रक्षामंत्री राजनाथ सिंह इनदिनों एक अलग तरह की सक्रियता को लेकर चर्चा में है। उनका राजनीतिक प्रभुत्व एवं कद में उछाल भले ही भारतीय जनता पार्टी के एक वर्ग के लिये हैरानी का कारण बन रहा हो, लेकिन इसके दूरगामी सकारात्मक परिणाम पार्टी के हित में होने वाले हैं। इन्हीं राजनाथ सिंह के कारण नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने एवं भाजपा को अमाप्य ऊंचाइयों मिली हंै। संघ के विश्वासप्राप्त होने की बजह से वे अनेक अन्दरूनी बाधाओं एवं विरोध के बावजूद शीर्ष के आसपास बने रहे हैं और वे ऐसी पात्रता रखते हैं कि भविष्य में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी जा सके।
यह सर्वविदित है कि जब नरेन्द्र मोदी ने अपने बल पर भारी बहुमत से दोबारा सरकार बनाई थी तो राजनाथ सिंह को कमजोर करने एवं उन्हें किनारेे करने का अहसास दिलाने के लिये महत्वपूर्ण कैबिनेट समितियों में जगह नहीं दी गयी, लेकिन सुबह लिये गये इन निर्णयों को सांय होने से पहले बदलना पड़ा और लगभग सभी समितियों में उन्हें शामिल किया गया। यह एक सन्देश था कि उनकी उपेक्षा स्वीकार्य नहीं है। जब से नया मंत्रिमंडल बना है एवं भाजपा सरकार सक्रिय बनी है, राजनाथ सिंह शांत होकर अपने मंत्रालय में व्यस्त दिखाई दिये। उनके आसपास बिखरा सन्नाटा हैरान करने वाला था, लेकिन पिछले कुछ सप्ताहों में राजनाथ सिंह की सक्रियता एवं शोहरत की बुलन्दियां एक नये परिवेश के निर्मित होने का संकेत दे रही है।
हाल ही में सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी ने अपने मंत्रालय की एक महत्वपूर्ण बैठक में बतौर मुख्यअतिथि राजनाथ सिंह को आमंत्रित करके पार्टी में एक नयी हलचल पैदा कर दी है। पार्टी के कार्यकर्ता इस बात से अंचभित है कि एक सड़क सुरक्षा पर होने वाली बैठक में रक्षामंत्री को बुलाने का क्या औचित्य है, क्या उसके पीछे कोई राजनीति पक रही है? क्या पार्टी में एक नया गुट पनप रहा है? क्या इस नये पनप रहे राजनाथ-गडकरी के गुट को संघ का वरदहस्त प्राप्त है? क्या संघ गृहमंत्री के कट्टरवादी चेहरों की जगह उदारवादी चेहरों को आगे बढ़ाना चाहता है? राजनाथ सिंह के अनूठे उदारवादी व्यक्तित्व, राजनीतिक कौशल एवं जन-स्वीकार्यता के कारण पार्टी में उनकी उपेक्षा एवं उनकी स्वयं की उदासीनता हैरानी का कारण बनी रही है, लेकिन अब वे सक्रिय हुए हंै तो यह उनके स्वयं के साथ-साथ पार्टी के हित में है। राजनाथ जैसे शीर्ष एवं अनुभवी राजनेताओं का विभिन्न मोर्चों पर सक्रिय रहना न केवल पार्टी बल्कि देशहित में हैं। आपने ‘साल’ का वृक्ष देखा होगा- काफी ऊंचा ‘शील’ का वृक्ष भी देखें- जितना ऊंचा है उससे ज्यादा गहरा है। राजनाथ सिंह के व्यक्तित्व एवं कृतित्व में ऐसी ही ऊंचाई और गहराई है, जरूरत है इस गहराई एवं ऊंचाई को मापने की, उसके अंकन की एवं राष्ट्र एवं पार्टी हित में उसका उपयोग करने की।
राजनाथ सिंह चतुर एवं प्रभावी राजनेता होने के साथ-साथ उदारवादी चिन्तन के वाहक है। हाल ही में उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक सभा को संबोधित करते हुए मुसलमान मतदाताओें से जोरदार अपील की और उन्हें नागरिकता संशोधन विधेयक पर आश्वस्त करने की कोशिश की। उनकी यह व्यापक सोच एवं प्रभावी अपील असरकारक बनी और उसका लाभ इन चुनावों में पार्टी को मिलना निश्चित है। एकाएक पार्टी के पक्ष में दिल्ली में जो वातावरण बना है, उनके अनेक घटक है, लेकिन राजनाथ सिंह जैसे कद्दावर नेता का स्पष्ट राजनीति मत, साहसी एवं निष्पक्ष होना भी पार्टी के लिये लाभकारी है, यह उनका साहस ही है कि उन्होंने केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और सांसद प्रवेश वर्मा के आपत्तिजनक बयानों की आलोचना की। शायद ऐसे बयान एवं कट्टरता संघ भी पसन्द नहीं करता है। यही कारण है कि कट्टर आडवानी के मुकाबले वाजपेयी को आगे कर पार्टी में संतुलन बनाये रखने की कोशिश संघ ने की थी। आज पार्टी में कट्टरवादी शक्तियां सक्रिय है, और उसका नुकसान पार्टी को झेलना पड़ रहा है। ऐसी जटिल स्थितियों में राजनाथ जैसे उदारवादी एवं सौहार्दपूर्ण सोच वाले नेता को उन्हें पार्टी में एक नये स्वरूप में प्रतिष्ठापित करना चाहती है, संभवतः वे वाजपेयी के नये अवतार के रूप में जगह बनाये। क्योंकि पार्टी को कट्टरतादी छवि से उपरत करके ही सर्वव्यापी बनाया जा सकता है।
