पाकिस्तान में मुहाजिरों के नेता अल्ताफ हुसैन ने भारत की नागरिकता की मांग की है। एक अर्से से लंदन में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे अल्ताफ हुसैन ने राम मंदिरपर आये सुप्रीम के फैसले का भी स्वागत किया है। अल्ताफ हुसैन की मांग से पाकिस्तान की बेशरम सरकार भी शर्मसार ज़रूर हुई है। आखिर पाकिस्तान के उर्दू बोलनेवाले मुहाजिरों के शिखर नेता ने भारत में बसने की इच्छा जताई है। पाकिस्तान में मुहाजिर उन मुसलमानों के लिए कहा जाता है जो देश के बंटवारे के समय दिल्ली, यूपी मध्य प्रदेश, बिहार आदि राज्यों से पाकिस्तान चले गये थे। तब उन्हें लगता था कि नये मुल्क में उन्हें जन्नत ही मिल जायेगी। इन्हीं मुसलमानों ने पाकिस्तान के लिएलम्बी लडाई भी लड़ी थी और कइयों ने अपनी कुर्बानी भी दी थी।
पर नये मुल्क पाकिस्तान में जाकर इन्हें दोयम दर्जे का नागरिक ही माना गया और अबतक वही माना जा रहा है! इनकी जमकर दुर्गती हुई। ये अधिकतर पाकिस्तान केसिंध प्रान्त के करांची और पॅंजाब के लाहौर और रावलपिंडी शहरों मे जा कर बसे थे।वहाँ के स्थानीय सिन्धी और पॅंजाबी मुसलमानों ने इन्हें कभी भी बराबरी का दर्जा नहींदिया। 1960 के बाद सिन्धी और मुहाजिर मुसलमानों में खूनी जंग भी हुई। ज़ाहिर है इसका भारी नुकसान मुहाजिरों को ही हुआ। पाकिस्तान के पंजाबी भी भी मुहजिरॉ सेखुंदक खाते हैं । इनका आरोप है कि उर्दू बोलने वालों मुहाजिरों के कारण उनकी पंजाबी के साथ पंजाब में अन्याय हुआ। हालाँकि देश की 65 फीसदी आबादी पंजाबी ही बोलती है, पर देश की राष्ट्र भाषा तो उर्दू ही है।
लम्बे समय तक सताये गये मुहाजिर 70 के दशक में लामबन्द होने लगे। उन्हें लगा कि अगर वे एकजुट नहीं हुए तो मारे जायेंगे। उन्हें एकजुट करने में अल्ताफ हुसैनकी भूमिका अहम थी। वे तब छात्र नेता थे। उनकी पहचान एक प्रखर वक्ता के रूप में होने लगी। वे अपनी सभाओं में बताने लगे कि किस तरह से पाकिस्तान में मुहाजिरोंकर साथ नाइंसाफ़ी हो रही है। उनकी सभाओं में हज़ारों मुहाजिर पहुंचने लगे। वे इस तरह मुहाजिरों के एकछत्र नेता बन गये। उन्होँने मुहाजिरों के हितों के लिये लड़नेवाली एक पार्टी का गठन भी किया। उसका नाम रखा मुहाजिर कौमी मूवमेंट। हालांकि यह नाम आगे चल कर कुछ बदला। इस पार्टी को चुनाव में भी खूब सफलता मिलनेलगी। लेकिन, यह पार्टी अल्ताफ हुसैन की जेबी पार्टी बन गई ।कहते हैं कि उन्होंने अपनी ही पार्टी के उन नेताओं को मरवाना शुरु कर दिया जो उनसे किसी मसले परअलग मत रखते थे। उनके इशारे पर पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में खूनी खेल खेला जाने लगा। इसके साथ ही अल्ताफ हुसैन का पतन भी शुरु हो गया।अल्ताफ हुसैन,जिसके पूर्वज आगरा से गये थे, उसपर हत्या लूट पाट, फिरौती आदि के दर्जनों केस दर्ज हो गए। तब वे लंदन भाग गये।
भारत दलाईलामा, तस्लीमा नसरीन समेत सैकड़ों लोगों को राजनीतिक शरण और नागरिकता देता रहा है। अकेले दिल्ली में हज़ारों तिब्बत,अफगानिस्तान,सूडान,सोमा
लेकिन ऐसा लगता है कि अल्ताफ हुसैन को भारत में शरण मिलने का सवाल ही नहीं उठता। उनकी छवि दागदार है। वे भारत के पक्ष में जरूर बोलते हैं।परन्तु, उन्हें सिर्फ़इस आधार पर तो भारत में तो शरण नहीं मिल सकती न? वैसे भी भारत किसी अन्य देश के राजनीतिक मामले में तो दखलॅंदाजी नहीं करने में ही विश्वास करने वाला हीदेश है।
आर. के. सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)