भाजपा की दृष्टि से कहे तो यह अत्यंत निराशाजनक स्थिति है। बस चंद महीनों पूर्व जनता के दिलोदिमाग पर छा जाने वाली भाजपा अपने दोनों महारथियों नरेंद्र मोदी और अमित शाह के कुशल नेतृत्व व उपलब्धियों की लंबी सूची के बावजूद अपने गढ़ महाराष्ट्र व हरियाणा में किए गए दावों व एग्जिट पोल के अनुमानों से खासे पीछे रह गए। हालांकि दोनों ही राज्यों में भाजपा की सरकार तो बन गयी किंतु यह पार्टी व संघ परिवार में बढ़ रही गुटबाजी, सत्ता के अवगुण (अहम, भ्रष्टाचार व अय्याशी) और जमीनी सच्चाई को नकारने की जिद के साथ ही बाहरी लोगों को जबर्दस्ती पार्टी में ठूंसने व अपने कद्दावर नेताओं को हाशिए पर धकेलने की कुटिल नीति के परिणाम है जो लोकसभा चुनावों से पूर्व मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में भी देखने को मिले थे और कुछ दिनों बाद झारखंड व दिल्ली के चुनावों में भी देखने को मिलेंगे।
हम इन दिनों एक नए संघ परिवार के दर्शन कर रहे हैं जिसमें सत्ता का दर्शन व सरकार की नीतियां अब संघ की नीतियां बन चुकी हैं। अब सत्ता के ‘गुप्त रोगों’ से ग्रस्त संघ परिवार में प्रचारक मोदी कुर्ती में अधिक दिखते हैं व अनेक सिंडिकेट बना कर काम कर रहे हैं। नौकरशाही को धमकाने की भी खबरें आती रहती हैं व पैसों के बदले कुछ भी काम करा देने के दावों की भी। अब लगभग हर प्रदेश से संघ परिवार से जुड़े लोगों के व्यभिचार की भी खबरें सरेआम हैं, खासकर मध्यप्रदेश के सीडी कांड ने संघ की प्रयोगधर्मिता पर बड़े प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। पता नहीं इनमें कितनी सच्चाई है मगर जिस तरह से राज्यों में मोदी-शाह ने जननेताओं को किनारे कर अपने लोगों को थोपा उसमें देर सवेर यही स्थिति आती भी है। यह आम अवधारणा बन गयी है कि देश में मोदी शाह की तानाशाही चल रही है व मंत्रियों की कोई औकात नहीं रही है, सबकी जासूसी करवायी जाती है व नौकरशाही हावी होती जा रही है। हो सकता है इन बातों में पूरी सच्चाई न हो मगर ख़ौफ़ तो हर जगह है ही। राजनेता सीबीआई के छापों से डरने लगे हैं तो मीडिया विज्ञापन व अन्य कमाईयों में कटौती के डर से अब भाट व चारणों की भूमिका में आ चुका है और सच बताने में हिचकने लगा है जो बहुत ही घातक है। मोदीजी की अपनी छवि आज भी उज्ज्वल है व नीतियां भी देशहित वाली व दीर्घकालिक है किंतु उनको अधिक लोकतांत्रिक होना पड़ेगा। पार्टी, केंद्र व राज्य सरकारों में जमीन से जुड़े व लोकप्रिय नेताओं को आगे रखना होगा अन्यथा ऐसी स्थिति बार-बार आती रहेगी।
वैसे यह राजनीति वर्चस्व की राजनीति का हिस्सा है और अटल बिहारी वाजपेयी भी इसका शिकार रहे तो मोदी जी को क्या दोष देना। मगर हम बिना मोदी के भाजपा की कल्पना करें तो शून्य व सन्नाटे अधिक नजऱ आने लगेंगे और इसके दोषी मोदी जी नहीं होना चाहेंगे। देश मे जिन भी भाजपा के वर्चस्व वाले राज्यों में विपक्ष आगे बढ़ा है इसमें भाजपा की गलतियां अधिक जिम्मेदार हैं न कि विपक्ष की उज्ज्वल छवि। देश में विपक्ष पूरी तरह हताश, निराश व बिखरा हुआ है और उनके बीच अगर भाजपा हार रही है या पिछड़ रही है तो इसका मतलब है कि उसके कर्म विपक्ष से भी खराब हैं। देश हमेशा राष्ट्रवाद के ज्वार में नहीं रह सकता और राम मंदिर पर उच्चतम न्यायालय का फैसला बड़ी उत्तेजना शायद ही पैदा कर पाए। कूटनीति व विदेशनीति पर हाल ही की बढ़त कब कम हो जाए यह भी अमेरिका व चीन के अगले कदम पर निर्भर करता है। ऐसे में विकास के नाम पर भारत के भारतीयकरण के अपने मूल मुद्दे व विचारधारा से जितना दूर संघ परिवार जाएगा उतना ही मुश्किलों से दो चार होता रहेगा।
भारत अपने आधारभूत ढांचे को मजबूत करता जा रहा है व तीनों सेनाओं, विशेषकर वायुसेना का सशक्तिकरण सराहनीय है। मंदी की चर्चाओं के बीच हम एक बड़ी मेन्युफेक्चरिंग क्रांति के किनारे बैठे हैं और इसमें विकसित राष्ट्रों की हमें आवश्यकता है। उतावलेपन में हम आज भी कई मुद्दों व क्षेत्रों में उनका अंधानुकरण कर रहे हैं जो समझ से परे है। भारत को क्षेत्रीय शक्ति व आर्थिक ताकत बनाने में अगर सबसे कारगर हथियार है तो वह भारत का भारतीयकरण है व सनातन संस्कृति की पुनस्र्थापना। राष्ट्रवाद का यही आधार है और यही हमारी मनोवैज्ञानिक व भावनात्मक ताकत। अगर यह मजबूत बनी रही तो हम दुनिया को वैकल्पिक नेतृत्व दे पाएंगे। उम्मीद है संघ परिवार व मोदीजी इस इशारे को समझेंगे।
By Anuj Agarwal, Editor