ह दुखद व आश्चर्यजनक है कि भारत के मुसलमान स्वयं को मध्य पूर्व एशिया के अरबी, तुर्क, शिया व सुन्नी मतबों से जोड़ते हैं यद्यपि इतिहास गवाह है कि भारत में अधिसंख्य मुस्लिम भारत मूल के ही हैं व भारत में इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा बलात व मजबूरी में इस्लाम मत में परिवर्तित लोग हैं। मुख्यधारा के इस्लामिक देश आज भी भारत के मुसलमानों को सच्चा मुसलमान नहीं मानते। किंतु भारत के मुसलमानों का एक वर्ग अपनी जड़ें आज भी मध्यपूर्व के देशों में ही तलाशता है जो सही नहीं। सच्चाई तो यह है कि भारत पर आक्रमण व राज करते समय इस्लामिक आक्रमणकारियों ने भारत की हिंदू संस्कृति, गुरुकुल, भाषा, वेषभूषा, मंदिर व सभ्यता को नष्ट करने व उसको इस्लामिक बनाने के लिए हर संभव वैध व अवैध तरीके अपनाए। इस्लाम के बाद जब भारत पर ईसाइयों का शासन स्थापित हुआ तब उन्होंने भी वही क्रम दोहराया जो मुस्लिम आतताइयों ने अपनाया था यानि भारत की संस्कृति, सभ्यता को नष्ट कर पश्चिमी व ईसाई संस्कृति को थोपना। मुस्लिम व इसके आक्रमणकारियों दोनों ने ही दोनों हाथों से भारत की विपुल समृद्धि व सम्पन्नता को लूटा व अपने मूल देशों में ले गए। आजादी के आंदोलन का अंत हिंदू-मुस्लिम के आधार पर भारत के विभाजन के रूप में हुआ और आजादी मिलने के बाद भी भारत व पाकिस्तान में विवाद बने रहे। इससे दक्षिण एशिया नाटो देशों के लिए स्थायी विवाद का क्षेत्र बन गया। इसी के कारण अमेरिका, ब्रिटेन सहित नाटो देश दक्षिण एशिया के देशों को अपनी उंगलियों पर नचाते रहते हैं। आजादी के बाद जहां पाकिस्तान अरब देशों के प्रभाव में एक इस्लामिक देश बन गया वहीं भारत धर्मनिरपेक्ष। सच्चाई यह भी है कि नेहरू द्वारा थोपी इस धर्मनिरपेक्षता व देश की आर्थिक नीतियों को आजादी के बाद भी पश्चिमी ताकतें ही निर्धारित करती रहीं और भारत में ‘ड्रेन ऑफ वेल्थ’ यानि संपदा की निकासी व लूट की आजादी से पूर्व की नीतियां उसी प्रकार चलती रहीं। ‘तेल के खेल’ एवं ‘बांटो व राज करो’ की राजनीति में भारत की मुख्यधारा के लोग यानि हिंदू कहीं न कहीं उपेक्षित रहे व मुस्लिम और ईसाई व अन्य अल्पसंख्यक ही व्यवस्था पर हावी रहे। भारत के बहुसंख्यक हिंदुओं के मुख्यधारा में आने का संघर्ष स्वतंत्रता के आंदोलन से ही चला आ रहा था किंतु कांग्रेस पार्टी उसको सफलतापूर्वक निबटाती रही। अस्सी के दशक में साम्यवाद के खिलाफ उभरे वहाबी कट्टर इस्लाम के खेल, जिसको नाटो देशों का समर्थन था, के उभरने से भारत में भी ‘हिन्दू स्वाभिमान’ की भावना पुन: उभरी जो राम मंदिर आंदोलन के रूप में हिंदुओं को जोड़ती गयी व राजनीतिक रूप से भाजपा के उभार का कारण बनी। नरेंद्र मोदी के रूप में भाजपा की सन 2014 व 2019 की जीत भारत के इसी बहुसंख्यकवाद की जीत है जो अपने पुराने गौरव, स्वाभिमान के साथ ही सत्ता में अपना पलड़ा व निर्णायक भूमिका चाहता है व वैश्विक पटल पर भी भारत की निर्णायक भूमिका देखना चाहता है। यह स्वभाविक भी है। अब यह सरकार