जघन्य हत्याकांडों के लिए कुख्यात विश्व का दुर्दान्त आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट का प्रमुख अबू बकर अल बगदादी का अंततः अंत हो गया। अमरीकी डेल्टा कमांडों ने अपने अद्भुत शौर्य व सूझबूझ का परिचय देते हुए बड़े रहस्यमयी ढंग से रविवार 27.10.2019 को सीरिया के इदलिब प्रांत के बारिशा गाँव में बगदादी को उसके सुरंग में बने हुए अति गोपनीय ठिकाने में ही स्वयं को विस्फोटकों से उड़ाने के लिए एक विशेष कुत्ते द्वारा ही विवश कर दिया गया। हज़ारों निर्दोषों को भयानक मौत देने वाला दुनिया का सबसे बड़ा व भयावह आतंकी संगठन के मुखिया को भी दर्दनाक मौत ने चीखने को विवश कर दिया। इस अभियान में बगदादी की दो पत्नियां व तीन बच्चों सहित उसके कुछ वरिष्ठ साथी भी ढेर हुए। सामान्यतः वैश्विक समाज इसको इस्लामिक आतंकवाद के अंत की आहट समझ रहा है।
आतंकवाद की जनक इस्लाम की शिक्षाएं ही बगदादी जैसे खौफनाक दंरिदों की फसल उगाती है। बगदादी इस्लामिक दर्शन शास्त्र का विद्वान था और वह उसमें पीएचडी भी था।
उसके द्वारा किये व कराये गये अनेक प्रकार के घिनौने मानवीय अत्याचार इस्लामी शिक्षाओं का ही दुष्परिणाम है।
इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने न जाने कितने प्रकार से निर्दोष सभ्य समाज के लोगों को तड़पा-तड़पा कर काटा, जलाया व पिंजरे में बांध कर करंट लगाया व पानी में डुबो-डुबों के मारा। उनके अनुसार काफिर माने जाने वाले समाज की लड़कियों, युवतियों व महिलाओं के गले में कुत्ते के समान पट्टा बांध कर उनकी आयु व सुंदरता के अनुसार मूल्य निर्धारित करके सीरिया आदि की मंडियों में बेचा गया। सैंकड़ों ऐसी लड़कियां महीनों व वर्षो इनकी हवस का शिकार बनती रहीं। उनके द्वारा उपन्न अधिकांश संतानें अब भी भटक रही है।
बगदादी के कुछ समर्थकों व सहयोगियों ने सोशल मीडिया के माध्यमों से यूरोपीय देशों व भारत आदि के हज़ारों युवकों व युवतियों को भ्रमित करके इस्लाम के प्रति आकर्षित करके उनको मुसलमान बना कर आतंकवादी घटनाओं से भी जोड़ कर उनका भविष्य अंधकार में धकेल दिया।
वर्ष 2015 के समाचारों से ज्ञात हुआ था कि यूरोप, अमरीका व आस्ट्रेलिया आदि के आधुनिक वातावरण में पले – बढ़े आधुनिक शिक्षा प्राप्त हजारों युवा इस्लामिक स्टेट के नाम पर मरने-मारने को तैयार होते रहे।
भारत के कर्नाटक, महाराष्ट्र तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल व उत्तर प्रदेश से भी सैकड़ों युवाओं के इस्लामिक स्टेट से जुड़ने के समाचार आये थे। ऐसे युवाओं के वहां जाने पर पासपोर्ट जब्त कर लिए जाते थे और उनको डराया व समझाया जाता था कि जिहाद के नाम पर संकोच (बचने) करने से इस्लाम जो एक ‘जिन्न’ की तरह होता है, उनका उम्र भर पीछा नहीं छोड़ेगा।
तीन-चार वर्ष पूर्व के समाचार पत्रों से यह भी ज्ञात हुआ कि इस्लामिक स्टेट सैकडों ऑनलाइन व 46000 से अधिक ट्विटरों के माध्यमों से मुस्लिम व धर्मान्तरण करके मुस्लिम बने युवाओं को “हिजरा” करने के लिए उकसाता रहा।अलक़ायदा का सहसंस्थापक और आधुनिक जिहादी आंदोलन का पितामह अब्दुल्ला आजम के अनुसार “भय की भूमि से सुरक्षा की भूमि की ओर उत्प्रवासन (जाना) “हिजरा” कहलाता है। लेकिन यह सोचने का विषय है कि इस्लाम में ऐसा क्या है कि इस्लाम ग्रहण करने वाले अपने जीवनयापन से ऊपर उठ कर केवल अविश्वासियों व गैर मुस्लिमों के प्रति अत्याचारी ही नहीं बन जाते है बल्कि अपने पूर्व धर्म के सगे-सम्बन्धियों व पूर्वजों के भी शत्रु बन जाते है।
इस्लामिक स्टेट व अन्य आतंकी संगठन अगर जिहादी विचारधारा से आतंक फैला रही है तो इसका यह अर्थ नहीं कि सभ्य समाज उस विचारधारा का विरोध न करें और उसे सेक्युलर, सौहार्द व सहिष्णुता के नाम पर पनपने दे।
विश्व में इस्लामिक आतंकवाद रूपी बुराई सामने खड़ी है और हम उस बुराई को समझना तो दूर उसकी ओर संकेत करने से भी बचते रहें..क्यों? “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता” रटते रहने वाले अगर सत्य को छुपाते रहेंगे तो कट्टरपंथी इस्लाम का दुःसाहस बढ़ता रहेगा। अतः जिहाद को इस्लामिक आतंकवाद कहना ही होगा। बुराई को बुरा कहने में हम क्यों भयभीत होते है?
