जब से श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने, तब से ‘नया भारत’ बनाने के लिए उन्होने अनेक जनोपयोगी क्रांतिकारी योजनाओं की घोषणाऐं की हैं। जैसे महिलाओं को गैस का सिलेंडर, निर्धनों के घरों में शौचालयों का निर्माण, जनधन योजना, आयुष्मान भारत, स्वच्छ भारत, जलशक्ति अभियान आदि। हर कोई मानता है कि मोदी जी ने एक बड़ा सपना देखा है और ये सारी योजनाऐं उसी सपने को पूरा करने की तरफ है एक-एक कदम हैं।
यंू तो देश का हर प्रधानमंत्री आज तक जनता के हित में कोई न कोई नई योजनाऐं घोषित करता रहा, पर मात्र 6 वर्ष में इतनी सारी योजनाऐं इससे पहले कभी किसी प्रधानमंत्री ने घोषित नहीं की थीं।
इन योजनाओं में से कुछ योजनाओं का निश्चित रूप से लाभ आम आदमी को मिला है। तभी 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी जी को दोबारा इतना व्यापक जन समर्थन मिला। पर ये बात मोदी जी भी जानते होंगे और उनसे पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुके हैं कि जनता के विकास के लिए आवंटित धनराशि का जो प्रत्येक 100 रूपया दिल्ली से जाता है, वह जमीन तक पहुँचते-पहुँचते मात्र 14 रूपये रह जाता है। 86 रूपये रास्ते में भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाते हैं। इसलिए सारा विकास कागजों पर धरा रह जाता है।
जहाँ मोदी जी ने देश की अनेक दकियानूसी परंपराओं तोड़कर अपने लिए एक नया मैदान तैयार किया है, वहीं यह भी जरूरी है कि समय-समय पर इस बात का जायजा लेते रहें कि उनके द्वारा घोषित कार्यक्रमों का क्रियान्वयन कितने फीसदी हो रहा है।
जमीनी सच्चाई जानने के लिए मोदी जी को गैर पारंपरिक साधनों का प्रयोग करना पड़ेगा। ऐसे में मौजूदा सरकारी खूफिया एजेंसिया या सूचना तंत्र उनकी सीमित मदद कर पाऐंगे। प्रशासनिक ढांचे का अंग होने के कारण इनकी अपनी सीमाऐं हैं। इसलिए मोदी जी को गैर पारंपरिक ‘फीड बैक मैकेनिज्म’ का भी सहारा लेना पड़ेगा, जैसा आज से 2300 साल पहले भारत के पहले सबसे बड़े मगध साम्राज्य के शासक अशोक महान किया करते थे। जो जादूगरों और बाजीगरों के वेश में अपने विश्वासपात्र लोगों को पूरे साम्राज्य में भेजकर जमीनी हकीकत का पता लगवाते थे और उसके आधार पर अपने प्रशासनिक निर्णय लेते थे।
अगर मोदी जी ऐसा कुछ करते हैं, तो उन्हें बहुत बड़ा लाभ होगा। पहला तो ये कि अगले चुनाव तक उन्हें उपलब्धियों के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर आंकड़ें प्रस्तुत करने वाली अफसरशाही और खुफिया तंत्र गुमराह नहीं कर पाऐगा। क्योंकि उनके पास समानान्तर स्रोत से सूचना पहले से ही उपलब्ध होगी। ऐसा करने से वे उस स्थिति से बच जाऐंगे, जो स्थिति हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों के परिणाम आने से पैदा हुई है। जहाँ भाजपा को तीन चैथाई स्पष्ट बहुमत मिलने का पूर्णं विश्वास था, लेकिन परिणाम ऐसे आऐ कि सरकार बनाना भी दूसरे के रहमों-करम पर निर्भर हो गया। ऐसी अप्रत्याशित स्थिति से निपटने का तरीका यही है कि अफसरशाही के अलावा जमीनी लोगों से भी हकीकत जानने की गंभीर कोशिश की जाए। ये पहल प्रधानमंत्री को ही करनी होगी।
ताजा उदाहरण मथुरा जिले का है। जहाँ 23 सितंबर 2019 को मथुरा में 1046 कुंडों (सरोवरों) को गहरा खोदने की घोषणा राष्ट्रीय स्तर पर की गई थी। पर जब हमने इस दावे की वैधता पर प्रश्न खड़े किये तो ये दावा करने वाले घबराकर भाग छूटे। अगर वास्तव में ‘जलशक्ति अभियान’ के तहत 1046 कुंड खुदे होते तो दावा करने वालों को बगले नहीं झांकनी पड़ती। ये कहानी तो केवल एक मथुरा जिले की है और वो भी केवल एक ‘जलशक्ति अभियान’ की। अगर पूरे देश के हर जिले में प्रधानमंत्री की घोषित योजनाओं का जमीन पर मूल्यांकन किया जाए, तो पता नहीं कैसे परिणाम आऐंग? अच्छे परिणाम आते हैं, तो प्रधानमंत्री का हौसला बढ़ेगा और वो मजबूती से आगे कदम बढ़ाऐंगे। अगर परिणाम आशा के विपरीत या मथुरा में खोदे गए 1046 कुंडों के जैसे आते हैं, तो यह प्रधानमंत्री के लिए चिंता का विषय होगा। ऐसे में उन्हें अफसरशाही पर लगाम कसनी होगी। अभी उनके पास पूरे साढ़े चार वर्ष हैं। जो कमी रह गई होगी, वो इतने अरसे में पूरी की जा सकती है। साथ ही फर्जी आंकड़े देकर बयानबाजी करवाने वाली अफसरशाही के ऐसे लोग भी समय रहते बेनकाब हो जाऐंगे। तब प्रधानमंत्री को ढूँढने होंगे वे अफसर, जिनकी प्रतिष्ठा काम करके दिखाने की है, न कि भ्रष्टाचार या चाटुकारिता करने की ।
‘सोशल ऑडिट’ करने का यह तरीका किसी भी लोकतंत्र के लिए बहुत ही फायदे का सौदा होता है। इसलिए जो प्रधानमंत्री ईमानदार होगा, पारदर्शिता में जिसका विश्वास होगा और जो वास्तव में अपने लोगों की भलाई और तरक्की देखना चाहेगा, वो सरकारी तंत्र के दायरे के बाहर इस तरह का ‘सोशल ऑडिट’ करवाना अपनी प्राथमिकता में रखेगा। चूंकि मोदी जी बार-बार ‘जवाबदेही’ व ‘पारदर्शिता’ पर जोर देते हैं, इसलिए उन्हें यह सुझाव अवश्य ही पसंद आएगा। आशा की जानी चाहिए कि आने वाले हफ्तों में हम जैसे हजारों देश के नागरिकों को प्रधानमंत्री के आदेश पर इस तरह का ‘सोशल ऑडिट’ करने के लिए आव्हान किया जाऐगा। इससे देश में नई चेतना और राष्ट्रवाद का संचार होगा और भ्रष्टाचार पर लगाम कसेगी।
विनीत नारायण