ऐसे सभी काम बंद कराएगी ही जो ‘बांटो और राज करो’ की नीतियों को आगे बढ़ाते रहे हैं या मुस्लिम व ईसाई शासकों द्वारा हिंदुओं को दबाने, कुचलने व उनकी संस्कृति व सभ्यता को मिटाने के लिए किए जाते रहे। अगर मोदी सरकार भारत में कश्मीर से संविधान के अस्थायी अनुच्छेद 370 व धारा 35ए को समाप्त करती है व भारत की न्यायपालिका राम मंदिर के निर्माण को कानून सम्मत बताती है, नक्सली आंदोलन व विभिन्न देश विरोधी आंदोलनों को निबटाती है, देश में जाति, धर्म, भाषा व क्षेत्र की राजनीति को समाप्त करना चाहती है व समान नागरिक संहिता व जनसंख्या नियंत्रण कानून भी लाना चाहती है, तो इसमें क्या अनुचित है? देश में पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान से आए व वहां के मुस्लिमों द्वारा सताए हिंदू व अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के शरणार्थियों को नागरिकता देती है व मौजूद करोड़ों घुसपैठियों की पहचान करने के लिए एनपीआर व एनआरसी के बारे में कदम उठाती है तो यह कैसे गलत हो सकता है? किंतु वोट बैंक व बांटो व राज करो की राजनीति करने वाले सेकुलर राजनीतिक दलों, जिनकी जड़ें व पोषण विदेशी फंडिंग से जुड़ी हैं, उनको तो मिर्ची लगेगी ही व कष्ट होगा ही। किंतु अब भारत का बहुसंख्यक व मुख्यधारा का समाज जाग गया है व एक होकर अपने अधिकारों की मांग कर रहा है और सत्ता में भागीदारी की भी। अगर भारत पुन: अपनी संस्कृति, सभ्यता, धर्म, भाषा, योग, आध्यात्म, आयुर्वेद के साथ ही आधुनिक विज्ञान, प्रौद्योगिकी को साथ लेकर आगे बढऩा चाहता है तो इसमें क्या गलत है? अगर भारत में ‘भारत तत्व’ की खोज नहीं होगी तो कहां होगी? क्यों नहीं हम सैन्य रूप से मजबूत व आर्थिक रूप से सशक्त राष्ट्र नहीं बनने चाहिए? क्यों हम गुलामी के चिह्नों को युगों युगों तक ढोते रहे? क्यो अल्पसंख्यक वाद के नाम पर देश की एक बड़ी आबादी को विकास की मुख्यधारा से दूर कर दे? सच्ची बात यही है कि देश के सेकुलर दलों के पास भविष्य के भारत का कोई नक्शा ही नहीं है, वे तो यथा स्थिति बनाये रख येन केन प्रकारेण सत्ता में आने को लालायित हैं इसलिए भ्रम व अफवाहें फैलाकर ‘शाहीन बाग’ जैसे नकारात्मक व फर्जी आंदोलन खड़े करने की कोशिश में लगे हैं व साम्प्रदायिक विभाजन, हिंसा व दंगों का सहारा तक ले रहे हैं। सच्चाई यह है कि झूठ व सत्ता के लालच की यह हांडी अब पकने वाली नहीं है क्योंकि देश का बहुसंख्यक जग चुका है व सेकुलर दलों के खेल से ऊबा अल्पसंख्यक उसके साथ समन्वय बैठाकर चलने को तैयार है व सब भेद भुलाकर भारतीय बनने को तैयार है ताकि हम विश्व गुरु भारत का निर्माण कर सके। आशा है भारत सरकार व जनता शीघ्र ही इन कुत्सित मानसिकता के भ्रमित व अराजक लोगों को कूटनीति व कड़ी कार्यवाही के द्वारा पटरी पर ले आएगी व मुख्यधारा का भारत अपनी विशाल व समृद्ध संस्कृति व सभ्यता के माध्यम से पुन: ‘भारत तत्व’ की स्थापना कर समस्त मानव सभ्यता को आलोकित व प्रकाशित कर सकेगा।
अनुज अग्रवाल
संपादक