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संयम व दृढ़ता की विजयगाथा

यह अपनी गलती सुधारने जैसा तो है ही, साथ ही अपनी जड़ों से जुडऩे की कोशिश भी है। राम जन्मभूमि के अस्तित्व को स्वीकार करने व उस पर भव्य राम मंदिर के निर्माण की स्वीकृति देने के उच्चतम न्यायालय के आदेश हम भारतीयों के लिए एक ‘क्रांति’ के समान है। राम के अस्तित्व को स्वीकार करना यानि वैदिक सनातन संस्कृति के अस्तित्व को स्वीकार करना है। यह इंडिया पर भारत की जीत है। यह सैकड़ों सालों के उस संघर्ष की जीत है जो अरब देशों के विदेशी इस्लामी आक्रमणकारी लुटेरों के विरुद्ध भारत की जनता ने पिछले 500 से अधिक वर्षों से संयम व दृढ़ता से हज़ारों लोगों की जान गंवाकर भी की। ये हर भारतीय के रोम रोम में बसने वाले दुनिया में प्रथम आदर्श या संपूर्ण व्यक्तित्व एवं आदर्श राज्य की स्थापना करने वाले राजा रामचंद्र के प्रति संपूर्ण भारत का प्रायश्चित भी है और विश्व को यह संदेश भी कि कई सौ सालों की गुलामी से मुक्त हुई भारत भूमि और सनातन संस्कृति अब पुन: इस भटके विश्व को दिशा देने के लिए उठ खड़ी होने वाली है। यह व्यक्तिवाद, बाज़ार, व्यभिचार व भ्रष्टाचार को किनारे कर समष्टि के समग्र कल्याण की पुनस्र्थापना का काल शुरू होने का उदघोष है व संकेत है कि भारत जाग गया है व आतुर है इस देश की संपूर्ण व्यवस्था के भारतीयकरण को और अब देश की संसद, नौकरशाही व न्यायपालिका सब एक और नए भारत का निर्माण करेंगी। एक एक करके ग़ुलामी, दमन व अपमान के चिन्हों व संस्कृति को जड़ से ख़त्म करना है व आत्मस्वाभिमानी ‘मौलिक भारत’ की संकल्पना को साकार करना है।

