भी यही तर्क रखे हैं।
तो बहुत साफ है कि अब मुसलमानों के भीतर से भी यह आवाज उठ रही है कि मुसलमान अयोध्य़ा में विवादित स्थल हिन्दुओं को सौप दें , ताकि वहां पर एक भव्य राममंदिर बन जाए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट का इस मसले पर फैसला अगले माह ही आएगा पर अभी से कोई बीच का रास्ता निकालने की हो रही कोशिशों का तो हर स्तर परस्वागत होना ही चाहिए। हिन्दू संगठनों को भी मुस्लिम समाज के उन नेताओं के साथ खड़ा होना चाहिए जो अपने स्तर पर इतनी खास पहल को अंजाम दे रहे हैं। बेशकहिन्दू समाज इन समझदार मुसलमानों का सदैव कृतज्ञ भी रहेगा। एक बात तो साफ लग रही है कि 1992 और 2019 के बीच भारत बहुत बदल चुका है। अब मुसलमानोंको भी लग रहा है कि अयोध्या में हिन्दुओं की भावनाओं का भी सम्मान करना चाहिए। बाबरी मस्जिद की तुलना राम जन्मभूमि से तो कतई नहीं की जा सकती। राम तोइस देश के कण – कण में है। राम के बिना तो भारत की कल्पना करना तक असंभव है। मोहम्मद इकबाल ने भी राम के लिए लिखा था–‘है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँको नाज़, अहल–ए–नज़र समझते हैं उस को इमाम–ए–हिंद।’
इस बीच, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ सेक्युलवादी डा. के के मुहम्मद के पीछे पड़ गए हैं। वे प्रख्यात पुरातत्वविद हैं। डां मुहम्मद ने दावा किया है कि अयोध्या में बाबरीमस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष मिले है। मुहम्मद कहते हैं कि अयोध्या में 1976-77 में हुई खुदाई के दौरान मंदिर के अवशेष होने के ठोस सुबूत मिले थे। ये खुदाईभारतीय पुरातत्व (एएसआई) सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक प्रोफेसर बीबी लाल के नेतृत्व में की गई थी। डां. के. के. मुहम्मद स्वयं आर्किलाॅजिकल सर्वे ॲाफ इंडियाकी उस टीम के सदस्य थे। मुहम्मद मानते हैं कि एएसआई को विवादित स्थल से बहुत से स्तंभ मिले थे, जिन पर गुंबद खुदे हुए थे। ये 11वीं और 12वीं शताब्दी केमंदिरों में मिलने वाले गुंबदों से मिलते–जुलते थे। मुहम्मद के दावों पर सबसे ज्यादा कष्ट अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डा. सैयद अलीरिजवी को हो रहा है। वे कह रहे हैं कि मुहम्मद तो डा. लाल की टीम में थे ही नहीं। हालांकि उनके दावे को एएसआई के पूर्व मुख्य छायाकार राजनाथ काव समेत कईअफसर सिरे से खारिज करते हैं। इन सबका कहना है मुहम्मद डा. लाल की टीम के सदस्य थे। यह चिंता की बात है कि जब अयोध्या मसले का हल होता दिखाई दे रहाहै तो डा रिजवी कह रहे हैं कि मुहम्मद एक नया दावा रख रहे हैं। दरअसल मुहम्मद से बहुत से ज्ञानियों को तकलीफ है , क्योंकि वे केरल के एक कट्टर मुसलमान होनेपर भी कह रहे हैं कि बाबरी मस्जिद मंदिर को तोड़कर बनी थी। वे सच में बहुत निर्भीक इंसान हैं।जब यह विवाद शुरु भी नहीं हुआ था तब मैं जिज्ञासावश एक पत्रकार केनाते बार डाॅ. मोहम्मद से मिला था। उन्होंनें अनेकों प्रमाण दिखाकर पुरातत्व विज्ञान के सिद्धान्तों से यह प्रमाणित किया था कि राम मंदिर को ढाहकर उसी के ऊपरमस्जिद का ढांचा खडा कर दिया गया था।
दरअसल भारत में विभिन्न मुसलमान शासकों के दौर में निर्रममतापूर्वक बेशरमी से हजारों मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनीं। यह तो सबको पता ही है। आप कभी दिल्लीके कुतुब मीनार परिसर में हो आइये । वहां परकई स्मारक मिलेंगे जिन पर हिन्दू और जैन मंदिरों के प्रतीक अंकित हैं। कुतुब मीनार से ही सटी है कुव्वतुल इस्लाममस्जिद।इस मस्जिद को दो दर्जन से अधिक मंदिरों का तोड़कर उनकी सामग्री से ही उसी स्थान पर बनाया गया था । मस्जिद का नाम उसके बनाने वाले कुतुबुद्दीनएबक के नाम पर, कुव्वतुल इस्लाम रखा गया। जिसका मतलब होता है–इस्लाम की ताकत। पर हम यहां पर इस मसले पर बात नहीं करेंगे कि मंदिर कहां–कहां तोड़े गए।हम अपनी बात को अयोध्या मसले तक ही सीमित रखेंगे।
यह मानना होगा कि जब समाज में कुछ तत्व सारे माहौल को विषाक्त करने में लगे रहते हैं, तब जनरल शाह जैसे समझदार लोग भी सामने आते हैं। सशक्त फिल्मअभिनेता नसीरउद्दीन शाह के भाई जनरल साहब की कोशिशों का हर स्तर पर समर्थन किया जाना चाहिए। वे राम मंदिर के पक्ष में आवाज बुलंद कर रहेहैं। वास्तव मेंभारत धर्मनिरपेक्ष देश जनरल शाह जैसे बड़े दिल वाले लोगों के कारण ही बनता है।
आर.के. सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)