वैश्विक जिहाद से सार्वधिक पीड़ित सभ्य समाज जिनको जिहादी दर्शन में अविश्वासी, बिना ईमान वाला व काफ़िर मान कर उनके जीवित रहने के अधिकारों को ही चुनौती देना सिखाया जाता हो तो कोई कब तक ऐसे दर्शन का विरोध नहीं करेगा? ऐसे में यह सोचते रहने से कि मुस्लिम समाज की जिहादी पुस्तकों का विरोध व संशोधन को वे स्वीकार नहीं करेंगे तो समस्या और भयावह होती जा रहीं है। जबकि अपने जीवन को अंतिम क्षण तक सुरक्षित रखने के लिये तो सृष्टि के सभी जीव-जन्तु भी संघर्षरत रहते है तो फिर पृथ्वी की सर्वश्रेष्ठ मानव योनि में इतनी भीरुता क्यों? जिहाद से पीड़ित विभिन्न देशों के सभ्य समाज को अपने-अपने देश की राजनैतिक परिस्थितियों का आंकलन करके उसको इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध करने का वातावरण बनाना होगा। वैसे लोकतंत्र में सभ्य समाज को सुरक्षित रखकर उन्हें आकर्षित करने के लिए विभिन्न देशों के कुछ नेताओं ने जिहादियों (मुस्लिम आतंकियों) को समाप्त करने का कार्य आरम्भ किया हुआ है,यह एक सुखद संकेत है। सम्भवतः भारत सरकार भी सर्जिकल व एयर स्ट्राइक के बाद जिस प्रकार अमरीका ने लादेन व अब बगदादी का अंत किया है उसी के समान दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद व मसूद अजहर आदि पर शीघ्र ही आक्रमक हो सकती है।
इस्लामिक आतंकवाद से पीड़ित सभी लोकतांत्रिक देशों को भी ऐसे ही कठोर निर्णय लेने का साहस करना होगा।
अनन्तः वर्षों से इस्लामिक आतंकवाद से जूझता हुआ विश्व का बहुसंख्यक सभ्य समाज इससे मुक्ति चाहता है।किसी भी देश के बहुसंख्यकों के हितों की रक्षा होने से ही लोकतांत्रिक राष्ट्र सशक्त होते है।आतंकवाद विरोधी राजनीति को राष्ट्रनीति का मुख्य ध्येय बनाने से सभी का कल्याण होगा। इस्लामिक आतंकवाद को जड़ से मिटाने के लिए साहसिक निर्णय लेने वाले राजनेताओं को भविष्य में सत्ता का सुख तो मिलेगा ही साथ ही इतिहास में उनका गुणगान भी होगा। जिस प्रकार पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों के गढ़ बालाकोट पर कड़ा प्रहार करके भारत की चुनावी राजनीति ने राष्ट्रवादियों को आकर्षित किया उसी प्रकार सम्भवतः बगदादी को मारने में सफल होने पर भविष्य में होने वाले अमरीका के चुनावों में भी वहां का सभ्य समाज अवश्य सक्रिय होगा।
लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि जब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्लामिक जिहाद से भरी शिक्षाओं का विरोध नहीं होगा लादेन,बगदादी,हाफिज व मसूद अजहर जैसे दुर्दान्त आतंकी पैदा होते रहेंगे। अरब की एक कहावत है कि: “तुम किसी आदमी को कीचड़ से तो निकाल सकते हो, मगर जिस आदमी के अंदर कीचड़ भरी हो उसे निकालना सम्भव नहीं है।” मुस्लिम समुदाय, विशेषतौर पर अरब के लोगों में ऐसी ही वैचारिक गन्दगी भरी हुई है। क्योंकि ये बचपन से ही इस्लामी पुस्तकों से ऐसी ही शिक्षा पाते हैं जिसके अनुसार ही उनका मन-मस्तिष्क आधुनिक युग में भी मुगलकालीन बर्बरता के लिए जनूनी बना रहता है।
अतः इस्लामिक दर्शन और उनकी शिक्षाओं से ऐसी सभी पाठ्य सामग्रियों को हटवाना होगा जो वैश्विक समाज को दो भागों में विभक्त करके ऐसी घिनौनी सोच विकसित करती हो जो अपने को श्रेष्ठ स्थापित करने के लिए अन्य सभ्यताओं के प्रति घृणा व वैमनस्य बना कर उनका अंत तक करने को उकसाती है।
विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चिंतक व लेखक)