यह सुखद है कि इंडिया व भारत दो सभ्यताओं के संघर्ष में अंतत: भारत जीतने लगा है। भाजपा के नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के नेतृत्व में भारत एक नई कहानी गढ़ रहा है। भारत की आत्मा की जो समझ मोदी सरकार को है वह पहले की सेकुलरपंथी सरकारों में नदारद थी। ऐसा लगता था कि मुगल व अंग्रेज चाहे भारत में सीधे सीधे शासन न कर रहे हो मगर उनकी छाया भारत की सेकुलरपंथी सरकारों व पूरे सरकारी तंत्र पर बनी रही। आजादी के बाद देश को ब्रिटेन, अमेरिका, सोवियत संघ, फ्रांस व चीन के इशारों पर अधिक चलाया गया व देश के जनमानस की चेतना को अनदेखा किया गया। 1000 साल की गुलामी, लूट, सांकृतिक क्षरण और देश के विभाजन के बाद मिली आधी अधूरी आजादी व साम्प्रदायिक विभाजन के बीच अंग्रेजों के अप्रत्यक्ष नियंत्रण ने देश की जनता के मनोबल, आत्मस्वाभिमान व साहस को तोड़कर रख दिया। ‘बांटो व राज करो’ की सेकुलरपंथी कांग्रेसी सरकारों ने समाज को लगातार बांटे रखा व देश मे जाति, धर्म, भाषा व क्षेत्र के नाम पर संघर्ष व तनाव बनाए रखा। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने जब ‘सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास’ के नारे के साथ ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की संकल्पना जनता के सामने रखी तो जनता उनके साथ खड़ी हो गयी। मोदी सरकार ने पिछले 5 वर्षों में देश को अटकाने, लटकाने, भटकाने व उलझाने वाले सभी मुद्दों व योजनाओं को पटरी पर लाने का अथक प्रयास किया और इसी कारण जहां देश में आतंकी, नक्सली व साम्प्रदायिक, जातीय, भाषाई व क्षेत्रीय तनाव, हिंसा और संघर्ष तेजी से घटने लगा वहीं विकेंद्रित विकास की धारा बह चली है। पहली बार जिस तरह से आम भारतीय राष्ट्रीय मुद्दों से जुड़ा व देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगा है, वह अभूतपूर्व है। जनता के बदलते मूड व स्वभाव के साथ व्यवस्था के अंगों में भी चेतना आना स्वाभाविक है और वे जनकेन्द्रित, संवेदनशील व भारत परक होने लगे हैं। कश्मीर की रक्तहीन क्रांति के बाद राम मंदिर पर उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद देश में शांति व साम्प्रदायिक सौहार्द बने रहना हम भारतीयों के बदल चुकी मन:स्थिति का परिचायक है जो बिना लागलपेट अपनी जड़ों से जुडऩे को आतुर है व सनातन संस्कृति के मूलभूत लक्षणों प्रेम, सहिष्णुता व भाईचारे के साथ मिलजुलकर आगे बढऩे को तैयार है। यही वो ‘न्यू इंडिया’ या ‘नया भारत’ है जो पुन: ज्ञान व कर्म की परंपरा को स्थापित कर भारत के खोए हुए गौरव को प्राप्त करने को तत्पर है व दुनिया के किसी भी देश व संस्कृति में जो भी अच्छा है उसको भी आत्मसात करने व अपने श्रेष्ठ को उनको देने की इच्छा रखता है व गलत को ठोकर मारने की भी।

अब समय ‘राम मंदिर’ से आगे बढ़कर ‘राम राज्य’ की संकल्पना को मूर्त रूप देने का है। यह ऊपर अभिव्यक्त विश्लेषण व उपलब्धियों के बाद भी इतना सरल नहीं। जनता से ज्यादा सत्ता प्रतिष्ठानों व उनसे जुड़े लोगों की मानसिकता में अभी बड़े परिवर्तनों की आवश्यकता है। राज्यों की राजनीति में जिस प्रकार की अवसरवादिता, सिद्धांतहीनता व छिछलापन आ गया है जिसका ताजा उदाहरण महाराष्ट्र है, वह चिंताजनक है। इन व्याधियों का स्थायी इलाज खोजना बहुत आवश्यक है। लोकतांत्रिक मूल्यों व आदर्शों के प्रति अगाध श्रद्धा, कानून के शासन पर विश्वास, लोकमत का सम्मान, सुचिता, पारदर्शिता व परस्पर विश्वास पुन: स्थापित करने की आवश्यकता है। वर्चस्व व अहम की राजनीति हमेशा देश के लिए घातक है और इससे उभरने के उपाय भी सभी संवैधानिक संस्थाओं व राजनीतिक दलों को मिलजुल कर खोजने होंगे अन्यथा अब तक की सारी उपलब्धि बेमानी हो जाएंगी। राम मंदिर पर उच्चतम न्यायालय के निर्णय से पहली बार देश की जनता का इतना अधिक विश्वास न्यायपालिका के प्रति हुआ है, इस अवसर का लाभ उठाकर वह अपना भारतीयकरण करे व अधिक त्वरित व पारदर्शी बन सके तो यह ‘राम राज्य’ की दिशा में सबसे बड़ा कदम होगा। इसके लिए उतना ही आवश्यक है कि हम सभी भारतीय इतनी ही दृढ़ता व संयम से सनातन संस्कृति, भारतीयता व लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ डटकर खड़े रहे। यह दृढ़ता व संयम ही व्यवस्था की मानसिकता को बदल देगी और अंतत: राम राज्य के मार्ग को प्रशस्त करेगी।

Anuj Agarwal

Editor

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