मैंने राजनाथ सिंह को अनेक रूपों में देखा है, उनकी कर्तव्यपरायणता और साहसिकता अनूठी है। इससे बड़ा राजनीतिक चरित्र और क्या हो सकता है? वे अपनी विलक्षण सोच एवं अद्भुत कार्यक्षमता से असंख्य लोगों के प्रेरक बने हुए हंै। उनका राजनीतिक जीवन एक यात्रा का नाम है- आशा को अर्थ देने की यात्रा, ढलान से ऊंचाई देने की यात्रा, गिरावट से उठने की यात्रा, मजबूरी से मनोबल की यात्रा, सीमा से असीम होने की यात्रा, जीवन के चक्रव्यूह से बाहर निकलने की यात्रा, बिखराव से जुड़ाव की यात्रा, भारतीयता को मजबूती देने की यात्रा।
बतौर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में राजनाथ सिंह की नियुक्ति एवं उनका कार्यकाल यादगार रहा, इसमें अटल बिहारी वाजपेयी के आशीर्वाद की अहम भूमिका थी। संघ ने राजनाथ में एक ऐसा शख्स देखा, जो संयमी स्वयंसेवक रहा है और जिसके बारे में संघ के शीर्ष अधिकारियों की अच्छी राय रही है। राजनाथ का कोई भी भाषण उठाकर देखिए उसमें संघ और अटल की छाया नजर आएगी, आज वे नरेन्द्र मोदी की उपलब्धियों को भी प्रभावी प्रस्तुति देते हैं। नागपुर के प्रति उनकी आस्था दरअसल संघ के शीर्ष नेतृत्व के प्रति आस्था है और यही आस्था राजनाथ के निरंतर विकास का सबब भी। भले ही राजनाथ के पास अपना कहने को गिनती के लोग हो, फिर भी राजनाथ ने संघ को भरोसे में लेकर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और युक्तियों को आकार देने में सफलता पायी है, वे कभी चुप्पी तो और कभी आत्मबलिदान की मुद्रा के सहारे आगे बढ़ते रहे। उन्होंने भले ही कोई चमत्कार सरीखा इतिहास न गढ़ा हो, फिर भी उनमें संभावनाओं को तलाशा जा सकता है। खुद राजनाथ का मानना है कि उन्होंने हमेशा पाटी हितों और आदर्शों को ध्यान में रखकर काम किया। मगर फिर भी चुनावी सफलता राजनाथ से दूर ही रही। उनके खाते में महज चार चुनावी जीत दर्ज हैं। कांग्रेस विरोधी लहर में इमरजेंसी की जीत, बतौर मुख्यमंत्री उपचुनाव और फिर विधानसभा चुनाव में जीत, लोकसभा चुनाव में गाजियाबाद से जीत और फिर हालिया लखनऊ। आज भी जब राजनाथ विरोधी सक्रिय हैं, मोदी-शाह की शानदार उपलब्धियां की चुनौती है तो संघ ही एकमात्र सहारा है उनकी राजनीति का। मगर संघ भी देर-सवेर किसी दूसरे राजनाथ को अपना अर्जुन बना सकता है और उस स्थिति में राजनाथ की राजनीति चुक भी सकती है। ऐसी स्थिति में उनके सामने अपनी स्वच्छ छवि के दावे और संबंधों का दम ही उनकी राजनीति को चमका सकती है। वे भाजपा की एक बड़ी ताकत है, एक कर्मयोद्धा की तरह सक्रिय होकर भी जल्दीबाजी में नहीं रहते। वे दृढ़ होकर भी कभी कठोर नहीं हंै। वे सर्तक हैं, किन्तु सुस्त नहीं हैं। वे उत्साह एवं ऊर्जा से भरपूर हैं, अहंकारी नहीं हैं। एक सफल राजनीतिज्ञ के साथ-साथ एक मनुष्य होने के नाते उनमें मानवता है, दयालुता है, भावुकता है, पर आसानी से इन गुणों को परिलक्षित नहीं होने देते। ऐसी ही कुछ विलक्षणताएं उन्हें भारत के भावी नेता के रूप में प्रतिष्ठापित करने में सहायक हो सकती है, और उन्ही के कारण संघ भी उनका सहारा बनता है और भविष्य में बनता रहेगा। सचाई यह है कि कम-से-कम राजनाथ की राजनीति गतिशील भी है और उसमें अनंत संभावनाएं भी है।
(ललित गर्ग)