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कितने पवित्र रह गए धरने-प्रदर्शन

जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में छात्रों के बीच हुई हालिया झड़प पर पाकिस्तान के शहर लाहौर में प्रदर्शन का होना सच में हर किसी को हैरान करने वाला है।वहां पर कुछ लोग जेएनयू के वामपंथी छात्रों के हक में नारेबाजी भी कर रहे थे। पर उसी पाकिस्तान के क्वेटा शहर में विगत शुक्रवार को तड़के एक बाजार में हुए बमविस्फोट में कम से कम 20 लोग मारे गए जबकि 48 अन्य घायल हो गए। मारे गये लोगों में से कई शिया हजारा समुदाय के थे। इस दिल दहलाने  वाले कांड की हरकोने में निंदा होनी चाहिए। आतंकवाद कहीं भी हो उसकी भर्त्सना होनी ही चाहिए। पर पाकिस्तान के किसी कोने में  इस हादसे को लेकर कोई प्रदर्शन तक नहीं हुआ।सरकार से सवाल तक नहीं पूछे गए कि वह आतंकवाद को काबू  करने में विफल क्यों रही है। प्रधानमंत्री इमरान खान, जो भारत के मुसलमानों के लिए आंसू बहातेरहते हैं, क्वेटा कांड पर चुप्पी साध गए। वे चीन में मुसलमामों के साथ हो रहे जुल्मोसितम पर भी बोलने से बचते हैं। एक बार तो उन्होंने यहां तक कहा था कि चीनमें क्या हो रहा है उन्हें उसकी जानकारी नहीं है। जम्मूकश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने और नागरिकता संशोधन कानून पर इमराम खान के साथसाथ सुर से सुरमिलाने वाले मलेशिया के प्रधानमंत्री  महातिर मोहम्मद को भी दिखाई नहीं दे रहा है कि पाकिस्तान में मुसलमानों का किस तरह से कत्लेआम हो रहा है। महातिर भीचीन के मुसलमानों को लेकर चिंतित नहीं रहते। इनके दोहरे चरित्र को भारत और पूरी मुस्लिम  दुनिया देख रही है। पाकिस्तान से तो अब किसी तरह की उम्मीद करनेका कोई मतलब नहीं है। उसने तो पड़ोसी धर्म का कभी निर्वाह ही नहीं किया।

पाकिस्तान से उसके सभी पड़ोसी दुखी हैं। पहले अफगानिस्तान की  बात कर लीजिए। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच दशकों से तनाव चल रहा है। काबुलपाकिस्तान पर अक्सर यह इल्जाम लगाता है कि वो आतंकियों को अपनी जमीन पर सुरक्षित ठिकाने मुहैया कराता रहा है। इसके साथ ही तालिबानियों को अपनी सीमामें दाखिल कर अफगानी और पश्चिम देशों की सेना पर हमले करवाता रहा है। बांग्लादेश, जो कभी उसका अपना की अंग थाभी पाकिस्तान को फूटी नजर नहीं देखपाता। कारण ये है कि बांग्लादेश को पाकिस्तान से शिकायत है कि वो उसके घरेलू मामलों में दखल देता है। बांग्लादेश बारबार कहता रहा है कि वह पाकिस्तान कीओर से उसके आतंरिक मसलों में हस्तक्षेप करने को सही नहीं मानता। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की पाकिस्तान से  शिकायत रही है कि  उसे तब आग लगजाती है जब  बांग्लादेश में 1971 के मुक्ति संग्राम के गुनाहगारों को फांसी दी जाती है। उन्हें दंड दिया जाना पाकिस्तान को खल जाता है। 1971 के कत्लेआम के मुद्दे परपाकिस्तानबांग्लादेश के रिश्ते लगातार खराब हो रहे हैं। पाकिस्तान उस  कत्लेआम के गुनाहगारों के साथ खड़ा रहता है। अब समझ लीजिए उसका चरित्र किस तरह काहै। पर वो बातेंदावें करता है कि वो आतंकवाद से लड़ने को तैयार है। जिस देश से ओसामा बिन लादेन मिला होउसकी बातों पर यकीन करना सरल नहीं होता।

ईरान और पाकिस्तान संबंधों में बड़ा बदलाव तब आया था जब दिसंबर, 2015 में सऊदी अरब ने आतंकवाद से लड़ने के लिए 34 देशों का  एक ‘इस्लामी सैन्यगठबंधन‘ बनाने का फैसला किया था। उसमें शिया बहुल ईरान को शामिल नहीं किए गया था। उस गठबंधन में सऊदी अरब ने पाकिस्तान को प्रमुखता के साथ जोड़ा।इस कारण ईरान काफी नाराज हुआ पाकिस्तान से। उस गठबंधन को ईरान विरोधी के रूप में भी देखा गयाजो सऊदी अरब का मुख्य क्षेत्रीय प्रतिद्वंदी है। इस बीचईरानपाकिस्तान से इसलिए भी नाराज रहता है क्योंकि वह  सऊदी अरब का चमचा है। ईरानसऊदी अरब में कुत्ताबिल्ली वाला बैर है। पाकिस्तान  सऊदी अरब के साथ खड़ाहोता हैपर वो ईरान से भी दूरी बनाकर नहीं रखना चाहता। पर ईरान को मालूम है कि जिस देश में शियायों का कत्लेआम होता हो वो देश उसका मित्र नहीं होसकता।

अब दिल्ली की ओर वापस चलते हैं। अमेरिकी के ईरान पर हमले पर विरोध जताने के लिए में राजधानी में अमेरिकी दूतावास पर बहुत सारे मुस्लिम संगठनों ने कुछदिन  पहले प्रदर्शन किया। इसी तरह के प्रदर्शन मुंबई  भी हुए। प्रदर्शनकारी अमेरिकी दूतावास तक पहुंचने में सफल रहे हैं। जबकि इसके आसपास भारी सुरक्षा केबंदोबस्त थे। पर कोई पाकिस्तान दूतावास के बाहर  प्रदर्शन क्यों नहीं कर रहा क्योंकि वहां पर   शियाओं को गाजर मूली की तरह से काटा जा रहा है।यानी प्रदर्शनों कोलेकर भी पूरी राजनीति हो रही है।  प्रदर्शनकारी अपनी सुविधा के अनुसार धरनेप्रदर्शन में शिरकत करते हैं। देखा जाए तो इस लिहाज से दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधककमेटी और अकाली दल ने ननकाना साहिब पर हमले में शामिल लोगों की गिरफ्तारी की मांग  को लेकर चाक्यपुरी में पाकिस्तान दूतावास पर प्रदर्शन किया और  सड़क पर लोगों को लंगर खिलाया।

पाकिस्तान स्थित ननकाना साहिब गुरुद्वारे में मुस्लिम कट्टरपंथियों की भीड़ ने पथराव कर दिया था। इससे तमाम भारतीय आहत थे। वह घटना दुर्भाग्यपूर्ण थी परउसमें अगर शाहीन बाग में धरना दे रहे लोग भी शामिल होते तो पाकिस्तान को एक संदेश जाता कि सारा भारत उससे नाराज है। पर यह नहीं हुआ। दरअसलननकाना साहिब में मुस्लिम युवक ने ग्रंथी की बेटी को अगवा कर लिया था।

इसके बाद लड़की का धर्म परिवर्तन कराकर उससे निकाह कर लिया। इसके खिलाफ लड़की के पिता ने करतारपुर में धरना देने की चेतावनी दी थी। इसके बाद पुलिस नेलड़की को वापस पिता के पास भिजवा दिया था।इसके बाद उस युवक ने दोबारा लड़की को अगवा कर लिया। विरोध में सिखों ने प्रदर्शन कियाजिसे स्थानीय मुसलमानोंने समुदाय के खिलाफ मान लिया। इसी वजह से गुरुद्वारा साहिब पर पथराव किया गया।

याद रखिए  कि  जेएनयू मसले पर लाहौर में प्रदर्शन करने वालों ने  ननकाना साहिब की घटना पर कुछ नहीं बोला था। भारत के कुछ शहरों में नागरिकता संशोधनकानून के विरोध में धरना प्रदर्शन करने वालों को भी पाकिस्तान के सिख समाज के दर्द का अहसास नहीं हुआ। यानी यहां तो कहने को सब भाईभाई हैं, पर चिंता कुछलोग अपनों की ही करते हैं।

 आर.के.सिन्हा

(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)  

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